सड़क पर तड़पती लड़की को एक अजनबी लड़के ने बचाया… लेकिन फिर जो हुआ…
मुंबई की गलियों से इंसानियत की कहानी
मुंबई की तंग गलियों में एक युवक ठंडी जमीन पर बैठा था। उसका नाम राहुल था, छत्तीसगढ़ के छोटे से गांव से बड़े सपने लेकर मुंबई आया था। लेकिन आज, उसके सारे सपने धूल में मिल चुके थे। हाथ में फटा बैग, जिसमें बस दो पुराने कुर्ते, एक किताब और ₹900 बाकी थे। अभी-अभी दुकान से काम खोकर लौटा था, मालिक ने कहा था, “तू ग्राहकों से ठीक से बात नहीं कर सकता, कल से मत आना।” राहुल की आंखें सूखी थीं, क्योंकि रोने के लिए भी हिम्मत चाहिए होती है।
अचानक, उस खामोश गली में एक डरावनी चीख गूंजी, “बचाओ! कोई है? मुझे जल्दी अस्पताल ले चलो!” राहुल का दिल जोर से धड़का, वह आवाज की दिशा में दौड़ा। सामने सड़क पर एक औरत गिरी पड़ी थी, सिर पर बड़ा सा जख्म और सफेद कुर्ती खून से लाल। चारों तरफ भीड़ थी, कोई वीडियो बना रहा था, कोई कह रहा था “पुलिस आने दो, हमें क्या!” वह औरत बार-बार कह रही थी, “कृपया मेरी मदद करो।”
राहुल के अंदर कुछ जाग गया। उसने भीड़ को हटाया, अपना गमछा निकालकर उसके सिर के जख्म पर बांधा और उसे कंधे पर उठा लिया। एक ऑटो रोका, ड्राइवर ने मना कर दिया, “साहब, पुलिस का मामला लगता है, मैं नहीं ले जा सकता।” राहुल ने कहा, “अगर यह तुम्हारी बहन होती तो भी इंकार करते?” ऑटो वाला सोचने लगा, लेकिन राहुल ने बिना इंतजार किए दूसरी ऑटो रोकी, इस बार ड्राइवर मान गया। रास्ते भर वह लड़की बेहोशी में जा रही थी, राहुल उससे बात करता रहा, “आंखें बंद मत करना, बस पांच मिनट और…”
अस्पताल पहुंचकर राहुल ने डॉक्टरों को बुलाया, “बहुत खून निकल गया है!” डॉक्टर भागे, स्ट्रेचर आया, ऑपरेशन थिएटर में ले गए। राहुल बाहर बेंच पर बैठ गया, कांप रहा था डर से, लेकिन मन में सुकून था कि उसने किसी की मदद की। डॉक्टर बाहर आया, “एक मिनट की भी देरी खतरनाक थी, सिर में गहरा घाव है, पैर की हड्डी टूटी है, लेकिन अब खतरा टल गया है।” दवाइयों का बिल आया, राहुल ने अपने सारे पैसे दे दिए। रात अस्पताल की प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठा रहा, खुद के लिए छत नहीं थी, लेकिन एक अनजान इंसान की रखवाली कर रहा था।
तीन घंटे बाद उस औरत को सामान्य वार्ड में ले जाया गया। जब उसकी आंखें खुलीं, सामने वही चेहरा था जो उसे लेकर दौड़ा था। “तुम कौन हो?” राहुल ने झिझकते हुए कहा, “मैं कोई खास नहीं, बस एक राहगीर।” उस औरत की आंखों से आंसू निकला, “तुमने मेरी जान बचाई है।” राहुल ने सिर झुकाया, “जान बचाना हर इंसान का धर्म है।” वह चुप हो गई, फिर बोली, “इस शहर में मेरा कोई नहीं है, पति विदेश में है, उनसे संपर्क भी नहीं हो रहा।”
रात जब वह औरत सो गई, तो पहली बार दो अनजान दिलों के बीच एक रिश्ता जन्म ले रहा था, जो खून से नहीं, इंसानियत से बना था। सुबह की धूप खिड़की से झांक रही थी, राहुल रात भर जागा था, लेकिन उसकी आंखों में थकान नहीं, अजीब सी चमक थी। औरत धीरे-धीरे होश में आई, खुद को पट्टियों में लिपटा पाया। उसने राहुल से पूछा, “तुमने रात भर यहां क्यों काटी?” राहुल ने हंसते हुए कहा, “कहीं और जाना भी तो था नहीं, और डॉक्टर ने कहा था कि आपके पास कोई रहे।”
नर्स आई, बोली “आप रिश्तेदार हैं क्या?” राहुल घबरा गया, “हां, यानी करीबी हूं।” कपड़े बदलने में मदद की, राहुल ने पूरी इज्जत और मर्यादा के साथ उसकी मदद की। उस औरत ने राहुल को गौर से देखा, वह कोई हीरो नहीं था, कोई अमीर आदमी नहीं था, लेकिन उस पल उसके जैसा सच्चा इंसान शायद पूरी दुनिया में कोई नहीं था।
अगले तीन दिन राहुल वहीं रहा, दवा लेने भागता, खाना लाता, हर जरूरत का ख्याल रखता। वह औरत धीरे-धीरे राहुल को अपने सबसे करीबी की नजर से देखने लगी थी। सोचती, “जिसने मेरी जान बचाई, वह मुझसे कुछ नहीं मांग रहा। क्या आज भी ऐसे फरिश्ते धरती पर होते हैं?”
