श्रीनगर से पहलगाम जा रहे थे, बादाम खरीदने रुके तो याद आया पर्स होटल में रह गया , फिर जो हुआ उसने

कश्मीर की जन्नत, एक भूला हुआ पर्स और मासूम बच्चा: देशमुख परिवार की कहानी

पुणे से कश्मीर की तैयारी

पुणे के कोथरूड इलाके में देशमुख परिवार रहता था। संजय देशमुख, एक 42 वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंट, उसकी पत्नी प्रिया, 38 साल की स्कूल प्रिंसिपल, और उनके दो बच्चे—14 साल की सानवी और 9 साल का आर्यन। परिवार खुशहाल था, हर साल गर्मियों में कहीं घूमने जाता था। इस बार संजय ने डिनर टेबल पर घोषणा की, “इस बार हम कश्मीर चलेंगे!” बच्चों की खुशी का ठिकाना नहीं था। सानवी ने कहा, “पापा, मैं बेताब वैली देखूंगी!” आर्यन ने चिल्लाया, “मैं बर्फ में फुटबॉल खेलूंगा!” प्रिया ने मुस्कुरा कर कहा, “पहले होमवर्क पूरा करो!”

संजय ने अपनी Honda City कार की सर्विस करवाई और कश्मीर के लिए एक अनुभवी स्थानीय ड्राइवर रियाज को किराए पर लिया। रियाज श्रीनगर का रहने वाला था, उसने भरोसा दिलाया, “साहब, कश्मीर की सड़कें मेरे लिए घर की गलियां हैं।”

कश्मीर की वादियों में देशमुख परिवार

परिवार ने कपड़े, कैमरा, खिलौने और प्रिया का बनाया पोहा, शेंगदाना चटनी, स्नैक्स पैक किए। सानवी ने अपनी डायरी और पेन साथ रखा। पुणे से दिल्ली, फिर दिल्ली से श्रीनगर की फ्लाइट ली। एयरपोर्ट पर रियाज ने स्वागत किया, अपनी पुरानी Maruti वैन में सामान रखा और बोला, “अब कश्मीर की सैर शुरू होती है।”

डल झील की चमक, हरे-भरे चिनार के पेड़, ठंडी हवाएं—सब मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। श्रीनगर में होटल ‘डल व्यू लॉज’ में ठहरे। मालिक गुलाम रसूल ने गर्म चाय और कश्मीरी कहवा से स्वागत किया। बच्चों को मेवे दिए, “छोटे साहब, कहवा पीकर देखो, कश्मीर का स्वाद ले लो।”

तीन दिन श्रीनगर में बीते—डल झील की शिकारा सैर, हजरतबल दरगाह, शंकराचार्य मंदिर, बाजार की कश्मीरी शॉलें और हस्तशिल्प। दुकानदार फारूक ने मुफ्त में सेब दिए, “यह हमारे प्यार का तोहफा है।” संजय ने प्रिया से कहा, “न्यूज़ में कश्मीर को खतरनाक बताते हैं, लेकिन यहां के लोग दिल से दिल तक जाते हैं।”

पहलगाम की ओर, एक भूला हुआ पर्स और मासूम बच्चा

2 अप्रैल 2025 को परिवार पहलगाम के लिए निकला। कुछ सामान और संजय का पर्स होटल के कमरे में ही छोड़ दिया। गुलाम रसूल से कहा, “भाई, दो दिन में लौटेंगे, सामान यहीं रख दो।” गुलाम बोला, “साहब, आपका सामान मेरी जिम्मेदारी है।”

रास्ते में लिदर नदी, बर्फीले पहाड़, हरे जंगल—सब किसी स्वप्नलोक जैसे थे। पहलगाम से 10 किलोमीटर पहले सड़क किनारे एक छोटा सा स्टॉल दिखा। 10-12 साल का कश्मीरी बच्चा मेवे, बिस्किट, कोल्ड ड्रिंक बेच रहा था। चेहरा धूप में झुलसा, लेकिन आंखों में मासूम चमक।

सानवी और आर्यन ने स्टॉल देखकर जिद की। संजय ने जेब में हाथ डाला—पर्स गायब! बैग देखा—पर्स नहीं मिला। घबराकर बोला, “प्रिया, मेरा पर्स होटल में रह गया।” प्रिया भी परेशान, “अब क्या करेंगे? बिना पैसे के होटल, खाना, सब मुश्किल।” संजय ने बच्चे से माफी मांगी, “बेटा, पैसे नहीं हैं, बाद में आकर लूंगा।” बच्चा मुस्कुराया, “कोई बात नहीं साहब, आप फिर आना।”

रियाज ने कार वापस श्रीनगर की ओर मोड़ दी। बच्चे निराश थे, सानवी ने डायरी में कुछ लिखा। संजय सोच रहा था—इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई? पर्स में पैसे, कार्ड, लाइसेंस, जरूरी कागजात थे। होटल पहुंचकर गुलाम रसूल ने पर्स सुरक्षित लौटा दिया, “साहब, मेहमान हमारा ईमान है।”

