पत्नी बोली… गीता की कसम जज साहब, ना तलाक दूंगी, ना साथ रहूंगी — फिर…

ना तलाक दूंगी, ना साथ रहूंगी – नैना और रोहन की अदालत में गूंजती कहानी

अदालत का दृश्य

“ना तलाक दूंगी और ना ही इनके साथ रहूंगी।”
यह आवाज पूरे अदालत कक्ष में ऐसे गूंजी जैसे किसी ने अचानक तूफान का दरवाजा खोल दिया हो। कलम बीच हवा में थम गई। जज ओमकार त्रिपाठी की भौंहें सिकुड़ गईं। वकील एक-दूसरे को देखने लगे और पीछे बैठी भीड़ में हलचल मच गई। हर कोई अपनी जगह पर ठिठक गया, जैसे यह सुनकर उनकी सांसें भी थम गई हों।

कटघरे में खड़ी थी नैना सक्सेना – 28 साल, महंगी साड़ी, मैचिंग गहने और चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान। जैसे वह किसी बड़े खेल की बाजी अपने हाथ में ले चुकी हो। उसकी आंखों में ठंडी चमक थी और होठों पर वो मुस्कान, जिसे देखकर कहना मुश्किल था कि उसकी जिंदगी में कोई भूचाल आया हुआ है।

उसके सामने खड़ा था उसका पति, रोहन वर्मा। एक थका हुआ आदमी – बिखरे बाल, लाल आंखें और चेहरे पर बेबसी का साया। जैसे कई रातों से सोया ना हो, जिंदगी का बोझ उसके कंधों पर इतना भारी हो गया हो कि अब वो टूटने की कगार पर है।

रोहन ने कांपते स्वर में कहा, “मान्यवर, अगर यह मेरे साथ रहना ही नहीं चाहती, तो मुझे आजाद कर दीजिए। मुझे इस घुटन से मुक्ति दीजिए।”

जज ने ऐनक उतारी, धीरे से मेज पर रख दी। आवाज गहरी और सख्त थी – “श्रीमती नैना, आप तलाक भी नहीं देंगी और साथ भी नहीं रहेंगी। तो फिर आखिर चाहती क्या हैं आप?”

नैना ने गहरी सांस ली। मुस्कान और चौड़ी हो गई। ठंडे स्वर में बोली – “मैं इनसे पूरी जिंदगी गुजारा भत्ता चाहती हूं। लेकिन इनके साथ रहना भी नहीं और तलाक भी नहीं देना है।”

उसकी बात सुनते ही पूरा कोर्टरूम हिल गया। भीड़ में कानाफूसी होने लगी – “यह तो कैद है!” किसी ने दबी आवाज में बुदबुदाया, “कानून में ऐसा कहां लिखा है?” लेकिन नैना का चेहरा स्थिर रहा, जैसे उसे हर प्रतिक्रिया का पहले से अंदाजा था।

रोहन वही कटघरे में झुक गया। उसकी आंखों से आंसू बह निकले। रोते हुए कहा, “मान्यवर, मैंने इसे कभी छोड़ा ही नहीं। हमेशा मनाने की कोशिश की। आज भी इसके साथ घर बसाना चाहता हूं। लेकिन अगर यह सब भूलने को तैयार नहीं, तो मुझे कम से कम आजादी तो दीजिए।”

रोहन का वकील संदीप शुक्ला तुरंत खड़ा हो गया। आवाज में गुस्सा और तर्क की धार थी – “माय लॉर्ड, यह साफ मानसिक क्रूरता है। ना तलाक, ना साथ। यह मेरे मुवकिल को अदृश्य जंजीरों में बांध कर रखने जैसा है।”

नैना की तरफ से खड़ी अदिति मिश्रा मुस्कुराई – “मान्यवर, तलाक देना या ना देना पत्नी का अधिकार है। मेरी मुवकिल बस अपने अधिकार का इस्तेमाल कर रही है।”

जज ने हथौड़ा मेज पर पटका – “ऑर्डर, ऑर्डर!” सन्नाटा पसर गया।
फिर उन्होंने नैना की ओर देखा – “अदालत कोई खेल का मैदान नहीं है। यहां सच बोला जाता है। बताइए आपकी असली शिकायत क्या है? क्या हिंसा हुई? क्या दहेज मांगा गया?”

