हिंदू लड़के ने मुस्लिम लड़की के संग किया छठ पूजा… जो हुआ उसने पूरे समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया…

मुजफ्फरपुर की छठ और दो दिलों की कहानी
कहते हैं स्वर्ग का रास्ता उसी को मिलता है, जो धर्म नहीं दिल के प्यार को मानता है। यह कहानी है बिहार के मुजफ्फरपुर की, जहां छठ पूजा के पावन अवसर ने दो दिलों को मिलाया—एक हिंदू लड़का आरव तिवारी और एक मुस्लिम लड़की जानवी खान। प्यार सच्चा था, मगर समाज के सवाल बड़े थे। क्या छठ माता उनका साथ देंगी, या यह प्रेम अधूरा रह जाएगा?
शुरुआत: घाट की सुबह
नवंबर की हल्की ठंड, गंगा के किनारे बहती हवा और छठ पूजा की तैयारियों से पूरा मुजफ्फरपुर उत्सव के रंग में रंगा था। घाटों पर बांस के सूप, केले के पत्ते बिक रहे थे। हर गली में छठ के गीत गूंज रहे थे। बाजारों में नारियल, दौरा और गन्ने की मिठास हवा में घुल रही थी।
इसी माहौल में 24 वर्षीय आरव तिवारी अपने कॉलेज के दोस्तों के साथ गंगा घाट पर स्वच्छता अभियान में जुटा था। आरव इतिहास का अध्यापक था, मुस्कान उसके चेहरे पर हमेशा रहती थी। उसका दोस्त राहुल हमेशा शरारती रहता। “अरे आरव, ये झाड़ू पकड़ने का तरीका तेरा बिल्कुल प्रोफेसरों वाला है,” राहुल ने हंसते हुए कहा। आरव ने भी मुस्कुरा कर जवाब दिया, “घाट छठ के लिए साफ करना है, तेरा ड्रामा बाद में देखेंगे।”
उधर घाट के एक कोने में जानवी खान अपने एनजीओ के तंबू के नीचे गरीब बच्चों को पढ़ा रही थी। 22 साल की जानवी की आंखों में एक सपना था—शहर के गरीब बच्चों को शिक्षित करना। उसकी सादी सलवार-कमीज और सिर पर हल्का दुपट्टा उसे आत्मविश्वास से भरी लड़की का रूप देता था। जानवी अपने पिता नसीर खान की इकलौती बेटी थी। नसीर कट्टर धार्मिक थे, लेकिन जानवी ने अपनी राह खुद बनाई थी।
पहली मुलाकात: एक शरारत से शुरुआत
उस दोपहर राहुल की एक शरारत ने आरव और जानवी की मुलाकात कराई। राहुल झाड़ू लिए हुए भागा और गलती से जानवी के तंबू के पास रखे पानी के मटके से टकरा गया। मटका डगमगाया, लेकिन जानवी ने फुर्ती से उसे पकड़ लिया। “अरे भैया, ये क्या? घाट साफ करने आए हो या हमारा कैंप तोड़ने?” जानवी ने हंसते हुए कहा। राहुल खिसियाया, आरव माफी मांगने आगे आया, “माफ करना, मेरे दोस्त को बस हर जगह ड्रामा चाहिए। मैं हूं आरव तिवारी, और ये है हमारा मटकात मास्टर।” जानवी हंस पड़ी, “मैं जानवी खान। अच्छा काम कर रहे हो, छठ के लिए मेहनत रंग लाएगी।”
इस छोटी सी बातचीत ने दोनों के बीच दोस्ती की नींव रख दी। अगले कुछ दिन घाट पर वे अक्सर मिलने लगे—कभी स्वच्छता अभियान के बहाने, कभी बच्चों को पढ़ाते हुए। आरव को जानवी की सादगी और समर्पण पसंद आया, जानवी को आरव की हंसी और छठ पूजा की कहानियां आकर्षित करती थीं।
छठ की तैयारियां और नजदीकियां
छठ पूजा का समय नजदीक आ रहा था। आरव का घर इस उत्सव का केंद्र था। उसकी मां सरोज तिवारी छठ को जीवन का अभिन्न हिस्सा मानती थीं। हर साल महीनों पहले से सूप, दौरा, केले के पत्तों की व्यवस्था करतीं। “बेटा, बाजार से अच्छे वाले गन्ने ले आ,” सरोज ने कहा। “इस बार ऐसे लाऊंगा कि छठ माता भी तारीफ करेंगी,” आरव ने हंसते हुए जवाब दिया।
