10 साल की गरीब बच्ची ने मिलेनियर से कहा — ‘अंकल, क्या आपके घर में खाली बोतल है? फिर जो हुआ|”

उम्मीद की किरन – रानी और अर्जुन अंकल की कहानी

सुबह का समय था। शहर की एक बड़ी हवेली का विशाल काला गेट धीरे-धीरे खुला। अंदर से एक सख्स बाहर निकला, हाथ में ऑफिस बैग था। वह थे अर्जुन मल्होत्रा – शहर के सबसे बड़े और अमीर उद्योगपति। हर सुबह की तरह वे अपने ऑफिस जाने के लिए निकल रहे थे।

गेट के बाहर फुटपाथ पर एक छोटी सी लड़की खड़ी थी। उसके साथ एक छोटा बच्चा था, जिसे उसने गोद में उठा रखा था। लड़की के हाथ में एक फटी थैली थी जिसमें कुछ खाली बोतलें थीं। वह कूड़े के ढेर में से बोतलें ढूंढ रही थी। चेहरे पर धूल थी, पैर नंगे थे, लेकिन आंखों में हिम्मत थी।

अर्जुन ने गाड़ी में बैठने से पहले उस बच्ची को देखा। वह कुछ पल रुक गए। तभी लड़की ने सिर उठाया और डरते हुए बोली, “अंकल, क्या आपके घर में प्लास्टिक की बोतलें हैं? मैं उन्हें बेचकर अपनी बहन को खाना खिला दूंगी।”

अर्जुन कुछ पल चुप रहे। उसकी आवाज सुनकर उनका दिल भर आया। उन्होंने पूछा, “बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?” लड़की ने कहा, “मेरा नाम रानी है और यह मेरा छोटा भाई सोनू है।” अर्जुन ने पूछा, “तुम ये बोतलें क्यों इकट्ठा करती हो? तुम्हारे माता-पिता कहां हैं?” रानी ने जवाब दिया, “वे दोनों बीमारी से मर गए।” इतना कहते ही उसकी आंखों में आंसू आ गए। फिर संभलकर बोली, “घर पर बहन बीमार है। हमारे पास कुछ नहीं है। मैं बोतलें बेचकर उसके लिए रोटी लाती हूं।”

अर्जुन स्तब्ध रह गए। उन्होंने जेब से पैसे निकाले और रानी की ओर बढ़ाएं। रानी ने सिर हिला दिया, “मुझे भीख नहीं चाहिए, अंकल। मुझे बस बोतलें चाहिए। मैं खुद काम करके कमाऊंगी।”

उसकी बात सुनकर अर्जुन सोच में पड़ गए। फिर बोले, “चलो बेटा, पहले मेरे साथ चलो। खाली पेट काम नहीं होता।” रानी पहले तो डर गई, लेकिन भाई की तरफ देखा, जो भूख से सुस्त पड़ा था। रानी ने धीरे से सिर हिलाया और अर्जुन के साथ चल पड़ी।

अर्जुन उन्हें पास के एक बड़े रेस्टोरेंट में ले गए। वहां ठंडी हवा चल रही थी, मेजों पर सफेद कपड़े बिछे थे और वेटर झुककर आदेश ले रहे थे। रानी और सोनू के लिए यह सब नया था। वे धीरे से कुर्सी पर बैठी जैसे डर रही हो कि कहीं कुछ तोड़ न दे। अर्जुन ने मुस्कुरा कर कहा, “डरो मत बेटा। आराम से बैठो। आज तुम दोनों का खाना मेरी तरफ से है।”

थोड़ी देर में थालियां आईं – गर्म रोटियां, दाल, सब्जी और मीठा भी। रानी ने अपने छोटे भाई को खिलाया, फिर खुद थोड़ा-थोड़ा खाया। खाना खाते हुए उसकी आंखों में चमक लौट आई। अर्जुन चुपचाप उन्हें देखता रहा। उसे महसूस हुआ कि जिन बच्चों को वह आज देख रहा है, उनकी आंखों में वही जज्बा है जो कभी उसके अंदर था – कुछ करने का, किसी भी हालत में हार न मानने का।

