10 साल के लड़के और इंस्पेक्टर की सच्ची कहानी

सीमा और रोहन की कहानी
सीमा रोज़ की तरह जब बाजार में दाखिल हुई, तो उसके कदम हल्के-हल्के पड़ रहे थे। आज कोई खास दिन नहीं था, लेकिन उसके दिल में छोटी-छोटी खुशियों की लहरें उठ रही थीं। दुकानदारों की आवाजें, गलियों में दौड़ते बच्चे, दुकानों पर रंग-बिरंगी चीजें—सब उसे बहुत भले लग रहे थे। वह मुस्कुरा रही थी, जैसे जिंदगी के हल्के लम्हे उसके दिल को छू गए हों।
इसी दौरान उसकी नजर एक अजीब से मंजर पर ठिठक गई। एक छोटा सा लड़का, शायद दस साल का, स्कूल की वर्दी में, कंधे पर बैग लटकाए और हाथ में सब्जियों की टोकरी लिए, ऊँची आवाज में पुकार रहा था—“सब्जी ले लो, ताजा सब्जी!” सीमा के कदम वहीं रुक गए। वह बार-बार उस बच्चे को देख रही थी। उसके मन में सवालों की बाढ़ आ गई—यह बच्चा स्कूल जाने के बजाय सब्जी क्यों बेच रहा है? और बैग उसके कंधे पर क्यों है?
सीमा धीरे-धीरे उसके पास पहुँची और नरमी से बोली, “बेटा, तुमने स्कूल का बैग भी पहना है और यहाँ सब्जी भी बेच रहे हो, बात क्या है?” बच्चा कुछ कहने ही वाला था कि तभी एक मोटरसाइकिल उनके पास आकर रुकी। उस पर एक पुलिसवाला बैठा था। उसने सख्त लहजे में कहा, “अरे, जल्दी से सब्जी दे, देखूं क्या रखा है।” उसने टोकरी में हाथ डाला, कुछ सब्जियां निकालीं और खुद ही शॉपर में डाल लीं। बिना पैसे दिए चला गया।
सीमा का दिल कांप गया। उसने हैरानी से बच्चे को देखा, “बेटा, उसने तुझे पैसे नहीं दिए?” बच्चा सादगी से बोला, “दीदी, ये तो रोज़ का काम है। पुलिसवाले कभी पैसे नहीं देते, बस यूं ही सब्जी उठा ले जाते हैं।” सीमा का दिल भर आया। उसने बच्चे से सारी सब्जियां खरीद लीं, पैसे दिए। बच्चे के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई और वह फौरन चला गया।
सीमा वहीं खड़ी रही, लेकिन उसका दिमाग कहीं और था। वह सोचने लगी—बच्चा सब्जी क्यों बेच रहा है? स्कूल में देर क्यों होती है? और वह पुलिसवाला रोज उसका हक क्यों मारता है? ये सवाल उसे बेचैन कर रहे थे।
अगले दिन सुबह होते ही वह फिर बाजार पहुँची। उसकी नजर फिर उसी बच्चे पर पड़ी। इस बार बच्चा जमीन पर गिरी हुई सब्जियां चुन रहा था, जो मंडी वाले फेंक देते हैं। उसने उन्हें अपने थैले में डाला, बैग कंधे पर लटकाया और फिर से आवाजें लगाने लगा—“सब्जी ले लो!” सीमा का दिल फिर तड़प उठा। वह आगे बढ़कर बोली, “बेटा, आज मैं तुम्हारे साथ खड़ी रहूंगी। तुम सब्जी बेचो, मगर किसी को महसूस मत होने देना। और याद रखना, आज कोई पुलिसवाला आए तो उसे सब्जी सिर्फ पैसे देकर ही देना।”
बच्चा डरते हुए बोला, “दीदी, अगर वो मुझे कुछ कह देंगे तो?” सीमा ने उसके सिर पर हाथ रखा, “मैं हूँ ना, डरने की जरूरत नहीं।” कुछ देर बाद वही पुलिसवाला फिर आया। उसने टोकरी में हाथ डाला, सब्जी निकाली। जाने लगा तो बच्चा पहली बार आगे बढ़ा और कांपती आवाज में बोला, “साहब जी, पैसे दीजिए। मुझे स्कूल की फीस देनी है और अपनी माँ के लिए कपड़े लेने हैं।”
सीमा की आँखों में आँसू आ गए। लेकिन पुलिसवाले के चेहरे पर कोई नरमी ना आई। उसने गुस्से में बच्चे को थप्पड़ मार दिया और सब्जियां जमीन पर फेंक दीं। सीमा का दिल खून के आँसू रो पड़ा। वह तेजी से आगे बढ़ी और कांपती आवाज में चिल्लाई, “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस बच्चे को हाथ लगाने की?” पुलिसवाले ने सीमा को भी थप्पड़ मार दिया। आसपास के लोग देख रहे थे, मगर कोई आगे नहीं बढ़ा।
सीमा ने गुस्से से कहा, “अब मैं तुम्हारे खिलाफ रिपोर्ट करूंगी। तुम जैसा कोई आगे किसी गरीब का हक नहीं मारेगा।” पुलिसवाला हँस पड़ा, धमकी दी, “रिपोर्ट करोगी तो किसी झूठे केस में फंसा दूंगा।” वह चला गया।
