जैसे ही बुजुर्ग ने टोपी उतारी – IPS की आंखें फटी रह गईं.. अंदर छुपा था ऐसा राज!.

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टूटे हुए लोग, मजबूत सच्चाई

सुबह का कोहरा धीरे-धीरे शहर के बड़े नगर विभाग के सामने छंट रहा था। इमारत के बाहर लंबी लाइन लगी थी, जहाँ लोग अपने दस्तावेज़ लेकर इंतजार कर रहे थे। लाइन के सबसे आखिरी में एक बुजुर्ग खड़ा था, जिसकी धूल भरी खाकी टोपी उसकी पहचान थी। लोग उसे ‘टोपी वाला’ कहते थे। उसका नाम राघवन तेज था, लेकिन शहर के लोग उसे शायद ही जानते थे। वह तेज़ शहर का सबसे शांत, सबसे अनसुना और सबसे मेहनती कचरा बिनने वाला था।

राघवन की जिंदगी में कभी कोई खुशी नहीं दिखी थी। उसने कभी किसी को हँसते या रोते नहीं देखा। बस झुके सिर से कचरा चुनता रहा। उसकी टोपी उसकी शान थी। कोई भी उसे बिना टोपी के नहीं देख पाया। आज उस दिन, उस बुजुर्ग की हवा कुछ अलग थी, जैसे उसके भीतर छुपा कोई गूंगा तूफान फूटने को हो।

लाइन में खड़ी 19 साल की इंटर्न लड़की अनवीरा दवे ने अपने दोस्त से फुसफुसाते हुए कहा, “यही है वह जो रोज कूड़ा उठाता है, लेकिन कभी टोपी उतारता नहीं।” दोस्त ने कहा, “हाँ, लोग कहते हैं उसके सिर पर बड़ा जख्म है, कोई कहता है पागल है, कोई जानता नहीं।”

तभी भारी कदमों की आवाज़ सुनाई दी और शहर के सबसे सख्त आईपीएस अधिकारी आर्यमान सहस्त्र वहां आए। उनकी नजर जैसे ही राघवन पर पड़ी, उनके कदम रुक गए। उनकी आंखों में एक अलग सी चमक थी, जिसे कोई समझ नहीं पाया। धीरे-धीरे वे राघवन की तरफ बढ़े। भीड़ ने रास्ता दे दिया। आईपीएस की आवाज़ टूटने लगी, लेकिन राघवन मुस्कुराए। उन्होंने अपनी फटी बोरी उतारी और पैरों के पास रख दी।

आईपीएस ने कहा, “आप अभी भी ये सब करते हैं?” राघवन ने धीमे स्वर में जवाब दिया, “कुछ काम कभी नहीं छोड़ने चाहिए, बेटा, चाहे दुनिया छोड़ भी दे।” भीड़ में सन्नाटा छा गया। उस ‘बेटा’ शब्द ने सबको हिला दिया। आईपीएस आर्यमान की आंखों में आंसू आ गए।

गॉर्ड ने कहा, “साहब, अंदर मीटिंग शुरू होने वाली है।” लेकिन आईपीएस ने जोर से कहा, “टोपी को हाथ लगाया तो नौकरी चली जाएगी।” भीड़ दंग रह गई।

अनवीरा ने साहस जुटाकर पूछा, “सर, यह बुजुर्ग आखिर कौन हैं?” आईपीएस ने उसकी तरफ देखा, जैसे कोई पुराना दर्द जाग उठा हो, और कहा, “अगर यह टोपी हट गई, ना तो मेरी नौकरी बचेगी, ना कुछ।”

अनवीरा की जिज्ञासा बढ़ गई। उसने राघवन से पूछा, “बाबा, आपकी इस टोपी में क्या है?” राघवन ने सिर झुकाते हुए कहा, “खोई हुई इज्जत और बची हुई उम्मीद।”