खाने के बाद अर्जुन ने कहा, “तुम्हारी बहन बीमार है ना? उसके लिए भी खाना ले जाओ।” उन्होंने रेस्टोरेंट के मैनेजर से कहा कि एक पैकेट और बांध दे। रानी ने वह खाना सीने से लगा लिया। अर्जुन बोले, “अगर तुम्हें फिर कभी जरूरत हो तो यहीं आ जाना। मैं हर दिन इसी रास्ते से जाता हूं।” रानी ने सिर झुकाया और बोली, “धन्यवाद अंकल। आज मेरी बहन भूखी नहीं सोएगी।”

वह चली गई। हाथ में खाना था, आंखों में चमक थी और अर्जुन की गाड़ी वहीं कुछ पल के लिए खड़ी रह गई क्योंकि वह भी सोच में थे – कभी-कभी भगवान मदद के लिए खुद नहीं आते, किसी बच्ची के रूप में याद दिलाने भेज देते हैं।

अगले दिन सुबह फिर वही जगह, वही सड़क। लेकिन रानी आज अलग लग रही थी। गोद में भाई था। वो हवेली के पास पहुंची। लेकिन आज गेट बंद था। कई बार उसने आवाज लगाई, “अंकल, अंकल,” पर कोई जवाब नहीं मिला। थोड़ी देर में गार्ड आया और बोला, “बिटिया, साहब तो आज सुबह जल्दी ऑफिस निकल गए।”

रानी उदास होकर पलटी। तभी पीछे से एक कार रुकी। वही चमकदार कार जिसमें कल अर्जुन मल्होत्रा बैठे थे। गाड़ी का शीशा नीचे हुआ। अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे रानी, तुम इतनी सुबह यहां! चलो अंदर आ जाओ।” रानी बोली, “अंकल, मैं बस मिलने आई थी। कल आपने जो खाना दिया था, उससे मीना का चेहरा खिल उठा। उसने कहा था कि मैं आपको धन्यवाद बोलूं।”

अर्जुन के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई। पर उनके दिल में कुछ और चल रहा था। उन्हें लगा, यह बच्ची इतनी छोटी होकर भी इतना सोचती है। अगर इसे सही मौका मिले तो यह बहुत आगे जा सकती है। अर्जुन ने कहा, “रानी, तुम्हारी बहन को डॉक्टर को दिखाना चाहिए। चलो मेरे साथ, उसे भी ले आओ।”

रानी झिझकी, “अंकल, हमारा घर बहुत छोटा है।” अर्जुन बोले, “कोई बात नहीं।” दोनों उसके छोटे से घर पहुंचे। एक पुरानी झोपड़ी, टूटी दीवारें और अंदर मीना लेटी हुई थी। चेहरा पीला, सांसें भारी। अर्जुन के कदम रुक गए। उन्हें अपनी मां की याद आ गई जो सालों पहले ऐसे ही बीमार पड़ी थी। और उसे बचाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे। अर्जुन की आंखें नम हो गईं। वे बोले, “बेटा, तुम्हारी बहन को मैं डॉक्टर के पास ले जाऊंगा।”

अर्जुन ने अपनी गाड़ी में दोनों बहनों को बैठाया और शहर के बड़े अस्पताल ले गए। डॉक्टर ने जांच की और कहा, “थोड़ी कमजोरी और बुखार है, पर चिंता की बात नहीं। थोड़े दिनों में ठीक हो जाएगी।” रानी की आंखों में खुशी के आंसू थे। उसने अर्जुन के पैर छूने चाहे, पर उन्होंने झट से रोक दिया, “ऐसा मत करो बेटा। मैं तुम्हारा कोई भगवान नहीं हूं।”

अर्जुन ने मीना की दवा ली और दोनों को घर छोड़ आए। जाते-जाते उन्होंने कहा, “अब जब भी तुम्हें कुछ चाहिए, शर्म मत करना। और रानी, तुम्हें पढ़ाई करनी होगी। मैं मदद करूंगा।” रानी बोली, “अंकल, मैं वादा करती हूं। मैं पढ़ूंगी।” अर्जुन मुस्कुराए और चले गए।

