शादी के दिन दुल्हन ने दहेज की मांग सुनते हीदिया मंडप छोड़ दिया… और फिर जो किया
नंदिनी की कहानी: दहेज के खिलाफ एक बेटी की आवाज
शादी का दिन हर लड़की के लिए उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा सपना होता है। नंदिनी भी इसी सपने को लेकर मंडप में बैठी थी, लाल बनारसी साड़ी में, आंखों में उम्मीदें और चेहरे पर मुस्कान। उसके पिता रामस्वूप जी सालों से मेहनत कर के बेटी की शादी के लिए पैसे जोड़ रहे थे। आज उनका सपना पूरा हो रहा था, लेकिन किस्मत ने मंडप को इम्तिहान का मैदान बना दिया।
पंडित मंत्र पढ़ रहे थे, मेहमान ताली बजा रहे थे, ढोल नगाड़ों की आवाज से माहौल रंगीन था। तभी दूल्हे का बड़ा भाई अचानक खड़ा हुआ और ऊंची आवाज में बोला—“शादी तभी होगी जब हमें लाखों रुपये कैश, मोटरसाइकिल और सोने की चैन मिलेगी।” मंडप में सन्नाटा छा गया। मेहमानों की निगाहें इधर-उधर घूमने लगीं, औरतें फुसफुसाने लगीं—यह तो दहेज की मांग कर रहे हैं।
नंदिनी ने धीरे से अपने पिता की ओर देखा। रामस्वूप जी के होठ कांप रहे थे, आंखों में आंसू थे। मां सावित्री देवी भी रो रही थीं। दूल्हा चुपचाप बैठा रहा। नंदिनी का गला सूख गया। वही पल, जिसका उसने बचपन से सपना देखा था, अब उसके मां-बाप की इज्जत को नीलाम किया जा रहा था।
कुछ रिश्तेदार समझाने लगे—भाई साहब, लड़के वालों की मांग पूरी कर दीजिए, बेटी की जिंदगी है। नंदिनी के दिल पर शब्द हथौड़े की तरह गिर रहे थे। उसे महसूस हुआ कि उसकी मां-बाप की हड्डियां भी इस अपमान के बोझ से झुक गई हैं। भीड़ में कई लोग तमाशा देख रहे थे, कोई आगे बढ़कर यह कहने की हिम्मत नहीं कर रहा था कि यह गलत है।
नंदिनी के कानों में मां की रुलाई और पिता की टूटी सांसें गूंज रही थीं। उसके दिल ने फुसफुसाया—क्या यही वह शादी है जिसका सपना मैंने देखा था? क्या यही वह रिश्ता है जिसमें मुझे अपनी जिंदगी गुजारनी है, जहां मेरी कीमत रुपयों और गहनों से तौली जा रही है?
ढोल नगाड़े बंद हो चुके थे, पंडित भी चुप हो गए थे। पूरा मंडप अब एक अदालत बन चुका था। लड़की का परिवार कटघरे में था और दूल्हे वाले जज। नंदिनी की उंगलियां कांप रही थीं, उसने अपनी शादी की माला कसकर पकड़ी। आंखें आंसुओं से भर गईं। मगर दिल के अंदर से एक आग उठी। वह धीमे से खड़ी हुई। सभी मेहमानों की आंखें उसकी ओर मुड़ गईं। पिता ने उसका हाथ पकड़ना चाहा, मगर नंदिनी ने धीरे से हाथ छुड़ा लिया और पहली बार उसकी आवाज गूंजी—कांपती हुई मगर इतनी तेज कि पूरे मंडप में खामोशी छा गई।
“पंडित जी रुक जाइए। यह शादी आगे नहीं होगी।”
नंदिनी खड़ी थी। उसकी लाल साड़ी की चमक अब आंसुओं से धुंधली हो रही थी। मगर उसकी आंखों में पहली बार डर की जगह आग दिख रही थी। पूरे मंडप में सन्नाटा छा गया। कोई मेहमान हंस नहीं रहा था, कोई ढोल नहीं बज रहा था। हर किसी को लग रहा था कि शायद लड़की भावुक हो रही है और थोड़ी देर में बैठ जाएगी। लेकिन नंदिनी ने गहरी सांस ली और साफ शब्दों में कहा—
“शादी अगर रुपयों और गहनों से खरीदनी है तो मैं ऐसी शादी नहीं करूंगी।”
भीड़ में फुसफुसाहट शुरू हो गई—अरे यह लड़की क्या कह रही है? इतनी बड़ी बेइज्जती, यह तो पूरे गांव में नाम डुबो देगी। दूल्हे का पिता गुस्से में खड़ा हुआ—“चुप रह लड़की, दहेज तो परंपरा है। हर घर में यही होता है। तुम कौन होती हो इंकार करने वाली?”
