शेयर मार्किट के नाम पर लोगों को चुना लगाने वाला जब पकड़ा गया तो उसकी बातें सुनकर पुलिस के भी होश उड़

लालच का पिंजरा – मुंबई के शेयर बाजार ठग की सच्ची कहानी

भाग 1: सपनों की नगरी और लालच का जाल

मुंबई, जिसे सपनों की नगरी कहा जाता है, हर रोज लाखों लोग यहां अपनी किस्मत आजमाने आते हैं। दलाल स्ट्रीट की ऊंची इमारतें और अरबों का कारोबार हर किसी को अपनी ओर खींचता है। इसी भीड़ में एक नाम बहुत तेजी से ऊपर उठ रहा था – अनिल मेहरा। देखने में किसी फिल्म स्टार से कम नहीं, महंगे इटालियन सूट, कलाई पर रोलेक्स घड़ी, और Mercedes कार। उसका ऑफिस नरिमन पॉइंट की 20वीं मंजिल पर था, जहां से पूरा समुद्र दिखाई देता था।

अनिल मेहरा इन्वेस्टमेंट कंसलटेंसी का मालिक था। उसका दावा था कि उसके पास एक ऐसा एल्गोरिदम है जो शेयर बाजार में कभी फेल नहीं होता। वह लोगों को कहता, “बाजार गिरे या उठे, मेरा सॉफ्टवेयर हमेशा मुनाफा कमाता है।” लोग अपनी गाढ़ी कमाई लेकर उसके पास आते – कोई बेटी की शादी के लिए, कोई रिटायरमेंट का पैसा लेकर।

अनिल मीठी बातें करता, कॉफी पिलाता, और 15-20% महीने का रिटर्न देने का वादा करता। सोचिए, जहां बैंक साल भर में 6-7% देते हैं, वहां अनिल महीने का 20% देने की बात करता था। लालच का गणित ऐसा था कि समझदार से समझदार इंसान भी अपना दिमाग बंद कर देता था।

अनिल ने शहर के महंगे होटलों में सेमिनार आयोजित किए। स्टेज पर आते ही जादू कर देता। अपनी गरीबी की झूठी कहानी सुनाता, बताता कि कैसे शेयर बाजार ने उसे राजा बना दिया। “अब मैं आप सबको अमीर बनाना चाहता हूं।” लोग तालियां बजाते, सेमिनार खत्म होते ही चेक बुक लेकर लाइन में लग जाते।

भाग 2: पोंजी स्कीम का मायाजाल

शुरुआत में सब कुछ अच्छा चला। जिन लोगों ने पैसा लगाया, उनके खातों में पहले दो-तीन महीने वादे के मुताबिक पैसा आया। लोगों को लगा, उन्हें अलादीन का चिराग मिल गया है। उन्होंने रिश्तेदारों, दोस्तों, पड़ोसियों को भी बताया। अनिल का नाम जुबान पर था। उसके ऑफिस के बाहर भीड़ लगने लगी थी। लोग उसे भगवान मानने लगे थे – “अनिल भाई के हाथ में जादू है।”

इसी भीड़ में एक साधारण आदमी था – रमेश बाबू। सरकारी बैंक से रिटायर्ड क्लर्क। रिटायरमेंट पर उन्हें पीएफ और ग्रेचुटी का करीब ₹50 लाख मिला था। बेटी की शादी, बेटे की पढ़ाई की चिंता थी। बैंक ब्याज दरें कम थीं। एक दोस्त ने अनिल मेहरा के बारे में बताया। पहले तो डर रहे थे, लेकिन जब दोस्त ने पासबुक दिखाई जिसमें लाखों का मुनाफा आया था, रमेश बाबू का मन डोल गया।

वे अनिल के ऑफिस गए। अनिल ने बहुत इज्जत दी, पैर छुए, “अंकल, आपके पैसे को बढ़ाना मेरी जिम्मेदारी है।” रमेश बाबू पिघल गए। उन्होंने अपने जीवन भर की कमाई पूरे ₹50 लाख अनिल के फंड में लगा दिए। अनिल ने उन्हें एक ऐप डाउनलोड करवाया – रोज उनका पैसा बढ़ता दिखता था। रमेश बाबू सुबह उठकर मोबाइल देखते, खुश होते – 50 लाख अब 55, फिर 60 लाख! उन्होंने बेटी से कहा, “तेरी शादी अब धूमधाम से होगी।”