अगले दिन जब अर्जुन ऑफिस पहुंचे तो उनके सामने एक फाइल रखी थी। फाइल में लिखा था – नई प्रोजेक्ट साइट स्लम एरिया मीना नगर। अर्जुन ने फाइल खोली और दंग रह गए। उसी झोपड़ पट्टी की तस्वीर थी, जहां रानी और मीना रहते थे। उस इलाके को कंपनी तोड़कर वहां शॉपिंग मॉल बनाना चाहती थी। अर्जुन की अपनी कंपनी थी। वे कुर्सी पर बैठ गए। दिल में एक झटका लगा। “अगर मैंने यह प्रोजेक्ट चलने दिया तो रानी का घर उजड़ जाएगा।”

उनकी आंखों के सामने कल वाला नजारा घूम गया – रानी की मुस्कुराहट, मीना का पीला चेहरा और वो वादा – “मैं पढ़ूंगी अंकल।” अब अर्जुन के सामने दो रास्ते थे। एक जहां करोड़ों का प्रोजेक्ट था, दूसरा जहां एक बच्ची की उम्मीद थी। वे पूरी रात नहीं सोए। सुबह होते ही उन्होंने फोन उठाया और कहा, “इस प्रोजेक्ट को अभी के लिए रोक दो। मैं खुद जाकर देखता हूं वहां के लोगों का हाल।”

उसी शाम अर्जुन फिर उसी बस्ती में पहुंचे। रानी उन्हें देखकर दौड़ पड़ी, “अंकल, दीदी अब ठीक हैं। आपने जो दवा दी थी, उससे फायदा हुआ।” अर्जुन मुस्कुराए। पर अंदर एक भारी फैसला पनप रहा था। वे जानते थे अगर उन्होंने यह प्रोजेक्ट रद्द किया तो कई लोग उन पर सवाल उठाएंगे। पर उन्होंने ठान लिया था – इस बार वे दिल की सुनेंगे, लोगों की नहीं।

उन्होंने उसी दिन तय किया कि वे उस जगह पर मॉल नहीं, एक मुफ्त स्कूल और क्लीनिक बनाएंगे – रानी और मीना जैसे बच्चों के लिए। और जब कुछ महीनों बाद स्कूल बनकर तैयार हुआ, तो पहले दिन क्लास में सबसे आगे रानी और मीना ही बैठे थे। अर्जुन ने दूर से देखा और उनके होठों पर वही मुस्कान थी, जो तब आई थी जब रानी ने पहली बार कहा था, “अंकल, क्या आपके घर में प्लास्टिक की बोतलें हैं?”

अब बोतल की जगह उसके हाथ में किताब थी और गरीबी की जगह उम्मीद। कुछ महीने बीत गए। वो बस्ती जो कभी कूड़े और बदबू से भरी थी, अब बदलने लगी थी। रानी अब हर सुबह साफ कपड़े पहनकर अर्जुन अंकल के बनाए स्कूल में जाती थी। वह वही स्कूल था जहां कभी उसका घर था, और अब वही उसकी नई शुरुआत थी।

मीना भी अब ठीक थी। वो स्कूल की लाइब्रेरी में किताबें संभालती थी। रानी जब क्लास में ऊंची आवाज में कविता पढ़ती तो मीना बाहर से ताली बजाती जैसे मां अपनी बेटी की तारीफ करती है। अर्जुन रोज शाम को स्कूल के बच्चों से मिलने आते। रानी उन्हें देखकर दौड़ती और कहती, “अंकल, आज मैंने कविता याद की है। सुनो ना।” अर्जुन हंसते और कहते, “पहले बताओ, खाना खाया?” रानी मुंह बनाकर बोलती, “आप तो हर दिन यही पूछते हो!”

