IPS मैडम रामलला के दर्शन करने अयोध्या पहुंची, वहां सड़क किनारे उनका पिता जूते पॉलिश करते हुए मिला!

अयोध्या की गलियों में: एक बेटी की जिद और टूटे रिश्तों की वापसी
प्रस्तावना
सुबह की हल्की धूप, अयोध्या की पवित्र गलियों में फैल चुकी थी। मंदिर की घंटियों की आवाज हवा में गूंज रही थी और रामलला के दर्शन के लिए भक्तों की कतारें लगी थीं। इसी भीड़ में नेहा और उसकी मां सुनीता खड़ी थीं। नेहा, एक आईपीएस अधिकारी, अपनी मां के साथ पहली बार रामलला के दर्शन करने आई थी। बचपन से ही नेहा की इच्छा थी कि वह अयोध्या आए, लेकिन पढ़ाई और नौकरी के कारण कभी समय नहीं मिला। इस बार उसने छुट्टी ली और मां को लेकर अयोध्या पहुंच गई।
मां-बेटी दोनों के चेहरे पर श्रद्धा थी। मंदिर के अंदर पहुंचकर रामलला की सुंदर मूर्ति देखकर नेहा की आंखें भर आईं। दोनों ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की – “हे प्रभु, हमारी जिंदगी में शांति और प्रेम बनाए रखना।” कुछ देर भजन सुनने के बाद वे बाहर निकल आईं।
अयोध्या की गलियों में एक मोड़
मंदिर से बाहर निकलते ही अयोध्या की गलियां किसी दूसरी दुनिया जैसी लग रही थीं। चारों तरफ पूजा सामग्री, शंख-घंटी की आवाजें, मिठाइयों की खुशबू और भक्तों की भीड़। नेहा अपने फोन से फोटो ले रही थी, सुनीता प्रसाद खरीद रही थीं। तभी नेहा के कदम रुक गए। उसकी नजर सड़क किनारे बैठकर जूते पॉलिश करते एक आदमी पर टिक गई। वह आदमी फटे कपड़ों में था, पैरों में घिसी हुई चप्पल, चेहरा थका हुआ, दाढ़ी बढ़ी हुई, बाल बिखरे हुए। वह किसी यात्री के जूते पर लगन से ब्रश चला रहा था, लेकिन उसके हाथ कांप रहे थे।
नेहा ने उसे गौर से देखा। पहले तो लगा, आम मोची होगा। लेकिन अगले ही पल उसके चेहरे की झलक, आंखों की चमक, मुस्कान – सब कुछ जाना-पहचाना सा लगा। उसका दिल जोर से धड़का। यह चेहरा… यह आंखें… कहां देखी हैं मैंने? नेहा वहीं खड़ी रह गई, सांसें तेज हो गईं। उसने और ध्यान से देखा, और देखते ही उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। वह आदमी कोई और नहीं, बल्कि उसका अपना बिछड़ा हुआ पिता था – रामेश्वर।
पहचान और इनकार
नेहा की आंखें नम हो गईं। वह कांपती आवाज में बोली, “मां, इधर आइए जल्दी!” सुनीता प्रसाद का थैला लेकर आई – “क्या हुआ नेहा?” नेहा की उंगली उस मोची की ओर उठी – “मां, वो देखिए।” सुनीता ने देखा, बस एक नजर डाली और मुंह फेर लिया – “कौन? वो मोची?” नेहा की आंखों से आंसू टपकने लगे – “वो मोची नहीं है मां, वो मेरे पापा हैं।”
सुनीता के चेहरे का रंग उड़ गया। लेकिन उन्होंने खुद को संभाला – “चुप! ऐसा कुछ नहीं है। वो तुम्हारे पापा नहीं हो सकते। तुम्हारे पापा अच्छे खासे आदमी थे। ये एक गरीब मोची है।” लेकिन नेहा को यकीन हो चुका था। “मां, मैं गलत नहीं हूं। यही चेहरा आपने मुझे बचपन में दिखाया था। फोटो में भी यही मुस्कान थी, यही आंखें थीं।”
सुनीता घबरा गईं। नेहा का हाथ पकड़ लिया – “चलो यहां से तुरंत।” लेकिन नेहा वहीं जड़ बनकर खड़ी रही। उसी समय मोची ने सिर उठाया, उसकी नजर सुनीता पर पड़ी। वह ठिठक गया, चेहरे पर शर्म उतर आई। नेहा का दिल टूट गया। अब उसे और यकीन हो गया – यही उसके पापा हैं।
मां-बेटी का टकराव
मां को मनाने की कोशिश में नेहा ने कहा, “मां, इन्हें ऐसे नहीं छोड़ सकती। इनके पास चलो।” सुनीता गुस्से से बोली, “नेहा, मैंने कहा ना वो तुम्हारे पापा नहीं हैं। अगर तुम जिद करोगी तो मैं यहीं से वापस जा रही हूं।” नेहा की आंखों में आंसू भर आए – “मां, भगवान के मंदिर से निकलकर आप इतनी कठोर कैसे हो सकती हैं? आपके पति बैठे हैं और आप पहचानने से इंकार कर रही हैं!”
