PCS अधिकारी और SDM साहिबा के सामने लड़का रो पड़ा मैडम बोली ऑफिस के बाहर मिलों काम हो जायेगा

ओमकार की जमीन – इंसाफ की जीत

बिहार के बक्सर जिले की एक तहसील में ओमकार नाम का एक नौजवान, अपनी दो बहनों के साथ घंटों से बैठा रो रहा था। आज उसके जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी हुई थी – उसने अपने खेत-खलिहान की सारी जमीन बेच दी थी, और अंगूठे पर लगी स्याही उसे बार-बार याद दिला रही थी कि अब उसके पास कुछ नहीं बचा। उसकी बहनें भी उसके साथ बैठी थीं, दुख में डूबी हुई।

सुबह से शाम हो गई, लेकिन उनकी आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। तभी तहसील की तेजतर्रार महिला अधिकारी, स्नेहा शर्मा, अपनी ड्यूटी खत्म कर घर लौट रही थीं। उनकी नजर तीनों भाई-बहन पर पड़ी। उन्होंने उन्हें पास बुलाया और उनकी परेशानी को गंभीरता से समझने लगीं। स्नेहा मैडम ने कहा, “तुम तीनों तहसील के बाहर मुझसे मिलो।”

तहसील के बाहर सड़क पर उनकी फिर से स्नेहा मैडम से मुलाकात होती है। मैडम उन्हें अपनी गाड़ी में बैठाकर अपने घर ले जाती हैं। वहां चाय-नाश्ता कराती हैं, और फिर पूछती हैं, “अब बताओ, क्या मामला है? बेझिझक बताओ, डरने की जरूरत नहीं।”

ओमकार की बहन बताती है, “मैडम, हमारे पापा के मरने के बाद गांव के दबंग लोग हमें डराने-धमकाने लगे। कहते हैं कि तुम्हारे पापा ने 10 साल पहले उनसे पैसा लिया था, अब ब्याज जोड़कर जमीन के बदले मांगते हैं। धमकी देते हैं, अगर नहीं दोगे तो घर भी छीन लेंगे, और हमारी बहनों को भी परेशान करेंगे।”

ओमकार रोते हुए कहता है, “मैडम, उन्होंने कोई पैसा नहीं दिया, बस डराकर जमीन लिखवा ली। मुझे अपनी बहनों की चिंता थी, इसलिए मजबूरी में जमीन दे दी। हमारे पास कोई और नहीं है।”

स्नेहा मैडम समझ गईं कि मामला गंभीर है। वह तीनों को एसडीएम महिला अधिकारी के पास ले जाती हैं और पूरी कहानी सुनाती हैं। एसडीएम मैडम भी कहती हैं, “यह तो गैरकानूनी तरीके से प्रॉपर्टी डीलिंग हो रही है। अगर सबूत मिले तो हम इन दबंगों को जेल भेज सकते हैं।”

ओमकार डरता है, “मैडम, मुझे कुछ नहीं करना है, मुझे अपनी बहनों की चिंता है।” लेकिन मैडम कहती हैं, “यह सिर्फ तुम्हारी ही नहीं, हमारी भी बहनें हैं। डरने की जरूरत नहीं, हम तुम्हारे साथ हैं।”

स्नेहा मैडम और एसडीएम मैडम दोनों मिलकर ओमकार की बहनों के लिए सिलाई-कढ़ाई की सरकारी योजना में दाखिला करवा देती हैं, ताकि वे आत्मनिर्भर हो सकें। ओमकार को हिम्मत देती हैं, और आखिरकार वह गवाही देने को तैयार हो जाता है।

पुलिस को खबर दी जाती है, और अगले ही दिन पुलिस दबंगों के घर पहुंचती है। दबंग पुलिस को भी धमकाते हैं, लेकिन यही पुलिस को चाहिए था। पुलिस उन्हें गिरफ्तार करती है – सूदखोरी, धमकी, जबरन जमीन हड़पने जैसे कई मामलों में केस दर्ज होता है। उनके जेल जाते ही गांव के सैकड़ों लोग चैन की सांस लेते हैं। और कई लोग आगे आकर अपनी शिकायत दर्ज कराते हैं।

पुलिस उनसे सबूत मांगती है – कोई रजिस्टर, कोई दस्तावेज, जिसमें लिखा हो कि ओमकार के पिता ने पैसा लिया था। लेकिन दबंग कोई सबूत नहीं दे पाते। असल में उनका यही धंधा था – गरीबों को डराकर जमीन हड़पना।

ओमकार की बहनें छह महीने का कोर्स करके शहर की एक कंपनी में काम करने लगती हैं, अपनी जिंदगी संवार लेती हैं। ओमकार का केस कोर्ट में चल रहा है, उम्मीद है कि जल्दी ही उसे जमीन वापस मिल जाएगी।

स्नेहा शर्मा और एसडीएम मैडम की ईमानदारी ने ओमकार और उसकी बहनों को नई जिंदगी दी, इंसाफ दिलाया।

सीख: यह कहानी बताती है कि अगर अधिकारी ईमानदार हों, तो गरीबों को भी न्याय मिल सकता है। डर और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है। औरतों की शिक्षा और आत्मनिर्भरता सबसे बड़ी ताकत है।

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