श्री नगर से जा रहे थे पहलगाम , होटल में भूले पर्स और वापस पलटे , फिर जो हुआ ,उसने हिला कर रख दिया

एक अनजान बच्चे की वजह से बची वर्मा परिवार की जिंदगी – पहलगाम की सच्ची कहानी

शिमला की वादियों से कश्मीर की जन्नत तक

शिमला के कसुम्पटी मोहल्ले में बसा वर्मा परिवार अपनी सादगी, मेहनत और प्यार के लिए जाना जाता था।
अजय वर्मा – 38 साल के मेहनती व्यवसायी, पत्नी शालिनी – 35 साल की स्कूल टीचर, बेटी अनन्या – 12 साल की फोटोग्राफी और डायरी लिखने की शौकीन, और बेटा आरव – 8 साल का शरारती बच्चा जिसे पायलट बनने का सपना था।

हर साल गर्मियों में परिवार कहीं घूमने जाता था। पिछली बार मनाली की सैर के बाद इस बार जून 2023 में अजय ने डिनर टेबल पर सबको बुलाकर कहा,
“इस बार हम कश्मीर चलेंगे! श्रीनगर की डल झील, पहलगाम की बर्फीली वादियां…”

बच्चों ने खुशी से उछलते हुए अपनी पसंद बताई –
अनन्या: “पापा, मैं बेताब वैली देखूंगी!”
आरव: “और मैं स्नोमैन बनाऊंगा!”

शालिनी ने हंसकर कहा, “पहले होमवर्क पूरा करो!”

सफर की तैयारी और कश्मीर की ओर रवाना

अजय ने अपनी Toyota Innova को सर्विस करवाया और मोहन नाम के अनुभवी ड्राइवर को किराए पर लिया।
सामान पैक हुआ – कपड़े, कैमरा, बच्चों के खिलौने, घर का बना पराठा, आचार, स्नैक्स।
अनन्या ने अपनी डायरी और पेन साथ रखे ताकि कश्मीर के हर पल को कैद कर सके।

शिमला से श्रीनगर का सफर ट्रेन और कार से हुआ। रास्ते में ब्यास नदी, हरे-भरे जंगल और ठंडी हवाओं ने बच्चों को उत्साहित किया।
अनन्या ने डायरी में लिखा – “कश्मीर की हवा में जादू है।”
आरव ने पूछा, “मम्मी, क्या यहां डायनासोर रहते हैं?”

श्रीनगर पहुंचकर परिवार होटल लिदर व्यू में ठहरा।
होटल मालिक गुलाम मोहम्मद ने गर्म चाय, कहवा और कश्मीरी मेवों से स्वागत किया।
तीन दिन श्रीनगर में परिवार ने डल झील की शिकारा सैर की, हजरत बल दरगाह और शंकराचार्य मंदिर देखा।
स्थानीय बाजार में कश्मीरी शॉल और हस्तशिल्प देखकर शालिनी की आंखें चमक उठीं।
दुकानदार जावेद ने मुफ्त में कश्मीरी सेब देकर कहा, “यह हमारे प्यार का तोहफा है।”

अजय ने कहा, “न्यूज़ में कश्मीर को खतरनाक बताते हैं, लेकिन यहां के लोग दिल से दिल तक जाते हैं।”

पहलगाम के रास्ते पर एक मासूम बच्चा

तीन दिन बाद परिवार पहलगाम के लिए रवाना हुआ।
अजय ने कुछ कपड़े, जरूरी कागजात और अपना पर्स होटल के कमरे में छोड़ दिया।
गुलाम मोहम्मद ने भरोसा दिलाया, “साहब, आपका सामान मेरी जिम्मेदारी है।”

रास्ते में पहलगाम से 10 किलोमीटर पहले सड़क किनारे एक कश्मीरी बच्चा (बशीर) करीब 10-12 साल का मेवे, बिस्किट, कोल्ड ड्रिंक बेच रहा था।
उसका चेहरा धूप में झुलसा था, लेकिन आंखों में मासूम चमक थी।
अनन्या और आरव ने स्टॉल देखते ही जिद की – “पापा, हमें बादाम चाहिए!”
अजय ने जेब टटोली, पर्स गायब था।
शालिनी ने चिंता जताई, “अब क्या करेंगे? बिना पैसे के आगे नहीं जा सकते।”

अजय ने बच्चे से माफी मांगी, “बेटा, अभी पैसे नहीं हैं। बाद में आकर ले लूंगा।”
बच्चा मुस्कुराया, “कोई बात नहीं साहब, आप फिर आना।”

अजय ने मोहन से कहा, “गाड़ी वापस श्रीनगर मोड़ो।”
बच्चे निराश हो गए, लेकिन अजय ने बच्चों को दिलासा दी, “पर्स लेने के बाद हम फिर निकलेंगे।”

एक भूल, एक हादसे से बचाव

श्रीनगर लौटने में दो घंटे लगे।
होटल पहुंचकर अजय ने गुलाम मोहम्मद से पर्स मांगा।
गुलाम ने मुस्कुराकर पर्स लौटा दिया, “साहब, मेहमान हमारा ईमान है।”

परिवार पहलगाम के लिए दोबारा निकलने ही वाला था कि होटल के रिसेप्शन पर टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज़ आई –
“पहलगाम में बड़ा आतंकी हमला, कई पर्यटकों की मौत, इलाका सील, दो दिन का लॉकडाउन।”