भीड़ इकट्ठी होने लगी थी। सुनीता असहज हो गईं, नेहा का हाथ जोर से खींचा। मजबूरी में नेहा चली तो गई, लेकिन उसके दिल में तूफान उठ चुका था। उसके सामने बार-बार वही दृश्य आ रहा था – उसका पिता सड़क पर बैठा जूते पॉलिश कर रहा है। नेहा के मन में सिर्फ एक सवाल था – “पापा इस हालत में कैसे पहुंचे? मां उन्हें अपने जीवन से अलग क्यों रखना चाहती हैं?”
सच की तलाश
घर लौटते वक्त नेहा बार-बार मां से सवाल करती रही – “मां, आप सच क्यों नहीं बताना चाहतीं? वो आदमी मेरे पापा ही थे।” सुनीता ने गहरी सांस ली – “नेहा, हजार बार कहा है वो तुम्हारे पापा नहीं हैं।” नेहा ने सीधी नजरें मिलाकर कहा – “गलत समझने का सवाल ही नहीं है। मैंने बचपन में पापा की जो तस्वीर देखी थी, वही चेहरा आज वहां था।”
सुनीता तेज कदमों से चलने लगीं, जैसे किसी बात से बचना चाहती हों। “चलो नेहा, गाड़ी तक पहुंचना है। भीड़ बढ़ रही है।” नेहा वहीं खड़ी रह गई। सुनीता आगे बढ़ गई। जब पीछे मुड़कर देखा कि नेहा नहीं चल रही है तो वापस आईं – “नेहा, इस बात का कोई मतलब नहीं है। तुम केवल भावुक हो रही हो।”
नेहा ने मां का हाथ छुड़ाया – “मैं भावुक नहीं, सच देख रही हूं। आप ही बताइए, अगर वह मेरे पापा नहीं हैं तो आप इतनी परेशान क्यों हो गई हैं?” सुनीता अचानक चुप हो गईं, आंखों में डर, दर्द और पुरानी यादों का बोझ था।
कुछ सेकंड की खामोशी के बाद सुनीता ने कहा, “नेहा, मैं यह सब यहीं सड़क पर नहीं समझा सकती। घर चलो, अभी नहीं।” नेहा ने मन में तय कर लिया – आज सच्चाई जाने बिना चैन नहीं मिलेगा।
घर में सन्नाटा, सवालों की बारिश
घर पहुंचते ही सुनीता ने कहा – “चलो अंदर, थक गए होंगे।” लेकिन नेहा दरवाजे पर ही खड़ी रही – “मां, थकान तो तब होती जब इंसान सच्चाई से भाग रहा हो। मैं तो आज सच जानने के और करीब हो गई हूं।”
सुनीता ने झुंझलाहट भरे स्वर में कहा – “नेहा, तुम यह सब क्यों कर रही हो? मैंने कहा ना, वो आदमी तुम्हारे पापा नहीं है।” नेहा ने कहा – “आपकी आंखों में डर साफ दिख गया है। मां, आप जिस सच्चाई से भाग रही हैं, वही सच मैं जानना चाहती हूं।”
सुनीता ने नेहा का हाथ पकड़कर अंदर खींचना चाहा, पर नेहा ने धीरे से हाथ छुड़ा लिया – “मां, आप मुझसे कुछ छुपा रही हैं। अगर आप आज नहीं बताना चाहतीं, तो मत बताइए, लेकिन मैं सच ढूंढ कर रहूंगी। मैं कल फिर अयोध्या जाऊंगी और उस आदमी से बात करूंगी।”
सुनीता का चेहरा सख्त हो गया – “तुम वहां नहीं जाओगी नेहा। अगर गई तो मुझे बहुत दुख होगा।” नेहा ने शांत स्वर में कहा – “दुख तो पापा को भी होता होगा, मां, हर दिन, हर पल। मैं उनके दुख को अनदेखा नहीं कर सकती। आपने अपना रिश्ता उनसे खत्म कर दिया होगा, लेकिन मेरा रिश्ता आज भी है।”
