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कचरे के ढेर से मोहब्बत की मिसाल – हमजा और समीना की कहानी

भाग 1: एक नई जिंदगी की शुरुआत

गांव की सुनसान दोपहर थी। समीना तेज कदमों से अपने घर जा रही थी, जब अचानक किसी कचरे के ढेर से एक मासूम बच्चे के रोने की आवाज आई। समीना ठिठक गई, दिल में बेचैनी के साथ आगे बढ़ी और देखा – एक टोकरी में एक नवजात बच्चा जोर-जोर से रो रहा था। आसपास कोई नहीं था। समीना ने बच्चे को गोद में उठा लिया। उसकी आंखों में ममता की चमक थी, दिल में बेपनाह शफकत जग उठी।

घर पहुंचकर समीना ने बच्चे को दूध पिलाया। उसका पांच साल का बेटा फराज हैरत से बोला, “अम्मा, यह कौन है?” समीना ने मुस्कुरा कर कहा, “बेटा, आज से यह तुम्हारा भाई है।”
फराज को यह बात नागवार गुजरी, मगर समीना ने ठान लिया कि वह इस मासूम को कभी लावारिस नहीं छोड़ेगी।

गांव में खबर फैल गई – समीना को कचरे में एक बच्चा मिला है। अगले दिन समीना ने सबके सामने ऐलान किया, “यह बच्चा अब मेरा है। इसका नाम हमजा है।” गांव वालों ने उसकी हिम्मत और इंसानियत की तारीफ की।

समीना एक विधवा थी, अपने बेटे फराज के साथ खुशहाल जिंदगी बिता रही थी। अब हमजा भी उसी घर में पलने लगा। मगर फराज हमेशा हमजा को ताने मारता, उसे भाई नहीं मानता।
समीना समझाती रहती – “वह तुम्हारा भाई है, उसे प्यार करो।”
हमजा बचपन से ही जहीन और फरमाबरदार था। दोनों भाई स्कूल जाते, मगर फराज का दिल हमजा के लिए कभी नरम नहीं हुआ।

भाग 2: हमजा की मेहनत, फराज की जिद

समय बीतता गया। हमजा पढ़ाई में अव्वल रहा, खेती-बाड़ी की जिम्मेदारी भी संभालने लगा। फराज ने जिद करके शहर की यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया, जिसके लिए समीना ने अपनी जमीन भी बेच दी।
हमजा गांव में रहकर जमीनों और घर का सारा काम संभालता, हर महीने फराज को पैसे भेजता। समीना हमजा की जिम्मेदारी और मोहब्बत देखकर दुआ करती रहती।

एक दिन हमजा रोता हुआ समीना के पास आया, “अम्मा, क्या मैं आपका बेटा नहीं हूं? फराज भैया कहते हैं कि मैं कचरे से मिला हूं और गंदा हूं।”
समीना ने उसे गले लगाया, “नहीं मेरी जान, तुम मेरे बेटे हो। बहादुर हो, प्यारे हो।”
हमजा की आंखों में आंसू थे, मगर मां की मोहब्बत ने उसे सुकून दिया।

भाग 3: फराज की शादी और घर में तूफान

कुछ साल बाद, फराज ने शहर में एक लड़की नजमा से शादी कर ली। समीना ने खुशी-खुशी बेटे और बहू का स्वागत किया, मगर नजमा के चेहरे पर खुशी नहीं थी। वह हर बात पर चिल्लाती, “मैं तुम्हारी खिदमत के लिए नहीं आई। मैं घर के काम नहीं करूंगी।”
समीना खामोश रही, मगर नजमा ने फराज के दिल में हमजा के खिलाफ जहर भरना शुरू कर दिया – “तुम्हारी मां सारी जायदाद हमजा के नाम करने वाली है।”

फराज के दिल में शक और गुस्सा भर गया। उसने समीना से कहा, “अम्मा, सारी जमीनें मेरी हैं। हमजा का इसमें कोई हिस्सा नहीं। वह कचरे से मिला था, मेरा सगा भाई नहीं है।”
समीना ने सख्ती से कहा, “वह तुम्हारा भाई है। जायदाद का फैसला मैं करूंगी।”

