“जब IPS रिया को थप्पड़ पड़ा — फिर जो हुआ, उसने सिस्टम हिला दिया!”

.

.

हाईवे की राखी

सुबह के आठ बज रहे थे। सूरज की किरणें धीरे-धीरे धूल भरे हाईवे पर उतर रही थीं। दूर तक फैली सड़क पर धूल का बादल छाया था। सैकड़ों ट्रक उस रास्ते से रोज़ गुज़रते थे—किसी में अनाज, किसी में सब्ज़ियाँ, किसी में माल और किसी में मजदूरों के सपने।

उसी रास्ते पर एक बड़ा ट्रक चल रहा था, नंबर प्लेट पर लिखा था — RJ-29 GA 5478
स्टीयरिंग पर था विक्रम सिंह, 35 साल का मेहनतकश ट्रक ड्राइवर। चेहरे पर पसीने की धार, आंखों में थकान और माथे पर जिम्मेदारी की लकीरें।

विक्रम का घर राजस्थान के एक छोटे से गाँव में था। दो छोटे बच्चे, बूढ़ी माँ और बीमार पत्नी। यह ट्रक ही उसकी दुनिया थी। वही उसकी रोज़ी, वही उसका भविष्य।

वह मन ही मन बड़बड़ाया,
“बस आज का माल सही सलामत पहुंचा दूं, तो अगले हफ्ते माँ की दवाई और बच्चों की फीस भर दूंगा।”

ट्रक में टमाटर और आलू के बोरे लदे थे।
रात भर जागकर वह जोधपुर से चला था। अब वह जयपुर की तरफ बढ़ रहा था। तभी दूर से उसे पुलिस की वर्दी दिखी—एक चेक पोस्ट

वह हल्का-सा घबराया।
उसने सुना था कि इस रास्ते पर इंस्पेक्टर राव नाम का अधिकारी तैनात है—जो हर ट्रक से “टैक्स” के नाम पर रिश्वत वसूलता है।

विक्रम बुदबुदाया, “हे भगवान, आज तो बख्श देना।”

ट्रक जैसे ही चेक पोस्ट के पास पहुँचा, सामने खड़ा इंस्पेक्टर राव बोला—
“ओए, ट्रक साइड कर! रोक!”

विक्रम ने ब्रेक लगाई, ट्रक साइड में रोका और नीचे उतरा।
“साहब, नमस्ते। ये रहे सारे कागज—लाइसेंस, परमिट, बिल सब ठीक है।”

इंस्पेक्टर ने कागज देखे, फिर मुस्कुराया।
“सब ठीक है? अच्छा… फिर निकाल ₹5000।”

विक्रम चौंका, “पाँच हजार? किस बात के, साहब? सब डॉक्यूमेंट सही हैं।”

राव बोला, “यहाँ से जो भी ट्रक गुजरता है, उसे हाईवे टैक्स देना पड़ता है। रोज़ का नियम है। और ज्यादा बोल तो ट्रक यहीं रहेगा।”

बाकी पुलिसवाले हँस पड़े।
विक्रम ने हाथ जोड़कर कहा, “साहब, मैं गरीब आदमी हूँ। बस दो हज़ार हैं, वो भी डीज़ल के लिए।”

राव गरजा, “तू नियम सिखाएगा हमें? निकाल पैसे वरना ट्रक सीज़ कर दूँगा।”
और जब विक्रम ने फिर भी मना किया, उसने एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।

विक्रम की आंखों में आँसू आ गए। ट्रक सड़क के किनारे खड़ा था, और वह हार चुका था।
“हे भगवान, अब क्या होगा… परिवार का क्या होगा?” वह बुदबुदाया और चल पड़ा।


दृश्य 2 : मुलाक़ात

उसी वक्त पीछे से एक बुलेट बाइक की आवाज़ आई। बाइक पर सवार थी रिया ठाकुर, 30 साल की आईपीएस अधिकारी। सलीकेदार वर्दी, तेज निगाहें, और चेहरे पर सख्ती।

वह अपनी रुटीन इंस्पेक्शन पर जा रही थी, जब उसने सड़क किनारे एक आदमी को रोते हुए देखा।
बाइक रोककर बोली, “क्या हुआ भाई? क्यों रो रहे हो?”

विक्रम ने हाथ जोड़कर कहा, “सब खत्म हो गया, मैडम। ट्रक रोक लिया उन्होंने। बोले बिना रिश्वत दिए नहीं जाने देंगे। मैंने मना किया, तो थप्पड़ मारा। परिवार भूखा है।”

रिया की आँखों में गुस्से की लपटें उठीं।
“नाम क्या है उस इंस्पेक्टर का?”
“राव… इंस्पेक्टर राव।”

रिया ने बाइक स्टार्ट की, “तुम चिंता मत करो। आज किसी गरीब को कोई नहीं लूटेगा।”


दृश्य 3 : गुप्त मिशन

ऑफिस पहुँचते ही रिया ने अपनी टीम बुलाई।
“आज रात हम एक अंडरकवर ऑपरेशन करेंगे। मैं खुद ट्रक ड्राइवर बनूँगी। देखती हूँ ये राव कितना बड़ा शेर है।”

उसने वर्दी उतारी, साधारण सलवार सूट पहना, चेहरे पर धूल लगाई, और ट्रक ड्राइवर जैसा रूप बनाया।
उसने एक पुराना ट्रक लिया, उसमें माल भरा और कैमरे छिपाए।

रात ढलते ही वह निकल पड़ी—सीधे उसी चेक पोस्ट की तरफ।


दृश्य 4 : मुकाबला

इंस्पेक्टर राव वहीँ खड़ा था।
“ओए, लड़की ट्रक चला रही है! नीचे उतर!”