सुनीता थककर कुर्सी पर बैठ गईं – “नेहा, तुम्हें जो सच सही लगता है, वो शायद सच ना हो। जिंदगी इतनी सीधी नहीं होती। कुछ बातें ऐसी होती हैं जो जितना कम जानो, उतना अच्छा।”
नेहा नीचे बैठ गई, मां के हाथ पकड़कर बोली – “मां, अगर कोई बात आपके दिल पर बोझ बनकर बैठी है, तो मैं उसे हल्का कर सकती हूं। खुलकर बताइए, मैं आपकी बेटी हूं, दुश्मन नहीं।”
सुनीता की आंखें भर आईं – “नेहा, कुछ घाव ऐसे होते हैं जो चाहे जितना भी समय बीत जाए, भरते नहीं। तुम्हारे पापा ने मुझे ऐसा जख्म दिया था जो आज भी ताजा है।”
नेहा की आंखें बड़ी हो गईं – “तो आप मानती हैं कि वो मेरे पापा थे?” सुनीता ने चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया – “मैंने कुछ नहीं कहा। तुम बस जिंदगी में आगे बढ़ो, अतीत को मत खोदो।”
अब नेहा को विश्वास हो गया था – वह अपनी मंजिल के बिल्कुल करीब है। उसने धीरे से कहा – “मां, अब मैं रुकने वाली नहीं हूं। कल सुबह मैं फिर अयोध्या जाऊंगी। मुझे अपने पिता की सच्चाई जाननी है।”
सुनीता ने आंखें बंद कर लीं। उनके चुप रहने का मतलब ही नेहा के लिए पूरा जवाब था।
सच की जिद और पिता से मुलाकात
अगली सुबह नेहा बहुत जल्दी उठ गई। रात भर सो नहीं पाई थी। मन में बार-बार वही मोची का चेहरा घूम रहा था – थका हुआ, टूटा हुआ, लेकिन अपनी बेटी को देखते ही आंखों में छिपी पहचान की चमक।
सुनीता रसोई में नाश्ता बना रही थीं, बर्तन चलने की आवाज में भी उनकी बेचैनी साफ महसूस हो रही थी। उन्होंने कहा – “नेहा, रुक जाओ, खाना खा लो।” नेहा ने शांत स्वर में उत्तर दिया – “मां, मैं बाद में खा लूंगी। मुझे जाना है।”
सुनीता ने उसका हाथ पकड़ लिया – “नेहा, तुम फिर वही करने जा रही हो जिसे मैंने मना किया था।” नेहा ने आंखें झुका कर कहा – “हां मां, मैं फिर अयोध्या जा रही हूं। आज मुझे सब जानना है।”
सुनीता का हाथ ढीला पड़ गया – “तुम्हें मेरी तकलीफ समझ नहीं आती नेहा। उस आदमी ने मुझे बहुत दुख दिया है।” नेहा ने पहली बार दृढ़ शब्दों में कहा – “मां, आपकी तकलीफ मैं समझती हूं, लेकिन मेरे दिल में भी पापा की जगह है। मैं उन्हें ऐसे हाल में नहीं छोड़ सकती।”
नेहा घर से बाहर निकल गई।
अयोध्या की गलियों में फिर एक सुबह
करीब एक घंटे बाद नेहा फिर से अयोध्या पहुंच गई। वही गलियां, वही भीड़, वही मंदिर की घंटियां। आज उसकी आंखें सिर्फ एक ही व्यक्ति को खोज रही थीं। वह धीरे-धीरे उस गली की ओर बढ़ी जहां कल अपने पिता को देखा था।
वहीं फटी चटाई, ब्रश, पॉलिश की डिब्बियां, पानी का डिब्बा – सब कुछ वैसे ही रखा था, लेकिन वहां कोई नहीं था। नेहा का दिल धड़क उठा – क्या वह चले गए? क्या मुझे पहचान कर डर गए? या कहीं और बैठ गए?