भयानक हादसा—एक भूल बनी चमत्कार

परिवार दोबारा पहलगाम जाने की तैयारी कर ही रहा था कि होटल के रिसेप्शन पर न्यूज चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ आई—“पहलगाम में बड़ा आतंकी हमला। बायसारण वैली में कई पर्यटकों की मौत, इलाका सील, दो दिन का लॉकडाउन।”
संजय, प्रिया, बच्चे स्तब्ध। न्यूज में बताया गया—22 अप्रैल 2025, दोपहर 2:30 बजे, अज्ञात बंदूकधारियों ने पर्यटकों पर अंधाधुंध गोलीबारी की, 26 लोग मारे गए, ज्यादातर पर्यटक।

अगर संजय का परिवार पर्स लेने न लौटा होता, तो वे भी उसी जगह होते। प्रिया की आंखें नम, बच्चों को गले लगाया। संजय ने टीवी देखा, चेहरा पीला पड़ गया। गुलाम से पूछा, “भाई, यह सब कब हुआ?” गुलाम ने उदास स्वर में कहा, “साहब, बस कुछ घंटे पहले बहुत बुरा हुआ। हमारे कश्मीर के लिए यह बहुत बड़ा धक्का है।”

संजय ने पहलगाम का प्लान रद्द कर दिया, “अब हम यहीं रुकेंगे। बच्चों की सुरक्षा सबसे जरूरी है।” टीवी पर मारे गए पर्यटकों की तस्वीरें आ रही थीं, प्रिया रो पड़ी, “ये लोग भी हमारे जैसे थे, बच्चों के साथ छुट्टियां मनाने आए थे। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।”

आर्यन ने पूछा, “मम्मी अगर हम वहां होते?” प्रिया ने गले लगाया, “बेटा, उस बच्चे ने हमें बचा लिया।” संजय ने सिर हिलाया, “अगर वह बच्चा न मिलता, तो मुझे पर्स की याद ही नहीं आती। वह हमारे लिए फरिश्ता बनकर आया।”

कश्मीरी मेहमाननवाजी और एकता का संदेश

परिवार ने शहीद पर्यटकों के लिए दो मिनट का मौन रखा। गुलाम, जावेद, रशीदा, यासिर—सभी ने परिवार को हौसला दिया, “आप हमारे मेहमान हैं, पूरी सुरक्षा देंगे।” प्रिया ने कहा, “हमने न्यूज़ में कश्मीर को सिर्फ खतरनाक सुना था। लेकिन तुम्हारी मेहमाननवाजी ने दिल जीत लिया।” गुलाम ने कहा, “हमले ने हम सबको दुखी किया, लेकिन हम अपने मेहमानों के लिए कुछ भी कर सकते हैं।”

लॉकडाउन के दो दिन बाद परिवार पुणे लौटने लगा। गुलाम ने कश्मीरी शॉल दी, “फिर आना, कश्मीर आपका इंतजार करेगा।” सानवी ने गुलाम को गले लगाया, संजय ने कहा, “भाई, तुमने हमें परिवार जैसा प्यार दिया।”

रास्ते में परिवार उसी मोड़ पर रुका, बच्चा नहीं मिला। पास के दुकानदार ने बताया, “वह बच्चा बशीर अपने गांव चला गया, हमले की खबर सुनकर उसके पिता उसे ले गए।” संजय ने उदास होकर कहा, “काश मैं उसे धन्यवाद कह पाता।”

कहानी का संदेश

पुणे लौटकर संजय और प्रिया ने दोस्तों-रिश्तेदारों को यह कहानी सुनाई—कैसे एक भूला पर्स और एक मासूम कश्मीरी बच्चे की वजह से उनकी जिंदगी बच गई। उन्होंने कहा, “कश्मीरी लोग उतने ही भारतीय हैं जितने हम। उनकी मेहमाननवाजी और प्यार ने सिखाया—इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं।”

परिवार ने तय किया—अगले साल फिर कश्मीर जाएंगे। संजय ने कहा, “कश्मीर हमारा है, कोई हमें वहां जाने से नहीं रोक सकता। हमारी फौज कश्मीर की हिफाजत करती रहेगी, और हम कश्मीरी भाइयों के साथ खड़े रहेंगे।”

पहलगाम का हादसा दुखद था, लेकिन उसने हौसला नहीं तोड़ा। हमें धैर्य रखना है, एक-दूसरे का साथ देना है, नफरत फैलाने वालों के खिलाफ आवाज उठानी है, शहीद पर्यटकों के लिए प्रार्थना करनी है।

कश्मीरी लोग हमारे अपने हैं। उनकी रोजीरोटी पर्यटकों पर टिकी है, वे हमें परिवार मानते हैं।
दोस्तों, पहलगाम की घटना ने हमें झकझोर दिया, लेकिन हम डरेंगे नहीं। हम कश्मीर जाते रहेंगे, क्योंकि कश्मीर हमारा है।

हमारी फौज, हमारे कश्मीरी भाई-बहन और हम सब मिलकर इस खूबसूरत वादी को और मजबूत बनाएंगे।
आइए, एक-दूसरे का हाथ थामें, कश्मीर के लिए प्यार और एकता का संदेश फैलाएं।

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जय हिंद!