ऐसे ही दिन बीत रहे थे, पर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसने सबको हिला दिया। एक शाम स्कूल बंद होने के बाद अर्जुन की कंपनी से फोन आया – “सर, आपको एक जरूरी मीटिंग अटेंड करनी है।” जब अर्जुन पहुंचे, तो कंपनी के कुछ लोग गुस्से में थे। एक आदमी बोला, “सर, आपने बस्ती वाला प्रोजेक्ट बंद करवाया। उससे कंपनी को करोड़ों का नुकसान हुआ है।” दूसरा बोला, “अब शेयरहोल्डर आपकी बात नहीं मानेंगे। वो प्रोजेक्ट फिर से शुरू करना होगा।”

अर्जुन ने शांति से कहा, “वहां अब बच्चे पढ़ते हैं। मैं उस जगह पर मॉल नहीं बनने दूंगा।” लेकिन पैसे के आगे सबकी आंखें बंद थीं। मीटिंग खत्म हुई तो किसी ने धीरे से कहा, “अगर आपने साइन नहीं किए तो आपकी कुर्सी चली जाएगी, सर।” अर्जुन मुस्कुराए, “कुर्सी फिर मिल जाएगी। पर किसी बच्चे की हंसी दोबारा नहीं मिलेगी।” वे वहां से निकल गए।

उस रात उन्होंने अकेले स्कूल के आंगन में बैठकर रानी और मीना के साथ बिताए पल याद किए। फिर उन्होंने एक कागज निकाला और अपनी कंपनी से इस्तीफा लिख दिया।

अगली सुबह रानी स्कूल पहुंची तो देखा अर्जुन अंकल वहां नहीं थे। वह चारों तरफ भागी, सभी से पूछती रही, “अंकल कहां है?” मीना ने उसे समझाया, “बेटा, शायद उन्हें काम से बाहर जाना पड़ा होगा।” पर तीन दिन बीत गए। अर्जुन नहीं आए। रानी का मन नहीं लगा। वह रोज स्कूल के बाहर हवेली के गेट तक जाती, पर गेट बंद था।

फिर एक दिन स्कूल के हेड मास्टर ने बताया, “बेटा, तुम्हारे अंकल दिल्ली गए हैं। कह गए थे कि जब लौटेंगे तो तुम्हारे लिए एक खास तोहफा लाएंगे।” रानी मुस्कुराई। पर उसके अंदर कुछ बेचैनी थी।

एक हफ्ते बाद स्कूल में एक गाड़ी आई। ड्राइवर ने एक छोटा सा बॉक्स और एक चिट्ठी दी। सब बच्चे इकट्ठे हो गए। रानी ने कांपते हाथों से चिट्ठी खोली। उसमें लिखा था –

“प्रिय रानी,
अगर तुम यह पत्र पढ़ रही हो तो मैं अब बहुत दूर जा चुका हूं। शायद वापस न आ सकूं। पर चिंता मत करना। स्कूल अब तुम्हारा है। तुम इसे चलाओगी और उन बच्चों तक उम्मीद पहुंचाओगी, जैसे मैंने तुम तक पहुंचाई थी। याद रखना बेटा, जब भी किसी को मदद चाहिए हो, बोतल मत ढूंढना, बस एक हाथ बढ़ा देना।
तुम्हारा अंकल,
अर्जुन मल्होत्रा”

चिट्ठी पढ़ते ही सब सन्न रह गए। रानी की आंखों से आंसू बह निकले। बॉक्स खोला, उसमें वही टूटी हुई प्लास्टिक की बोतल रखी थी जो उसने पहली बार हवेली के बाहर मांगी थी और साथ में एक सोने का पेन, जिस पर लिखा था – “रानी मल्होत्रा स्कूल हेड”।

मीना ने रानी को गले लगा लिया। उस दिन पहली बार रानी ने समझा कि कभी-कभी भगवान इंसान के रूप में आते हैं और फिर याद बनकर हमेशा साथ रहते हैं।

अब हर सुबह जब स्कूल की घंटी बजती है, रानी बच्चों से कहती है, “पढ़ाई ही असली अमीरी है।” और हवेली की दीवार पर लगी एक पुरानी तस्वीर हर बच्चे को देखती रहती है – अर्जुन अंकल की तस्वीर, जिनकी मुस्कान अब भी कहती है – “कभी किसी बच्चे की आवाज अनसुनी मत करना।”

साल गुजर चुके थे। रानी अब बड़ी हो चुकी थी। वह वही लड़की थी जो कभी बोतलें बिनती थी, अब उसी जगह बनी इमारत की प्रिंसिपल थी – “अर्जुन मल्होत्रा मेमोरियल स्कूल”। हर सुबह जब स्कूल की घंटी बजती तो बच्चे कहते, “अर्जुन अंकल की दी हुई दुनिया शुरू हो गई।”

