IPS मैडम वृन्दावन से दर्शन करके लौट रही थीं, रास्ते में एक महात्मा गाड़ी रोककर बोला चल मेरे साथ!

“आईपीएस सुजाता देवी: धर्म के भेष में छुपे अपराध का पर्दाफाश”
प्रस्तावना
वृंदावन में सुबह का समय था। मंदिरों की घंटियां बज रही थीं, हवा में फूलों की खुशबू फैली थी, भक्तों की भीड़ धीरे-धीरे चल रही थी। इसी माहौल में आईपीएस सुजाता देवी भी दर्शन करने आई थी। सादा कपड़ों में, बिल्कुल सामान्य महिला की तरह, उन्होंने भगवान से प्रार्थना की—अपने जिले में शांति और सुरक्षा बनी रहे।
दर्शन के बाद सुजाता पार्किंग की तरफ बढ़ी। उन्होंने सोचा, अच्छा हुआ कि वर्दी नहीं पहनी, वरना लोग पहचान जाते और भीड़ बढ़ जाती। कार में बैठते ही उन्होंने एक लंबी सांस ली—मंदिर का माहौल हमेशा उन्हें सुकून देता था। कार स्टार्ट की और कासगंज की ओर लौटने लगीं।
सुनसान रास्ता और पहली आशंका
सुबह का समय था, सड़क पर ज्यादा भीड़ नहीं थी। किसान अपने बैलों को लेकर जा रहे थे, महिलाएं पानी भरकर लौट रही थीं, बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे। सुजाता मुस्कुरा उठीं—ऐसे ही आम लोगों की सेवा करना उन्हें सबसे ज्यादा अच्छा लगता था।
जैसे-जैसे वह कासगंज जिले की सीमा के पास पहुंचीं, सड़क चौड़ी और सुनसान होने लगी। दाएं-बाएं खेत, बीच-बीच में पेड़, पक्षियों की आवाजें भी कम हो गईं। कुछ दूर तक कोई गाड़ी, बाइक, पैदल आदमी नहीं दिखा। सुजाता ने कार की रफ्तार कम की, शीशा थोड़ा सा नीचे किया और बाहर की ठंडी हवा महसूस की। लेकिन इस सन्नाटे में एक अजीब सा डर भी था।
उन्होंने अपनी घड़ी देखी—लगभग 9:00 बज चुके थे। आमतौर पर इस समय बाजार की तरफ लोग दिखते हैं, लेकिन यहां कुछ नहीं। पुलिस ट्रेनिंग ने उन्हें हमेशा सतर्क रहना सिखाया था। उन्होंने ड्राइविंग सीट सीधी की और आसपास ध्यान से देखना शुरू किया। सड़क आगे तक बिल्कुल खाली थी—सिर्फ हवा थी जो पेड़ों की पत्तियों को हिला रही थी।
साधु की रहस्यमयी उपस्थिति
कुछ दूर आगे एक आकृति दिखाई दी—सफेद कत्थई रंग के कपड़ों में, सड़क के बीचों-बीच खड़ा एक साधु। उसके कंधे पर झोली, लंबी दाढ़ी, लेकिन खड़े होने का तरीका और जगह ठीक नहीं लग रही थी। वह जानबूझकर गाड़ी रोकना चाहता था। सुजाता ने गाड़ी धीमी की, मन में संदेह जागा।
जैसे ही वह नजदीक पहुंचीं, साधु ने दोनों हाथ फैलाकर रास्ता रोक दिया। सुजाता को गाड़ी रोकनी पड़ी। साधु खिड़की के पास आया—मुस्कान थी, लेकिन अजीब सी। सुजाता ने खिड़की थोड़ी सी नीचे की—”कहां जा रही हो बिटिया, सड़क तो खाली है। कोई जल्दी है क्या?”
सुजाता ने शांत आवाज में कहा—”आगे जा रही हूं, आपको कुछ चाहिए?”