कुछ कदम आगे बढ़ी, सड़क के किनारे एक पुराना पेड़ था। उसके नीचे वही आदमी चुपचाप बैठा था। नेहा पास जाकर खड़ी हो गई। रामेश्वर ने उसकी आहट महसूस की, धीरे-धीरे सिर उठाया – “आप मुझे जानते हैं?”
रामेश्वर ने थोड़ा घबराकर कहा – “नहीं बिटिया, मैं किसी को नहीं जानता। तुम यहां क्यों आई हो?”
नेहा ने सीधी नजरें मिलाकर कहा – “कल आपने मुझे देखकर सिर झुका लिया था। ऐसा कैसे आप मुझे नहीं जानते?”
रामेश्वर असहज हो गए, आंखें फेर लीं। नेहा अब सीधी बात पर आ गई – “मुझे सच बोलिए। आप मेरे पिता हैं ना?”
रामेश्वर ने घबराकर, कांपते हाथों से कहा – “नहीं बिटिया, तुम किसी गलतफहमी में हो। मैं किसी का पिता नहीं हूं। मैं तो बस एक बेचारा मोची हूं। मेरा कोई नहीं है।”
नेहा के दिल में जैसे किसी ने चाकू मार दिया हो। लेकिन उसने खुद को संभाला – “अगर आपकी कोई बेटी नहीं है तो मेरी आंखों में देखकर ऐसा क्यों लगता है कि आप मुझे पहचानते हैं?”
रामेश्वर के होंठ कांपने लगे, आंखें भर आईं। एक क्षण के लिए नेहा के चेहरे को गौर से देखा, जैसे कोई खोई चीज अचानक सामने आ गई हो। फिर नजर झुका ली – “बिटिया, मेरा अतीत बहुत खराब है। मैं किसी का कुछ नहीं रहा। तुम भी मुझे भूल जाओ।”
नेहा रोने लगी – “मैं कैसे भूल जाऊं? आप मेरे पिता हैं। आपने मुझे छोटी उम्र में छोड़ दिया। क्या आपको मेरी याद नहीं आती?”
रामेश्वर ने हाथ उठाकर कहा – “नहीं बेटा, मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। मैंने बहुत गलतियां की हैं। तुम्हारी मां जैसा अच्छा इंसान भी नहीं संभाल पाया। अब तुम मुझे छोड़ दो। मैं तुम्हारी जिंदगी खराब नहीं करना चाहता।”
नेहा की आंखें लाल हो गईं, लेकिन आवाज शांत थी – “गलती आपकी थी या हालात की, यह तो घर जाकर ही पता चलेगा। मैं आपको छोड़कर नहीं जाऊंगी।”
रामेश्वर चौंक गए – “तुम… तुम मुझे अपने घर ले जाओगी?”
नेहा बोली – “हां, मैं अकेली नहीं हूं। मैं आपकी बेटी हूं और बेटी कभी पिता को सड़क पर नहीं छोड़ती।”
रामेश्वर का शरीर कांप गया, आंखों से आंसू गिरने लगे। नेहा ने उनका हाथ पकड़ लिया – “आज मैं सब जानूंगी। मां क्या छुपा रही हैं, आप क्यों छुपा रहे हैं – सब समझूंगी। लेकिन एक बात समझ लीजिए, अब मैं आपको अकेला नहीं छोड़ूंगी।”
सच्चाई की ओर बढ़ते कदम
नेहा ने पिता को पास की चाय दुकान पर ले जाकर बैठाया। चाय वाला बूढ़ा आदमी था – “बिटिया, यह आपके साथ कौन है?” नेहा ने नम्रता से कहा – “यह मेरे पापा हैं।” चाय वाला चौंक गया – “यह तो बरसों से यहां अकेले बैठे रहते हैं।”
नेहा की आंखों में नमी आ गई – “अकेलापन इंसान को चुप कर देता है।” रामेश्वर ने चाय के गिलास की ओर देखा, पर हाथ नहीं बढ़ाया। नेहा ने गिलास उनके हाथ में रखा – “पापा, थोड़ा पी लीजिए।”
रामेश्वर कांपते हाथों से चाय उठाई, छोटे-छोटे घूंट पीने लगे। उनकी आंखें बार-बार नेहा के चेहरे पर टिक रही थीं, जैसे खोए हुए रिश्ते को फिर से पहचानने की कोशिश कर रहे हों।
नेहा बोली – “पापा, आप मुझे सच्चाई क्यों नहीं बता रहे? कल जब मैंने आपको देखा था, तब आपने मां को भी पहचाना था। आपने सिर झुका लिया था। क्यों?”