बाजार में छठ की रौनक थी। दुकानों पर नारियल, सैब, केले के ढेर लगे थे। आरव वहीं जानवी से टकरा गया। “अरे जानवी, तुम यहां?” “कुछ सामान लेने आई थी,” जानवी ने मुस्कुराते हुए कहा। “छठ की तैयारियां देखकर मन खुश हो जाता है।” “तो मेरे साथ चलो, मां को गन्ने चाहिए, तू भी देख ले छठ का सामान कैसे चुना जाता है,” आरव ने कहा।
जानवी हिचकिचाई, “क्या तुम्हारी मां को बुरा नहीं लगेगा?” “मां को बस छठ से प्यार है,” आरव ने कहा। जानवी ने हिम्मत जुटाई और आरव के साथ उसके घर गई। सरोज ने पहले भौहें चढ़ाईं, लेकिन जब जानवी ने सूप में फल सजाने में मदद की तो उनकी मुस्कान लौट आई। “बेटी, तुम्हारी हिम्मत अच्छी है। छठ माता सबकी सुनती है,” सरोज ने कहा।
उस दिन जानवी ने नहाय-खाय की रस्म देखी, सरोज ने उसे छठ की परंपराएं समझाईं। जानवी को सूर्य उपासना का महत्व समझ में आया। “तुम हर साल यह करते हो, इतने दिन बिना खाए-पिए?” “यह सिर्फ व्रत नहीं, अनुशासन है,” आरव ने जवाब दिया।
प्यार का अंकुर
जैसे-जैसे छठ का पर्व नजदीक आया, आरव और जानवी की मुलाकातें बढ़ने लगीं। कभी घाट पर, कभी बाजार में। आरव उसे छठ के गीत सिखाता, जानवी अपने एनजीओ के बच्चों की कहानियां सुनाती। दोनों के बीच एक अनकहा रिश्ता पनपने लगा।
एक शाम घाट पर बैठे हुए जानवी ने कहा, “मुझे छठ का माहौल बहुत अच्छा लगता है। मेरे घर में त्योहार इतने सादे होते हैं।” “तो तू इस बार पूरा छठ देख,” आरव ने कहा। “खरना के दिन मेरे घर आना, मां गुड़ की खीर बनाएंगी।”
जानवी के मन में डर था। उसके पिता नसीर खान बहुत सख्त थे। वे नहीं चाहते थे कि जानवी किसी गैर-मुस्लिम के साथ ज्यादा समय बिताए। लेकिन जानवी का दिल आरव की ओर खिंच रहा था।
समाज की दीवारें
एक दिन जानवी के पड़ोसी ने नसीर को बता दिया कि उसने जानवी को आरव के साथ बाजार में देखा है। नसीर ने उस रात जानवी को डांटा। जानवी ने चुपके से आरव को फोन किया, “मैं आना चाहती हूं, खरना की रस्म देखना चाहती हूं, लेकिन अब्बू…”
आरव ने उसे सहेली आलिया को साथ लाने की सलाह दी। आलिया ने हौसला बढ़ाया, “चल जानवी, आज तू अब्बू की बात भूल जा, छठ का प्रसाद खाएंगे और तेरा तिवारी जी भी मिलेगा।”
शाम को जब सूरज ढल चुका था, जानवी और आलिया आरव के घर पहुंची। आंगन में पंडाल सजा था, सरोज और पड़ोस की महिलाएं खरना की रस्म की तैयारी कर रही थीं। जानवी ने पहली बार गुड़ की खीर खाई। उसकी मिठास ने मन को छू लिया। “यह तो जादू जैसा है,” जानवी ने कहा। “मां कहती है, यह प्रसाद दिलों को जोड़ता है,” आरव ने मुस्कुरा कर जवाब दिया।
उस रात जानवी ने सूर्य भगवान से प्रार्थना की, “मेरे और आरव के प्यार को स्वीकार करवाइए, अब्बू का दिल पिघल जाए।”
टकराव और संघर्ष
अगले दिन एनजीओ के कैंप में पड़ोसी ने नसीर खान को बता दिया कि जानवी आरव के घर गई थी। नसीर का गुस्सा सातवें आसमान पर था। “तू उस तिवारी के घर गई थी? त्यौहार में हिस्सा लिया? तुझे हमारी इज्जत की कोई परवाह नहीं?” जानवी ने हिम्मत से जवाब दिया, “छठ पूजा में कोई बुराई नहीं, वो भक्ति और एकता का पर्व है।” नसीर ने उसे घर से बाहर निकलने से मना कर दिया।
जानवी की आंखें भर आईं। उसने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया। उस रात उसने आरव को फोन किया, “अब्बू बहुत नाराज हैं, मुझे नहीं पता क्या करूं।” “हिम्मत मत हार, कल संध्या अर्घ्य है, किसी तरह घाट पर आजा, माता सब ठीक कर देंगी,” आरव ने कहा।