कमरा चुप था। नैना की आंखों में आंसू तैर गए। एक बूंद गाल पर ढलकी। धीमे स्वर में बोली – “मान्यवर, जख्म सिर्फ शरीर पर नहीं लगते। दिल पर भी लगते हैं और दिल पर लगे घाव सबसे गहरे होते हैं।”

पूरा कमरा सांस रोके उस अगली बात का इंतजार कर रहा था, क्योंकि सब जानते थे कि अब वह सच सामने आएगा जो इस रिश्ते को तहसनहस कर गया है।

नैना की पीड़ा

नैना की आंखें अब लाल हो चुकी थीं। आवाज कांप रही थी, लेकिन हर शब्द तलवार की तरह हवा को चीर रहा था।
“मान्यवर, लोग कहते हैं शादी के बाद लड़की अपने मायके से पराई हो जाती है और ससुराल उसका नया घर बनता है। लेकिन मेरे लिए तो हालात इतने अजीब थे कि मैं कहीं की भी ना रही। मायके में सब कहते – अब तेरा असली घर ससुराल है। और ससुराल में हर दिन यह एहसास कराया गया कि मैं सिर्फ जिम्मेदारियों का बोझ हूं, एक औपचारिकता हूं। यही सबसे बड़ा जख्म है, जो मुझे रोज-रोज नजर आता रहा।”

भीड़ में बैठे लोग एक-दूसरे को देखने लगे। कानाफूसी शुरू हो गई, जैसे हर किसी को अपने जीवन की कोई घटना याद आ गई हो।

“जब मेरी सहेलियां अपने पति के साथ घूमने जातीं, तस्वीरें खिंचवातीं, खुश होतीं – तब मैं कमरे में अकेली बैठकर आंसुओं से तकिया भिगोती थी। इनका कहना था कि वक्त नहीं है, पैसे नहीं हैं, जिम्मेदारियां बहुत हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या रिश्ते सिर्फ पैसों से चलते हैं? क्या प्यार जताने के लिए बड़ा-बड़ा खर्चा करना जरूरी है? मुझे तो बस थोड़ी सी तवज्जो चाहिए थी, थोड़ा सा समय चाहिए था। लेकिन मुझे कभी नहीं मिला।”

रोहन यह सुनकर जैसे टूटता जा रहा था। उसकी आंखें फटी हुई थीं, होठ कांप रहे थे।
हाथ जोड़कर बोला – “मान्यवर, मैं झूठा इंसान नहीं हूं। मैंने कभी नैना को चोट पहुंचाने का इरादा नहीं रखा। लेकिन जिंदगी की सच्चाइयां वही समझ पाता है, जो रोज-रोज उनके साथ जूझता है। मुझे नौकरी की चिंता थी, मां की दवाइयों की चिंता थी, घर की ईएमआई की चिंता थी। मैंने सोचा कि अगर मेहनत करूंगा तो धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। लेकिन शायद मेरी खामोशी और जद्दोजहद ही उसकी नजरों में मेरी सबसे बड़ी गलती बन गई।”

जज ने दोनों की ओर देखा।
“शादी सिर्फ दो शरीरों का नहीं, दो आत्माओं का मिलन है। और अगर उनमें से कोई एक भी खुद को अकेला महसूस करे तो रिश्ता आधा-अधूरा रह जाता है। लेकिन अदालत को यह जानना होगा कि आखिर वह कौन सी वजह थी, जिसने आपको यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि ना तलाक दूंगी और ना साथ रहूंगी।”

नैना की सांसें भारी हो चुकी थीं। एक पल को चुप्पी साधी। कांपते स्वर में बोली – “क्योंकि मान्यवर, तलाक देकर मैं इन्हें आजाद नहीं करना चाहती। इन्हें भी वह दर्द महसूस करना होगा जो मैंने सालों तक सहा है। अगर मैं अकेली जली हूं, तो इन्हें भी इस आग की तपिश झेलनी होगी।”

पूरा कमरा स्तब्ध हो गया। लोग एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे। किसी ने धीमे स्वर में कहा – “यह तो बदला लेने की बात है।”
रोहन कांप रहा था। उसके होठ हिल रहे थे लेकिन शब्द निकल नहीं रहे थे।
आखिरकार जमीन पर घुटनों के बल बैठते हुए बोला – “मान्यवर, अगर मेरी गलती यही है कि मैं हालात में फंसकर वक्त नहीं दे पाया, तो मुझे सजा दे दीजिए। लेकिन मेरी बच्ची को मां से अलग मत कीजिए, क्योंकि जो प्यार मैं नहीं दे सका, वो मेरी बेटी को जरूर मिलना चाहिए।”

