SDM साहिबा निरीक्षण करने गाँव पहुँची ; अचानक एक लड़का SDM साहिबा के सामने रोने लगा फिर …
सुरेश की कहानी – जमीन, जुल्म और इंसाफ की लड़ाई
मार्च 2020। बिहार के बक्सर जिले की एक तहसील में सुबह से ही हलचल थी। तहसील के एक कोने में एक नौजवान लड़का सुरेश अपनी दो बहनों के साथ बैठा लगातार रो रहा था। उसकी आंखों में गहरा दुख था, और उसकी बहनों की आंखों में भी आंसू थे। सुरेश ने आज अपनी पुश्तैनी चार बीघा खेती की जमीन बेच दी थी। उसके अंगूठे पर ताजे स्याही के निशान थे, जो उसके दिल के जख्म को और गहरा कर रहे थे। उसे लग रहा था कि अब उसका सब कुछ खत्म हो चुका है।
सुबह से शाम हो गई, लेकिन तीनों भाई-बहन वहीं बैठे रहे। तभी तहसील की तेजतर्रार महिला अधिकारी नेहा शर्मा, जो अपनी ड्यूटी खत्म कर घर लौट रही थीं, उनकी ओर बढ़ीं। नेहा ने उन तीनों को बुलाया और उनके दुख को गंभीरता से समझा। उन्होंने सुरेश, उसकी बहनों से तहसील के बाहर मिलने को कहा।
तहसील के बाहर सड़क पर नेहा शर्मा फिर से उन तीनों से मिलीं। उन्होंने सुरेश और उसकी बहनों को अपनी गाड़ी में बैठाया और अपने घर ले गईं। सुरेश और उसकी बहनों को घर के हॉल में बिठाया गया। थोड़ी देर बाद नेहा मैडम फ्रेश होकर बाहर आईं और उनके साथ चाय-नाश्ता किया। फिर उन्होंने सुरेश और उसकी बहनों से पूरी कहानी जानने की कोशिश की।
जमीन बिकने की सच्चाई
सुरेश ने सिर झुकाकर बताया, “मैडम, मेरे पिता ने दस साल पहले गांव के दबंगों से दो लाख रुपये उधार लिए थे। तीन साल पहले पापा की मौत हो गई। इसके बाद वे लोग बार-बार धमकाने लगे। कहते हैं, ब्याज जोड़कर अब बीस लाख रुपये बन गए हैं। अगर पैसे नहीं दिए, तो जमीन चली जाएगी। और ज्यादा देर की तो बहनों को भी उठा लेंगे।”
सुरेश की बहनें भी रो रही थीं। उन्होंने कहा, “मैडम, हमारे भाई को डराकर, धमकाकर जबरन जमीन लिखवा ली गई। हमें डर था कि कहीं हमें या भाई को नुकसान न पहुंचाएं।”
नेहा मैडम ने पूछा, “क्या जमीन बेचने के बदले तुम्हें पूरा पैसा मिला?”
सुरेश ने सिर हिलाया, “नहीं मैडम, कोई पैसा नहीं मिला। उल्टा बोलते हैं कि जमीन की कीमत से भी ज्यादा हमारा कर्ज है। मुझे अपनी बहनों की चिंता थी, इसलिए मजबूरी में जमीन दे दी।”
नेहा शर्मा ने उनकी पूरी बात सुनकर गहरी सांस ली। उन्हें एहसास हो गया कि यह मामला बहुत बड़ा है। तहसील में पिछले छह महीने में ऐसे ही कई मामले सामने आए थे, जिनमें दबंग लोग गरीबों की जमीनें हड़प रहे थे। नेहा ने एसडीएम मैडम से मिलकर सुरेश और उसकी बहनों की समस्या बताई। एसडीएम भी महिला अधिकारी थीं। नेहा ने कहा, “मैडम, इस इलाके में भूमाफिया की जड़ें बहुत गहरी हैं। ये लोग गरीबों को धमका कर, डराकर उनकी जमीनें हड़प लेते हैं।”
एसडीएम मैडम ने कहा, “अगर सुरेश और उसकी बहनें गवाही देने को तैयार हैं, तो हम इन दबंगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर सकते हैं।”
हिम्मत और इंसाफ की लड़ाई
सुरेश डर रहा था। उसे अपनी बहनों की चिंता थी। उसने कहा, “मैडम, मुझे अपनी बहनों की सुरक्षा चाहिए। अगर उन लोगों ने हमें नुकसान पहुंचाया तो मैं क्या कर पाऊंगा?”
एसडीएम मैडम ने उसे भरोसा दिलाया, “अब तुम्हारे साथ हम हैं। डरने की कोई जरूरत नहीं। तुम्हारी बहनों को हम यहीं शहर में सरकारी योजनाओं के तहत सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण दिलवाएंगे। उनका दाखिला भी करा देंगे।”
सुरेश की बहनों ने बताया कि वे दोनों दसवीं तक पढ़ी हैं। नेहा और एसडीएम मैडम ने तुरंत अधिकारियों को फोन किया और अगले ही दिन दोनों बहनों का दाखिला सिलाई-कढ़ाई के प्रशिक्षण केंद्र में करा दिया।
अब सुरेश को समझाया गया कि हिम्मत दिखाओ, गवाही दो। सुरेश ने डरते-डरते हां कर दी। बस इतना ही एसडीएम मैडम को चाहिए था।
भूमाफिया के खिलाफ कार्रवाई
पुलिस को सूचना दी गई। पुलिस ने दबंगों के घरों पर छापा मारा, उनसे पूछताछ की। दबंगों ने पुलिस को भी धमकाने की कोशिश की, लेकिन पुलिस को यही चाहिए था। पुलिस ने सूदखोरी, धमकी, गैरकानूनी जमीन हड़पने के आरोप में उन सभी को गिरफ्तार कर लिया। जेल भेज दिया। उनके जेल पहुंचते ही सैकड़ों गांववाले चैन की सांस लेने लगे। कई पीड़ित लोग पुलिस स्टेशन आए और अपनी शिकायत दर्ज कराई।
पुलिस ने दबंगों से सबूत मांगे – “बताओ, तुम्हारे पास क्या सबूत है कि सुरेश के पिता ने तुमसे दो लाख रुपये लिए थे? कोई अंगूठा, कोई दस्तावेज?” लेकिन दबंगों के पास कोई पक्का सबूत नहीं था। वे बस लोगों को डराकर, धमकाकर उनकी जमीनें हड़पते थे। पुलिस ने उनकी पूरी टीम को हिरासत में ले लिया और मुकदमा चलाया।
नई जिंदगी की शुरुआत
सुरेश की बहनें छह महीने का कोर्स पूरा कर एक कंपनी में काम करने लगीं। उनकी जिंदगी पटरी पर लौट आई। सुरेश को भी उम्मीद थी कि कोर्ट जल्दी ही उसके हक में फैसला देगा और उसकी जमीन वापस मिल जाएगी।
नेहा शर्मा और एसडीएम मैडम ने सुरेश और उसकी बहनों को इंसाफ दिलाया, नई जिंदगी दी। आज सुरेश और उसकी बहनें खुश हैं, आत्मनिर्भर हैं।
कहानी का संदेश
यह कहानी हमें सिखाती है कि हिम्मत और इंसानियत के सामने कोई भी जुल्म ज्यादा दिन टिक नहीं सकता। एक ईमानदार अधिकारी, एक मजबूत प्रशासन और पीड़ितों की हिम्मत मिल जाए तो सबसे बड़ा भूमाफिया भी सलाखों के पीछे पहुंच जाता है।
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