साधु ने झांककर देखा, जैसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो। सादा कपड़े होने के कारण उसने सुजाता को आम महिला समझा।
“रास्ता आगे बड़ा सुनसान है, अकेली क्यों जा रही हो? इस समय तो कोई भी यहां नहीं आता।”
सुजाता ने अब उसे ध्यान से देखा—भाषा और खड़े होने का तरीका साधारण साधु जैसा नहीं था। कपड़े मैले थे, लेकिन जानबूझकर मैले किए गए लगते थे। अब उन्हें पूरा यकीन हो गया कि यह आदमी यूं ही खड़ा नहीं है।
साधु की सच्चाई सामने आती है
सुजाता ने खिड़की बंद की, गाड़ी आगे बढ़ाने ही वाली थीं कि साधु ने गाड़ी का हैंडल पकड़ लिया—रुकने का इशारा किया।
“रुक जाओ बिटिया, थोड़ी बात करनी है।”
अब स्पष्ट था कि वह सामान्य साधु नहीं। सुजाता ने गाड़ी थोड़ी पीछे ली, उसके हाथ से छूट गई।
“रास्ता छोड़ दीजिए, मुझे आगे जाना है।”
“इतनी जल्दी क्यों कर रही हो? कहीं डर तो नहीं लग रहा?”
सुजाता की आंखों में चमक आई—यह आदमी राहगीरों को डराकर कुछ करता होगा।
उन्होंने शांत रहकर साधु के इरादे को समझना चाहा।
“नहीं बाबा, मुझे कोई डर नहीं लग रहा। आप ही बताइए यहां क्या कर रहे हैं?”
साधु को लगा लड़की उसके जाल में फंस रही है।
“आओ मैं तुम्हें कुछ दिखाता हूं। बहुत जरूरी बात है।”
सुजाता ने गाड़ी के अंदर से कैमरा ऑन कर लिया, घड़ी में माइक्रो रिकॉर्डर भी चालू कर दिया। अब साधु की हर बात रिकॉर्ड हो रही थी।
गाड़ी का दरवाजा खोला, बाहर उतरीं।
“बाबा, बताइए क्या दिखाना है?”
साधु ने खेत की तरफ इशारा किया। सुजाता उसके पीछे कुछ कदम चलीं, सतर्क रहीं।
“तुमको यहां से अकेले नहीं जाना चाहिए। कई बुरी घटनाएं होती हैं—लोग पुलिस में शिकायत करने से भी डरते हैं।”
“कौन सी घटनाएं?”
“बस बिटिया, लोग आते जाते हैं, कोई किसी को नहीं देख पाता, राहगीर गायब भी हो जाते हैं।”
अब सुजाता को लगा, वह खुद अपने गुनाह का इशारा कर रहा है।
“आप यह सब कैसे जानते हैं? क्या आपने कुछ देखा है?”
“देखा भी है और किया भी है। यहां आने वाले लोग मुझे नहीं रोक पाते, कोई शिकायत नहीं करता।”
सुजाता को पहली गवाही मिल गई थी।
“आप अकेले रहते हैं?”
“मेरी मर्जी, जिसे चाहूं रोक लूं, जिसे चाहूं जाने दूं, यहां मेरा ही कानून चलता है।”
अब सुजाता लगभग निश्चित थीं कि यह आदमी लंबे समय से राहगीरों को परेशान करता होगा।
“तो आप तो बहुत ताकतवर लगते हो बाबा।”
“हां बिटिया, यहां मुझसे बड़ा कोई नहीं, पुलिस भी नहीं आती।”
“और बताओ क्या-क्या किया तुमने?”
“कई लोगों को रोका है, कई को सबक भी सिखाया है, कोई कुछ नहीं कर सकता मुझे।”
घड़ी की लाल लाइट चमकी—रिकॉर्डिंग पूरी।
अब सुजाता ने उसकी आंखों में देखकर कहा—”बस बाबा, अब बहुत हो गया। अब इस सड़क पर तुम्हारा नहीं, कानून का राज चलेगा।”
आईपीएस की असली पहचान
“तुम कौन हो?”
