“भेष बदलकर निकली DM पूजा और पकड़ा सिस्टम का गंदा सच |

प्रस्तावना

शहर की सुबह हमेशा शोरगुल भरी रहती थी। हर कोई अपने-अपने काम में व्यस्त, अपनी-अपनी ज़िंदगी की जद्दोजहद में डूबा हुआ। लेकिन आज की सुबह कुछ अलग थी। सिटी लाइफ हॉस्पिटल के सामने भीड़ लगी थी, मीडिया के कैमरे चमक रहे थे, पुलिस की गाड़ियाँ खड़ी थीं और हर किसी की नज़र अस्पताल के दरवाज़े पर थी। इस शहर का सबसे बड़ा बिजनेस टाइकून सोनू सिंघानिया अस्पताल के अंदर ज़िंदगी और मौत के बीच लड़ रहा था। लेकिन आज की कहानी सोनू सिंघानिया की नहीं, बल्कि उस लड़के की है, जो अस्पताल के सामने अपने पिता की छोटी सी चाय की टपरी पर चाय बेचता था – रवि कुमार।

रामलाल की टपरी

रवि के पिता, रामलाल, पिछले तीस साल से उसी टपरी पर चाय बेचते थे। सुबह के छह बजे से ही उनकी टपरी पर अदरक और इलायची वाली चाय की खुशबू फैल जाती थी। रामलाल के हाथों में उम्र की लकीरें थीं, लेकिन आँखों में अपने बेटे के लिए सपने थे। रवि, उनका इकलौता बेटा, मेडिकल कॉलेज में पढ़ता था। कार्डियोलॉजी में टॉप करता था, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि उसे कॉलेज के बाद टपरी पर आकर पिता का हाथ बँटाना पड़ता था।

रवि का सपना था डॉक्टर बनना, बड़े अस्पताल में काम करना, गरीबों का मुफ्त इलाज करना। लेकिन उसकी ज़िंदगी संघर्षों से भरी थी। वह दिन में किताबें पढ़ता, रात में चाय बनाता। उसके दोस्त मज़ाक उड़ाते, “डॉक्टर बनेगा या चायवाला रहेगा?” लेकिन रवि की आँखों में उम्मीद थी।

अस्पताल की हलचल

एक दिन, दोपहर के वक्त, शहर में अफरा-तफरी मच गई। काली गाड़ियों का काफिला अस्पताल के सामने रुका। बॉडीगार्ड्स ने घेरा बना लिया। सोनू सिंघानिया, शहर का सबसे ताकतवर आदमी, गाड़ी से उतरा। उसके चेहरे पर डर था, सीने में दर्द था। वह लड़खड़ाता हुआ अस्पताल के अंदर गया और अचानक गिर पड़ा। डॉक्टरों ने उसे तुरंत आईसीयू में शिफ्ट किया। मीडिया वालों ने खबर चला दी – सोनू सिंघानिया को दिल का दौरा पड़ा है।

अस्पताल के डीन, डॉक्टर खन्ना, और उनकी टीम ने रिपोर्ट देखी। सोनू सिंघानिया का हार्ट पूरी तरह ब्लॉक हो चुका था। आर्टरीज़ इतनी कमजोर थीं कि बाईपास सर्जरी भी संभव नहीं थी। डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए। “अगर हमने सर्जरी की, तो मरीज टेबल पर ही मर जाएगा। अगर कुछ नहीं किया, तो अगले बीस मिनट में मर जाएगा।”

सोनू सिंघानिया के सेक्रेटरी ने डॉक्टर का कॉलर पकड़ लिया। “अगर साहब को कुछ हुआ, तो अस्पताल श्मशान बन जाएगा।” डॉक्टर डर गए। मीडिया बाहर शोर कर रही थी, अंदर मौत का साया मंडरा रहा था।

रवि की चुनौती

रवि बाहर खड़ा सब देख रहा था। उसने मेडिकल की पढ़ाई की थी, उसे पता था कि हार्ट अटैक मामूली नहीं था। उसके दिमाग में एक तकनीक थी, जो उसने एक रूसी मेडिकल जर्नल में पढ़ी थी। उसने सोचा, “अगर आज मैंने कोशिश नहीं की, तो मेरी सारी पढ़ाई बेकार है।”

रवि भागा, सिक्योरिटी गार्ड्स को चकमा देकर रिसेप्शन तक पहुँचा। वहाँ अफरा-तफरी थी। “सोनू सिंघानिया कौन से रूम में है?” रिसेप्शनिस्ट ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। “तुम चायवाले हो? यहाँ से भागो!” रवि ने कहा, “मैं मेडिकल स्टूडेंट हूँ। मैं जान बचा सकता हूँ।”

स्टाफ और बॉडीगार्ड्स हँसने लगे। “शहर के बड़े डॉक्टर हार मान गए, और तू इलाज करेगा?” लेकिन रवि ने हार नहीं मानी। उसने ज़ोर से कहा, “डॉक्टर खन्ना रेट्रोग्रेड परक्यूटेनियस कोरनरी इंटरवेंशन से डर रहे हैं। लेकिन मैं जानता हूँ कि उसे बिना फाड़े कैसे करना है।”

