IPS मैडम निरीक्षण के लिए जा रही थी 10 साल पहले खोया बेटा रास्ते में भीख मांगता हुआ मिला फिर,,,
पूरी कहानी: एसपी सौम्या शुक्ला – एक मां, एक अफसर और उम्मीद की मिसाल
सुबह की पहली किरण के साथ एसपी सौम्या शुक्ला ने अपनी वर्दी छोड़कर साधारण साड़ी पहनी। आज वह अफसर नहीं, सिर्फ एक मां थी – जो अपने खोए हुए बेटे की यादों में जीती थी। दस साल पहले, अपने दो साल के बेटे को रेलवे स्टेशन की भीड़ में खो चुकी थी। पुलिस अफसर होने के बावजूद, ड्यूटी के नाम पर समझौते हुए, रातों की नींद खो गई, लेकिन बेटे की तलाश कभी नहीं छोड़ी।
गली में एक बच्चा, आंखों में वही पहचान
एक केस के सिलसिले में गांव जा रही थी, जब झुग्गियों की गलियों में एक नन्हा बच्चा खेलता दिखा। उसकी आंखें हूबहू सौम्या के बेटे जैसी थी। दिल कांप गया। गाड़ी रोकी, बच्चे के पास गई। नाम पूछा, बच्चा डरकर पीछे हट गया। सौम्या ने ममता से पूछा – भूख लगी है? कुछ खिलाऊं? बच्चा खामोश रहा, आंखों में आंसू थे। सौम्या को लगा जैसे 10 साल पहले का समय लौट आया हो।
अतीत की लोरी, वर्तमान की पहचान
सौम्या ने झोले से बिस्किट निकाला, बच्चे को दिया। पूछा – कौन है तुम्हारा? बच्चा बोला – कोई नहीं। कैसे आए? मालूम नहीं, कभी अम्मा आती थी, अब नहीं। सौम्या को शक हुआ – कहीं यह बच्चा उसी गैंग का हिस्सा तो नहीं जिसमें बच्चों को किडनैप कर पहचान मिटा दी जाती है?
उसने पूछा – कोई गाना, कोई लोरी याद है? बच्चा फुसफुसाकर वही लोरी गुनगुनाने लगा जो सौम्या अपने बेटे को सुनाती थी – “निंदिया रानी आई रे, मां की गोदी लाई रे…”
सौम्या की आंखों से आंसू छलक पड़े, लेकिन खुद को रोक लिया। अगर वह गलत साबित हुई तो बच्चे के लिए बहुत भारी होगा।
पहचान की लड़ाई – मां बनकर
सौम्या ने बच्चे को खाना खिलाया, हर हावभाव नोट किया – रोटी तोड़ने का तरीका, पानी पीना, दांतों तले उंगली दबाना – सब कुछ उसके बेटे जैसा। उसने डीएनए टेस्ट का सैंपल ले लिया, बिना बताए। रात को पुरानी तस्वीरें देखती रही – शक और यकीन के बीच झूलती रही। मां का दिल तर्क नहीं देखता, सिर्फ धड़कन पहचानता है।
सच की दस्तावेजी मुहर
अगली सुबह लैब से रिपोर्ट आई – डीएनए मैच हो गया था। सौम्या की आंखों से खुशी, पछतावा और विश्वास के आंसू बह निकले। यह वही बच्चा था जो 10 साल पहले लापता हुआ था। अब कोई शक नहीं बचा था।
वह दौड़ती हुई बच्चे को गले लगाने गई – “मैं तुम्हारी मम्मा हूं बेटा। मैंने तुझे कभी छोड़ा नहीं, तू मुझसे छूट गया था।”
बच्चा सुबकता रहा, सब समझ नहीं पाया, लेकिन पहली बार सीने से सिर लगाया।
अब लड़ाई सिर्फ बेटे की नहीं