उसकी आवाज पूरे कोर्टरूम में गूंज गई। भीड़ में कई लोग आंसू पोंछने लगे।

अदालत की गहराई

जज ओमकार त्रिपाठी ने गहरी सांस ली – “यह मामला अब और गहराई में जाएगा। अदालत हर सच जानना चाहेगी, क्योंकि यहां सिर्फ एक पति-पत्नी का नहीं, बल्कि इंसानियत का इम्तिहान हो रहा है।”

कोर्ट में एक अजीब सी खामोशी थी। दीवारें भी रोहन की आवाज और नैना के आरोपों को अपने भीतर समेटे हुए थीं।

रोहन के वकील संदीप शुक्ला खड़े हुए – “मान्यवर, अब तक केवल नैना जी ने अपने दर्द की तस्वीर अदालत के सामने रखी है। लेकिन सच हमेशा एकतरफा नहीं होता। मेरे मुवकिल के जीवन की कुर्बानियों और त्याग को देखे बिना इस रिश्ते का न्याय अधूरा रहेगा।”

जज ने दस्तावेज उठाए, कुछ देर तक पढ़ते रहे।
“यह क्या है, मिस्टर शुक्ला?”

संदीप ने दृढ़ आवाज में कहा – “मान्यवर, यह कंपनी का ऑफर लेटर है जिसमें रोहन वर्मा को बेंगलुरु में सालाना ₹5 लाख की नौकरी दी जा रही थी। लेकिन इन्होंने यह सुनहरा अवसर सिर्फ इसलिए ठुकरा दिया ताकि पत्नी अपने माता-पिता और शहर से दूर ना जाए। यह त्याग कोई मामूली बात नहीं है।”

भीड़ में हलचल मच गई। “इतना बड़ा मौका छोड़ दिया!”
जज ने नैना की ओर देखा – “क्या यह सच है?”

नैना की आंखें झुक गईं। होठ कांपे लेकिन कोई शब्द नहीं निकला। उसकी चुप्पी ही उसकी गवाही बन गई।

रोहन की आंखों से आंसू छलक पड़े। भारी आवाज में कहा – “मान्यवर, मैंने सोचा था कि अगर मेरी पत्नी खुश रहेगी तो यही मेरी सबसे बड़ी सफलता होगी। मैंने अपनी आकांक्षाएं दबा दीं। लेकिन आज वही इंसान मुझे यह कह रही है कि मैंने उसके सपनों को कुचल दिया। क्या प्यार का मतलब यह नहीं कि एक-दूसरे के लिए अपनी इच्छाओं को त्याग दिया जाए?”

भीड़ अब दो हिस्सों में बंट चुकी थी – कुछ नैना को दोषी ठहरा रहे थे, कुछ रोहन की खामोशी को कमजोरी मान रहे थे।

नैना की आत्मा की पुकार

नैना ने अचानक सिर उठाया। आंखों में आंसू, आवाज में सख्ती – “हां, इसने त्याग किया होगा। लेकिन क्या कभी मुझसे पूछा कि मैं क्या चाहती हूं? मैं अपने सपनों का गला घोंट कर जीती रही। जब मैंने अपना छोटा सा बिजनेस शुरू करने की सोची, तो इन्होंने कहा – अभी वक्त ठीक नहीं है। हर बार यही कहा गया – कभी वक्त ठीक नहीं था, कभी हालात ठीक नहीं थे। और इसी इंतजार में मेरी पूरी जवानी निकल गई। मान्यवर, त्याग का मतलब यह नहीं कि सामने वाला खुश भी हो।”

पूरा कमरा चुप हो गया, क्योंकि सच दोनों तरफ था – एक ने सपनों का त्याग किया, दूसरे ने अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ी।

जज ने गहरी सांस ली – “यह अदालत किसी एक को देवता और दूसरे को दोषी नहीं ठहराएगी। अदालत सच्चाई को तौलना चाहती है, इसके लिए जरूरी है कि दोनों पक्ष अपनी-अपनी सच्चाइयां खुलकर सामने रखें।”

रोहन कांपते स्वर में बोला – “मान्यवर, मेरी एक ही गुजारिश है – मुझे सजा दीजिए, मुझे गलत कहिए, लेकिन मेरी बच्ची को मां से मत छीनेगा। क्योंकि मैंने अपनी पत्नी को चाहे जैसा भी दुख दिया हो, पर मेरी बच्ची को उसका हक मिलना चाहिए।”

यह कहते ही उसकी आवाज टूट गई। पूरा कमरा एक बार फिर सिसकियों में डूब गया। सबके चेहरों पर बेचैनी साफ झलक रही थी – मानो हर कोई यह जानना चाहता हो कि आखिर यह लड़ाई कहां जाकर थमेगी।