रामेश्वर के गले में जैसे कुछ अटका हो। बेंच, सड़क की आवाजें और दो लोगों की टूटती-बिखरती जिंदगी के सवाल थे।
रामेश्वर ने आखिरकार बोलना शुरू किया – “नेहा, तुम्हारी मां बहुत अच्छी और मजबूत औरत है। मुझसे ज्यादा तुमको संभाल सकती है।”
नेहा ने तुरंत कहा – “लेकिन पापा, पति का रिश्ता दोनों का होता है। आप क्यों भाग गए?”
रामेश्वर की आंखें लाल होने लगीं – “मैं नहीं भागा बेटा। जिंदगी ने मुझे धक्का दिया, मैं गिर गया और फिर उठ नहीं पाया।”
“कौन सा धक्का? कौन सी गलती?” नेहा ने उनका हाथ पकड़कर पूछा।
रामेश्वर ने दूर सड़क की तरफ देखा, जैसे कोई पुरानी याद उन्हें खींच रही हो – “मैंने तुम्हारी मां को दुख दिया था। इतना दुख कि वह रिश्ता निभा नहीं सकी। जिस पल उन्होंने मुझे छोड़ दिया, उसी पल मैंने भी खुद को छोड़ दिया।”
“लेकिन आप मेरी जिंदगी से क्यों गए? मेरी क्या गलती थी?”
रामेश्वर का गला भर आया – “तुम्हारी कोई गलती नहीं थी, मेरी भी नहीं। बस एक बड़ी भूल हो गई थी, जिसने सब बर्बाद कर दिया।”
कुसुम का हस्तक्षेप: सच्चाई का उजाला
इसी समय, सड़क के मोड़ पर सुनीता की सहेली कुसुम आ गई। उसने नेहा और रामेश्वर दोनों को बेंच पर बैठे देख लिया। “नेहा, तुम यहां और आप रामेश्वर जी?” कुसुम ने गंभीरता से कहा – “बेटा, यह बात यहीं छोड़ो। तुम ये सब क्यों कर रही हो? तुम्हारी मां बहुत परेशान हो जाएगी।”
नेहा ने शांत लेकिन दृढ़ स्वर में कहा – “आंटी, अगर मेरी मां को मेरा दर्द समझ में नहीं आता, तो क्या मैं हमेशा अंधेरे में ही जीती रहूं? मुझे सच चाहिए, चाहे वो कितना भी कड़वा हो।”
कुसुम कुछ पल चुप रहीं – “नेहा, तुम्हारे मां-बाप का रिश्ता गलतफहमी, आंसुओं और टूटे विश्वास की कहानी है। और उस कहानी में सबसे ज्यादा चोट तुम्हारे पिता को ही लगी थी।”
नेहा ने पूछा – “तो पापा क्यों टूटे? मां क्यों चली गई? इतना बड़ा क्या हो गया था?”
कुसुम ने कहा – “यह जगह ऐसी बातचीत की नहीं है। तुम दोनों मेरे घर चलो, वहां बैठकर सच्चाई बताऊंगी।”
रामेश्वर ने हिचकते हुए कहा – “मैं कहीं नहीं जाऊंगा। मुझे डर लगता है।” नेहा ने उनका हाथ पकड़कर कहा – “पापा, अब डरने की जरूरत नहीं है। मैं हूं ना। आप मेरे साथ चलिए। आज सच्चाई सामने आएगी।”
पुराने घाव, नई उम्मीद
कुसुम तीनों को अपने घर ले आई – छोटा सा लेकिन साफ-सुथरा घर। दीवार पर भगवान की तस्वीरें, हल्की अगरबत्ती की खुशबू। नेहा ने पिता को कुर्सी पर बैठाया, कुसुम ने पानी का गिलास दिया।
नेहा ने कहा – “आंटी, अब मुझे सब बताइए। मेरे पिता किस वजह से इस हालत में पहुंचे? मां ने उनसे रिश्ता क्यों तोड़ा?”
