शहर का करोड़पति लड़का जब गाँव के गरीब लड़की की कर्ज चुकाने पहुंचा, फिर जो हुआ…

नीम की छांव: दोस्ती, त्याग और इंसानियत की अमर कहानी”
1. सूरजपुर गांव की मासूम दोस्ती
सूरजपुर गांव, जहां हर सुबह मजदूर रामलाल की बेटी राधिका अपने फटे झोले में किताबें डालकर स्कूल जाती थी। गरीब घर, टूटी चप्पलें, पुराना सलवार – लेकिन आंखों में बड़े सपने। राधिका गांव की उन गिनी-चुनी लड़कियों में थी जो पढ़ाई की जिद में स्कूल जाती थी।
वहीं दूसरी तरफ था विक्रांत – ठाकुर साहब का इकलौता बेटा। बड़ा घर, नौकर-चाकर, घोड़े, साइकिल, सबकुछ। लेकिन उसका मन स्कूल की छुट्टी के बाद गांव के बाहर नीम के पेड़ के नीचे बैठी राधिका की किताबों में ही लगता था।
एक दिन विक्रांत ने हिम्मत करके राधिका से कहा, “मुझे भी पढ़ना है, लेकिन पापा कहते हैं लड़कों को कारोबार देखना चाहिए, किताबें लड़कियों का काम है।” राधिका मुस्कराई, “पढ़ाई सबका हक है। चल मैं तुझे पढ़ाऊंगी।”
यहीं से शुरू हुई उनकी दोस्ती, जो सपनों की नई किताब थी। राधिका का सपना – गांव की लड़कियों को पढ़ाना। विक्रांत का सपना – गांव में बड़ा स्कूल बनवाना ताकि कोई बच्चा पढ़ाई से वंचित न रहे। शाम को दोनों नीम के पेड़ के नीचे बैठकर किताबें बांटते, सपने गढ़ते।
2. किस्मत की ठोकर और पहली कुर्बानी
एक दिन राधिका के पिता रामलाल को तेज बुखार चढ़ गया। गांव के वैद्य ने कहा, “शहर के अस्पताल ले जाओ, नहीं तो जान को खतरा है।” घर में पैसे नहीं थे, कर्ज था। राधिका ने अपनी सबसे कीमती चीज – किताबें – बेचने का फैसला किया।
रोती हुई वह बाजार गई, किताबें बेचीं, जो पैसे मिले उससे पिता का इलाज कराया। पिता बच गए, लेकिन राधिका का स्कूल हमेशा के लिए छूट गया। अब घर की जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी।
इधर विक्रांत के पिता ने फैसला लिया – “अब तुझे शहर के बोर्डिंग स्कूल भेज रहा हूं।” विदाई का दिन आया, दोनों दोस्त नीम के पेड़ के नीचे मिले। राधिका ने कहा, “शायद अब मैं स्कूल न जा पाऊं, तू जरूर पढ़ना, बड़ा आदमी बनना।”
विक्रांत ने वादा किया, “तूने मेरे लिए किताबें बेचीं, मैं तेरा कर्ज सारी उम्र चुकाऊंगा।” शहर की गाड़ी धूल उड़ाती चली गई, राधिका वहीं खड़ी रही – टूटे सपनों और आंसुओं के साथ।
3. वक्त बदलता है, दोस्ती नहीं
साल गुजरते गए। विक्रांत शहर पहुंचा, बोर्डिंग स्कूल, कॉलेज, विदेश की पढ़ाई, मेहनत और संघर्ष। आज वह करोड़पति बिजनेसमैन था – विक्रांत ग्रुप, लग्जरी गाड़ियां, अखबारों में तस्वीरें, मैगजीन के कवर।
लेकिन रात के सन्नाटे में उसकी आंखें गांव और राधिका की मासूम मुस्कान को याद करती थीं। वह जानता था – उसकी कामयाबी की नींव राधिका के त्याग पर है।
एक दिन मुंबई के ऑडिटोरियम में यंग अचीवर अवार्ड मिला। मंच पर विक्रांत ने कहा, “यह अवार्ड मेरे उस दोस्त की अमानत है, जिसने अपने सपने मारकर मुझे यहां तक पहुंचाया। उसका नाम है राधिका।”
हॉल में सन्नाटा, फिर तालियां। विक्रांत ने उसी रात फैसला किया – अब और इंतजार नहीं।
4. वादा निभाने की वापसी