तभी भवन के अंदर से चिल्लाहट हुई, “सुनवाई शुरू होने वाली है, जिसका भी दस्तावेज़ है अंदर आए।” उस सुनवाई में शहर के गरीबों के पुनर्वास का फैसला होना था। राघवन भी कुछ कागज़ लेकर आया था। उसने धीरे से कहा, “मुझे भी अंदर जाना है।”

गार्ड ने टोका, “टोपी हटाइए, यह नियम है।” आईपीएस ने गरजते हुए कहा, “नियम से बड़ा सम्मान होता है।”

भीड़ चौंक गई, कोई समझ नहीं पाया कि यह बुजुर्ग आखिर कौन है। अनवीरा ने पूछा, “सर, क्या राघवन तेज कोई अपराधी या बड़ा अधिकारी थे?” आईपीएस ने आंखें बंद कीं और धीमी आवाज़ में कहा, “अगर मैं बताऊं तो शहर का इतिहास बदल जाएगा।”

तभी अचानक राघवन की टोपी हवा के झोंके से हल्की खिसकी। भीड़ ने एक साथ सांस रोकी। आईपीएस आर्यमान बिजली की तरह आगे बढ़कर टोपी पकड़ ली और उसे वापस राघवन के सिर पर रख दिया। जैसे कोई खजाना गिरने से पहले पकड़ लिया गया हो।

गार्ड हक्का-बक्का रह गया। अनवीरा और बाकी लोग कांप गए। टोपी के अंदर ऐसा क्या था जिसे दुनिया देख ना पाए? राघवन ने कांपते हुए आईपीएस के हाथ पकड़े और कहा, “इतना डर मत बेटा, सच छिपाने से नहीं रुकता। आज छुपाए गए जख्म खुद बोलेंगे।”

आईपीएस की आंखों से आंसू टपक पड़े। “कृपया आज नहीं।” लेकिन राघवन ने पहली बार सख्त आवाज़ में कहा, “आज ही, क्योंकि मैंने 22 साल चुप रहकर कांटे खाए हैं। आज वक्त है किसी को सच बताने का।”

अनवीरा डर और उत्सुकता के बीच अटकी थी। कौन सा सच बाबा? राघवन ने कहा, “वही सच जिसने मुझे कचरा बिनने पर मजबूर किया।”

उनके शब्द हवा को चीरते चले गए। और आईपीएस साहब को भीड़ में सन्नाटा छा गया। लोग अपनी धड़कनें सुन पा रहे थे।

आईपीएस ने राघवन के कदमों में झुककर कहा, “कृपया उन्हें मत बताइए, मैं टूट जाऊंगा।” लेकिन राघवन ने टोपी पकड़ी और पहली बार उसे उतारने के लिए उंगलियां उठाईं।

धीमी कांपती लेकिन दृढ़। ठीक उसी पल अंदर से किसी ऑफिसर ने चिल्लाकर कहा, “राघवन तेज, आपकी फाइल में बड़ा गड़बड़ मिला है, अंदर आइए तुरंत।”

भीड़ हिल गई। आईपीएस का चेहरा सफेद पड़ गया। अनवीरा ने डरते हुए पूछा, “फाइल में क्या है?” राघवन ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, “वही जिसके कारण मैं कचरा बिनने लगा और शहर ने मेरा नाम मिटा दिया।”

भवन के अंदर से फिर जोरदार आवाज़ गूंजी, “राघवन तेज, आपकी फाइल में गंभीर गड़बड़ी मिली है, तुरंत अंदर आइए।”

भीड़ ने पीछे हटकर रास्ता बना दिया। आईपीएस आर्यमान का चेहरा अचानक राख जैसा पड़ गया था। उसकी सांसे तेज हो गईं और वह फुसफुसाया, “बाबा, कृपया यह सच बाहर आ गया तो?”

