स्कूल में लड़कियों को बुरी नज़र से देखता और छूने की कोशिश करता था टीचर ,फिर लड़कियों ने हिम्मत दिखाई और

गुरु और शिष्य: एक सच्ची सीख देने वाली कहानी
गुरु और शिष्य का रिश्ता, इस दुनिया के सबसे पवित्र रिश्तों में से एक माना जाता है। एक गुरु हमारे जीवन की नींव रखता है, हमें सही और गलत का फर्क सिखाता है, और स्कूल वह मंदिर है जहाँ बच्चे निश्चिंत होकर ज्ञान प्राप्त करने जाते हैं। लेकिन सोचिए, अगर इसी मंदिर में कोई भेड़िया गुरु का मुखौटा पहनकर आ जाए, तो क्या होगा? क्या हो जब रक्षा करने वाले हाथ ही मासूमियत को छूने की कोशिश करें?
यह कहानी है उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे के गगनचंडी माध्यमिक विद्यालय की। यह कोई बड़ा या आलीशान स्कूल नहीं था, लेकिन इसकी अपनी एक पहचान थी। यहाँ कक्षा आठ तक के बच्चे पढ़ते थे। स्कूल की प्रधानाचार्या, श्रीमती शोभा देवी, करीब 50 साल की अनुभव से भरी महिला थीं, जिनकी आँखों में सख्ती और ममता दोनों का भाव था। वह स्कूल को अपना परिवार मानती थीं और हर बच्चे को नाम से जानती थीं।
इस स्कूल की आठवीं कक्षा की सबसे होनहार छात्रा थी प्रिया। वह पढ़ाई में तेज और बहुत ऑब्जर्वेंट थी। उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी अंजलि, जो स्वभाव से थोड़ी शांत और डरपोक थी, लेकिन प्रिया के साथ सबकुछ साझा करती थी। इसी क्लास में रोहन नाम का एक लड़का भी था, जो शरारती जरूर था लेकिन दिल का साफ था और लड़कियों की इज्जत करता था।
नया सत्र शुरू हुए दो महीने ही हुए थे कि स्कूल के पुराने सामाजिक विज्ञान के अध्यापक का तबादला हो गया और उनकी जगह कुलदीप चंद नाम के नए अध्यापक आ गए। कुलदीप सर 30-32 साल के, हंसमुख और आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे। उनके पढ़ाने का तरीका बाकी अध्यापकों से अलग था – वह इतिहास को भी कहानियों और चुटकुलों के जरिए इतना मजेदार बना देते कि बच्चे उनका इंतजार करने लगे। जल्दी ही वे पूरे स्कूल के सबसे पसंदीदा टीचर बन गए, खासकर लड़कियों में उनकी कूल पर्सनालिटी के चर्चे होने लगे।
शुरुआत में सब कुछ ठीक ही चल रहा था। कुलदीप सर कमजोर बच्चों पर खास ध्यान देते, क्लास के बाद भी रुककर पढ़ाते, क्विज क्लब शुरू किया और बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ा दी। प्रधानाचार्या भी उनकी कार्यशैली से खुश थीं। लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकने वाली थी।
करीब एक महीने बाद, प्रिया ने नोटिस किया कि कुलदीप सर कुछ खास लड़कियों पर जरूरत से ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। वह कभी किसी की लिखावट की, कभी ड्रेस की तारीफ करते, और बातें अब सामान्य नहीं रहीं। धीरे-धीरे बात तारीफों से बढ़कर अनजाने में छूने तक पहुँच गई। किसी लड़की को सवाल समझाते हुए हाथ कंधे पर ज्यादा देर रखना, कॉपी देते समय उंगलियाँ छूना – ये सब इतनी चालाकी से होता कि पहली बार में किसी को गलत महसूस न हो।
एक दिन अंजलि अपनी सीट पर थी, जब कुलदीप सर आए और उसे अपने डेस्क पर बुलाकर समझाने लगे। बहाने से उसका हाथ और पीठ छूने लगे। अंजलि को बहुत बुरा लगा, वह डरकर अपनी सीट पर लौट आई और लंच ब्रेक में प्रिया को सब बताया। प्रिया ने उसे दिलासा दिया, लेकिन उसके मन में शक का बीज बो चुका था।