सौम्या ने वादा किया – अब वह उस दुनिया से लड़ाई लड़ेगी जिसने उसके बेटे को छीना। उसने बाल तस्करी के मामलों में काम करने वाले एक रिटायर्ड अधिकारी से संपर्क किया। पता चला – स्टेशन, गरीबी, लावारिस बच्चा, भीख मांगने वाले गैंग, घरेलू काम, अंग व्यापार – सबका नेटवर्क है।
सौम्या ने मां की तरह स्टेशन पर जाकर बच्चों के गिरोह का पर्दाफाश किया। वीडियो, ऑडियो, लोकेशन बाल अपराध शाखा तक पहुंचाए। एक बच्ची की कहानी से सिंडिकेट की जड़ें मिली – कई रसूखदार चेहरे, रिटायर्ड पुलिस अधिकारी, बाल सुधार गृह संचालक, नेता, डॉक्टर – सब शामिल थे।
मिशन शुरू – हर अर्जुन को उसका घर दिलाना
सौम्या ने टास्क फोर्स बनाई, गुमशुदा बच्चों की फाइलें खोली, रेलवे स्टेशन, बस अड्डों पर छानबीन शुरू की। चाइल्ड होम से सोनू नामक बच्चे की कहानी मिली, गिरोह का आदमी पकड़ा गया, सिंडिकेट का राज खुल गया।
अब यह लड़ाई सिस्टम के खिलाफ थी। राज्य सरकार ने स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम बनाई, सौम्या प्रमुख बनी। गिरफ्तारी हुई, शहर में हड़कंप मच गया।
मां और अफसर – दो चेहरों की एक कहानी
अर्जुन अब स्कूल जाने लगा। पहली बार यूनिफार्म पहनी, किताबें, बैग – सौम्या की आंखों में सपना लौट आया। अर्जुन अब कहानियां लिखने लगा – “एक बच्चा था, जो खो गया था, लेकिन उसकी मम्मा उसे ढूंढ लाई। अब वह कभी नहीं खोएगा।”
सौम्या ने उसकी कहानी ऑफिस की मेज पर चिपका दी – नीचे पुलिस का शपथ पत्र – सत्य, सेवा, न्याय।
राज्य में बदलाव – गुमशुदा नहीं, जिंदा है
सरकार ने नई योजना बनाई – हर जिले में बाल पुनर्वास इकाई, हर गुम हुए बच्चे की फाइल दोबारा खुली, परिवारों से संपर्क, मांओं की पुकार सुनी गई। मीडिया में सौम्या और अर्जुन की कहानी छायी, लेकिन सौम्या कैमरों से दूर रही। उसे पता था – यह हजारों की उम्मीद है।
अर्जुन अब उम्मीद बन गया
एक दिन अर्जुन ने पूछा – “क्या मैं बड़ा होकर पुलिस बन सकता हूं?”
सौम्या मुस्कुराई – “तू जो चाहे बन सकता है बेटा, लेकिन कभी किसी मासूम की आवाज मत दबने देना।”
यात्रा का समापन – मां की साड़ी और गुमशुदा लोरी
सौम्या ने किताब लिखी – मां की साड़ी और गुमशुदा लोरी – हर मां, हर बच्चे की कहानी। मंच पर सम्मानित हुई, लेकिन कहा – “मैं कोई नायक नहीं, बस एक मां हूं जिसने अपने बेटे को ढूंढ लिया। अब कोई भी मां अकेली ना रहे।”
अर्जुन की आवाज – हर बच्चे की उम्मीद
कॉलेज में भाषण – “मैं वह बच्चा हूं जिसे दुनिया ने खो दिया था, लेकिन मेरी मां ने मुझे ढूंढ लिया। मैं हर उस बच्चे की आवाज बनना चाहता हूं जो अब भी इंतजार कर रहा है।”
सीख और संदेश
यह कहानी सिखाती है – मां का विश्वास सिस्टम से बड़ा होता है। कभी हार मत मानिए, मेहनत और प्यार से हर खोई उम्मीद वापस मिल सकती है।
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जय हिंद।
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