मां की गवाही

तभी नैना की मां सुधा देवी अचानक खड़ी हो गईं। आंखों में आंसू, आवाज में गुस्से की आग।
“मान्यवर, मेरी बेटी ने बहुत सहा है लेकिन शायद वह सब कुछ कह नहीं पा रही है। मैं आपको वह सच बताना चाहती हूं जो सालों से मेरे दिल में बोझ बनकर दबा हुआ है।”

जज ने अधिकारी को इशारा किया – “उन्हें बोलने दीजिए, आखिरकार वह इस मामले का हिस्सा हैं।”

सुधा देवी कांपते कदमों से आगे बढ़ीं – “मान्यवर, मेरी बेटी का सबसे बड़ा दर्द यह नहीं कि उसे कभी घुमाने नहीं ले जाया गया या उसके सपनों को दबाया गया। उसका असली दर्द तो यह है कि उसके सबसे बड़े दुख के समय भी उसका पति उसके साथ नहीं था। जब उसके पिता का निधन हुआ, पूरा परिवार बिखर गया था और हमें सहारे की सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब यह आदमी अपनी नौकरी के बहाने वहां मौजूद नहीं था। जब तक यह लौटा, सब कुछ खत्म हो चुका था।”

आवाज कांप रही थी, आंसू गालों पर बह रहे थे। पूरा कमरा स्तब्ध हो गया। लोग आपस में कानाफूसी करने लगे – “यह तो बहुत बड़ा झटका रहा होगा।”

जज ने रोहन की ओर तीखी नजर से देखा – “क्या यह सच है?”

रोहन ने भारी सांस ली – “हां, मान्यवर, यह सच है। लेकिन मेरी मजबूरी भी उतनी ही कड़ी थी। उसी दिन मेरी कंपनी का वार्षिक ऑडिट था। अगर मैं वहां मौजूद ना होता, तो ना केवल मेरी नौकरी जाती, बल्कि पूरा परिवार आर्थिक संकट में डूब जाता। मैंने सोचा था कि परिवार के लिए किया गया यह त्याग उन्हें समझ आएगा। लेकिन शायद मेरी गैर-मौजूदगी हमेशा उनके दिल में एक जख्म बनकर रह गई।”

भीड़ में बैठे कुछ लोग सिर हिलाने लगे – कुछ की आंखों में सहानुभूति थी, कुछ में गुस्सा।

नैना की आंखें छलक पड़ीं। फूटते हुए कहा – “मान्यवर, मुझे उस दिन सिर्फ अपने पति का सहारा चाहिए था। कोई बड़ी दौलत, कोई बड़ी नौकरी नहीं। लेकिन यह आदमी वहां नहीं था। उसी दिन महसूस किया कि इस रिश्ते की डोर अब सिर्फ एक तरफ़ा रह गई है।”

आवाज कांप रही थी, आंसुओं से भीगी साड़ी के पल्लू से चेहरा पोंछ रही थी। पूरा माहौल भावनाओं से भर गया था।

अदालत का फैसला

जज ने हथौड़ा मेज पर पटका – “अदालत समझती है कि सच्चाई दोनों तरफ है। एक ओर पत्नी की उपेक्षा और तन्हाई है, दूसरी ओर पति की मजबूरियां और त्याग। लेकिन यह अदालत फैसला करने से पहले देखना चाहती है कि क्या इन दोनों के बीच अभी भी वह धागा बचा है, जो रिश्तों को जोड़ सकता है या फिर यह धागा पूरी तरह टूट चुका है।”

उनके शब्दों ने पूरे कमरे को सन्नाटे में डुबो दिया। जैसे अब हर कोई उस निर्णायक पल का इंतजार कर रहा हो, जब यह कहानी अपने अंजाम की ओर बढ़ेगी।

जज ओमकार त्रिपाठी ने अपने सामने रखी फाइलें धीरे से बंद कीं, ऐनक उतार कर मेज पर रख दी। आंखों में गंभीरता, आवाज में गहराई – “यह अदालत जानती है कि ना तो यह पत्नी पूरी तरह गलत है और ना यह पति पूरी तरह निर्दोष। सच दोनों तरफ बंटा हुआ है। दर्द भी दोनों ने सहा है और गलती भी दोनों से हुई है।”

“इसलिए यह अदालत तलाक देने या ना देने का फैसला तुरंत नहीं करेगी। बल्कि पहले यह देखना चाहेगी कि क्या इन दोनों के बीच वह प्रेम अब भी जिंदा है, जिसे सालों की गलतफहमियों ने ढक दिया है।”

