गरीब ऑटो ड्राइवर ने लाखों रुपये से भरा बैगलौटाया, फिर जो हुआ उसने पूरी ज़िंदगी ..

कभी-कभी हमारी ज़िंदगी में ऐसा मोड़ आता है, जब हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि क्या सच में इस दुनिया में अच्छाई की कोई कदर नहीं होती। लेकिन किस्मत का खेल भी बड़ा अजीब होता है।

सुबह की हल्की धूप सड़कों पर फैल रही थी। शहर की गलियों में गाड़ियों की आवाज़, लोगों की भागदौड़ और दुकानों की रंगीन बत्तियाँ जैसे ज़िंदगी का एक आम हिस्सा थीं। राजेश का ऑटो उसी भीड़-भाड़ में तेज़ी से दौड़ रहा था। वह एक ईमानदार और मेहनती ऑटो ड्राइवर था, जो रोज़ सुबह से शाम तक लोगों को उनके मंज़िल तक पहुंचाता और शाम को कुछ कमाई लेकर घर लौटता।

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लेकिन उस दिन कुछ खास था, ऐसा कुछ जो उसकी ज़िंदगी बदलने वाला था।

जब राजेश ने अपनी गाड़ी पार्क की, तो उसकी नजर पीछे की सीट पर पड़े एक बैग पर पड़ी। उसने पहली बार ध्यान से देखा और सोचा कि शायद कोई यात्री अपना बैग भूल गया हो। बैग साधारण था, लेकिन आकार में बड़ा, जैसे उसमें कुछ भारी सामान हो। राजेश ने उसे खोलने का मन नहीं बनाया, लेकिन फिर सोचता है कि हो सकता है इसमें कोई जरूरी दस्तावेज़ हों।

जैसे ही उसने बैग खोला, उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। अंदर लाखों रुपए के बंडल रखे थे। उसकी धड़कन तेज़ हो गई। यह मौका बड़ा था। अगर वह ये पैसे रख लेता तो उसकी ज़िंदगी बदल सकती थी।

लेकिन उसी पल उसकी आंखों के सामने उसके बच्चों के चेहरे आ गए। उसकी अंदर एक आवाज़ गूंज रही थी, “राजेश, यह पैसा तुम्हारा नहीं है। यह तुम्हारी ईमानदारी से दूर है।”

राजेश ने बैग को अपनी सीट पर रखा और ठाना कि वह इन पैसों को किसी भी हालत में नहीं रखेगा। उसने कड़ी मेहनत से अपनी ज़िंदगी बनाई थी और अब उसे यकीन हो गया कि अच्छाई और ईमानदारी की कोई कीमत नहीं होती।

उसने बैग को अपने हाथ में लिया और फैसला किया कि वह इसे इसके मालिक तक पहुंचाएगा। उसने बैग अपनी ऑटो की अगली सीट पर रखा और निकल पड़ा।

राजेश कई घंटों तक शहर की गलियों में घूमता रहा, हर किसी से पूछा, लेकिन कोई भी बैग को नहीं पहचान पाया। उसकी कोशिशें थमने लगीं, लेकिन वह हार मानने वाला नहीं था। उसे यकीन था कि वह बैग किसी न किसी रूप में उसे वापस मिलेगा।

इसी बीच उसे पता चला कि शहर के सबसे बड़े व्यवसायी, राघव वर्मा, के पास ऐसा ही बैग खो गया था। यह नाम सुनते ही राजेश का दिल एक पल के लिए रुक सा गया। राघव वर्मा वह शख्स था जिसने शहर की सियासी और व्यापारिक दुनिया को हिला रखा था।

राजेश ने ठाना कि अब उसे राघव वर्मा से मिलकर ही बैग लौटाना होगा। वह बिना किसी डर के उनके ऑफिस की ओर बढ़ा।

ऑफिस पहुंचकर रिसेप्शनिस्ट ने उसे टोकते हुए कहा, “आपको अपॉइंटमेंट चाहिए।”

राजेश ने आत्मविश्वास से कहा, “मुझे पता है, लेकिन यह मामला खास है।”

कुछ देर बाद राघव वर्मा खुद आए। उन्होंने राजेश को देखा और पूछा, “क्या काम है?”

राजेश ने घबराते हुए कहा, “साहब, यह बैग मुझे मिला था, सोचा आपको लौटाऊं।”

राघव ने बैग देखा और पूछा, “तुमने इसे खोला नहीं?”

राजेश ने सिर हिलाकर कहा, “नहीं साहब, मैंने सिर्फ देखा कि बैग रखा है।”

राघव ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम्हारी ईमानदारी देखकर मैं प्रभावित हूँ।”

फिर राघव ने राजेश को अपने ऑफिस में बुलाया और कहा, “मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी कंपनी के एक प्रोजेक्ट में काम करो। यह सिर्फ पैसे कमाने के लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए होगा।”

राजेश कुछ पल के लिए चुप रहा। उसने अपने परिवार और पुरानी ज़िंदगी के बारे में सोचा। फिर उसने कहा, “साहब, मैं अपने काम से संतुष्ट हूँ और अपनी जड़ों से दूर नहीं जाना चाहता।”

राघव ने गंभीरता से कहा, “राजेश, तुम्हारे जैसे लोग समाज के लिए बहुत जरूरी हैं। लेकिन कभी-कभी हमें अपने डर को पार करना पड़ता है ताकि हम अपनी असली ताकत को पहचान सकें।”

राजेश ने गहरी सांस ली और कहा, “शायद अब समय आ गया है कि मैं अपने डर से बाहर आकर कुछ नया शुरू करूं।”

राघव खुश हुए और कहा, “बहुत अच्छा राजेश, मैं तुम्हारे साथ काम करने का इंतजार नहीं कर सकता।”

राजेश ने फोन बंद किया और अपने नए सफर की ओर बढ़ा। उसके दिल में अब एक नई उम्मीद और संतुष्टि थी। वह जानता था कि ईमानदारी और अच्छाई का कोई मोल कम नहीं होता।

कुछ दिनों बाद, जब राजेश घर लौटा, उसकी पत्नी सुमित्रा ने पूछा, “कहाँ थे? बच्चों को स्कूल से लाना था।”

राजेश ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “थोड़ा काम था, वही निपट रहा था।”

फिर उसने सुमित्रा को राघव वर्मा का प्रस्ताव दिखाया। सुमित्रा ने हैरानी से पूछा, “क्या सच में तुम राघव वर्मा की कंपनी में काम करोगे?”

राजेश ने सिर झुकाया, “नहीं, मैंने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। मुझे अपनी ज़िंदगी से संतुष्टि है।”

सुमित्रा ने प्यार से कहा, “राजेश, तुम हमेशा सही करते हो। लेकिन कभी-कभी हमें अपने डर को छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए।”

राजेश ने माना, “शायद तुम सही कहती हो।”

कुछ समय बाद, राजेश को फिर से राघव वर्मा का फोन आया। राघव ने कहा, “तुम्हारी ईमानदारी ने मुझे प्रभावित किया है। इस बार मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे साथ एक नए प्रोजेक्ट पर काम करो, जो समाज के लिए होगा।”

राजेश ने सोचा और फिर मुस्कुराते हुए कहा, “साहब, अब मैं तैयार हूँ।”

यह कहानी है एक साधारण इंसान की, जिसने ईमानदारी और अच्छाई के रास्ते पर चलकर न केवल खुद को बल्कि समाज को भी बेहतर बनाने का फैसला किया। राजेश ने साबित किया कि सही रास्ता चुनना मुश्किल होता है, लेकिन वही रास्ता हमें असली खुशी और सम्मान देता है।