राघवन ने उसकी ओर देखा, एक ऐसी नजर से जिसमें थकान, दर्द और काबू की आखिरी बूंद बची थी। उसने धीमी आवाज़ में कहा, “डरना बंद करो बेटा। सच से भागने वाले दिन खत्म हो चुके हैं।”

वे धीरे-धीरे इमारत के अंदर बढ़ने लगे। अनवीरा, जिसकी जिज्ञासा अब डर से बड़ी थी, चुपचाप उनके पीछे चल पड़ी। कॉरिडोर में राघवन के पैरों की चप्पलें अजीब आवाज़ कर रही थीं, जैसे हर कदम किसी पुराने राज की कब्र पर रखा जा रहा हो।

मीटिंग हॉल में सीनियर अधिकारी विभागाध्यक्ष मधुरोत्सव प्रधान फाइल हाथ में लेकर खड़े थे। उन्होंने राघवन को देखते ही भौंहें सिकोड़ लीं। “तो आप हैं राघवन तेज। आपकी फाइल में बहुत बड़ा अपराध लिखा है।”

भीड़ चौंक गई। कचरा बिनने वाले बुजुर्ग पर अपराध! आईपीएस आर्यमान चीख पड़ा, “रुको, कोई इनसे दुर्व्यवहार नहीं करेगा।”

मधुरोत्सव प्रधान हंस पड़े, “आपको तो होना भी नहीं चाहिए यहां। आईपीएस सहस्त्र, आप खुद इस केस के कारण विवाद में आए थे।”

अनवीरा को इन बातों का कोई मतलब नहीं समझ आ रहा था। उसने आगे बढ़कर पूछा, “सर, बुजुर्ग पर कौन सा अपराध?”

प्रधान ने फाइल टेबल पर पटका, “22 साल पहले इन्होंने शहर के खजाने से करोड़ों के दस्तावेज़ गायब किए थे। यह केस क्लोज माना गया था, पर अब एक नई एंट्री सामने आई है।”

गवाह का नाम और साइन खुद वह पन्ना राघवन की तरफ मोड़ दिया गया। भीड़ ने दबी आवाज़ में कहा, “इस बुजुर्ग ने करोड़ों के कागज चोरी किए।”

लेकिन राघवन शांत खड़े रहे, जैसे सच सुनने का इंतजार 22 साल से कर रहे हों। आईपीएस आर्यमान ने झटके से फाइल छीन ली और पन्ने पर नजर पड़ते ही उसके हाथ कांपने लगे। उसने फाइल फाड़ने की कोशिश की, पर राघवन ने उसे रोक दिया, “नहीं बेटा, अब कुछ मत छुपाना।”

अनवीरा आगे बढ़ी और पन्ने पर नजर पड़ी। उसमें गवाह का नाम लिखा था — आर्यमान सहस्त्र, आयु 16 वर्ष। आईपीएस के होश उड़ गए। “सर, आपने इस केस में गवाही दी थी?”

आईपीएस ने आंखें बंद कीं, जैसे किसी ने उसके सीने में पुराना तीर फिर घुसा दिया हो। वह फर्श पर घुटने टेककर बैठ गया और बोला, “हाँ, मैंने ही दी थी, पर मैंने झूठ बोला था।”

भीड़ सनसनी में थी। मधुरोत्सव प्रधान गरजे, “मतलब आईपीएस होकर आप 16 की उम्र में झूठे गवाह थे?”

आईपीएस आर्यमान रो पड़ा, “मुझे लगा था कि बाबा ही दोषी हैं। मुझे लगा उन्होंने ही मेरे पिता का केस बिगाड़ा था। मुझे लगा उन्होंने ही पैसे छिपाए। पर मुझे सच्चाई कभी नहीं पता चली।”

राघवन ने उसकी तरफ देखा। उनकी आंखों में गुस्सा नहीं, बस एक थकान थी। उन्होंने कहा, “तुमने जो देखा था उस रात वो पूरा सच नहीं था, बेटा। तुमने सिर्फ दरवाजा खुला देखा और मुझे जाते हुए, पर तुम नहीं जानते थे कि मैं वहां क्यों था।”

भीड़ खामोश हो गई। मधुरोत्सव ने पूछा, “तो सच क्या है? चोरी आपने की या नहीं?”