अब प्रिया ने कुलदीप सर की हरकतों को और बारीकी से देखना शुरू किया। उसने देखा कि क्लास की कई और लड़कियों को भी ऐसे ही अनुभव हो चुके हैं। सब बहुत डर गई थीं – एक तरफ अध्यापक का पद, दूसरी तरफ अपनी अंतरात्मा की आवाज। डर था कि कोई यकीन नहीं करेगा, उल्टा उन्हें ही दोषी ठहरा देगा।
फिर एक दिन खुद प्रिया के साथ भी ऐसा हुआ। कॉपी जांचते हुए कुलदीप सर ने उसका हाथ पकड़ लिया और सहलाने लगे। अब प्रिया को यकीन हो गया कि यह सब जानबूझकर हो रहा है। उसी शाम उसने अंजलि और बाकी लड़कियों को बुलाया और बोली, “अगर आज हम चुप रहे तो कल छोटी क्लास की लड़कियों के साथ भी यही होगा। हमें कुछ करना होगा।”
सब डरी हुई थीं, पर प्रिया ने समझाया कि अगर सब मिलकर गवाही देंगे, तो सच की जीत होगी। रोहन ने भी उनकी बातें सुन ली और बोला, “मैं भी तुम्हारे साथ हूं।” अब लड़कियों को और हिम्मत मिली।
फिर एक दिन स्कूल का आखिरी पीरियड खाली था। कुलदीप सर ने छठी की भोली माया को क्लासरूम में बुलाया। प्रिया और दोस्तों को खतरे का आभास हुआ। उन्होंने तुरंत निर्णय लिया और सभी मिलकर प्रधानाचार्या के ऑफिस पहुंच गए। डरे हुए बच्चों को देखकर शोभा देवी भी चौंक गईं। प्रिया ने पूरी हिम्मत से सारी घटनाएं बता दीं। बाकी लड़कियों ने भी सिर हिलाकर समर्थन किया, रोहन ने भी अपनी बात रखी।
शोभा देवी ने सबकुछ शांत होकर सुना, बच्चों की आँखों में सच्चाई देखी। उन्होंने कहा, “तुमने बहुत हिम्मत दिखाई है, मैं तुम पर विश्वास करती हूं। कड़ी कार्रवाई होगी, तुम्हारा नाम सामने नहीं आएगा।” बच्चों को अब सुकून मिला।
शोभा देवी ने तुरंत कुलदीप चंद को बुलाया, स्कूल मैनेजमेंट कमेटी के चेयरमैन को भी बुलाया। कुलदीप सर को जब सच्चाई पता चली तो वह माफी मांगने लगे, पर शोभा देवी ने दो टूक कहा – या तो इस्तीफा दो और शहर छोड़ो, या पुलिस केस का सामना करो। डर के मारे कुलदीप ने इस्तीफा लिखा और चला गया।
अगले दिन प्रार्थना सभा में शोभा देवी ने बच्चों को बताया कि कुलदीप सर अब स्कूल में नहीं रहेंगे। लेकिन असली बदलाव अब शुरू हुआ। उन्होंने स्कूल में हर मंजिल पर सुझाव एवं शिकायत पेटी लगवाई, बच्चों को बिना नाम के भी शिकायत डालने की छूट दी। हर महीने संवाद नाम की कक्षा, हर तीन महीने गुड टच-बैड टच की वर्कशॉप, और पेरेंट-टीचर-स्टूडेंट मीटिंग अनिवार्य कर दी।
अब बच्चे, खासकर लड़कियां, पहले से कहीं ज्यादा आत्मविश्वासी और सुरक्षित महसूस करने लगीं। उन्हें यकीन हो गया कि उनकी आवाज सुनी जाती है, स्कूल उनका दूसरा घर है। प्रिया और उसके दोस्त पूरे स्कूल के लिए मिसाल बन गए।
सीख:
यह कहानी हर बच्चे को सिखाती है कि अगर कभी कोई आपको असहज महसूस कराए, तो चुप मत रहिए। डरिए मत, अपने माता-पिता या भरोसेमंद टीचर को बताइए। आपकी आवाज में बहुत ताकत है।
हर माता-पिता से भी निवेदन है – बच्चों की बात ध्यान से सुनिए, उनका दोस्त बनिए ताकि वह आपसे हर बात साझा कर सकें।
अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो तो इसे जरूर शेयर करें, और कमेंट में बताएं कि आपको सबसे बड़ी सीख क्या मिली।
धन्यवाद!
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