उन्होंने अधिकारी को इशारा किया – वह बड़ा सा कांच का जार लाकर मेज पर रख दिया, जिसे पिछले महीने भर दोनों को अदालत ने भरने का आदेश दिया था। हर दिन एक-दूसरे के बारे में एक याद, एक तकलीफ या एक अच्छी बात लिखकर उसमें डालनी थी। अब वही जार इस मुकदमे का सबसे बड़ा गवाह बन चुका था।

जज बोले – “अब तुम दोनों इस जार से एक-एक पर्ची निकालो और अदालत में पढ़ो, ताकि सबको पता चल सके कि नफरत के पीछे अब भी कितनी मोहब्बत दबी हुई है।”

यादों की जार

रोहन कांपते हाथों से एक पर्ची निकाला, आंखें भर आईं।
धीमे स्वर में पढ़ना शुरू किया –
“मुझे याद है, जब मैं पहली बार बीमार पड़ा था और कई रातों तक बुखार में तपता रहा। तब तुमने पूरी रात मेरे माथे पर ठंडी पट्टियां रखी, बिना सोए, बिना थके। उस दिन मुझे लगा था कि अगर इस दुनिया में कोई मेरा अपना है, तो वह सिर्फ तुम हो।”

कोर्टरूम में सिसकियां गूंज उठीं। नैना की आंखें भी नम हो गईं।
अब नैना ने पर्ची निकाली, हाथ कांप रहे थे।
पढ़ा –
“याद है रोहन, जब मेरा पहला इंटरव्यू था और मैं डर से कांप रही थी, तब तुमने मेरा हाथ पकड़कर कहा था – अगर दुनिया तुम्हें ना कहेगी, तब भी मैं हमेशा तुम्हें ‘हां’ कहूंगा। उस दिन मुझे लगा था कि मेरे पास दुनिया का सबसे बड़ा सहारा है।”

आवाज टूट गई, आंसू छलक पड़े। पूरा कमरा भावुक हो गया।

जज ने गहरी सांस ली – “देखा, तुम दोनों ने जिस रिश्ते को तोड़ना चाहते हो, उसकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि आज भी उनमें प्यार की नमी है। अदालत मानती है कि तलाक तुम्हारा समाधान नहीं है, बल्कि तुम्हें एक-दूसरे को समझने और नया मौका देने की जरूरत है।”

नई शुरुआत

रोहन रोते हुए नैना के सामने घुटनों पर बैठ गया – “मुझे माफ कर दो नैना, मैं तुम्हारी हर शिकायत मिटाऊंगा। तुम्हारे सपनों को पूरा करने में तुम्हारे साथ खड़ा रहूंगा। बस एक बार फिर मुझे अपना कह दो।”

नैना सिसकियों में डूबी हुई उसके पास आई, गालों को अपने हाथों से थामा – “मुझे भी माफ कर दो रोहन, मैंने अपने गुस्से और दुख में तुम्हारे प्यार को कभी पहचान ही नहीं पाया। लेकिन अब मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती।”

दोनों एक-दूसरे के गले लगकर रो पड़े। उस आलिंगन में जैसे सालों का दर्द, शिकायतें और गलतफहमियां बह गईं।

जज ने हथौड़ा मेज पर पटका – “यह अदालत आदेश देती है कि अब से यह पति-पत्नी ना तलाक की बात करेंगे, ना अलग रहने की। बल्कि साथ रहकर अपने रिश्ते को एक नया मौका देंगे। क्योंकि असली इंसाफ यही है।”

पूरा कमरा तालियों से गूंज उठा, हर किसी की आंखें नम थीं। जैसे हर कोई अपने रिश्तों की झलक इस फैसले में देख रहा हो।

सीख

दोस्तों, यह कहानी हमें यही सिखाती है कि रिश्तों में जीत या हार का सवाल नहीं होता। वहां सिर्फ समझ, भरोसा और धैर्य मायने रखते हैं।
तलाक लेना आसान है, लेकिन किसी रिश्ते को जोड़कर निभाना सबसे कठिन और सबसे बड़ा काम है।

अब सवाल आपसे –
अगर आप नैना और रोहन की जगह होते, तो क्या तलाक लेकर आगे बढ़ जाते या फिर रिश्ते को एक और मौका देकर उसे बचाने की कोशिश करते?
कमेंट में जरूर बताइए।
आपका जवाब किसी और की जिंदगी बदल सकता है।

मिलते हैं अगले वीडियो में।
तब तक खुश रहिए, अपनों के साथ रहिए और रिश्तों की कीमत समझिए।

जय हिंद!