राघवन ने धीरे-धीरे अपनी टोपी को छुआ, जैसे कोई पुराना पन्ना पलटने वाला हो। “चोरी मैंने नहीं की थी, पर जिसको बचाने की कोशिश कर रहा था, वो आज यहां नहीं है।”

अनवीरा ने पूछा, “कौन? किसे बचा रहे थे?”

राघवन ने गहरी सांस ली, “वो आदमी शहर की विकास योजना का असली मास्टरमाइंड था, लेकिन गलत हाथों में फंसकर उसे फंसाया जा रहा था। मैं उस रात उसके पास से असली पेपर्स लेकर निकल रहा था। पर उसी समय कोई और नकली पेपर्स ले गया और दोष मेरे सिर मढ़ दिया गया।”

मधुरोत्सव बोले, “किसके कहने पर?”

राघवन ने कहा, “जिसके कहने पर शहर के हर गलत काम पर पर्दा पड़ा रहता है। जिसकी कुर्सी आंधियों में भी नहीं हिलती। वह व्यक्ति आज भी सत्ता में है।”

भीड़ में सन्नाटा था। आईपीएस आर्यमान फटी आंखों से बोला, “मैंने तुम्हारे खिलाफ झूठी गवाही दी क्योंकि मुझे लगा तुमने पिता को बर्बाद किया।”

राघवन ने उसका कंधा पकड़ कर कहा, “नहीं बेटा, तुम्हारे पिता ने खुद सच छुपाया था। वह डर गए थे कि जो असली दोषी है उसके खिलाफ आवाज उठाएंगे तो परिवार को खतरा होगा। उन्होंने मुझे पेपर्स सुरक्षित रखने को कहा था, पर वह पकड़े गए और तुम्हें लगा कि उनकी हालत मेरी वजह से हुई।”

आईपीएस की दुनिया हिल गई। वह जमीन पर बैठ गया, जैसे पैरों तले से सब निकल गया हो। “मतलब बाबा आप निर्दोष थे?”

राघवन मुस्कुराए, “तुम भी निर्दोष थे। तुम बस एक बच्चे थे जिसे अधूरा सच दिखा दिया गया।”

अनवीरा के मन में सवाल उठा, “अगर आपके पास असली पेपर्स थे तो आपने कभी खुद को निर्दोष साबित क्यों नहीं किया?”

राघवन की आंखें भर आईं, “असली पेपर्स मैंने अपने सिर पर इस टोपी के अंदर छुपा कर रखे थे। अगर मैं उन्हें बाहर लाता तो असली अपराधी मेरे बेटे को मार देते।”

पूरी हालात हिल गई। लोग फुसफुसाने लगे। राघवन ने पहली बार टूटती आवाज़ में कहा, “22 साल पहले मेरा बेटा अनाथालय से गायब कर दिया गया था। उसी रात मुझे धमकी मिली थी कि अगर मैंने अपनी बेगुनाही साबित की तो वह बच्चा जिंदा नहीं बचेगा।”

आईपीएस आर्यमान ने सुना और उसका दिल फट गया। उसने कांपते हुए पूछा, “बाबा, क्या आपके बेटे का नाम विरलन तेज था?”

राघवन ने चौंक कर उसकी तरफ देखा, “हाँ, कहाँ सुना तुमने यह नाम?”

आईपीएस आर्यमान की आवाज कांपने लगी, “बाबा वह बच्चा मरा नहीं था।”

राघवन के पैरों तले जमीन खिसक गई। आईपीएस ने अपनी जेब से एक पुराना फोटो निकाला, जिसमें एक छोटा बच्चा था, सिर पर हल्का सा जख्म। “यह बच्चा मैं था। मेरा असली नाम विरलन तेज है।”

हवा रुक गई। भीड़ जैसे जम गई। राघवन की आंखें फैल गईं। “तुम मेरा बेटा?”