परिवार स्तब्ध रह गया।
न्यूज़ में बताया गया कि पहलगाम के मुख्य बाजार में हमला हुआ, कई पर्यटक मारे गए।
अगर परिवार उस वक्त वहां होता, तो वही बाजार में होता।

शालिनी ने बच्चों को गले लगाया, “भगवान का शुक्र है, हम बच गए।”
अजय ने टीवी की ओर देखा, चेहरा पीला पड़ गया।
गुलाम ने उदास स्वर में कहा, “कुछ घंटे पहले बहुत बुरा हुआ। हमारे कश्मीर के लिए यह बड़ा धक्का है।”

अजय ने पहलगाम का प्लान रद्द कर दिया, “अब हम यहीं रुकेंगे। बच्चों की सुरक्षा सबसे जरूरी है।”

कश्मीरी मेहमान नवाजी और इंसानियत

होटल के कमरे में परिवार ने न्यूज़ देखी।
मारे गए पर्यटकों की तस्वीरें देखकर शालिनी रो पड़ी, “यह लोग भी हमारे जैसे थे। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।”

अजय ने कहा, “अगर वह कश्मीरी बच्चा हमें रास्ते में ना मिलता, तो मुझे पर्स की याद ही नहीं आती। वो हमारे लिए फरिश्ता बनकर आया।”

परिवार ने उन शहीद पर्यटकों के लिए मौन रखा।
अनन्या ने डायरी में लिखा, “आज मैंने सीखा भगवान हर जगह है।”

गुलाम मोहम्मद और होटल स्टाफ ने परिवार का हौसला बढ़ाया।
रियाज ने बच्चों को कहानियां सुनाई, फरीदा ने शालिनी को तसल्ली दी, जावेद ने अजय से कहा, “हम कश्मीरी अपने मेहमानों को जान से ज्यादा प्यार करते हैं।”

शालिनी ने गुलाम से कहा, “तुम लोग इतना प्यार दे रहे हो, हमने न्यूज़ में कश्मीर को खतरनाक सुना था, लेकिन तुम्हारी मेहमान नवाजी ने दिल जीत लिया।”
गुलाम ने कहा, “पहलगाम का हादसा बहुत बुरा था, जिसने भी किया वो इंसानियत का दुश्मन है। हमारे लिए पर्यटक सिर्फ मेहमान नहीं, परिवार हैं।”

अलविदा कश्मीर, एक नई सीख

दो दिन बाद लॉकडाउन हटा, वर्मा परिवार शिमला के लिए रवाना हुआ।
गुलाम और होटल स्टाफ ने गर्मजोशी से विदा किया।
गुलाम ने बच्चों को कश्मीरी शॉल दी, “छोटे साहब, फिर आना, कश्मीर आपका इंतजार करेगा।”

रास्ते में परिवार उस बच्चे को ढूंढने उसी मोड़ पर रुका, लेकिन बच्चा वहां नहीं था।
अजय ने दुकानदार से पूछा, “वो बच्चा कहां है?”
दुकानदार बोला, “साहब, वो बच्चा बशीर अपने गांव चला गया। हमले की खबर सुनकर उसके पिता उसे ले गए।”
अजय ने उदास मन से कहा, “काश, मैं उसे धन्यवाद कह पाता।”

घर लौटकर सीख और संदेश

शिमला लौटने के बाद अजय और शालिनी ने दोस्तों, रिश्तेदारों को यह कहानी सुनाई –
कैसे एक पर्स की भूल और एक कश्मीरी बच्चे की मुलाकात ने उनकी जिंदगी बचा ली।

उन्होंने कहा, “कश्मीरी लोग उतने ही भारतीय हैं जितने हम। उनकी मेहमान नवाजी और प्यार ने हमें सिखाया कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं।”

परिवार ने तय किया – “अगले साल फिर कश्मीर जाएंगे। कश्मीर हमारा है। कोई भी हमें वहां जाने से नहीं रोक सकता। हमारी फौज जिस पर हमें गर्व है, कश्मीर की हिफाजत करती रहेगी और हम कश्मीरी भाइयों के साथ खड़े रहेंगे।”

पहलगाम का हादसा हर भारतीय के लिए दुखद था।
लेकिन हमें डरना नहीं है।
हमें एक दूसरे के साथ खड़ा रहना है, नफरत फैलाने वालों के खिलाफ आवाज उठानी है, शहीद पर्यटकों के लिए प्रार्थना करनी है।

कश्मीरी लोग हमारे अपने हैं।
उनकी रोजीरोटी पर्यटकों पर टिकी है, और वे हमें अपने मेहमान मानते हैं।

अंतिम संदेश

पहलगाम की घटना ने हमें झकझोर दिया, लेकिन हम डरेंगे नहीं।
हम कश्मीर जाते रहेंगे, क्योंकि कश्मीर हमारा है।
हमारी फौज, हमारे कश्मीरी भाई-बहन और हम सब मिलकर इस खूबसूरत वादी को मजबूत बनाएंगे।
आइए, एक दूसरे का हाथ थामें और कश्मीर के लिए प्यार और एकता का संदेश फैलाएं।

अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई, तो इसे लाइक करें, शेयर करें और कमेंट में बताएं आप किस शहर से पढ़ रहे हैं।
कश्मीर की इंसानियत और प्यार हमेशा जिंदा रहेगा।

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