सुजाता ने दुपट्टा ठीक किया, सीधी खड़ी हुई—”मैं वही हूं जिस पर तुमको शक भी नहीं हुआ। आईपीएस सुजाता देवी।”
साधु के चेहरे का रंग उड़ गया।
“तुम आईपीएस हो? यह कैसे हो सकता है, तुम तो सादा कपड़ों में थी…”
“यही तो तुम्हारी गलती है, तुमने सिर्फ कपड़े देखे, इंसान नहीं। तुमने सोचा हर महिला कमजोर होती है, कोई तुम्हें रोकने नहीं आएगा, लेकिन आज तुम्हारी किस्मत खराब है, क्योंकि आज तुम गलत औरत के सामने खड़े हो।”
साधु ने जल्दी से समझाने की कोशिश की—”नहीं बिटिया, मेरा मतलब वो नहीं था…”
“तुम्हारी बातें और बहाने मैं पहले भी बहुत सुन चुकी हूं। तुमने अभी-अभी खुद माना है कि तुम लोगों को रोकते हो, डराते हो और यह जगह तुम्हारी मर्जी से चलती है। अब देखना कानून तुम्हें कैसे जवाब देता है।”
गिरफ्तारी और सच का सामना
साधु भागने का रास्ता ढूंढ़ने लगा, लेकिन डर से जड़ हो गया था।
“तुम भागने की कोशिश भी मत करना। तुम्हारा हर एक शब्द मैं रिकॉर्ड कर चुकी हूं। जितना बोलोगे, उतना ही फंसोगे।”
“मैं कुछ गलत नहीं करता, मैंने कुछ नहीं किया…”
“तुम्हें अपने आप पर इतना भरोसा था कि तुमने मुझे अकेले देखकर सब कुछ खुद ही मान लिया। अब यह बात तुम्हें बहुत महंगी पड़ेगी।”
उन्होंने वॉकी टॉकी निकाला—”कंट्रोल रूम, मैं सुजाता बोल रही हूं। कासगंज सीमा वाले पुराने मोड़ पर हूं, तुरंत टीम भेजी जाए। एक संदिग्ध व्यक्ति पकड़ा गया है।”
“जी मैडम, 10 मिनट में टीम पहुंच रही है।”
साधु घबरा गया—”मैडम, मुझे छोड़ दीजिए, मैं गरीब आदमी हूं…”
“गरीब होना गुनाह नहीं, लेकिन लोगों को डराना, रास्ता रोकना, गुनाह करना गुनाह है। और तुमने खुद माना है कि तुम ऐसा करते आए हो।”
साधु जमीन पर बैठ गया—”मैं मानता हूं, मैंने कभी-कभी लोगों को रोका है, लेकिन वह तो…”
“झूठ बोलना बंद करो। तुम्हारी आंखें बता रही हैं कि तुम यह सब लंबे समय से करते आए हो। लेकिन आज इसके खत्म होने का दिन है।”
पुलिस की कार्रवाई
दूर से पुलिस जीप के हॉर्न की आवाज आने लगी।
साधु ने चेहरा दोनों हाथों में छुपा लिया—”मैडम, प्लीज मुझे बचा लीजिए, मैं जेल नहीं जाना चाहता…”
“सोचना चाहिए था जब तुमने लोगों को डराना शुरू किया था। आज तुम्हारे कर्मों का हिसाब देने का समय है।”
कुछ ही देर में पुलिस जीपें आकर रुकीं।
जगदीश यादव, रामपाल सिंह और दो अन्य सिपाही बाहर निकले।
“मैडम, यही है वो व्यक्ति?”