आईपीएस आर्यमान रो पड़ा, “हाँ, मैं ही हूँ बाबा। उसी रात मुझे अपहरण करके अनाथालय छोड़ा गया और नया नाम दे दिया गया। मुझे कभी नहीं पता चला कि मैं किसका बेटा हूँ।”

राघवन के हाथ कांप उठे। टोपी उनके सिर से ढीली हो चुकी थी। “मैंने अपने ही बेटे को झूठा अपराधी समझकर झूठी गवाही दी।”

आईपीएस फूट-फूट कर रो पड़ा। दोनों एक-दूसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे 22 साल का अंधेरा अचानक एक पल में रोशनी बन गया हो।

तभी मधुरोत्सव प्रधान की मेज के नीचे से अचानक एक लाल लाइट चमकी। अनवीरा चिल्लाई, “सर, कोई रिकॉर्डिंग कर रहा है।” लेकिन उससे पहले ही लाइट बंद हो गई।

किसी ने इस पूरे सच को रिकॉर्ड कर लिया था। उस व्यक्ति ने धीरे-धीरे परछाई से बाहर कदम रखा। भीड़ दंग रह गई।

परछाइयों से बाहर कदम रखते ही पूरा हाल एकदम जड़ हो गया। सामने आया शहर का सबसे ताकतवर और गंदे खेलों का उस्ताद, विभागीय मुख्य आयुक्त प्रगल्भ कारंजे।

उसके चेहरे पर शैतानी मुस्कान थी। हाथ में छोटा सा बॉडी रिकॉर्डर और आंखों में वह ठंडक जो इंसान को इंसान नहीं रहने देती।

उसने धीरे से ताली बजाई, “वाह, क्या पुनर्मिलन था! बाप-बेटा 22 साल बाद मिल गए।”

भीड़ उसकी ओर देखते ही पीछे हटने लगी। आईपीएस आर्यमान उठकर खड़ा हो गया। अब उसकी आंखों में डर नहीं, आग थी।

“तुमने ही मुझे बचपन में उठवाया था, है ना?” प्रगल्भ ने होठ टेढ़े किए, “बिल्कुल, क्योंकि तुम्हारे बाप ने मेरे प्लान बिगाड़ दिए थे। अगर मैंने तुम्हें नहीं उठवाया होता, तो यह अभी तक अधिकारी होते, ना कि कूड़ा बिनने वाले।”

राघवन ने टूटी आवाज़ में कहा, “क्यों? क्या दुश्मनी थी तुमसे? मैंने तो तुम्हारे खिलाफ कुछ नहीं किया था।”

प्रगल्भ बोला, “तुमने नहीं, तुम्हारे मालिक ने किया था। तुम तो सिर्फ उस रात असली दस्तावेज ले जा रहे थे। असली टारगेट तुम्हारा मालिक था, पर तुम गलत वक्त पर गलत जगह थे। तुम्हें फंसाना आसान था। एक गरीब सरकारी क्लर्क, कौन पूछता?”

राघवन ने जमीन की ओर देखते हुए कहा, “तुमने मेरी जिंदगी ही नहीं, मेरे बेटे का बचपन भी बर्बाद कर दिया।”

प्रगल्भ हंस पड़ा, “आप दोनों आज भी मेरे सामने कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि अभी-अभी जो सच आपने बोला, वह सब मेरे पास रिकॉर्ड है। अब मैं उसे एडिट करके ऐसा बनाऊंगा कि लगे राघवन तेज ही असली खलनायक हैं, और आईपीएस आर्यमान ने बचपन में उनकी चोरी पकड़ ली थी।”

भीड़ के भीतर गुस्से की हलचल उठी, लेकिन कोई बोल नहीं पाया।

आईपीएस गरज कर बोला, “तुम गलत आदमी को धमका रहे हो।”

प्रगल्भ ने मुड़कर कहा, “अच्छा, और अगर मैंने अभी तुम्हारी नौकरी खत्म कर दी, तो क्या करोगे?”