रिया ने ट्रक रोका, कागज दिखाए।
“साहब, सब डॉक्यूमेंट सही हैं। चेक कर लीजिए।”

राव ने ताना मारा,
“डॉक्यूमेंट सही हैं, लेकिन हमारा काम सिर्फ कागज देखना नहीं है। ₹10,000 निकाल, वरना ट्रक यहीं रहेगा।”

रिया ने ठंडे स्वर में कहा,
“साहब, मेरे सारे कागज़ सही हैं। पैसे क्यों?”

राव हँस पड़ा, “यहाँ के नियम हम बनाते हैं। लड़की होकर ट्रक चला रही है, ये भी गैरकानूनी है।”

दूसरे पुलिसवाले बोले,
“अरे बहन, घर में रोटी बेलो, ये काम तेरे बस का नहीं।”

वह सब कुछ अपने रिकॉर्डिंग डिवाइस में कैद कर रही थी।
फिर बोली, “अगर आपने ये सब नहीं रोका, तो मैं कोर्ट तक जाऊँगी।”

राव गरजा, “तू हमें धमकी दे रही है?”
उसने अपने आदमियों को इशारा किया, “तलाशी लो ट्रक की!”

रिया का दिल धक-धक करने लगा। ट्रक में कैमरे और वायरलेस लगे थे। लेकिन जब एक पुलिसवाले ने कहा “कुछ नहीं मिला,” तो उसने राहत की सांस ली।

फिर अचानक उसने अपना आईडी कार्ड निकाला और राव के सामने फेंका—
“मैं आईपीएस रिया ठाकुर हूँ!”

चारों ओर सन्नाटा छा गया।

रिया ने चिल्लाकर कहा, “अब दिखाओ तुम्हारा नियम!”

उसी वक्त सायरन बजा—CBI और एंटी करप्शन ब्यूरो की गाड़ियाँ आ पहुँचीं।
सारे पुलिसवालों को घेर लिया गया।

राव हक्का-बक्का रह गया।
रिया आगे बढ़ी, “तुमने गरीबों की रोटी छीनी है, अब जेल में सड़ेगा!”

हथकड़ियों की खनक गूंजी, हाईवे की हवा थम गई।


दृश्य 5 : अदालत का दिन

दो हफ्ते बाद।
जिला कोर्ट में केस की सुनवाई चल रही थी।
जज, वकील, मीडिया और जनता—सब मौजूद थे।

कटघरे में इंस्पेक्टर राव सिर झुकाए खड़ा था।
रिया गवाह के तौर पर बुलाई गई। उसने शांत स्वर में कहा,
“महोदय, यह सिर्फ घूस का मामला नहीं था, यह गरीबों की मेहनत पर डाका था। ये लोग ड्राइवरों को डराते, महिलाओं का अपमान करते और कानून का मज़ाक उड़ाते थे।”

उसने रिकॉर्डिंग डिवाइस निकाला।
कोर्ट रूम में वीडियो चला—राव की आवाज़ गूंजी,
“लड़की होकर ट्रक चला रही है, गाड़ी जप्त कर लेंगे।”
दूसरा पुलिसवाला बोला,
“औरतों को सड़क पर नहीं, रसोई में रहना चाहिए।”

पूरा कोर्ट रूम सन्न रह गया।
जज का चेहरा सख्त हो गया।

“यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, महिला अपमान भी है,” जज ने कहा।
“दोषी अधिकारियों को 10 साल की सजा और 5 लाख रुपए का जुर्माना दिया जाता है।”

हथौड़े की आवाज़ गूंजी — टक!


दृश्य 6 : इंसाफ़ की सुबह

बाहर कोर्ट के गलियारे में विक्रम सिंह और दर्जनों ट्रक ड्राइवर खड़े थे।
जैसे ही रिया बाहर आई, लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट से उसका स्वागत किया।

विक्रम आगे बढ़ा, आँसू भरी आँखों से बोला,
“मैडम, आपने हमारा जीवन बदल दिया। अब कोई हमें लूट नहीं सकता।”

रिया मुस्कुराई,
“भाई, ये मेरा कर्तव्य था। अगर हम खामोश रहे, तो गलत हमेशा बढ़ेगा। अब हर ड्राइवर मेरी राखी वाला भाई है—जिसकी रक्षा मैं करूँगी।”

विक्रम ने झुककर उसके पैर छुए,
“भगवान आपको खुश रखे, मैडम। आपने पुलिस की वर्दी को फिर इज़्जत दी है।”

रिया ने आसमान की ओर देखा—
सूरज की किरणें फिर उसी हाईवे पर उतर रही थीं।
लेकिन आज हवा में धूल नहीं, न्याय की खुशबू थी।


एपिलॉग

कुछ महीने बाद वही चेक पोस्ट फिर से चालू हुआ—
इस बार वहाँ लिखा था,

“यहाँ कोई रिश्वत नहीं—यह हाईवे अब ईमानदारी का रास्ता है।”

रिया को राष्ट्रपति पदक मिला।
विक्रम अब छोटे ट्रक ड्राइवरों की यूनियन चलाता था।
हर साल 15 अगस्त को वह रिया के घर राखी लेकर जाता।
रिया कहती,
“इस हाईवे की राखी अब कभी नहीं टूटेगी।”


समाप्त।