नंदिनी ने उसकी आंखों में सीधी नजर डाली—“परंपरा अगर औरत की इज्जत बेचकर चलती है तो ऐसी परंपरा पर लानत है। मेरी मां के आंसू और मेरे पिता की बेइज्जती कोई सौदा नहीं है। मैं चुप नहीं रहूंगी।”
उसके शब्द गूंज उठे। पंडाल के बाहर तक लोग सुनने लगे। रामस्वूप जी का चेहरा शर्म से झुक गया था, मगर अंदर कहीं बेटी की ताकत देखकर उनका सीना गर्व से भर रहा था। सावित्री देवी रोते-रोते बेटी का हाथ पकड़ने लगीं—“बेटा, तू क्या कर रही है? लोग हंसेंगे, ताने देंगे।”
नंदिनी ने धीरे से मां का हाथ थामा—“मां, लोग तो वैसे भी ताने देंगे। लेकिन अगर आज मैं चुप रही तो सारी जिंदगी मेरी चुप्पी मेरे गले में फांसी बनकर लटकेगी। मैं अपनी शादी को सौदे की दुकान नहीं बनने दूंगी।”
दूल्हा अब तक चुप था। लेकिन आखिरकार उसने धीमी आवाज में कहा—“नंदिनी, सबके सामने तमाशा मत बनाओ। जो मांग है पूरी कर दो, बाद में सब ठीक हो जाएगा।”
नंदिनी की आंखों से आंसू बह निकले—“तुम्हें लगता है कि मेरी जिंदगी की शुरुआत मेरे मां-बाप को कर्ज में डुबोकर होगी तो बाद में सब ठीक हो जाएगा? नहीं, यह रिश्ता यहीं खत्म होता है।” उसने अपने गले की माला उतार कर जमीन पर रख दी।
भीड़ से कुछ औरतें उठकर उसकी हिम्मत बढ़ाने लगीं—“लड़की सही कह रही है। दहेज की वजह से कितनी बेटियां बर्बाद हुईं। कोई तो आवाज उठाए।” लेकिन दूसरी तरफ दूल्हे के रिश्तेदार चिल्लाने लगे—“यह हमारी बेइज्जती है। लड़की बिगड़ी हुई है।”
वातावरण गर्म हो चुका था। कैमरे वाले रिपोर्टर जो पहले सिर्फ शादी शूट करने आए थे, अब इस घटना को रिकॉर्ड करने लगे। नंदिनी ने वहीं खड़े होकर सबके सामने घोषणा की—
“आज मैं अकेली खड़ी हूं, लेकिन कल यही आवाज हर उस लड़की की होगी जो दहेज की वजह से रोती है। यह शादी यहीं समाप्त होती है।”
रामस्वूप जी कांपते कदमों से बेटी के पास आए—“बेटा, तूने आज वो कर दिखाया जो हम जैसे लाखों पिता करना चाहते थे, पर डर गए। आज तूने मेरी झुकी हुई नजरों को सीधा कर दिया।”
भीड़ में तालियां बजने लगीं। कुछ लोग अब नंदिनी की बहादुरी की तारीफ करने लगे। लेकिन दूल्हे का परिवार गुस्से में मंडप छोड़कर चला गया। माहौल में तनाव भी था और गर्व भी। आज पहली बार किसी बेटी ने अपने ही मंडप से दहेज का पर्दाफाश किया था।
मंडप में दूल्हे का परिवार जाते ही माहौल में खामोशी छा गई। मेहमानों को लग रहा था कि अब शादी टूट चुकी है और लड़की के परिवार पर ताने बरसेंगे। लेकिन नंदिनी का चेहरा अब पहले जैसा डरा हुआ नहीं था। उसकी आंखों में आंसुओं की जगह चमक थी। शहर और गांव से आए कई मेहमान धीरे-धीरे मंडप से बाहर निकलने लगे।
तभी कुछ पत्रकार जो वहां रिकॉर्डिंग कर रहे थे, आगे बढ़े। उनमें से एक ने नंदिनी से पूछा—“बिटिया, तुमने इतनी बड़ी भीड़ में अपने ही मंडप से दहेज के खिलाफ आवाज उठाई? क्या तुम्हें डर नहीं लगा कि लोग क्या कहेंगे?”