कुसुम ने गहरी सांस ली – “नेहा, आज जो बात तुम जानने जा रही हो, वह बहुत पुरानी है, लेकिन सच है और बहुत दर्द भरा है। तुम्हारी मां ने बहुत झेला है, तुम्हारे पापा ने भी बहुत सहा है। दोनों के रास्ते अलग हुए, लेकिन दिल कभी पूरे नहीं हुए।”
रामेश्वर ने नजरें झुका लीं – “नेहा, तुम्हारा जन्म होने के बाद सब ठीक था। तुम्हारे पापा नौकरी करते थे, घर के खर्च में मदद करते थे, सुनीता खुश रहती थी। तुम घर में रोशनी लेकर आई थी। लेकिन जिंदगी हमेशा एक जैसी नहीं रहती।”
“तुम्हारे पापा की कंपनी में एक लड़की थी – रीना। वह चालाक थी, मीठी बातें करती थी, तुम्हारे पापा को अपने जाल में फंसाती चली गई। शुरू में दोस्ती का नाटक, फिर धीरे-धीरे तुम्हारे पापा उसके पीछे पागल होने लगे। सुनीता को कुछ पता नहीं था।”
“रीना ने धीरे-धीरे रामेश्वर से पैसे मांगना शुरू कर दिया – कभी घर की जरूरत, कभी बीमारी। एक-दो बार दिया, फिर आदत बन गई। नौकरी का पैसा, बचत, जेवर – सब खत्म होता गया।”
नेहा की आंखें चौड़ी हो गईं – “मां को कैसे पता चला?”
“सच्चाई ज्यादा देर छुपती नहीं है बेटा। एक दिन सुनीता ने रामेश्वर के फोन में रीना के मैसेज देख लिए। उन्हें समझ आया कि यह लड़ाई बहुत गहरी है। रामेश्वर उस समय रीना के मोह में अंधे हो चुके थे।”
रामेश्वर की आंखों से आंसू बहने लगे – “हां बेटा, मैं बहुत गलत था। उस समय मेरी समझ पर पर्दा पड़ गया था।”
नेहा ने उनका हाथ पकड़कर कहा – “पापा, आप बोलिए, मैं सुन रही हूं।”
“मुझे समझ ही नहीं आया कि मैं किस तरफ जा रहा हूं। मैं सुनीता और तुम्हें दुख दे रहा था। रीना ने मुझे बर्बाद कर दिया था। उसने मुझसे सब ले लिया। जब मेरा पैसा खत्म हो गया, तब वह मुझे छोड़कर चली गई।”
कुसुम ने कहा – “उस दिन मां-बाप के बीच बहुत बड़ा झगड़ा हुआ। आरोप, गुस्सा, आंसू – सब एक साथ। उस झगड़े में तुम बहुत छोटी थी। सुनीता टूट गई थी। उन्हें लगा कि रिश्ता अब आगे नहीं चल सकता। फिर उन्होंने रामेश्वर से तलाक ले लिया।”
नेहा की आंखों में आंसू भर आए – “फिर पापा ने दूसरी शादी क्यों नहीं की? हमें वापस क्यों नहीं ढूंढा?”
रामेश्वर ने आंखें पोंछते हुए कहा – “क्योंकि मैं लायक ही नहीं बचा था बेटा। नौकरी नहीं, घर नहीं, पैसा नहीं। मैं गिरता ही चला गया। जब सब कुछ खो दिया, तब समझ आया कि मैंने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा गुनाह किया था। सुनीता ने मुझे छोड़ा नहीं था, मैंने खुद उन्हें खो दिया था।”
कुछ पलों तक कमरे में खामोशी रही। नेहा ने कांपती आवाज में पूछा – “पापा, आपने मुझे क्यों छोड़ दिया? मैं तो आपकी बेटी थी।”
रामेश्वर रो पड़े – “नेहा, मैंने तुम्हें नहीं छोड़ा था। मैं तुम्हें क्या देता? मेरे पास कुछ भी नहीं बचा था। मैं तुम्हारे सामने गरीब और टूटे हुए आदमी की तरह नहीं आना चाहता था। इसलिए खुद को तुम दोनों की जिंदगी से दूर कर लिया। यह मेरी मजबूरी थी, मेरा फैसला नहीं।”
कुसुम ने कहा – “नेहा, तुम्हारी मां बहुत गुस्सा करती है, लेकिन वह भी अंदर से टूट चुकी है। तुम्हें अकेले पालते-पालते मजबूत बन गई है, लेकिन आज भी तुम्हारे पापा को दिल से नफरत नहीं करती। बस डरती है कि कहीं पुराना दर्द फिर से ना लौट आए।”
नेहा ने अपनी मुट्ठी भींचकर कहा – “अब चीजें बदलेंगी। मैं किसी को टूटने नहीं दूंगी – ना मां को, ना पापा को। मैं इस परिवार को जोड़कर ही रहूंगी।”
रामेश्वर ने सिर उठाकर नेहा को देखा, आंखों में उम्मीद की हल्की चमक थी – “तुम सच में यह सब कर पाओगी बेटी?”