नजमा ने चालाकी से फराज को उकसाया – “अब सब कुछ तुम्हारे नाम करवाओ।”
फराज ने एक दिन समीना से दस्तावेजों पर साइन करवा लिए, झूठ बोलकर कि यह नौकरी के कागजात हैं। असल में वह जायदाद के कागजात थे।
अब सारी जमीनें फराज के नाम हो चुकी थीं।

भाग 4: जुल्म, बेघर और मां-बेटे का संघर्ष

नजमा ने फराज को उकसाया – “अब हमजा को घर से निकाल दो।”
अगले दिन फराज ने हमजा से कहा, “अब दफा हो जाओ मेरे घर से। बहुत मुफ्त खा लिया।”
समीना ने विरोध किया, “हमजा मेरा बेटा है, यह घर मेरा है।”
गुस्से में फराज ने समीना को धक्का मार दिया, दरवाजा बंद कर दिया। समीना और हमजा रोते हुए घर से बाहर निकल गए। बारिश हो रही थी, मां-बेटा एक-दूसरे का सहारा बने।

फराज और नजमा खुश थे, मगर बेखदरी करने वालों को कभी सुकून नहीं मिलता।
कुछ ही दिनों में फराज की सारी फसलें जल गईं, जमीनें बेचनी पड़ीं, कारोबार में नुकसान हुआ।
फराज बीमार होकर व्हीलचेयर पर आ गया। नजमा ने भी उसे छोड़ दिया – “अब तुम लंगड़े हो, मैं तुम्हारे साथ क्यों रहूं?”
फराज तन्हा रह गया, पछतावे की आग में जलता रहा।

भाग 5: मां की दुआ, हमजा की कामयाबी

दूसरी तरफ, समीना अस्पताल के बेड पर अपनी आखिरी सांसें ले रही थी। हमजा उसका हाथ थामे रो रहा था – “अम्मा, आप ठीक हो जाएं, मुझे छोड़कर मत जाइए।”
समीना बोली, “तुमने बेटे होने का हक अदा कर दिया। मेरी दूध का कर्ज उतार दिया। अल्लाह तुम्हें इतना नवाजे कि तुम गिनते-गिनते थक जाओ। फराज को भी माफ कर देना।”
समीना की सांसें थम गईं। हमजा फूट-फूटकर रोने लगा। मां की मोहब्बत का बदला वह कभी नहीं चुका सकता था।

समय बीता, हमजा ने शहर में मेहनत की। पहले मैकेनिक की नौकरी, फिर अपना कारोबार।
आज उसके पास अपने शॉपिंग मॉल्स, कार शोरूम हैं। मां की दुआओं ने उसे मुकाम तक पहुंचा दिया।

भाग 6: रिश्तों की असली मिसाल

पांच साल बाद हमजा गांव लौटा। महंगी गाड़ी, शानदार कपड़े, मगर दिल में वही मोहब्बत।
फराज अब व्हीलचेयर पर, अकेला और शर्मिंदा था। हमजा ने उसके हाथ थामे, “भाई, माफी मत मांगो। मैं जानता हूं आपको अपनी गलती का एहसास है। अम्मा ने आखिरी वक्त में आपको माफ कर दिया था। अल्लाह आपको जरूर माफ करेगा।”

फराज रो पड़ा, “मुझे अम्मा के पास ले चलो।”
हमजा ने कहा, “अब अम्मा इस दुनिया में नहीं हैं, मगर उनकी दुआएं तुम्हारे साथ हैं।”

गांव के लोग हैरान थे – वही हमजा जो कभी कचरे में मिला था, आज अपनी मेहनत, मां की दुआ और मोहब्बत से मिसाल बन गया।
हमजा ने फराज का इलाज करवाया, उसे सहारा दिया।
लोगों को उस दिन समझ आया – रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं। वफादारी और मोहब्बत ही असली रिश्ता है।

सीख

यह कहानी हमें सिखाती है –
रिश्ते खून से नहीं, दिल से बनते हैं।
मां की दुआ और मोहब्बत हर मुश्किल को आसान कर देती है।
किसी की बेखदरी, जुल्म या धोखा कभी सुकून नहीं देता,
मगर इंसानियत, वफादारी और मेहनत हमेशा जीतती है।

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हम आपके लिए ऐसी प्रेरणादायक कहानियां लाते रहेंगे।

समाप्त