“हां, और इसका हर गुनाह मेरे कैमरे में रिकॉर्ड है। इसे हिरासत में लो।”
सिपाही साधु को पकड़ कर खड़ा करते हैं, वह लगभग रोने लगा—”मैडम जी, मैं हाथ जोड़ता हूं, मुझे जेल मत भेजो…”
“अगर मैं एक महिला होकर अकेली यहां से गुजर सकती हूं, तो तुम लोगों को डराने का हक नहीं रखते। आज तुम्हारी करतूतें बंद होंगी।”
साधु को जीप में बैठा दिया गया, हाथों में हथकड़ी लगी। वह बार-बार पीछे मुड़कर सुजाता की तरफ देख रहा था—कभी डर से, कभी शर्म से।
“हम इसे थाने लेकर चलते हैं, आगे की कार्यवाही वहीं होगी।”
“ठीक है, मैं थोड़ी देर में आती हूं। मुझे इलाके की जांच भी करनी है।”
असली अपराध की परतें खुलती हैं
पुलिस जीपें साधु को ले जा चुकी थीं, लेकिन सुजाता देवी अभी भी वहां खड़ी थीं। उन्हें लग रहा था मामला सिर्फ एक आदमी को पकड़ने का नहीं है। जरूर इस रास्ते पर कुछ और भी है जिससे लोग डरे रहते हैं।
उन्होंने सड़क के किनारे बने खेतों में नजर दौड़ाई। दूर तक बसे छोटे-छोटे घर अब दिखाई देने लगे थे, लेकिन कोई भी सड़क पर आने की हिम्मत नहीं कर रहा था।
एक बुजुर्ग आदमी आता दिखाई दिया—”बिटिया, यहां मत रुको, यह इलाका अच्छा नहीं है।”
“क्या इस साधु से लोग डरते हैं?”
“डरते क्यों नहीं? वह कई बार राहगीरों को रोक लेता था। औरतें तो इधर से गुजरना ही छोड़ चुकी थीं।”
“शिकायत क्यों नहीं की?”
“यहां लोग पुलिस से ही डरते हैं, बदनामी फैलने का डर रहता है।”
“2 महीने पहले भी एक लड़का गायब हुआ था, लोग कहते हैं कि वह इसी मोड़ से निकला था।”
अब सुजाता समझ चुकी थीं कि यह साधु अकेला नहीं है, शायद किसी बड़े गिरोह का हिस्सा है।
कोठी का रहस्य और अपराध का जाल
पास की पुरानी बंद पड़ी कोठी—जिसके बारे में गांव वाले कई अफवाहें फैलाते थे। सुजाता ने तय किया, अब मुझे उस कोठी की जांच करनी होगी।
कोठी के पास पहुंची, गेट आधा टूटा हुआ था। अंदर वीरान आंगन, पुरानी मशीनें, मिट्टी, सूखे पत्ते, टूटी ईंटें। लेकिन कमरे के कोने में ताजा पैरों के निशान दिखे—यहां कोई आता जाता जरूर है।
एक मोड़ पार करते ही छोटा कमरा दिखा, दरवाजा अंदर से बंद था।
“पुलिस बोल रही हूं, दरवाजा खोलो।”
अंदर से एक युवक बाहर आया—कपड़े मैले, आंखों में दहशत।
“तुम यहां क्यों छुपे हो? और यह साधु क्या करता था?”
“मैडम, मैं गांव से हूं, काम की तलाश में आया था। इस साधु ने कहा था कि मुझे काम दिलवाएगा, बाद में धमकाने लगा। अगर बाहर जाकर कुछ बताया तो गायब कर देगा।”
“क्या उसने तुम्हें यहां रखा? क्या करता था?”