मीना अब पूरी तरह ठीक थी। वह स्कूल की लाइब्रेरी में बच्चों को किताबें देती और रानी हर बच्चे को यही समझाती – “मेहनत करने वाला कभी गरीब नहीं होता।”

उस दिन स्कूल में सालाना कार्यक्रम था। रानी मंच के पास खड़ी थी। अर्जुन अंकल की तस्वीर के आगे दिया जलाकर बोली, “अगर आज अंकल होते तो बहुत खुश होते।” इतना बोलकर उसने जैसे ही पीछे देखा, भीड़ में किसी को आते देखा। सफेद कपड़े, हल्की झुकती चाल, चेहरे पर वही पुरानी मुस्कान। रानी के होठों से बस निकला, “अंकल!”

सभी बच्चे मुड़कर देखने लगे। हां, वो थे अर्जुन मल्होत्रा। कमजोर, लेकिन मुस्कुराते हुए। रानी दौड़कर उनके पास पहुंची, “अंकल, आप जिंदा हैं! सबको लगा था आप अब नहीं लौटेंगे।” अर्जुन ने मुस्कुरा कर कहा, “बेटा, मैं चला तो गया था, पर हर दिन तुम्हें याद करता था। सोचा एक बार तुम्हें देख लूं, फिर चैन से आंखें मूंद लूं।”

रानी की आंखों में आंसू भर आए। वह बोली, “अंकल, अब आप कहीं नहीं जाएंगे।” अर्जुन ने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा, “अब सब कुछ तुम्हारा है रानी। तुम्हारे अंदर वही ताकत है जो एक दिन मेरी आंखों में थी।”

उस दिन पूरे स्कूल ने तालियां बजाई। अर्जुन अंकल ने बच्चों से कहा, “जब भी किसी को मदद करनी हो, कभी यह मत देखना कि वह कौन है। बस दिल से करना।”

कार्यक्रम खत्म हुआ। अर्जुन अंकल ने सब बच्चों से हाथ मिलाया। मीना से कहा, “तुम अब अपनी बहन की मां जैसी हो।” और रानी से बोले, “कल फिर आऊंगा। थोड़ा और वक्त साथ बिताएंगे।” लेकिन वो कल कभी नहीं आया।

अगली सुबह स्कूल खुला ही था कि रानी को एक फोन आया। आवाज कांप रही थी – “बेटी, अर्जुन मल्होत्रा अब नहीं रहे। सुबह दिल का दौरा पड़ा था।” रानी के हाथ से फोन छूट गया। वह कुछ पल वहीं खड़ी रही जैसे दुनिया थम गई हो। वह दौड़कर स्कूल के गेट तक गई। आसमान की ओर देखा और आंसू रोकते हुए बोली, “अंकल, आपने वादा किया था कि फिर आएंगे।”

उस दिन स्कूल में घंटी नहीं बजी। हर बच्चा चुप था। मीना ने कहा, “रानी, आंसू मत बहा। अंकल कहीं नहीं गए। अब वह इसी स्कूल की दीवारों में हैं।”

शाम को स्कूल के बगीचे में रानी ने खुद एक पेड़ लगाया। उसी जगह जहां अर्जुन ने पहली बार कहा था, “डरो मत बेटा, पहले खाना खा लो।” उस पेड़ के नीचे एक छोटी सी तख्ती लगाई गई – “यह पेड़ उस इंसान की याद में है जिसने एक भूखी बच्ची में भविष्य देखा।”

हर दिन जब हवा चलती तो पत्तों की सरसराहट में रानी को जैसे अंकल की आवाज सुनाई देती – “रानी, अब तुम्हारी बारी है किसी और की मदद करने की।”

वक्त बीतता गया, पर उस दिन की याद आज भी सबके दिलों में है। दोस्तों, एक अमीर आदमी ने पैसे नहीं, एक गरीब बच्ची में भरोसा लगाया। और वही भरोसा उसकी सबसे बड़ी विरासत बन गया।

दोस्तों, आपको यह कहानी कैसी लगी? अपने विचार जरूर बताएं और अगर अच्छी लगी हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। जय हिंद, जय भारत।

समाप्त