स्टेशन पर उदास बैठी अकेली लड़की को अजनबी लड़का अपने घर ले आया | फिर जो हुआ, इंसानियत रो पड़ी
प्रयागराज रेलवे स्टेशन की बेंच से शुरू हुई नई जिंदगी – मीरा की पूरी कहानी
भाग 1: प्लेटफार्म नंबर चार की बेंच पर
प्रयागराज रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर चार पर सुबह से ही एक लड़की बैठी थी। स्टेशन पर चहल-पहल थी, लोग अपने-अपने सफर में व्यस्त थे, बच्चों की खिलखिलाहट, चाय वालों की आवाजें, यात्रियों का शोर – लेकिन उस लड़की का चेहरा सबसे अलग था। उसकी आंखों में गहरी उदासी थी, चेहरे पर थकान और चिंता की लकीरें थीं। स्टेशन पर काम करने वाला राजेश कई बार वहां से गुजरा, हर बार उसकी नजर उसी लड़की पर टिक जाती। सुबह से शाम तक वह वहीं बैठी रही। राजेश के मन में सवाल उठे – कौन है ये लड़की? इतनी अकेली और परेशान क्यों है?
शाम ढलने लगी तो राजेश ने आखिर हिम्मत की। वह उसके पास गया और नरमी से बोला, “मैडम, आप सुबह से यही प्लेटफार्म नंबर चार की बेंच पर बैठी हैं। सब ठीक है? आप किसका इंतजार कर रही हैं?”
लड़की चौंक गई, उसकी आंखों में डर और स्वर में कठोरता थी – “तुम्हें इससे क्या मतलब? मैं जहां चाहूं बैठ सकती हूं।”
राजेश थोड़ा सकुचाया, फिर शांत स्वर में बोला, “मेरा कोई गलत मतलब नहीं था, बस आपको परेशान देखकर पूछ लिया। अगर आप नहीं बताना चाहतीं तो कोई बात नहीं।” यह कहकर वह जाने ही वाला था कि लड़की की आंखों से आंसू बह निकले। कुछ देर चुप रही, फिर टूटी आवाज में बोली, “मेरा नाम मीरा है। मैं पास के कस्बे से आई हूं। कल मेरे पति मुझे यहां तक लाए थे, बोले थे टिकट लेकर आते हैं और फिर हम दोनों निकलेंगे। पर वह लौट कर कभी नहीं आए। सारे पैसे और सामान उन्हीं के पास थे। मैं यहीं प्लेटफार्म नंबर चार की बेंच पर बैठी उनका इंतजार करती रही। अब समझ गई हूं कि उन्होंने मुझे छोड़ दिया है।”
इतना कहते-कहते मीरा का गला भर आया और वह रो पड़ी। राजेश का दिल द्रवित हो गया। उसने धीरे से कहा, “यहां रात भर रहना सुरक्षित नहीं है। मेरे घर चलो। मेरी मां सीता देवी बहुत दयालु हैं। वहां तुम्हें खाना मिलेगा और आराम भी। फिर हम सोचेंगे कि आगे क्या करना है।”
मीरा कुछ पल चुप रही, उसके मन में डर था, लेकिन सहारा भी तो कोई नहीं था। आखिरकार उसने धीमे स्वर में कहा, “अगर तुम्हारी मां मना ना करें तो…” राजेश मुस्कुरा कर बोला, “मां किसी को मना नहीं करती, आओ।”
भाग 2: नया घर, नया सहारा
दोनों प्लेटफार्म से बाहर निकले। थोड़ी ही दूरी पर राजेश का छोटा सा घर था – टीन की छत, मिट्टी की हल्की खुशबू, छोटा सा आंगन। राजेश ने दरवाजा खटखटाया। अंदर से मां सीता देवी बाहर आईं – “कौन है बेटा?”