चौथे दिन डॉक्टर ने कहा, “अब मरीज को घर ले जा सकते हैं।” राहुल ने व्हीलचेयर में बिठाया, एक ऊंची इमारत तक लिफ्ट से पहुंचा। फ्लैट का दरवाजा खुला, दो बेडरूम का खूबसूरत घर, महंगा फर्नीचर, बड़ी स्क्रीन का टीवी। राहुल ने पूछा, “यह आपका घर है?” औरत ने उदासी से कहा, “हां, लेकिन अब यहां सिर्फ मैं अकेली रहती हूं।”
तभी फोन की घंटी बजी, स्क्रीन पर “राज” नाम चमका। वह कांपते हाथों से फोन उठाई, “राज, मेरा एक्सीडेंट हुआ था, मैं बुरी तरह घायल हूं।” दूसरी तरफ से आवाज, “प्रिया, मैं तुरंत इंडिया आ रहा हूं, तीन दिन में पहुंच जाऊंगा।” फोन कटने के बाद कमरे में सन्नाटा छा गया। प्रिया ने राहुल से पूछा, “क्या तुम तीन दिन और रुक सकते हो?” राहुल ने कहा, “जब तक आपके अपने लोग नहीं आ जाते, मैं यहीं रहूंगा।”
अगले तीन दिन राहुल ने उस घर को महज घर नहीं, एक टूटे हुए इंसान के लिए सहारा बना दिया। सुबह की चाय से रात की दवाई तक, नहाने में मदद से लेकर बालों में तेल लगाने तक, हर छोटे काम में वह मुस्कुराता रहता। प्रिया अब सिर्फ एक मरीज नहीं रह गई थी, वह राहुल को एक इंसान के रूप में समझने लगी थी। सोचती, “एक अजनबी इतना निस्वार्थ कैसे हो सकता है?”
चौथे दिन शाम को दरवाजे की घंटी बजी। राहुल ने दरवाजा खोला, सामने एक हैंडसम आदमी खड़ा था, “मैं राज हूं, प्रिया का पति।” प्रिया ने राज को देखा, रो पड़ी, “राज, तुम कहां थे?” उसने पूरी घटना सुनाई, कैसे सड़क पर पड़ी थी, कैसे राहुल ने उसे बचाया। राज ने राहुल की तरफ मुड़कर कहा, “थैंक यू राहुल, तुमने मेरी पत्नी की जान बचाई, मैं इसे कभी नहीं भूलूंगा।” राहुल ने सिर झुकाकर कहा, “मैंने कोई उपकार नहीं किया, बस वही किया जो दिल ने कहा।”
रात को राहुल प्रिया के पास गया, “प्रिया जी, कुछ कहना चाहता हूं। जिस दिन आपका एक्सीडेंट हुआ था, उसी दिन मैंने राज साहब को देखा था, वहीं पर जहां आप गिरी थीं।” प्रिया का चेहरा पीला पड़ गया, “क्या कह रहे हो तुम?” राहुल की आंखें नम थीं, “मैं झूठ क्यों बोलूंगा? उस दिन भीड़ में दूर एक आदमी को फोन पर बात करते देखा था, वही चेहरा आज दरवाजे पर खड़ा था।” प्रिया की सांस तेज हो गई, “राहुल, अगर यह सच है, तो मतलब मेरा सबसे अपना ही मुझे मरते देख रहा था।”
राहुल चुप हो गया, “तुम जाओ राहुल, मुझे अकेला छोड़ दो।” राहुल ने एक गहरी सांस लेकर कहा, “ठीक है, लेकिन याद रखिएगा, सच चाहे जितना दर्द दे, सामने आ ही जाता है। अगर मैं गलत हूं, तो माफी मांगकर हमेशा के लिए चला जाऊंगा।”