नंदिनी ने बिना झिझके जवाब दिया—“लोग चाहे कुछ भी कहें। मैं जानती हूं कि आज मैंने अपने मां-बाप की इज्जत बचाई है। शादी अगर अपमान पर टिकी है तो ऐसी शादी मुझे मंजूर नहीं। यह सिर्फ मेरी लड़ाई नहीं है, यह हर बेटी की आवाज है।”
उसके यह शब्द कैमरे पर रिकॉर्ड हो गए। उसी रात कई न्यूज़ चैनलों और सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो गया। हजारों लोग उसके साहस की तारीफ करने लगे। अगले दिन गांव की चौपाल पर चर्चा का माहौल था। बुजुर्ग कह रहे थे, लड़की ने ठीक किया—दहेज की आग ने बहुत घर जलाए हैं। लेकिन कुछ कट्टरपंथी लोग ताने कस रहे थे—यह तो नई पीढ़ी की बिगाड़ है। शादी तो समझौते पर चलती है।
इसी बीच नंदिनी खुद चौपाल पर पहुंची। उसकी मां-पिता साथ थे। भीड़ देखकर सबको लगा कि शायद वह अब पछता रही होगी। लेकिन नंदिनी ने वहां खड़े होकर सबको संबोधित किया—
“आज मैं आपके सामने खड़ी हूं उस हर लड़की की तरफ से जिसने दहेज की वजह से आंसू बहाए। दहेज एक ऐसा जहर है जिसने ना जाने कितनी बहनों की जान ली है। हम बेटियों को बोझ समझना कब बंद करेंगे? मेरी शादी टूटी है लेकिन मेरा आत्मसम्मान बचा है और मैं चाहती हूं कि कल की कोई बेटी मेरी तरह मजबूर ना हो।”
उसकी आवाज में गूंज थी। चौपाल में बैठे कई लोग खामोश हो गए। कुछ औरतों की आंखों से आंसू बह निकले। भीड़ में से एक बुजुर्ग उठे और बोले—
“बिटिया, तूने आज हम सबको आईना दिखा दिया है। आज से इस गांव में कोई दहेज की बात करेगा तो सबसे पहले हम उसे रोकेंगे।”
तालियां गूंजने लगीं। लोग जो पहले ताने दे रहे थे, अब भीड़ में धीरे-धीरे चुप हो गए।
उसी शाम पास के कॉलेज में छात्र-छात्राओं ने नंदिनी को आमंत्रित किया। मंच पर खड़े होकर उसने कहा—
“पढ़ाई-लिखाई का मतलब सिर्फ डिग्री लेना नहीं है, बल्कि गलत पर आवाज उठाना भी है। आज अगर हम सब मिलकर ठान लें कि दहेज नहीं देंगे और ना लेंगे तो हमारी आने वाली पीढ़ियां डर और अपमान से मुक्त होंगी।”
सारा हॉल तालियों से गूंज उठा। कई लड़कियों ने नारा लगाना शुरू किया—“दहेज प्रथा बंद करो। बेटी है सम्मान, बोझ नहीं।”
नंदिनी के शब्द अब सिर्फ मंडप या चौपाल तक सीमित नहीं थे। वे पूरे समाज की चेतना को हिला रहे थे। घर लौटते समय उसकी मां ने धीरे से कहा—
“बेटा, आज मुझे लगता है कि तू हमारी नहीं, पूरे समाज की बेटी है।”
रामस्वूप जी ने गर्व से बेटी के सिर पर हाथ रखा और कहा—
“नंदिनी, तूने वह कर दिखाया जो शायद मैं अपने जीवन में भी नहीं कर पाता। आज से तू हमारी नहीं, इस गांव की शक्ति है।”
सीख:
नंदिनी की कहानी हर बेटी को हिम्मत देती है कि वह अपने आत्मसम्मान के लिए खड़ी हो सकती है। दहेज जैसी कुप्रथा को खत्म करने के लिए एक आवाज ही काफी है, जो पूरे समाज को बदल सकती है।
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बेटी है सम्मान, बोझ नहीं!
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