हर चेहरे की पहचान: डॉ. वर्मा की कहानी

लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर usual हलचल थी। सफेद यूनिफार्म में स्टाफ, चहकते यात्री, बच्चों की चिल्लाहट, उड़ानों की अनाउंसमेंट – सबकुछ सामान्य। लेकिन उस दिन गेट नंबर तीन पर माहौल थोड़ा अलग था। वहाँ एक दुबले-पतले, झुर्रियों वाले कुर्ते और घिसी चप्पल पहने बुजुर्ग खड़े थे। हाथ में पुरानी थैली, चेहरे पर न शिकायत न उम्मीद।

लाइन में लगे लोग उन्हें देखकर टिप्पणियां कर रहे थे। एक युवक ने मजाक करते हुए दोस्त से बोला, “अब एयरपोर्ट पर भी भिखारी घुस आते हैं क्या। सुरक्षा है या मज़ाक?” बुजुर्ग चुपचाप अपनी बारी का इंतजार करते रहे। जैसे ही उनकी बारी आई, 28 साल का स्टाफ बोला, “कहाँ जा रहे हैं?” “फ्लाइट एआई 221 दिल्ली से पुणे,” बुजुर्ग ने शांत स्वर में कहा।

स्टाफ ने हँसते हुए जवाब दिया: “सर, भिखारियों को हम फ्लाइट में नहीं चढ़ा सकते। बाहर जाइये।” बुजुर्ग बोले कुछ नहीं, बस एक पल रुके, फिर लाइन से हट गये। एक सिक्योरिटी गार्ड उन्हें बाहर का रास्ता दिखाते हुए बोला, “बाबा जी, ये वीआईपी जगह है।”

बुजुर्ग रुक गये। जेब से फटा-सा आईडी कार्ड निकाला। नाम साफ-साफ लिखा था–– डॉक्टर रघुनाथ राव वर्मा, सीनियर एडवाइज़र, मिनिस्ट्री ऑफ सिविल एविएशन, भारत सरकार

“अपने सुपरवाइजर को नाम दिखाओ और पूछो, क्या मुझे जाने देना चाहिए था।” स्टाफ भौंचक्का रह गया। पांच मिनट में ही दृश्य बदल गया। इमरजेंसी सायरन बज उठे। अधिकारी भागे चले आये। टर्मिनल लॉक हो गया, फ्लाइट रुकी, मीडिया मौके पर पहुँची।

बुजुर्ग को फ्लाइट से उतार दिया गया क्योंकि उसके कपड़े फटे थे... लेकिन जब  उसने अपना नाम #storytales

अब सबके मन में सवाल था–– डॉ. आर. आर. वर्मा कौन हैं? तभी सिस्टम खोलने पर सामने आया–– “डॉ. रघुनाथ राव वर्मा: भारत सरकार के चीफ एविएशन एडवाइज़र, भारत रत्न, पद्म विभूषण, कई एयरपोर्ट्स के संस्थापक।”

अधिकारी, डायरेक्टर, सभी उनके पास आये। “सर, पहचान नहीं पाये, क्षमा करें!” –– झुककर सलाम किया गया। डॉ. वर्मा ने पहली बार सिर उठाया और कहा, “तुमने मुझे नहीं पहचाना, वह ठीक है। पर क्या किसी भी आम बुजुर्ग के साथ ऐसा व्यवहार सही है?”

मौन छा गया। सभी चेहरे शर्म से झुक गये। एयरलाइन के सीईओ को बुलाया गया, जिन्होंने स्टाफ को सस्पेंड करने और सुधार की बात कही।

डॉ. वर्मा ने अपनी डायरी निकाली, बोले, “मैं यहां सज्जा के लिये नहीं आया था। सिर्फ जानना चाहता था––– क्या आज भी देश अपने नागरिकों को हैसियत से नहीं, बल्कि कपड़ों से पहचानता है?”

फिर वे बिना कुछ बोले धीरे-धीरे वहां से चल दिए। भीड़ अपने-आप रास्ता देती जा रही थी। दिलों में शर्म-पछतावा और सीख थी: “हर चेहरा आम नहीं होता।”

मीडिया में तूफान आया। वीडियो वायरल, सोशल मीडिया पर #RespectTheRealHeroes और #SorryVermaSir ट्रेंड करने लगे। सुबह-सुबह हर न्यूज़ चैनल की हेडलाइन बदल चुकी थी: “भिखारी समझकर निकाला गया, निकला भारत का विमानन निर्माता…”

प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर व्यक्तिगत रूप से माफी माँगी और राष्ट्रपति भवन में डॉ. वर्मा का स्वागत हुआ। वही पुराने कुर्ते, वही घिसी चप्पल, वही डायरी –– लेकिन अब रेड कार्पेट और तालियों की गूंज।

डॉ. वर्मा बोले, “मैं सम्मान के लिए नहीं, सुधार के लिए बोल रहा हूं। हर गरीब दिखने वाला इंसान शक की निगाह से देखा जाता है। यह नजरिया बदलना चाहिए। मैं एक आम भारतीय का प्रतीक हूं, जिसे सिस्टम ने वर्षों से नजरअंदाज किया है।”

उनके शब्दों ने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया। उसी रात एयरलाइन ने संवेदनशीलता ट्रेनिंग और एयरपोर्ट अथॉरिटी ने बुजुर्गों–दिव्यांगों के लिये खास सुविधा की घोषणा कर दी। वाराणसी एयरपोर्ट पर एक बोर्ड लगाया गया: “इस टर्मिनल पर कोई आम नहीं, हर चेहरा खास है – डॉ. वर्मा की सीख”

यह कहानी केवल डॉ. वर्मा की नहीं, बल्कि हर उस चेहरे की है जिसे हम रोज अपनी नजरों से तौलते हैं। असली पहचान कपड़ों से नहीं, योगदान और इंसानियत से होती है।