राहुल के जाने के बाद प्रिया टूट गई। उसने अपने पुराने कागजात निकाले, शादी के बाद राज ने कई बार घर बेचने की बात कही थी, लेकिन प्रिया ने मना कर दिया था। उसके बाद से राज का व्यवहार बदलने लगा था, लड़ाई-झगड़े, बहाने और अंत में विदेश चले जाना। अब सारे सुराग एक तस्वीर बनाने लगे थे।
अगली सुबह प्रिया ने अस्पताल फोन किया, “डॉक्टर साहब, उस दिन जब मुझे लाया गया था, तो मेरे साथ कोई और भी आया था क्या?” डॉक्टर ने तुरंत जवाब दिया, “राहुल नाम का लड़का था, बिल्कुल अकेला, खुद खून से भरा था, लेकिन सिर्फ आपकी चिंता कर रहा था।” फिर प्रिया पुलिस स्टेशन गई, सीसीटीवी फुटेज मांगा। फुटेज में तेज गाड़ी, एक औरत का गिरना, भीड़ जमा होना और थोड़ी दूरी पर सूट पहने एक आदमी का फोन पर बात करना। चेहरा साफ दिख रहा था, वह राज का था।
प्रिया के हाथ कांपने लगे, “मेरा पति मेरी हत्या का गवाह था, जिसे मैंने सबसे ज्यादा प्यार किया, उसे मेरी मौत से कोई फर्क नहीं पड़ा।” उसी शाम उसने राहुल को बुलाया, “राहुल, तुम सच कह रहे थे।” राहुल की आंखें भर आईं। प्रिया ने कहा, “जिसे मैंने अपना सब कुछ समझा, वही मेरी मृत्यु का तमाशबीन था, और जो कभी मेरा कुछ नहीं था, उसने मुझे नई जिंदगी दी। मैं पुलिस में रिपोर्ट लिखवा रही हूं, लेकिन इस लड़ाई में तुम्हारा साथ चाहिए, क्या तुम मेरे साथ चलोगे?” राहुल ने कोई जवाब नहीं दिया, बस आगे बढ़कर उसके हाथ थाम लिए।
अगले हफ्ते पुलिस की जांच शुरू हुई, राज की कॉल हिस्ट्री, ड्राइवर का बयान, सबूत एक-एक करके सामने आने लगे। राज ने अंत में सच्चाई कबूल की, “हां, मैंने उसे रास्ते से हटाने की साजिश रची थी, मुझे उसकी संपत्ति चाहिए थी।” कोर्ट ने राज और उसके साथी को जेल भेज दिया।
उस दिन अदालत के बाहर प्रिया खड़ी थी, सिर उठाकर राहुल का हाथ अपने हाथ में लेकर, “अब मैं कमजोर नहीं हूं राहुल, अब मैं मजबूत हूं, सिर्फ इसलिए क्योंकि तुमने मुझे सच्चाई दिखाई।” एक शाम प्रिया ने राहुल से कहा, “तुमने सिर्फ मेरी जान नहीं बचाई, जीने का नया तरीका सिखाया।” राहुल ने मुस्कुराकर कहा, “और आपने मुझे सिखाया कि सच्चा प्यार क्या होता है।”
आज वे दोनों साथ रहते हैं, उसी घर में जो कभी अकेलेपन से भरा था, अब खुशियों से गूंजता है। कभी-कभी एक अनजान व्यक्ति जिंदगी का सबसे अपना बन जाता है। दोस्तों, यह कहानी सिखाती है कि रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं। सच्चाई की जीत होती है और धोखा हमेशा हारता है।
आप क्या सोचते हैं? क्या आप उस अनजान को अपना जीवन साथी बना पाते?
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