रोज़ बस में गाना गाकर भीख मांगने वाली बुढ़िया निकली लता मंगेशकर की पुराने ज़माने की एक गुमनाम शिष्या

एक भूला हुआ सुर: शारदा देवी की दर्द भरी कहानी 

मुंबई की लोकल बसों और ट्रेनों में सफर करते हुए अगर आपने कभी एक फटेहाल, कमजोर, लेकिन बेहद सुर में गाती हुई एक बूढ़ी औरत को सुना है, तो शायद आपको अंदाजा नहीं होगा, उसके गले में कितना दर्द और कितनी सच्चाई है। मुंबई, जहां हर कोई सपनों के पीछे भागता है, उसी सिटी ऑफ ड्रीम्स में सालों से शारदा देवी रोज़ सुबह दादर से बोरीवली की लोकल बस में बैठती, अपनी कंधे पर एक पुराना थैला और हाथ में एक झोली लिए।

बुजुर्ग औरत, उम्र 70 पार, चेहरा झुर्रियों से भरा, आंखों में ठहरी उदासी—लेकिन जैसे ही सुर लगाती, ‘अजीब दास्तान है ये’, ‘लग जा गले’, ‘आपकी नजरों ने समझा’ जैसे दौर के गीतों की पंक्तियाँ गाती, तो सुनने वाला रुककर देखता, चौंकता भी था। उसकी आवाज़ में उम्र की थकावट जरूर थी, पर सुर, लय और हरकतों में एक ऐसा जादू था कि कोई भी संगीत-प्रेमी सुनकर दंग रह जाए।

शारदा देवी के इस फटेहाल जीवन से दिनभर जो थोड़ा-बहुत पैसा मिलता, उससे वे अपना और पेट और धारावी के सीलन भरे एक छोटे-से कमरे का किराया भर पातीं। लेकिन किसी को यह अंदाजा न था कि यह औरत, जो आज बसों में भीख मांग रही है, कभी संगीत की दुनिया की उम्मीद थी, जिसे खुद भारत रत्न लता मंगेशकर जी ने अपनी शिष्या चुना था।

कहानी का मोड़ – रोहन की एंट्री एक दिन, एक युवा संगीतकार रोहन उसी बस में सफर कर रहा था। रोहन आज के ऑटो-ट्यून और डिजिटल म्यूजिक से बुरी तरह तंग और एक सच्ची रूहानी आवाज की तलाश में था। जैसे ही शारदा देवी ने गाना शुरू किया, रोहन मंत्रमुग्ध हो गया। उसने सुना—उस आवाज में वो ठहराव, वो गहराई, वो बारीकी थी जो बस किसी महान कलाकार में होती है। गाना खत्म होने के बाद जब बाकी लोग पैसे दे रहे थे, रोहन उनके पास गया—“मांजी, आपकी आवाज़ में जादू है! आपने कहाँ से सीखा?” शारदा देवी ने बस एक फीकी मुस्कान दी और अगले स्टॉप पर उतर गईं। रोहन समझ गया कि ये कहानी साधारण नहीं।

अगले कुछ दिनों तक वह कई बार उसी रूट पर गया, उन्हें ढूँढने की कोशिश की। आखिर रोहन ने चुपके से उनकी आवाज रिकॉर्ड कर अपने गुरु, बॉलीवुड के वरिष्ठ संगीतकार श्री बलवंत सहाय को सुनाया। सहाय जी की आंखों में भी झिलमिलाती हैरानी थी—“ये तो कोई बड़ी गायिका लगती है, बिल्कुल दीदी (लता मंगेशकर) की झलक है।” गुरु से सुना—“करीब ४० साल पहले एक लड़की थी, शारदा। उसकी आवाज़ में सरस्वती वास करती थी। लता जी ने शारदा को शिष्या बनाया था। लेकिन वो अचानक गायब हो गई। किसी को नहीं पता चला। शायद शादी करके छोड़ दिया, सब समझ बैठे।”

रहस्य उजागर, दर्दनाक सच्चाई रोहन अब इस रहस्य को सुलझाने के लिए बेचैन था और आखिरकार पता चला कि वह महिला सच में वही शारदा देवी हैं। रोहन एक दिन उनके घर गया, सच सामने रखा, शारदा देवी की आंखों से आँसू फूट पड़े। 40 साल की चुप्पी टूटी, उन्हें अपनी लता दीदी की वह सारी बातें और तारीफें याद आ गईं, पर साथ ही टूटी हुई किस्मत की कहानी भी।

उन्होंने रोहन को बताया—”कैसे एक युवा संघर्षरत संगीतकार रमेश से उन्हें प्यार हुआ। शादी के बाद रमेश उसकी प्रतिभा से जलने लगा। एक दिन बड़े मौके वाले दिन रमेश पैसे लेकर छोड़ गया। उस सदमे और दर्द से शारदा जी का गला भी खराब हो गया, आवाज़ चली गई, घर छूट गया और सब कुछ उजड़ गया। गरीबी, गुमनामी, मजदूरी और अब भीख… जीवन बस खींचती जा रही थी।” उन्हें डर था कि उन्होंने लता दीदी का नाम डुबो दिया, इसलिए अपनी असलियत छिपा ली।

सम्मान की वापसी रोहन और बलवंत सहाय जी ने ठान लिया—शारदा जी का हुनर ऐसे गुमनामी में नहीं जाने देंगे। उन्होंने अपने शो ‘एक भूला हुआ सुर’ में शारदा देवी को बुलाया। शो के मंच पर शारदा देवी सफेद साड़ी में कांपती खड़ी थीं। जब ऑर्केस्ट्रा ने संगीत छेड़ा, शारदा देवी ने लता जी का बेहद मुश्किल गीत गाया—उस टूटती आवाज में 40 साल का दर्द और साधना घुल गया। गाना खत्म हुआ, ऑडिटोरियम में सन्नाटा… फिर एक ऐसा ख़ूबसूरत स्टैंडिंग ओवेशन, जो कभी न भूलाने वाला था। हर संगीतकार, श्रोता—सभी की आंखें नम थीं। एक भूली आवाज़, एक भूली हुई प्रतिभा, दुबारा दुनिया के सामने आई।

नया जीवन, सच्ची साधना शारदा देवी अब रातों-रात मशहूर हो गईं, मगर इस बार वे शोहरत की भीड़, पैसे के लिए नहीं गाईं। रोहन और बलवंत सहाय जी की मदद से ‘शारदा संगीत साधना’ अकादमी खोली। वहां गरीब, बेसहारा बच्चों को संगीत सिखाने लगीं—”मुझे जो लता दीदी से मिला, वह मैं आगे देना चाहती हूँ।”

शारदा देवी ने अपनी बाकी जिंदगी इन्हीं बच्चों और संगीत के नाम कर दी। उनका नया सम्मान उनके लिए सच्चे मोती की तरह था।

सीख यह कहानी बताती है—सच्चा हुनर, सच्ची कला कभी मरती नहीं। हालात चाहे जैसे भी हों, हौसला और सच्ची साधना हमेशा रंग लाती है। आज शारदा देवी हजारों जरूरतमंद बच्चों और उभरते कलाकारों के लिए प्रेरणा हैं।

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