राजेश ने विनम्रता से कहा, “मां, यह मीरा है। सुबह से प्लेटफार्म नंबर चार की बेंच पर अकेली बैठी थी। बहुत परेशान थी, मैंने सोचा इसे घर ले आऊं। कुछ खिला दो।”
सीता देवी ने बिना कुछ पूछे मुस्कुरा कर कहा, “आओ बेटी, अंदर आओ।” उन्होंने तुरंत रोटियां सेंकी, दाल गर्म की और प्लेट में खाना सजाकर मीरा के सामने रख दिया। मीरा की आंखें फिर भर आईं – यह खाना सिर्फ रोटियों का नहीं था, इसमें अपनापन और सुरक्षा का स्वाद था।
खाना खाने के बाद सीता देवी ने पास की खटिया पर साफ चादर बिछाई और बोली, “बेटी, अब तू आराम कर ले। बाकी सब कल देखेंगे।” कई दिनों बाद मीरा की आंखें भारी हुईं और वो चैन की गहरी नींद में डूब गई।
राजेश बरामदे में बैठा देर तक आसमान की तरफ देखता रहा – कभी-कभी भगवान इंसान के रूप में आकर किसी की मदद करते हैं। शायद आज मैं मीरा के लिए वही बन पाया।
भाग 3: अपनापन की शुरुआत
अगली सुबह जब सूरज की हल्की रोशनी आंगन में उतरी तो सीता देवी की आंख खुली। उन्होंने जैसे ही दरवाजे की ओर नजर डाली, तो देखा कि आंगन चमक रहा था, बरामदा सुथरा था, कोने-कोने में साफ-सफाई थी। उन्होंने मुस्कुराते हुए आवाज लगाई, “बेटी, यह सब तुमने किया?”
मीरा चुपचाप सिर झुका कर बोली, “हां मां, मैंने ही किया। अब जब आपके घर में रह रही हूं, तो घर का काम तो मेरा भी फर्ज है। अगर मैं हाथ ना बंटाऊं तो मुझे लगेगा कि मैं आप पर बोझ हूं।”
सीता देवी की आंखें भर आईं। उन्होंने मीरा का चेहरा सहलाते हुए कहा, “बेटी, बोझ कभी नहीं। तुम तो मेरी अपनी बेटी जैसी हो। बेटियां ही तो घर को संवारती हैं। तूने तो मेरा दिल खुश कर दिया।”
उस दिन से मीरा घर के कामों में हाथ बंटाने लगी – सुबह झाड़ू-पोछा, दोपहर में रसोई, शाम को बरामदे में बैठकर सीता देवी से बातें। उसकी आवाज में पहले जो डर था, अब धीरे-धीरे आत्मीयता और विश्वास झलकने लगा।
राजेश जब ड्यूटी से लौटता तो देखता कि मां हंस रही है, बरामदा खिला हुआ है, घर में रौनक है। उसके दिल को चैन मिलता। उसने सोचा – कल तक यह घर कितना खाली लगता था, आज मां के चेहरे पर मुस्कान है। यह सब मीरा की वजह से।
भाग 4: मीरा का घर में रंग
एक शाम राजेश ड्यूटी से लौटा और आंगन में बैठा था। सीता देवी वहीं चारपाई पर बैठी थीं, मीरा पास ही चूल्हे पर रोटियां सेक रही थी। हल्की ठंडी हवा चल रही थी। उस माहौल में घर का सन्नाटा टूट चुका था। अब घर में हंसी, अपनापन और तसल्ली थी।
सीता देवी ने राजेश को देखते हुए मीरा की ओर इशारा करके कहा, “बेटा, यह लड़की कितनी समझदार है। बिना कहे ही सब काम कर देती है। मेरे दुख-दर्द बांटती है। लगता है जैसे भगवान ने इसे हमारी किस्मत में भेजा है।”
राजेश ने हल्की मुस्कान के साथ मां की बात सुनी। उसके मन में भी यही भाव था, पर उसने कुछ कहा नहीं।
धीरे-धीरे मीरा और राजेश के बीच भी बातचीत बढ़ने लगी। मीरा कभी पूछ लेती – “आज स्टेशन पर ज्यादा भीड़ थी?” तो राजेश हंसकर जवाब देता – “भीड़ तो रोज रहती है, लेकिन तुम्हारी चिंता जैसी भीड़ किसी की आंखों में नहीं देखी।” यह सुनकर मीरा शर्मा जाती और चुप हो जाती।
एक दिन जब राजेश ड्यूटी पर गया था, सीता देवी ने मीरा से सीधे पूछ लिया – “बेटी, सच बता तुझे मेरा बेटा कैसा लगता है?”