“यह कोठी का इस्तेमाल करता था, कई लोगों को लाता था, उनसे चीजें लेता था, धमकाता था, विरोध करता तो बंद कर देता था।”
सुजाता ने दूसरे कमरे में बोरी के ढेर, पुराने कपड़े, खाली पर्स, टोपी, टूटा मोबाइल फोन देखा—शायद राहगीरों से छीनी गई चीजें। अब साफ था, यह कोठी अपराध का अड्डा थी।
अंतिम गिरफ्तारी और समाज को संदेश
वॉकी टॉकी से आवाज आई—”मैडम, लॉकअप वाला साधु लगातार चिल्ला रहा है कि उसका साथी बाहर है…”
सुजाता ने जवाब दिया—”मैं यहां पूरी जांच कर रही हूं, आप लोग साधु पर नजर रखें।”
कोठी के पीछे ताजा टायर के निशान—कोई अभी-अभी आया और जल्दी चला गया।
अब सुजाता ने युवक को कार में बैठाया, कोठी का गेट बंद किया, लेकिन झाड़ियों में हल्की आवाज हुई—कोई छिपा था, लेकिन भाग गया।
थाने पहुंचते ही टीम के जवान खड़े हुए—”मैडम, साधु बार-बार यही कह रहा है कि उसका साथी आएगा और उसे छुड़ा ले जाएगा।”
“क्या नाम बताया?”
“नहीं मैडम, बस इतना कि वह चालाक है और बाहर घूम रहा है।”
“साधु को सुरक्षित कमरे में शिफ्ट करो, बाहर डबल सुरक्षा लगाओ।”
गांव वालों ने बताया, रात में काले रंग की बाइक अक्सर कोठी के पास दिखती थी।
सुजाता ने टीम को तीन हिस्सों में बांटा—कोठी, पुल, खेतों के रास्ते।
खुद कोठी के पास गई—अचानक काली बाइक रुकी, बाइक वाला हेलमेट पहने हुए, चारों तरफ देखने लगा।
“रुको!”
बाइक वाला भागने की कोशिश में गिर पड़ा, अंधेरे की तरफ भागा।
सुजाता ने टॉर्च जलाकर पीछा किया—रास्ता बंद था।
“अब भागने का कोई रास्ता नहीं, हथियार डाल दो।”
वह व्यक्ति हाथ ऊपर कर देता है—”मैं अकेला नहीं हूं…”
“लेकिन आज तू कानून के हाथ में है।”
सिपाहियों ने उसे हथकड़ी लगाई, थाने ले गए।
सुजाता देवी ने आसमान की ओर देखा—सूरज ढल रहा था, दिन भर की मेहनत का नतीजा उनकी आंखों में चमक रहा था। आज कासगंज की सड़कें थोड़ी और सुरक्षित हो गई थीं।
समाज के लिए संदेश
धर्म का वेश कभी चरित्र की गारंटी नहीं होता। इंसान का असली धर्म उसके कपड़ों से नहीं, कर्मों से पहचाना जाता है। आजकल कई लोग साधु का भेष धारण कर अपराध करते हैं। असली साधु की नजरें कभी गलत जगह नहीं जातीं; वह सम्मान देना जानता है, डराना या छूना नहीं।
महिलाओं को चाहिए कि वे सतर्क रहें। अनजान आदमी बेवजह बात करे, रास्ता रोके, आशीर्वाद के नाम पर हाथ बढ़ाए, पीछा करे—तो तुरंत दूरी बनाकर, तेज आवाज में दूर रहें। अपराधी को सबसे ज्यादा डर तब लगता है जब महिला आत्मविश्वास दिखाती है।
गलत को गलत कहना ही सबसे बड़ा धर्म है। भय और चुप्पी अपराधी की ताकत होती है।
पुलिस से तुरंत संपर्क करें—112 सिर्फ नंबर नहीं, सुरक्षा का सहारा है।
शिकायत करने वाली महिला कमजोर नहीं होती, वह हजारों और महिलाओं को बचाती है।
अच्छे लोगों को चाहिए कि धर्म को ऐसे अपराधियों से बचाएं।
असली साधुओं की मर्यादा बचाएं, फर्जी साधुओं को उजागर करें।
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