लेकिन यह सब एक बहुत बड़ा छलावा था। असल में अनिल कोई शेयर बाजार का जादूगर नहीं था। वह एक पोंजी स्कीम चला रहा था। नए लोगों से पैसा लेता, उसी में से थोड़ा हिस्सा पुराने लोगों को मुनाफे के तौर पर दे देता। बाकी बड़ा हिस्सा वह अपनी अय्याशी और विदेशी खातों में जमा कर रहा था। ऐप पूरी तरह नकली था – शेयर बाजार से कोई लेना-देना नहीं, सिर्फ एक वीडियो गेम जैसा जिसे अनिल कंट्रोल करता था।

भाग 3: मायाजाल का टूटना

करीब दो साल तक यह खेल चलता रहा। फिर बाजार में मंदी की आहट हुई। कुछ लोगों को पैसों की जरूरत पड़ी, उन्होंने पैसा निकालना चाहा। शुरुआत में अनिल ने बहाने बनाए – कभी सर्वर डाउन, कभी बैंक हड़ताल। लेकिन मांगने वालों की तादाद बढ़ने लगी तो अनिल को समझ आ गया कि अब भागने का वक्त है।

उसने रातोंरात ऑफिस बंद किया, सारे फोन नंबर स्विच ऑफ कर दिए, और दुबई भागने की तैयारी करने लगा। इधर रमेश बाबू जैसे हजारों निवेशकों के पैरों तले जमीन खिसक गई। जब वे ऑफिस पहुंचे, ताला लटक रहा था। भीड़ जमा हो गई, लोग रोने-चिल्लाने लगे। रमेश बाबू को वहीं दिल का दौरा पड़ने वाला था। उनकी बेटी की शादी, बेटे की पढ़ाई सब अंधेरे में चला गया।

मामला पुलिस तक पहुंचा। मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने केस अपने हाथ में लिया। जिम्मेदारी एसीपी सावंत को दी गई – सख्त और तेजतर्रार अफसर। सावंत ने अनिल के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया। अनिल अपनी पहचान बदलकर नेपाल के रास्ते भागने की फिराक में था। लेकिन पुलिस ने उसके एक पुराने साथी को पकड़ लिया, जिसने दबाव में आकर अनिल का पता बता दिया। पुलिस ने अनिल को एयरपोर्ट के पास एक छोटे होटल से गिरफ्तार कर लिया।

भाग 4: पूछताछ और सच्चाई का सामना

अनिल को हथकड़ी लगाकर पुलिस स्टेशन लाया गया। हजारों ठगे हुए लोग बाहर खड़े थे, उसे मारने के लिए तैयार। पुलिस ने बड़ी मुश्किल से उसे अंदर पहुंचाया। अब शुरू हुआ पूछताछ का सिलसिला। एसीपी सावंत ने अनिल को कुर्सी पर बैठाया, पूछा, “तुमने इतने लोगों को कैसे बेवकूफ बनाया?”

अनिल डरा हुआ नहीं था। चेहरे पर अजीब सी शांति थी। उसने पानी का घूंट पिया और बोलना शुरू किया। जैसे-जैसे वह बोलता गया, एसीपी सावंत और टीम के होश उड़ते गए।

“सर, मैंने किसी की जेब से जबरदस्ती पैसा नहीं निकाला। मैंने सिर्फ उनके लालच को हवा दी। मेरा हुनर शेयर मार्केट नहीं, मनोविज्ञान था। मैं सोशल मीडिया पर फर्जी स्क्रीनशॉट वायरल करवाता था। 50 लड़के नौकरी पर रखे थे, जो अलग-अलग नाम से Facebook और Telegram ग्रुप्स में मेरी तारीफ करते। ‘थैंक यू अनिल सर, आपकी वजह से मैंने आज कार खरीद ली।’”