डॉक्टर खन्ना ने उसकी बात सुनी। “तुमने क्या कहा? तुम्हें इसकी जानकारी कैसे है?” रवि बोला, “सर, मैं आपका ही स्टूडेंट हूँ। आपने क्लास में कहा था, जब सारे रास्ते बंद हो जाएँ, तो असंभव रास्ता चुनना चाहिए।”

सोनू सिंघानिया का राइट हैंड, शेरा, आगे आया। “अगर ये लड़का कहता है कि कर सकता है, तो इसे अंदर जाने दो। लेकिन अगर बॉस को कुछ हुआ, तो तेरा बाप तेरी लाश के टुकड़े देखेगा।”

रवि ने एक गहरी साँस ली। “मंजूर है। लेकिन अगर मैंने बचा लिया, तो कोई मेरे काम में दखल नहीं देगा।”

ऑपरेशन थिएटर का रोमांच

रवि को ऑपरेशन थिएटर ले जाया गया। डॉक्टरों की टीम वहाँ थी। “यह पागलपन है,” एक सर्जन बोला। “अगर मरीज मर गया, तो हम सब मारे जाएँगे।” डॉक्टर खन्ना बोले, “अभी भी वक्त है, पीछे हट जाओ।” लेकिन रवि ने अपनी आँखें बंद कीं, पिता का चेहरा याद किया, और सर्जिकल गाउन पहन लिया।

एंजियोग्राफी की स्क्रीन पर साफ दिख रहा था – लेफ्ट मेन कोरनरी आर्टरी पूरी तरह ब्लॉक थी। “विडो मेकर,” डॉक्टर बोले। “यहाँ ब्लॉकेज हो तो बचने की उम्मीद नहीं होती।” रवि ने बारीक वायर लिया। “मैं रेट्रोग्रेड अप्रोच से कोलैटरल वेसल्स के जरिए ब्लॉकेज तक पहुँचूँगा।”

डॉक्टर डर गए। “कोलैटरल नसें बहुत कमजोर हैं। अगर एक भी फटी, तो इंटरनल ब्लीडिंग हो जाएगी।” लेकिन रवि रुका नहीं। उसके हाथ जादूगर की तरह चल रहे थे। उसने हजारों बार सिमुलेशन वीडियो देखे थे।

बीप… बीप… बीप… मॉनिटर की आवाज तेज हो गई। अचानक अलार्म बजा। “बीपी गिर रहा है!” डॉक्टर चिल्लाए। “रुको!” लेकिन रवि ने डॉक्टर को पीछे धकेल दिया। “अगर अभी रुके, तो मरीज मर जाएगा।”

रवि ने सीक्रेट तकनीक आजमाई। आमतौर पर डॉक्टर वायर को सीधा घुमाते हैं, लेकिन रवि ने नकलिंग तकनीक से कमजोर नसों के बीच से फिसलाया। पसीना उसके माथे पर था, लेकिन उसने पलक नहीं झपकाई। बाहर शेरा की बंदूक, पिता की उम्मीद, सब उस बारीक तार पर टिके थे।

“वायर क्रॉस हो गया है!” रवि बोला। सबने स्क्रीन देखी। सच में वायर ब्लॉकेज के पार निकल चुका था। डॉक्टर खन्ना की आँखें फटी रह गईं। “असंभव!”

मॉनिटर की लकीर ऊपर उठी। बीप… बीप… बीप… रिदम वापस आ गया। ब्लड फ्लो 100%। बीपी स्टेबल। नर्स खुशी से चिल्लाई। रवि के पैर काँप रहे थे, डर के नहीं, बल्कि एड्रिनालाइन के उतरने के कारण।

डॉक्टर खन्ना मुस्कुराए। “बेटा, मैंने अपने 30 साल के करियर में ऐसा हाथ नहीं देखा। तुमने सिर्फ सिंघानिया को नहीं बचाया, मेडिकल साइंस का सम्मान बचाया है।”

हीरो या मुजरिम?

सर्जरी खत्म हुई। रवि ने गाउन उतारा, अपने पुराने कपड़े पहने। बाहर लॉबी में भीड़ थी। पुलिस, मीडिया, सिंघानिया के गुंडे, और एक कोने में पिता रामलाल। सबकी नज़र दरवाज़े पर थी। शेरा आगे आया। “क्या हुआ? जिंदा है या…” रवि ने शेरा की आँखों में देखा। “सिंघानिया खतरे से बाहर हैं।”

डॉक्टर खन्ना ने घोषणा की, “यह चमत्कार इस लड़के ने किया है।” मीडिया वाले रवि की तरफ दौड़े। कैमरे चमकने लगे। शेरा ने सबको हटाया। वह रवि के पैरों में झुक गया। “डॉक्टर साहब, आपने मेरे भगवान को बचा लिया। आज से मैं आपका गुलाम हूँ।”

रवि ने उसे उठाया। “मुझे गुलाम नहीं चाहिए। बस मेरे पापा को घर जाने दीजिए।”

रामलाल दौड़कर रवि को गले लगा लिया। “मेरा बेटा, मेरा डॉक्टर बेटा!”