मीरा का चेहरा लाल हो गया – “नहीं मां, ऐसी कोई बात नहीं। मैं तो बस…”
सीता देवी मुस्कुराई – “बेटी, मैं तेरी आंखों को समझती हूं। अगर तू चाहे तो मैं राजेश से तुम्हारी शादी की बात करूं। मेरे बेटे को भी तेरा साथ अच्छा लगता है। घर में जो रौनक आई है, वो तेरे कदमों से ही आई है।”
मीरा शर्माकर अंदर चली गई, पर उसके होठों पर हल्की मुस्कान थी और दिल में एक नई किरण।
भाग 5: किस्मत की लॉटरी
दिन यूं ही बीतते गए। मीरा अब घर का हिस्सा बन चुकी थी। एक दिन मीरा सब्जी लेने बाजार गई। वहां भीड़ में उसने देखा कि एक छोटी सी दुकान पर लॉटरी के टिकट बिक रहे हैं। मीरा ने पहले कभी लॉटरी के बारे में सोचा भी नहीं था, लेकिन ना जाने क्यों उसका मन हुआ और उसने एक टिकट खरीद लिया।
वापस आते समय उसे लगा – कैसी बेवकूफी की है, इन पैसों से दाल या सब्जी ले सकती थी। घर पहुंचकर उसने टिकट सीता देवी के हाथ में देते हुए कहा, “मां, मुझसे गलती हो गई। यह टिकट ले लिया, पैसे बेकार चले गए।”
सीता देवी मुस्कुरा दी – “बेटी, गलती क्यों? देख लेते हैं। क्या पता भगवान तेरे दुख देखकर तेरी झोली भर दें।”
मीरा हंसते हुए बोली, “अगर ऐसे ही सब करोड़पति बन जाते, तो हर गली में करोड़पति घूमते। यह तो बस पैसा बर्बाद करना है।” दोनों इस बात पर हंस पड़ी और टिकट एक कोने में रख दिया गया।
भाग 6: किस्मत की पलटी
दो दिन बाद टीवी पर लॉटरी के नतीजे आने थे। उस दिन सुबह से ही सीता देवी उत्सुक थी। शाम को उन्होंने टीवी ऑन किया और मीरा को भी बुलाया। पर मीरा ने हंसते हुए कहा, “मां, आप ही देख लो, मुझे तो पूरा यकीन है कि नंबर नहीं मिलेगा।”
टीवी पर जैसे-जैसे नंबर सुनाए जा रहे थे – तीसरे इनाम का, फिर दूसरे इनाम का – दोनों में उनका नंबर नहीं निकला। सीता देवी का दिल बैठने लगा। उन्होंने सोचा अब तो कुछ नहीं होगा।
लेकिन जैसे ही पहले इनाम का नंबर सुनाया गया, अचानक सीता देवी की आंखें फटी की फटी रह गईं। उन्होंने टिकट मिलाया और फिर चीख उठीं – “मीरा बेटी देखो, तेरी 1 करोड़ की लॉटरी लग गई है!”
मीरा दौड़ती हुई आई, टिकट और टीवी पर दिख रहा नंबर मिलाया – दोनों एकदम एक जैसे थे। उसका दिल जोरों से धड़कने लगा, आंखों में आंसू आ गए, लेकिन इस बार दुख के नहीं, खुशी के थे।
मीरा ने सीता देवी को गले लगाकर कहा, “मां, मुझे यकीन नहीं हो रहा। भगवान ने मेरे साथ इतना बड़ा चमत्कार कर दिया। अब मुझे किसी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं।”
सीता देवी भी रो पड़ीं – “बेटी, तेरी किस्मत ने पलटी खा ली है। अब तू अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है। तेरी जिंदगी का दर्द भगवान ने आज मिटा दिया।”
राजेश को जैसे ही यह खबर मिली, वह तुरंत घर दौड़ा आया। उसकी आंखों में भी खुशी और गर्व था। उसने कहा, “मीरा, अब तो सचमुच तुम्हें नया जीवन मिल गया है। लेकिन हमें इन पैसों को समझदारी से लगाना होगा ताकि कल को किसी तकलीफ में ना पड़े।”
मीरा ने सिर हिलाकर हामी भरी। उस रात घर का माहौल बिल्कुल बदल गया था। बरसों बाद सीता देवी ने इतनी बड़ी खुशी महसूस की। बरामदे में बैठे तीनों की आंखें चमक रही थीं। मीरा सोच रही थी – कल तक मैं प्लेटफार्म नंबर चार की बेंच पर अकेली और बेसहारा थी, आज भगवान ने मुझे परिवार भी दिया और किस्मत भी पलट दी।
भाग 7: अतीत की दस्तक
मीरा की लॉटरी लगने की खबर धीरे-धीरे पूरे मोहल्ले में फैल गई थी। लोग कहते – देखो कैसी किस्मत पलटी है, जो लड़की स्टेशन की बेंच पर अकेली बैठी थी, आज करोड़पति बन गई। सीता देवी के घर में भी अब रौनक थी। राजेश हर वक्त मीरा का साथ देता और मीरा अपने पैरों पर खड़े होने के लिए छोटे कारोबार की योजना बना रही थी।