“जब कोई मेरे पास आता था, मैं उसे कभी नहीं कहता था कि पैसा लगाओ। मैं कहता था, अभी मत लगाओ, पहले देखो। एक फ्री टिप देता था। 100 लोगों में 50 को कहता – बाजार ऊपर जाएगा, 50 को – नीचे जाएगा। जाहिर है, 50 लोग सही साबित होते थे। फिर उनमें से 25 को बाय, 25 को सेल बोलता। अंत में जो लोग बचते, उन्हें लगता मैं भगवान हूं।”

एसीपी सावंत माथा पकड़ लेते हैं – यह शुद्ध गणितीय धोखा था।

“वह ऐप मैंने फ्रीलांसर से बनवाया था। एडमिन पैनल मेरे पास था। अगर कोई क्लाइंट ज्यादा सवाल पूछता, तो ऐप में उसका प्रॉफिट थोड़ा बढ़ा देता था। वह खुश हो जाता, चार लोगों को और लाता। लोग नंबर देकर खुश होते रहे, लेकिन वह पैसा कभी असली था ही नहीं।”

“सेमिनार में आने वाले लोगों को हिप्नोटाइज करने की तकनीक सीखी थी। हमेशा महंगे सूट पहनता था, क्योंकि लोग कामयाबी को कपड़ों से तोलते हैं। किराए की महंगी गाड़ियां अपनी बताता था। सर, लोग सच्चाई नहीं सुनना चाहते। अगर कहता शेयर बाजार में रिस्क है, तो भाग जाते। मैंने उन्हें वह सुनाया जो वे सुनना चाहते थे – गारंटेड रिटर्न।”

भाग 5: कोर्ट का फैसला और ठग का आखिरी प्रवचन

अनिल ने कबूल किया कि उसके पास अब पैसा नहीं बचा है – ज्यादातर पैसा उसने अय्याशी, पार्टियों और पुराने निवेशकों को देने में उड़ा दिया। “यह एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें घुसने वाला कभी बाहर नहीं आ सकता। मुझे पता था कि एक दिन यह गुब्बारा फूटेगा। पिछले 6 महीने से मुझे नींद नहीं आ रही थी। हर घंटी बजने पर लगता पुलिस आ गई।”

पूछताछ के अंत में अनिल रो पड़ा। “मुझे अपने किए पर पछतावा है। लेकिन अब पछतावे से रमेश बाबू जैसे लोगों के पैसे वापस नहीं आ सकते।”

कोर्ट में केस चला। सबूत पक्के थे, अनिल का कबूलनामा भी। जज साहब ने उसे धोखाधड़ी, साजिश और आईटी एक्ट की कई धाराओं के तहत दोषी पाया। फैसले वाले दिन कोर्ट रूम खचाखच भरा था। अनिल कटघरे में खड़ा था। जज साहब ने उसे 10 साल की कड़ी कैद और भारी जुर्माने की सजा सुनाई।

लेकिन सजा सुनाने के बाद जज साहब ने अनिल से पूछा, “क्या तुम कुछ कहना चाहते हो?”

अनिल ने सिर उठाया, पीछे मुड़कर देखा – रमेश बाबू और अन्य पीड़ित बैठे थे। अनिल ने हाथ जोड़े, “जज साहब, मुझे जो सजा मिली है मैं उसका हकदार हूं। मैंने इन लोगों का भरोसा तोड़ा है। मैं जेल जा रहा हूं। लेकिन जाने से पहले मैं दुनिया को, खासकर उन लोगों को जो शेयर बाजार में पैसा लगाना चाहते हैं, कुछ बताना चाहता हूं। ताकि कल कोई दूसरा अनिल मेहरा पैदा न हो।”

भाग 6: चेतावनी और सबक

अदालत में सन्नाटा छा गया। अनिल ने बोलना शुरू किया – यह एक ठग का आखिरी प्रवचन था, अब चेतावनी बन चुका था।

