श्रद्धा सिंह की बहादुरी

बिहार के एक छोटे से गांव, दोलारपुर, में अंधविश्वास का एक अजीब माहौल था। यहां एक ढोंगी बाबा, सत्यनंद, ने अपनी कुटिया में चमत्कार दिखाने के बहाने भोली-भाली औरतों को फंसाना शुरू कर दिया। वह औरतों को यह कहकर बुलाता कि शिव की कृपा से उन्हें संतान मिलेगी। इसके लिए वह उन्हें एक खास भूत सूंघाता, जिसमें नशा मिला होता। जब औरतें बेहोश हो जातीं, तो बाबा उनकी बेहोशी का फायदा उठाकर घिनौनी हरकत करता और बाद में सबूत मिटा देता। फिर वह कहता कि यह तो देवी का प्रकाश था और उन्हें शिव की साधना का आशीर्वाद मिला है।

यह सब तब तक चलता रहा जब तक कि इस मामले की भनक बिहार की तेज और बहादुर आईपीएस अफसर श्रद्धा सिंह तक नहीं पहुंची। श्रद्धा ने इस बाबा के बारे में सुना और उसे नजरअंदाज नहीं किया। उसने एक आम गांव वाली महिला का भेष बनाया और बाबा की कुटिया तक पहुंची। वहां भी बाबा ने उसे भूत दिया और श्रद्धा भी उसकी चंगुल में फंस गई। जब होश आया, तो उसने खुद को नग्न अवस्था में पाया। बाबा वहां से सबूत मिटा चुका था।

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इस घटना ने श्रद्धा के दिल में आग भड़काई। यह अब सिर्फ एक केस नहीं था, बल्कि उसकी इज्जत और सैकड़ों औरतों की आवाज का सवाल बन चुका था। श्रद्धा ने फैसला किया कि वह इस मामले की गहराई में खुद जाएगी। उसने अपनी वर्दी उतारी और साड़ी पहनकर एक गांव की महिला का रूप धारण किया।

श्रद्धा ने अपने फर्जी नाम सुमन देवी रखा और उस गांव पहुंची। वहां उसने देखा कि कई औरतें बाबा की झोपड़ी के बाहर कतार में खड़ी थीं, सबकी नजरें झुकी हुई थीं। जब उसकी बारी आई, तो बाबा ने उसे भूत दिया। श्रद्धा ने भूत को माथे पर लगाया और बेहोश हो गई। जब उसकी आंख खुली, तो उसने खुद को नग्न पाया।

श्रद्धा ने खुद को संभाला और बाबा के खिलाफ सबूत जुटाने का निर्णय लिया। उसने अपनी वर्दी पहनकर उन औरतों को बुलाया, जिन्होंने उसकी तरह बाबा के अत्याचारों का सामना किया था। धीरे-धीरे, छह महिलाओं ने अपनी चुप्पी तोड़ी। उनकी गवाहियों ने श्रद्धा को मजबूती दी।

श्रद्धा ने एक विशेष फॉरेंसिक टीम को बाबा की झोपड़ी में भेजा, जहां से कई संदिग्ध केमिकल और औरतों के कपड़े बरामद हुए। यह साबित हो गया कि बाबा न सिर्फ औरतों का शोषण करता था, बल्कि उन्हें ब्लैकमेल भी करता था।

जब श्रद्धा ने बाबा की गिरफ्तारी का फैसला किया, तो उसने अपने सीनियर अफसर डीजीपी भानु प्रकाश को बताया कि वह सिर्फ एक पुलिस अफसर नहीं, बल्कि एक पीड़िता भी है। भानु ने उसे समर्थन दिया और कहा कि वह उसकी इज्जत कर रहा है।

श्रद्धा ने गांव में जाकर बाबा को गिरफ्तार किया। जब बाबा को पुलिस गाड़ी में बिठाया गया, तो गांव की महिलाएं जो कभी उसकी चमत्कारों के साए में जीती थीं, अब उसके चेहरे पर गर्व से खड़ी थीं।

अदालत में मामला तेजी से बढ़ा। बाबा ने झूठे आरोप लगाए, लेकिन जब सावित्री और अन्य महिलाओं ने अपनी गवाही दी, तो उसकी खामोशी टूट गई। श्रद्धा ने खुद अदालत में गवाही दी और बताया कि वह गर्भवती है।

अदालत ने बाबा को उम्र कैद की सजा सुनाई और सभी पीड़ित औरतों को पुनर्वास और सुरक्षा देने का आदेश दिया। श्रद्धा का बच्चा हुआ, जिसे उसने सत्यवीर नाम दिया।

गांव की औरतें अब श्रद्धा को सम्मान से देखती थीं। उसने न केवल इंसाफ दिलाया बल्कि एक मिसाल कायम की कि जब एक औरत बोलती है, तो पूरा समाज बदल जाता है।

श्रद्धा ने अपनी बेटी के जन्म के बाद उस कुटिया में दिया जलाया, जहां कभी पाप पनपता था। अब वहां एक नई शुरुआत की प्रतिज्ञा थी। श्रद्धा ने अपने संघर्ष को अपनी ताकत बना लिया और अब वह एक नई राह पर चल रही थी, जहां वह औरतों को आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान सिखा रही थी।

इस कहानी ने साबित कर दिया कि एक औरत की आवाज में कितनी ताकत होती है। जब वह बोलती है, तो ना केवल अपने लिए, बल्कि समाज के लिए भी एक नई दिशा निर्धारित करती है।