लेकिन खुशियों के इन दिनों के बीच एक दिन अचानक अतीत दस्तक देने आ गया। दोपहर का समय था। मीरा अपने नए काम की तैयारी कर रही थी, सीता देवी बरामदे में बैठी थीं। तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। राजेश ड्यूटी पर गया हुआ था। मीरा ने दरवाजा खोला तो सामने वही चेहरा खड़ा था जिसे वह कभी भूलना चाहती थी – रमेश।
मीरा का शरीर जैसे पत्थर हो गया, उसकी आंखें फैल गईं। सामने वही व्यक्ति था जिसने उसे प्लेटफार्म नंबर चार पर छोड़कर गायब हो गया था। रमेश ने आंसू भरी आंखों से कहा, “मीरा, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। मुझे माफ कर दो। मैं तुम्हें छोड़कर चला गया था, लेकिन अब मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं।”
मीरा ने कांपती आवाज में पूछा, “क्यों आए हो अब? उस दिन क्यों छोड़ कर गए थे? जानते हो, मैंने रात-रात भर स्टेशन के बेंच पर बैठकर तुम्हारा इंतजार किया। सोचा था लौट आओगे, लेकिन तुमने तो मुझे बेसहारा छोड़ दिया।”
रमेश का सिर झुक गया, उसने कबूल किया, “मीरा, मैं बेंगलुरु में काम करता था। वहां एक लड़की से मेरा मन लग गया। उसने कहा था कि अगर मैं उसके नाम पर घर खरीदूंगा तो वह मेरे साथ रहेगी। इसी लालच में मैंने तुम्हें धोखा दिया। पर जब घर उसके नाम किया तो उसने और उसके लोगों ने मुझे घर से निकाल दिया। मैं अकेला भटकता रहा और जब सुना कि तुम्हारी लॉटरी लगी है, तब समझा कि भगवान ने मुझे सजा दी है। मीरा, मैं सचमुच पछता रहा हूं। मुझे एक मौका दे दो।”
मीरा की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन इस बार कमजोरी के नहीं, गुस्से और आत्मसम्मान के आंसू। उसने ठहर कर कहा, “रमेश, जब मैं अकेली थी, बेसहारा थी, तब तुमने मुझे छोड़ दिया। उस दिन अगर सीता देवी और राजेश ना होते तो शायद मैं जिंदा भी ना रहती। अब जब भगवान ने मुझे सहारा दिया है, परिवार दिया है और मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं, तब तुम्हें मेरी याद आई?”
रमेश गिड़गिड़ाने लगा, “मीरा, मुझसे गलती हो गई, मुझे माफ कर दो।” पर मीरा का चेहरा कठोर हो गया। उसने साफ शब्दों में कहा, “माफी से जख्म नहीं भरते। मैंने तुम्हारा इंतजार किया था और तुम लौटे नहीं। अब लौट कर मत आओ। मेरी जिंदगी में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं बची। यहां से चले जाओ।”
सीता देवी भी पास आ गईं। उन्होंने गुस्से से कहा, “बेटी ने नया जीवन शुरू किया है। तूने उसे बहुत दुख दिया है। अब उसके सामने मत आना, निकल जा यहां से।”
रमेश सिर झुका कर रोता हुआ चला गया। मीरा दरवाजे पर खड़ी रह गई, उसके दिल में हलचल तो थी, पर साथ ही एक सुकून भी था। आज उसने अपने अतीत का सामना किया और उसे वही रोक दिया। अब उसकी जिंदगी उसके अपने हाथों में थी।
भाग 8: नया परिवार, नई शुरुआत
शाम को जब राजेश लौटा तो मीरा ने सब कुछ बता दिया। राजेश ने शांत स्वर में कहा, “मीरा, तुम्हारा निर्णय सही था। जो इंसान एक बार छोड़कर चला गया, उस पर दोबारा भरोसा करना मूर्खता है। अब तुम्हें पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं। हम सब तुम्हारे साथ हैं।”
मीरा की आंखें फिर से भर आईं, लेकिन इस बार उसमें डर नहीं, ताकत थी। उसने महसूस किया कि अब वह पहले जैसी बेसहारा लड़की नहीं रही। अब वह अपने लिए और अपने नए परिवार के लिए जी रही है।
रमेश के लौटने और फिर ठुकराए जाने के बाद मीरा का मन अब पूरी तरह शांत हो गया था। उसने ठान लिया कि अब वह कभी पीछे मुड़कर नहीं देखेगी। अब उसकी जिंदगी में नया परिवार, नया सहारा और नई उम्मीद थी।
एक दिन सीता देवी ने राजेश को पास बैठाकर कहा, “बेटा, अब मुझे तुझसे एक बात कहनी है। मीरा ने इस घर को संभाल लिया है, मेरे दुख-दर्द बांटे हैं, मेरी आंखों में हंसी लौट आई है। मुझे लगता है कि भगवान ने इसे हमारी किस्मत में बहू बनाकर भेजा है। अगर तुझे भी कोई ऐतराज ना हो तो क्यों ना मैं इसकी शादी तुझसे कर दूं?”