नेहा ने दृढ़ता से कहा – “हां पापा। मैं आपकी बेटी हूं और बेटी कभी हार नहीं मानती।”
कुसुम ने मुस्कुराकर कहा – “नेहा, तुम्हारा रास्ता कठिन है। मां को मनाना आसान नहीं है, लेकिन अगर ठान लिया है तो शायद यह टूटे रिश्ते फिर से जुड़ जाएं।”
नेहा ने कहा – “मैं मां को समझाऊंगी, दोनों को साथ लाऊंगी। अब मैं किसी को अकेला नहीं रहने दूंगी।”
रामेश्वर ने नेहा के आंसू पोंछते हुए कहा – “अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूं। बस मुझे यकीन दिलाओ कि तुम्हारी मां मुझे देखकर टूट नहीं जाएंगी।”
नेहा ने उनकी हथेली को अपने हाथों में लेकर कहा – “पापा, आप मेरे साथ चलिए। बाकी मैं संभाल लूंगी।”
घर वापसी: रिश्तों की परीक्षा
नेहा, कुसुम और रामेश्वर घर की ओर बढ़े। बाहर की हवा ठंडी थी, लेकिन माहौल में घबराहट थी। टेमो में बैठते वक्त रामेश्वर ने पूछा – “क्या तुम्हारी मां मुझे देखकर कुछ बुरा कहेंगी?” नेहा मुस्कुराई – “पापा, मैं टूटने नहीं आई, जोड़ने आई हूं।”
घर के दरवाजे पर पहुंचकर नेहा ने कहा – “पापा, अब पीछे नहीं हटना है।” दरवाजा खोला, अंदर से चाय की महक आ रही थी। सुनीता रसोई से बाहर आईं, नजर उठी तो कदम रुक गए, आंखें चौड़ी हो गईं। रामेश्वर को देखकर हैरानी, डर, दर्द और गुस्से का मिलाजुला भाव था।
नेहा ने मां के पास जाकर कहा – “मां, आज मैं पापा को यहां लाई हूं। आपको याद है, आपने कहा था कि उन्हें घर मत लाना। लेकिन मां, मैं आपकी आज्ञा मानते-मानते खुद को खो रही थी। मेरा रिश्ता भी तो उनसे है। मैं उन्हें सड़क पर छोड़कर नहीं आ सकती।”
सुनीता ने तेज आवाज में कहा – “नेहा, मैंने मना किया था। तुमने मेरी बात क्यों नहीं मानी? मैंने कहा था, वह आदमी मेरे घर में कदम नहीं रखेगा।”
नेहा रो पड़ी, लेकिन खुद को संभाला – “मां, यह आपका घर नहीं, हमारा घर है और इस घर में मेरे पापा आने का हक रखते हैं। चाहे अतीत कितना भी बुरा रहा हो, लेकिन वह मेरे पिता हैं। आप और पापा का रिश्ता टूट गया, लेकिन मेरा रिश्ता कभी नहीं टूटा।”
रामेश्वर चुप खड़े थे, आंखें शर्म और दर्द से भरी थीं – “सुनीता, मैं यहां तुम्हें दुख देने नहीं आया। नेहा मुझे जबरदस्ती लेकर आई है। अगर तुम कहो तो मैं अभी चला जाऊंगा।”
सुनीता की आंखों से आंसू गिर पड़े – “तुम अचानक क्यों आ गए? इतने सालों बाद क्या चाहिए तुम्हें? नेहा, तुम क्यों यह सब कर रही हो? मैंने तुम्हें अकेले पाला, तुम्हारे लिए सब किया और आज तुम उसी आदमी के लिए खड़ी हो, जो हमें छोड़कर चला गया था।”
नेहा ने सुनीता का हाथ पकड़ लिया – “मां, पापा ने गलती की थी, लेकिन सजा आपने भी पाई और मैंने भी। मैं आज पापा को घर लाकर आपकी मेहनत की इज्जत छीन नहीं रही, बल्कि अपनी जिंदगी का एक हिस्सा पूरा कर रही हूं।”
कुसुम भी घर में आ गई – “सुनीता, नेहा गलत नहीं कर रही। तुम्हारे पति ने गलती की, लेकिन उसकी कीमत भुगत ली है। वह आज भी अकेले जिंदगी काट रहे हैं। क्या अब भी दिल में कोई जगह नहीं बची?”