आईपीएस ने अपनी बेल्ट खोलकर जमीन पर फेंक दी, “ले ले मेरी नौकरी, अब कोई मुझे सच बोलने से नहीं रोक सकता।”

तभी अनवीरा अचानक आगे बढ़ी और उसकी आंखों में आंखें डालकर बोली, “आपका रिकॉर्डर उसमें सिर्फ आवाज़ है। कैमरा तो मैंने पहले ही बंद कर दिया था।”

प्रगल्भ का चेहरा तमतमाया, “क्या तुम कौन होती हो?”

अनवीरा ने कहा, “वही जो चुप नहीं रहती। और हां, आपके टेबल के नीचे जो लाल लाइट थी, वह कैमरा नहीं था, वह सिर्फ मोशन सेंसर था। रिकॉर्डिंग आपका यह खिलौना ही कर रहा था।”

आईपीएस आर्यमान ने फुर्ती से उसकी ओर बढ़कर रिकॉर्डर छीना, लेकिन प्रगल्भ ने जेब से दूसरा डिवाइस निकाल लिया।

“मेरे हर कदम का प्लान होता है लड़के,” यह कहकर उसने डिवाइस चालू किया। पर स्क्रीन पर लिखा आया, “नो स्टोरेज।”

प्रगल्भ की आंखें बाहर निकल गईं, “यह कैसे?”

अनवीरा मुस्कुराई, “क्योंकि इमारत में घुसते ही मैंने नेटवर्क जैमर एक्टिव किया था। कोई भी रिकॉर्डिंग सेव ही नहीं हो सकती।”

भीड़ में हल्की गुनगुनाहट हुई। लोग पहली बार उसके लिए तालियां बजाना चाहते थे, लेकिन डर उन्हें रोक रहा था।

प्रगल्भ का चेहरा अब सच में डर में बदलने लगा था। उसने गार्ड्स को चिल्लाकर कहा, “इन्हें पकड़ो।”

लेकिन कोई गार्ड आगे नहीं बढ़ा। सब ने एक-दूसरे की ओर देखा, फिर नजरें झुका लीं। आखिरकार सबको समझ आ चुका था कि वह किसके पीछे खड़े हैं — सच के।

प्रगल्भ ने दांत पीसते हुए कहा, “ठीक है, खेल खत्म नहीं हुआ। तुम दोनों ने अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली है। मैं एक फोन कॉल करूंगा।”

तभी पीछे से एक आवाज आई, “एक फोन कॉल से क्या होगा, प्रगल्भ?”

अंदर लॉबी से चलते हुए आए राज्य मानवाधिकार आयुक्त शिवकार निशांत। वही जिन्हें शहर में बहुत कम लोग देखने की हिम्मत करते थे।

प्रगल्भ का चेहरा पड़ गया। “सर, आपको किसने बुलाया?”

शिवकार ने कहा, “तुम्हारे झूठ ने।” फिर उसकी आवाज हॉल में गड़गड़ाहट की तरह गूंजी, “क्या तुम सोचते हो इतने सालों तक तुम जो कुछ करते रहे, हमें भनक नहीं थी? हर गलत फाइल, हर हेराफेरी, हर रात की गलती, सबका रिकॉर्ड हमारे पास है।”

प्रगल्भ के पैर पीछे हटने लगे। “सर, एक गलतफहमी।”

शिवकार ने चिल्लाया, “चुप! तुमने एक ईमानदार कर्मचारी की जिंदगी बर्बाद की। उसके बेटे का अपहरण कराया और शहर की सबसे बड़ी पुनर्वास योजना को नष्ट किया। आज तुम्हारा खेल खत्म।”