राजेश ने मां की ओर देखा, उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई। वह बोला, “मां, अगर मीरा भी राजी हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं। सच तो यह है कि अब यह घर मुझे अधूरा लगता है जब मीरा नजर नहीं आती।”
सीता देवी ने यह बात मीरा से कही। पहले तो वह शर्मा गई, पर फिर सिर झुका कर धीरे से बोली, “मां, आपने जब कहा था कि मैं आपकी बेटी जैसी हूं, तभी से मैंने सोचा था कि यही मेरा घर है। अगर आप सब चाहें तो मुझे भी कोई आपत्ति नहीं।”
भाग 9: शादी और नया जीवन
एक शुभ दिन तय किया गया। छोटे से घर में बड़ी रौनक छा गई। मोहल्ले के लोग आए, ढोलक बजी, मेहंदी लगी। सीता देवी की आंखों में आंसू थे, लेकिन इस बार खुशी के। उन्होंने सोचा – जिस लड़की को प्लेटफार्म नंबर चार की बेंच पर बेसहारा छोड़ा गया था, आज वही मेरी बहू बन रही है।
शादी पूरे रीति-रिवाज से हुई। राजेश और मीरा एक दूसरे के जीवन साथी बन गए। उस रात जब दोनों बरामदे में बैठे थे तो मीरा ने धीमे स्वर में कहा, “राजेश, अगर उस दिन तुम मुझे अपने घर ना लाते तो शायद मैं जिंदा भी ना होती। तुमने मुझे नया जीवन दिया है।”
राजेश ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “नहीं मीरा, यह सब तुम्हारी किस्मत और तुम्हारी सच्चाई है। मैंने तो बस इंसानियत का फर्ज निभाया। असली ताकत तो तुम्हारे भीतर थी जिसने तुम्हें संभाला।”
भाग 10: मेहनत और आत्मनिर्भरता
अब मीरा ने सोच लिया कि लॉटरी के पैसों को सही दिशा में लगाना जरूरी है। राजेश और सीता देवी से सलाह लेकर उसने एक छोटा सा कपड़ों का कारोबार शुरू किया। धीरे-धीरे मेहनत और ईमानदारी से वह कारोबार चल निकला। मीरा सुबह-सुबह दुकान संभालती और शाम को घर लौटकर सीता देवी के साथ मिलकर खाना पकाती।
मोहल्ले वाले भी अब कहते – देखो, पहले बेसहारा थी, आज अपने पैरों पर खड़ी है। सचमुच किस्मत और मेहनत दोनों साथ हो तो इंसान की जिंदगी बदल जाती है।
राजेश को भी गर्व होता। वह ड्यूटी से लौटकर दुकान पर मदद करता, दोनों मिलकर भविष्य के सपने देखते। सीता देवी उन्हें आशीर्वाद देतीं और कहतीं – “अब मुझे कोई चिंता नहीं, मेरे बच्चों का घर परिवार संभल गया है।”
मीरा की आंखों में अब डर नहीं, बल्कि आत्मविश्वास था। उसने सोच लिया था – मैं कभी किसी पर निर्भर नहीं रहूंगी, अब मेरी जिंदगी मेरे अपने फैसलों पर चलेगी।
समय बीतता गया। घर में हंसी-खुशी छा गई। राजेश और मीरा का रिश्ता मजबूत होता चला गया। और इस तरह वह लड़की, जिसे एक प्लेटफार्म के बेंच पर छोड़कर उसका पति भाग गया था, अब अपने नए परिवार के साथ हंसते-खेलते जीवन बिता रही थी।
सीख और संदेश
दोस्तों, जिंदगी में कभी-कभी हालात हमें तोड़ देते हैं। लेकिन अगर हिम्मत ना हारे और अच्छे लोग साथ मिल जाएं, तो वही टूटे सपने दोबारा जुड़ जाते हैं। अगर आप मीरा की जगह होते, तो क्या आप रमेश को माफ करते या उसकी तरह उसे जिंदगी से बाहर कर देते? अपनी राय जरूर बताइए।
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मिलते हैं अगले वीडियो में।
तब तक इंसानियत निभाइए, नेकी फैलाइए और दिलों में उम्मीद जगाइए।
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