लेकिन कहानी अभी खत्म नहीं हुई थी। अस्पताल का मैनेजमेंट परेशान था। “रवि ने बिना लाइसेंस के सर्जरी की है, यह कानूनन जुर्म है।” पुलिस आई। इंस्पेक्टर विक्रम ने रवि को गिरफ्तार कर लिया। “इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट का उल्लंघन किया है।”

रामलाल पुलिस के पैरों में गिर पड़े। “साहब, मेरे बेटे ने जान बचाई है।” इंस्पेक्टर बोले, “कानून भावनाओं से नहीं चलता।”

शेरा बीच में आया। “पहले मुझसे निपटना होगा।” रवि ने शेरा को रोक दिया। “कानून को अपना काम करने दो। मैंने जो किया सही था, इसका फैसला वक्त करेगा।”

रवि को जेल भेज दिया गया। मीडिया ने खबर चलाई – “जान बचाने की सजा, जेल।”

जन आंदोलन और सिंघानिया की वापसी

अगले 48 घंटे शहर के लिए भारी थे। रवि के समर्थन में प्रदर्शन होने लगे। “रवि को रिहा करो!” कोर्ट की प्रक्रिया चल रही थी। रवि हवालात में बैठा था। उसकी आँखों में कोई पछतावा नहीं था। उसे बस सुकून था कि उसने पिता का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया।

तीसरे दिन सुबह, अस्पताल के वीआईपी सूट में हलचल हुई। सोनू सिंघानिया को होश आ गया। उसने पानी माँगा। “मैं जिंदा हूँ?” डॉक्टर रस्तोगी बोले, “जी सर, यह हमारे हॉस्पिटल की वर्ल्ड क्लास फैसिलिटी का नतीजा है।”

सिंघानिया ने डॉक्टर को घूरा। “झूठ मत बोलो। मुझे याद है, तुम सब घबराए हुए थे। मुझे बचाने वाला कौन है?”

सेक्रेटरी बोला, “सर, जिसने आपको बचाया, वो चायवाले का बेटा है। वह जेल में है।”

सिंघानिया गुस्से में आ गया। “जिसने मेरी जान बचाई, वह जेल में है?” शेरा से बोला, “कमिश्नर को फोन लगाओ। उस लड़के को बाइज्जत यहाँ लाओ।”

आधे घंटे में रवि की जमानत हो गई। शाम को रवि को अस्पताल लाया गया। इस बार हथकड़ियों में नहीं, बल्कि एक हीरो की तरह।

नया जीवन, नया सपना

रवि को सिंघानिया के कमरे में ले जाया गया। वहाँ शहर के बड़े लोग थे। सिंघानिया ने रवि का हाथ पकड़ा। “तुमने मुझे नई ज़िंदगी दी है। मैं इसकी कीमत नहीं चुका सकता, लेकिन मैं तुम्हें एक मौका देना चाहता हूँ। मेरी फार्मास्यूटिकल कंपनी है, मैं शहर में नया हॉस्पिटल खोलने वाला हूँ। मैं चाहता हूँ तुम मेरे हॉस्पिटल के सीईओ बनो। पढ़ाई का खर्चा मैं उठाऊँगा।”

सब हैरान थे। “सर, मुझे बिजनेस का अनुभव नहीं है। मैं डॉक्टर बनना चाहता हूँ।”

सिंघानिया हँसा, “बिजनेस मैं सिखा दूँगा। तुम बस इंसानियत जिंदा रखना। डॉक्टर बहुत हैं, हीलर कम हैं।”

रवि की आँखों में आँसू आ गए। उसने पिता को देखा। रामलाल की छाती गर्व से फूल गई थी।

छह साल बाद…

छह साल बाद, शहर के बीचोंबीच “रामलाल मेडिसिटी” नामक हॉस्पिटल खड़ा था। वहाँ गरीबों का इलाज मुफ्त होता था। आलीशान केबिन में सूट-बूट पहने रवि, सीईओ एंड मैनेजिंग डायरेक्टर, फाइलों पर साइन कर रहा था। इंटरकॉम बजा – “सर, मीटिंग के लिए सब तैयार हैं।”

रवि खिड़की के पास गया। सड़क पार पिता रामलाल एक सुंदर टी कैफे चला रहे थे। अब मजबूरी नहीं, शौक के लिए। रवि मुस्कुराया, कोट का बटन लगाया और बाहर निकल गया। उसने दुनिया को दिखा दिया – इंसान की पहचान कपड़ों या बाप की हैसियत से नहीं, बल्कि काबिलियत और हौसले से होती है।

सीख

हर मुश्किल घड़ी में हौसला, मेहनत और सच्चाई ही इंसान को उसकी मंजिल तक पहुँचाती है। रवि की कहानी उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।