तभी दो अधिकारी आगे बढ़े और प्रगल्भ को पकड़ लिया। वह छटपटाया, चिल्लाया, “तुम समझते नहीं, मैं सबको गिरा दूंगा। यह दो बाप-बेटे मेरे खिलाफ।”

आईपीएस आर्यमान ने उसके पास आकर कहा, “हम बाप-बेटे नहीं थे क्योंकि तूने हमें अलग कर दिया था, पर आज हम फिर एक साथ हैं।”

और उसने पहली बार राघवन का हाथ पकड़ा। मजबूत, स्थिर, गर्व से भरा हुआ।

प्रगल्भ चीखता रहा, पर उसे बाहर ले जाया जा रहा था। भीड़ में लोग पहली बार राहत की सांस ले रहे थे।

हॉल में खामोशी छा गई। सबकी नजर राघवन पर थी। उसकी टोपी अभी भी उसके हाथ में थी।

आईपीएस ने धीमे से कहा, “बाबा, अब वो टोपी उतार दीजिए। अब डरने की जरूरत नहीं।”

राघवन की आंखें भर आईं। धीमी उंगलियों से उन्होंने पहली बार टोपी उठाई। उसके अंदर प्लास्टिक की थैली थी, पुरानी पसीने से भीगी, लेकिन उसमें दस्तावेजों का बंडल था।

उन्होंने थैली शिवकार को दे दी, “यह है 22 साल पहले का सच जिसने मेरी दुनिया तबाह कर दी।”

शिवकार ने दस्तावेज पलटे और सख्त आवाज़ में कहा, “इन पेपर्स की वजह से शहर के लाखों गरीबों का हक बच गया। राघवन तेज, आपने जो किया वह अपराध नहीं था, बलिदान था।”

भीड़ तालियों से गूंज उठी। पहली बार किसी ने राघवन को इंसान से ऊपर माना।

आईपीएस आर्यमान उसके सामने घुटनों पर बैठ गया, “बाबा, मैं बहुत बुरा हूं। मैंने आपको अपराधी समझा।”

राघवन ने उसका चेहरा पकड़ कर कहा, “नहीं बेटा, तुम उस समय बच्चे थे। गलत वो थे जिनके हाथ में ताकत थी, दिल में इंसानियत नहीं।”

आईपीएस फूट पड़ा, और 22 साल का दर्द उसके कंधे पर गिरता चला गया।

राघवन ने उसके सिर पर हाथ रखा, “अब मेरी टोपी तुम्हारे पास रहेगी।”

आईपीएस ने कांपते हाथों से टोपी ले ली। भीड़ में अनगिनत लोग रो रहे थे, बिना आवाज़, बिना डर, बस दिल से।

अनवीरा आगे आई और बोली, “बाबा, अब आप क्या करेंगे?”

राघवन मुस्कुराए, “अब मैं कचरा नहीं उठाऊंगा, अब मैं सिर्फ अपने बेटे को संभालूंगा।”

आईपीएस ने कहा, “और मैं अपना असली नाम वापस लेना चाहता हूं — आर्यमान नहीं, विरलन तेज।”

राघवन की आंखें चमक उठीं। शिवकार बोले, “सरकार की ओर से आपके लिए सम्मानित पुनर्नियुक्ति और सुरक्षा दी जाएगी। आप दोनों अब सुरक्षित हैं।”

बाहर पुलिस की गाड़ियों का शोर था, पर आज किसी को डर नहीं था। आज पहली बार 22 साल बाद न्याय सच में जागा था।

जैसे ही राघवन बाहर निकले, आसमान से हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई। आईपीएस या कहें विरलन तेज ने मुस्कुराकर टोपी सिर पर रखी।

राघवन ने आसमान की ओर देखा और कहा, “कभी-कभी टूटे हुए लोग सबसे मजबूत सच्चाइयां उठाते हैं।”

और दोनों 22 साल से बिछड़े हुए बाप-बेटे पहली बार एक साथ घर जाने के लिए आगे बढ़े।