“दोस्तों, मेरी जिंदगी से एक बात सीख लो – इस दुनिया में फ्री लंच जैसा कुछ नहीं होता। अगर कोई आपको बिना मेहनत, बिना रिस्क के मोटा मुनाफा देने का वादा कर रहा है, तो समझ लो वह आपकी जेब काटने आया है। शेयर बाजार कोई जादू की छड़ी नहीं है – यह समझदारी और सब्र का खेल है। जो रातोंरात अमीर बनना चाहता है, वह सड़क पर आ जाता है।”

“सोशल मीडिया पर दिखने वाले स्क्रीनशॉट्स पर कभी भरोसा मत करना। फोटोशॉप से कोई भी करोड़पति बन सकता है। असली निवेशक शोर नहीं मचाता। अपना पैसा किसी के हाथ में मत दो। खुद सीखो, खुद समझो। अगर समझ नहीं आता, तो पैसा बैंक या एफडी में रखो – कम मिलेगा, लेकिन सुरक्षित रहेगा। नींद की कीमत मुनाफे से ज्यादा होती है।”

“आखिर में, अपनी मेहनत की कमाई को लालच की आग में मत झोंको। आपके परिवार को आपकी दौलत से ज्यादा आपके सुकून की जरूरत है।”

अनिल की बातें सुनकर कोर्ट रूम में मौजूद कई लोगों की आंखें नम हो गई। रमेश बाबू जो अब तक अनिल को कोस रहे थे, उन्हें भी एहसास हुआ कि गलती सिर्फ अनिल की नहीं, उनके अपने लालच की भी थी।

भाग 7: नया जीवन, नया संदेश

अनिल को पुलिस वैन में बिठाकर जेल ले जाया गया। जेल की ऊंची दीवारें अब उसका घर थी। बाहर की दुनिया में अनिल का यह सबक बहुतों के काम आया। रमेश बाबू और अन्य पीड़ितों को पूरा पैसा तो वापस नहीं मिल पाया, लेकिन कोर्ट ने अनिल की जब्त की गई संपत्तियों को नीलाम करके जितना हो सका लोगों में बांटने का आदेश दिया। रमेश बाबू को अपनी पूंजी का बहुत छोटा हिस्सा ही वापस मिला – यह उनके लिए बड़ा झटका था। लेकिन अनिल की आखिरी बातों ने उन्हें नई दिशा दी।

उन्होंने अपनी बेटी की शादी सादगी से की। मान लिया कि जिंदगी में पैसा ही सब कुछ नहीं होता। धोखा खाने के बाद रमेश बाबू ने अपने आसपास के लोगों को जागरूक करना शुरू किया – पार्कों में, सोसाइटी मीटिंग्स में अपनी कहानी सुनाते, “सावधान रहना, अपनी अक्ल के दरवाजे खुले रखना।”

अनिल जेल में चुपचाप अपनी सजा काटता रहा। वह वहां कैदियों को पढ़ाने लगा, ईमानदारी का पाठ पढ़ाने लगा। उसने जेल की लाइब्रेरी में शेयर बाजार और अर्थशास्त्र पर कई किताबें मंगवाई और एक किताब लिखनी शुरू की – लालच का पिंजरा। उसका मकसद था कि अपनी बाकी जिंदगी वह लोगों को उस गड्ढे में गिरने से बचाने में लगाए जिसमें उसने खुद हजारों को धकेला था।

भाग 8: कहानी का असली सबक

यह कहानी सिर्फ एक ठग और उसके शिकारों की नहीं है। यह कहानी हमारे और आपके अंदर छिपे उस छोटे से लालच की है जो हमें तर्क और समझदारी से दूर कर देता है। अनिल जैसे लोग समाज में तब तक पैदा होते रहेंगे जब तक हम शॉर्टकट की तलाश में रहेंगे।

याद रखिए – पैसा पेड़ पर नहीं उगता। वह पसीने की स्याही से लिखा जाता है। अगर कोई स्कीम आपको ‘टू गुड टू बी ट्रू’ लगे, तो मान लीजिए कि वह सच नहीं है। सुरक्षा ही सबसे बड़ा निवेश है। अपनी कमाई को सुरक्षित रखें और अपने परिवार के साथ जो समय आप बिताते हैं, उसे ही असली मुनाफा समझें।

समाप्त