सुनीता ने रामेश्वर की ओर देखा – उनकी आंखों में पछतावा था, कोई बहाना नहीं। रामेश्वर ने टूटती आवाज में कहा – “सुनीता, अगर तुम चाहो, मैं इस घर में एक पल भी नहीं रुकूंगा। मैं बस चाहता हूं कि नेहा मेरे लिए शर्मिंदगी महसूस ना करे। बस यही।”
सुनीता का दिल पिघल गया। उन्होंने कपड़ा आंखों पर रखा, कुछ देर बाद धीरे से कहा – “नेहा, तुम्हारे पापा यहीं रहें। अगर तुम चाहती हो तो ठीक है, लेकिन मेरा दिल अभी भी डर रहा है। मुझे समय चाहिए।”
नेहा ने उन्हें गले लगा लिया – “मां, मैं बस यही चाहती हूं कि हम सब फिर से एक हो जाएं। आप दोनों मेरे साथ हो। मैं किसी को खोना नहीं चाहती।”
रामेश्वर दीवार के सहारे खड़े थे, आंखों में पहली बार उम्मीद दिख रही थी – वह उम्मीद, जिसे उन्होंने सालों पहले खो दिया था।
सुनीता ने धीरे-धीरे आगे बढ़कर कहा – “अंदर बैठो, बात करेंगे।” यह छोटा सा वाक्य वर्षों से टूटी डोर को जोड़ने की शुरुआत था।
समापन: रिश्तों की नई सुबह
उस शाम जब तीनों साथ बैठे, तो अयोध्या की हवा में जैसे नई खुशबू फैल गई। नेहा को लगा, रामलल्ला ने उसकी प्रार्थना सुन ली हो। वह मुस्कुरा कर बोली – “हम तीनों एक दूसरे के बिना अधूरे थे और आज पूरा हो गए हैं।”
सालों का अकेलापन, गलतफहमी और चोटें एक पल में तो खत्म नहीं होतीं, लेकिन उस दिन तीनों ने मिलकर संकल्प लिया – अब कोई किसी को अकेला नहीं छोड़ेगा। यह परिवार टूटा जरूर था, लेकिन नेहा की हिम्मत ने उसे फिर से जोड़ दिया।
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अमीरों को लुटता और गरीबों में बाँट देता , जब ये अजीब चोर पकड़ा गया तो जो हुआ कोई यकीन नहीं करेगा
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बाउंसर इतनी तेज थी कि हेलमेट उड़ गया.. और अंदर छुपा था खतरनाक राज – फिर जो हुआ!
बाउंसर इतनी तेज थी कि हेलमेट उड़ गया.. और अंदर छुपा था खतरनाक राज – फिर जो हुआ! हेलमेट का…
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3 दिन तक पत्नी ने फोन नहीं उठाया… पति के लौटते ही सामने आया ऐसा सच जिसने उसकी ज़िंदगी बदल…
शहर का करोड़पति लड़का जब गाँव के गरीब लड़की की कर्ज चुकाने पहुंचा, फिर जो हुआ…
शहर का करोड़पति लड़का जब गाँव के गरीब लड़की की कर्ज चुकाने पहुंचा, फिर जो हुआ… नीम की छांव: दोस्ती,…
एक IPS मैडम गुप्त मिशन के लिए पागल बनकर वृंदावन पहुंची, फिर एक दबंग उन्हें अपने साथ ले जाने लगा!
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Shaadi Mein Hua Dhoka | Patli Ladki Ke Badle Aayi Moti Ladki, Dekh Ke Dulha Hua Pareshan
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