आलिया ने मदद की, “चल मैं तेरे अब्बू को मना लूंगी, तू घाट पर जा और अपने प्यार के लिए लड़।”
छठ का संध्या अर्घ्य: उम्मीद की किरण
छठ पूजा का तीसरा दिन, संध्या अर्घ्य। गंगा घाट पर हजारों लोग जमा थे। सूरज ढल रहा था, घाट सुनहरा हो गया था। जानवी ने आलिया की मदद से चुपके से घर से निकलने का रास्ता बनाया। वह आरव के साथ घाट पर पहुंची। सरोज ने मुस्कुराकर कहा, “आ बेटी, तू भी अर्घ्य दे, माता सबकी सुनती है।”
जानवी ने पहली बार सूप उठाया, गंगा के पानी में खड़ी होकर सूर्य को अर्घ्य दिया। उसे अजीब सी शांति महसूस हुई। “आरव, यह एहसास मैं बता नहीं सकती, लगता है माता मेरे साथ है।” आरव ने उसका हाथ थाम लिया, “यह छठ की ताकत है, यह पर्व दिलों को जोड़ता है।”
तभी नसीर खान रिश्तेदारों के साथ घाट पर पहुंच गए। उन्होंने जानवी को सूप लिए देख लिया। “यह क्या कर रही है तू?” भीड़ में खुसुर-फुसुर शुरू हो गई। जानवी ने सूप नीचे रखा और पिता की ओर देखा, “अब्बू, मैंने कुछ गलत नहीं किया, यह पूजा है, भक्ति है। इसमें क्या बुरा है?”
नसीर गुस्से में थे। “तू मेरी बात नहीं मानी? तुझे हमारे मजहब की इज्जत नहीं?” तभी सरोज तिवारी आगे आईं, “नसीर जी, शांत हो जाइए। यह छठ माता का घाट है, यहां गुस्सा नहीं, प्यार और भक्ति की बात होती है। जानवी ने दिल से अर्घ्य दिया है, क्या आप उसकी भावनाओं को नहीं समझेंगे?”
भीड़ में से कुछ लोग बोले, “हां नसीर भाई, बच्चे गलत नहीं हैं, छठ तो एकता का पर्व है।”
सुबह का उषा अर्घ्य और बदलाव
अगले दिन उषा अर्घ्य का समय था। सूरज उगने से पहले ही घाट पर भीड़ थी। जानवी ने रात में अपने पिता से लंबी बात की थी, “अब्बू, मैं आपकी इज्जत करती हूं, लेकिन मैं आरव से प्यार करती हूं। छठ पूजा ने मुझे सिखाया है कि सच्चा प्यार और भक्ति किसी धर्म की सीमा में नहीं बंधता।”
नसीर ने उसकी आंखों में देखा, शायद पहली बार उसकी हिम्मत और सच्चाई का एहसास हुआ। उन्होंने कुछ नहीं कहा, लेकिन सुबह घाट पर जाने से नहीं रोका।
सूरज की पहली किरण गंगा पर पड़ी, जानवी और आरव ने एक साथ अर्घ्य दिया। सरोज और नसीर दोनों वहीं खड़े थे। रस्म खत्म होने के बाद नसीर ने कहा, “मुझे वक्त चाहिए बेटी, लेकिन मैं कोशिश करूंगा तुम्हें समझने की।”
अंत: छठ माता की कृपा
छठ पूजा खत्म हुई, लेकिन आरव और जानवी की कहानी ने मुजफ्फरपुर में एक नई मिसाल कायम की। शहर के लोग उनके प्रेम और छठ माता की भक्ति की बात करने लगे। सरोज और नसीर धीरे-धीरे अपने बच्चों की खुशी के लिए एक-दूसरे को समझने लगे। जानवी और आरव ने उस साल छठ पूजा को अपने दिल में बसा लिया। यह पर्व उनके लिए सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि प्यार और एकता का प्रतीक बन गया।
सीख:
छठ माता का पर्व दिलों को जोड़ता है। सच्चा प्रेम धर्म, जाति या मजहब की दीवारों से बड़ा होता है। अगर दिल में भक्ति और प्यार है, तो छठ माता सबकी सुनती हैं।
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प्यार और एकता ही असली धर्म है।
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