माँ का कर्ज: बेटे सूरज की कहानी जिसने सबको सबक सिखा दिया

क्या आपने कभी सोचा है कि जिस माँ ने आपको चलना सिखाया, उसी के लिए आप आज दो कदम चलने को तैयार नहीं हैं? जिसने बिना कुछ मांगे अपनी पूरी जिंदगी आपके नाम कर दी, उसी के प्यार की कीमत आज आप लगा रहे हैं। ऐसी ही कहानी है पार्वती देवी और उनके बेटे सूरज की, जो आज करोड़पति है लेकिन माँ से दूर हो गया।

पार्वती देवी, 70 साल की उम्र में गाँव भद्रपुर में अकेली रहती हैं। उनके चेहरे की झुर्रियों में ममता बसती है। सूरज उनका इकलौता बेटा है, जो हैदराबाद में एक बड़ी कंपनी का सीईओ है। उसके पास पैसा, बंगला, गाड़ी सब है, लेकिन माँ की ममता से दूर है। सूरज के पिता की मृत्यु सूरज के बचपन में ही हो गई थी। पार्वती ने अकेले ही बेटे को पाला, खेतों में मजदूरी की, भूखी सोई, अपनी सोने की चूड़ियां और पति की अंगूठी तक बेच दी, बस बेटे की पढ़ाई पूरी हो जाए।

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सूरज की तरक्की हुई, लेकिन माँ की दुनिया सिमटती गई। पहले हर हफ्ते फोन करता था, फिर महीने में, अब तो साल में एक बार ही। माँ के लिए उसका एक कॉल ही सबसे बड़ा तोहफा था। लेकिन अब वो भी नहीं आता। सूरज का जन्मदिन आया, माँ ने दिनभर फोन का इंतजार किया, लेकिन कोई कॉल नहीं। आखिर रात को काँपते हाथों से खुद फोन किया। सूरज पार्टी में व्यस्त था, माँ का कॉल नजरअंदाज कर दिया। जब कई बार कॉल किया, तो गुस्से में फोन उठाया, “माँ, बार-बार फोन क्यों कर रही हो? मैं थक गया हूँ।”

माँ ने बस इतना कहा, “आज तेरा जन्मदिन है, तुझे दुआ देने का मन किया। दो साल हो गए तुझे देखे हुए, बस एक बार आ जा।” सूरज ने झुंझलाकर कहा, “ठीक है माँ, परसों आता हूँ।” माँ के चेहरे पर मुस्कान छा गई, उसने रातभर बेटे के आने की उम्मीद में खिड़की से बाहर देखा।

परसों सूरज आया, माँ ने उसे गले लगा लिया। लेकिन सूरज का चेहरा ठंडा था। उसने कहा, “माँ, तू हमेशा कहती थी माँ का कर्ज कोई नहीं चुका सकता, लेकिन मैं तेरा कर्ज जरूर चुकाऊंगा। बता क्या चाहिए?” पार्वती देवी ने मुस्कुरा कर कहा, “मुझे तेरा प्यार चाहिए, एहसास चाहिए। लेकिन अगर तुझे मेरा कर्ज चुकाना है तो तीन काम करने होंगे।”

पहला काम: सूरज को 5 किलो का पत्थर कपड़े में लपेटकर पेट से बांधना था, जैसे माँ गर्भ में बच्चा रखती है। सूरज ने हँसी में लिया, लेकिन कुछ घंटे में ही थक गया। माँ ने कहा, “मैंने तुझे 9 महीने पेट में रखा, खेतों में काम किया, कभी शिकायत नहीं की।” सूरज शर्मिंदा हो गया।

दूसरा काम: माँ के कमरे में सोना। रात में माँ ने दो बार पानी मांगा और गलती से सूरज की खाट पर गिरा दिया। सूरज झुंझला गया। माँ ने कहा, “जब तू छोटा था, तू हर रात बिस्तर गीला करता था, मैं तुझे सूखी जगह सुलाती थी और खुद गीले बिस्तर पर सोती थी।”

तीसरा काम: सुबह माँ ने खिड़की पर बैठे कबूतर के बारे में तीन बार पूछा, सूरज झुंझला गया। माँ ने कहा, “जब तू तीन साल का था, तूने यही सवाल 40 बार पूछा था, मैंने हर बार प्यार से जवाब दिया।”

सूरज टूट गया, माँ के पैरों में गिर पड़ा। “माँ, मैं गलत था। माँ का कर्ज चुकाया नहीं जा सकता, सिर्फ निभाया जा सकता है।” माँ ने सिर पर हाथ फेरा, “बस मुझे कभी दुख मत देना, यही सबसे बड़ी दौलत है।”

यह कहानी हमें सिखाती है कि माँ का कर्ज पैसे, बंगले या गाड़ी से नहीं चुकाया जा सकता। माँ के लिए प्यार, समय और सम्मान ही सबसे बड़ा तोहफा है। आइए, आज से अपनी माँ को वह प्यार दें, जो वह हकदार है। क्योंकि माँ है तो सबकुछ है, माँ नहीं तो कुछ भी नहीं।