सीमा ने बच्चे को स्कूल भेजा और उसके सर को फोन करके समझाया कि आज बच्चा मेरी वजह से लेट हुआ है, उसे सजा ना दें। फिर वह खुद ऑफिस पहुँची, डीआईजी साहब को फोन किया और पूरी बात बताई। डीआईजी ने कहा, “मिस सीमा, हमें पक्के सबूत चाहिए, तभी कार्रवाई होगी।”
सीमा ने हिम्मत नहीं हारी। वह दोबारा बाजार पहुँची, लोगों से पता किया और बच्चे के घर पहुँची। वहाँ देखा, बच्चे की माँ गुस्से में उसे मार रही थी। सीमा ने माँ को समझाया, “बहन जी, आप मत मारिए। आपका बच्चा बुरा नहीं है। मैं खुद उससे बात करूंगी, अब कभी लेट नहीं होगा।” फिर उसने बच्चे का हाथ थामा और बाहर निकली।
रास्ते में सीमा ने कहा, “बेटा, अगर हम किसी का जुल्म रोकना चाहते हैं, तो हमें सब्र और हिम्मत दोनों चाहिए। तुम बस मेरा साथ देना।” बच्चा उसकी ओर देख रहा था, जैसे पहली बार किसी ने उसकी बात सुनी हो।
दोनों फिर बाजार पहुँचे। सीमा छुपकर मोबाइल से हर मंजर रिकॉर्ड करने लगी। कुछ देर में वही पुलिसवाला आया, रोहन ने हिम्मत करके कहा, “साहब जी, सब्जी मैं तभी दूंगा जब आप पैसे देंगे।” पुलिसवाले ने गुस्से में फिर थप्पड़ मारा, सब्जियां सड़क पर बिखेर दीं। सीमा ने एक लड़के को मोबाइल देकर कहा, “सब रिकॉर्ड करो।” फिर वह खुद आगे बढ़ी, पुलिसवाले ने उसे भी थप्पड़ मार दिया।
लोग देख रहे थे, मगर इस बार सीमा डरी नहीं। उसने बुलंद आवाज में कहा, “मैं इंस्पेक्टर सीमा हूं, आज तुम्हें निलंबित करवा कर जेल तक ले जाऊंगी। तुमने गरीबों का हक मारा है।” पुलिसवाला और गुस्से में आ गया, मगर लोग अब धीरे-धीरे सीमा के साथ खड़े होने लगे।
सीमा ने वीडियो डीआईजी को भेज दी। डीआईजी ने कहा, “यह सबूत मजबूत है, मगर मीडिया को भी साथ लाओ।” अगले दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई गई। मीडिया, दुकानदार, डीआईजी सब मौजूद थे। डीआईजी ने कहा, “आज हम अपने ही पुलिस दफ्तर के एक अफसर के खिलाफ केस दिखा रहे हैं, जिसने गरीबों का हक मारा।”
सीमा ने वीडियो दिखाया। फिर बाजार के सब्जीवाले, मछलीवाले, दुकानदार एक-एक कर बयान देने लगे—“वह रोज सब्जी ले जाता था, पैसे नहीं देता था। हमें धमकाता था।”
फिर रोहन और उसकी माँ स्टेज पर आए। रोहन ने काँपती आवाज में कहा, “मैं गिरती सब्जियां चुनता हूँ, ताकि मम्मी के लिए कपड़े ले सकूं। पुलिसवाला नगेश्वर मेरी सब्जी मुफ्त ले जाता है, मारता है, धमकाता है। स्कूल में देर भी इसी वजह से होती है।”
माँ रो पड़ी, “मेरा बेटा दिन-रात मेहनत करता है, ताकि पढ़ सके। मैंने कभी नहीं सोचा था कि उसे इतना दर्द सहना पड़ेगा।”
मीडिया में यह खबर आग की तरह फैल गई। डीआईजी ने सबूतों के आधार पर फौरन कार्रवाई की। नगेश्वर को गिरफ्तार किया गया, अदालत में पेश किया गया, दोषी पाए जाने पर बर्खास्तगी, जेल और भारी जुर्माना हुआ। सरकार ने ऐलान किया कि रोहन की पढ़ाई, उसकी माँ की मदद और उनका भविष्य सुरक्षित किया जाएगा। व्यापारियों ने स्कॉलरशिप और फंड भी दिया।
प्रेस कॉन्फ्रेंस के अंत में रोहन ने कहा, “मैं बड़ा होकर ऐसा पुलिसवाला बनूंगा, जो रिश्वत नहीं लेगा, इंसाफ करेगा, कमजोर का साथी बनेगा।”
सीमा की आँखों में नमी थी। उसने कहा, “अगर हमारे रक्षक ही जुल्म करें, तो देश खतरे में है। हमें सच के साथ खड़े रहना होगा।”
मीडिया ने यह संदेश पूरे देश में फैलाया। एक बच्चे की छोटी सी ख्वाहिश—अपनी माँ के लिए कपड़े खरीदने की—ने पूरे सिस्टम को हिला दिया। मगर सच की जीत हुई, और अब उस बच्चे का भविष्य महफूज़ था।
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