अगली सुबह विक्रांत अपनी Mercedes में सूरजपुर गांव पहुंचा। गांववालों ने पहचान लिया – “ठाकुर साहब का विक्रांत!” नीम के पेड़ के नीचे गाड़ी रुकी। सामने से एक औरत पानी का घड़ा सिर पर लिए आ रही थी – वही चाल, वही आंखें, वही राधिका।
घड़ा गिर गया, पानी फैल गया। दोनों की आंखें भर आईं। विक्रांत बोला, “राधिका, मैं लौट आया, अपना वादा निभाने।” राधिका मुस्कुराई, “बड़ा आदमी बन गया तू, मैं तो सोचती थी, भूल गया होगा।”
विक्रांत ने सिर झुका लिया, “भूलूं कैसे, जिसकी वजह से आज मैं यहां तक पहुंचा।” भीड़ बढ़ गई, विक्रांत ने सबको नमस्ते किया, राधिका को एकांत में बुलाया।
नीम के पेड़ के नीचे बैठे, विक्रांत ने अपना सूटकोट जमीन पर बिछाया। जेब से पुराना लिफाफा निकाला – उसमें फटी हिंदी की किताब का कवर था, जिस पर राधिका का नाम लिखा था। “यह तेरी आखिरी किताब थी, आज तक संभाल कर रखा है।”
5. दोस्ती का कर्ज और इंसानियत का न्याय
विक्रांत ने कहा, “मैंने जो कुछ भी कमाया, बनाया, उसकी असली मालकिन तू है। आज मैं अपना सारा कर्ज चुकाने आया हूं।”
ड्राइवर मोटा फोल्डर लेकर आया। विक्रांत ने ऐलान किया, “मेरी कंपनी का आधा हिस्सा राधिका का है। असली हकदार वही है, जिसने मुझे पढ़ने का मौका दिया।”
गांव में तालियों का शोर, लेकिन राधिका पीछे हटने लगी, “मैं नहीं ले सकती, मैंने दिल से किया था, बदले की उम्मीद नहीं थी।”
विक्रांत की आंखें लाल हो गई, “यह बदला नहीं, न्याय है। अगर तू नहीं लेगी तो मैं सारी दौलत यहीं जला दूंगा।”
राधिका रो पड़ी, “कभी नहीं सोचा था कि मेरी छोटी सी कुर्बानी इतना बड़ा फल देगी।”
6. गांव का कर्ज और नई शुरुआत
विक्रांत ने ऐलान किया, “कंपनी का बाकी आधा हिस्सा ट्रस्ट में जा रहा है – नीम की छांव एजुकेशन ट्रस्ट। यहां बड़ा स्कूल, अस्पताल, लड़कियों का हॉस्टल बनेगा। हर गरीब बच्चे को मुफ्त किताबें, यूनिफार्म, खाना मिलेगा। कोई राधिका फिर कभी अपनी किताबें नहीं बेचेगी।”
तालियों का शोर, आशीर्वाद, खुशी के आंसू। दादी ने माथा चूमा, “पैसा कमाना आसान है, इंसान बने रहना मुश्किल।”
राधिका ने विक्रांत का हाथ थामा, “अब तू अकेले नहीं रहेगा, हम फिर से साथ हैं। जैसे पहले किताबें बांटते थे, अब सपने बांटेंगे।”
7. चौपाल की रात और रिश्तों की कीमत
शाम को चौपाल पर भोज, गीत, हंसी। नीम के पेड़ के नीचे विक्रांत और राधिका अकेले थे। विक्रांत ने पूछा, “12 सालों में कभी मुझे कोसा?”
राधिका मुस्कुराई, “कोसा तो बहुत बार, जब पैसे नहीं होते थे, मां बीमार पड़ती थी, ताने मिलते थे। लेकिन तेरा वादा याद आता था, यकीन था, तू लौटेगा।”
विक्रांत ने सिर झुका लिया, “मैं देर से आया।”
राधिका ने हाथ दबाया, “सही वक्त पर आया। अगर पहले आता तो मैं यह सब लेने से डर जाती। आज मैं तैयार हूं।”
8. स्कूल की नींव, दोस्ती का रिश्ता
अगली सुबह इंजीनियर आए, स्कूल का नक्शा बना। स्कूल का नाम – नीम की छांव। पहली टीचर – राधिका।
चौपाल पर ऐलान – “स्कूल का पहला पत्थर राधिका रखेगी, पहला बच्चा विक्रांत होगा।”
तालियां, शर्म, मुस्कान। विक्रांत ने सबके सामने कहा, “यह दोस्ती अब उम्र भर का रिश्ता है।”
गांव वालों ने तालियां, सीटियां बजाईं, “अब तो शादी की तैयारी करो।”
9. चौपाल का सवाल और समाज की सीख
बुजुर्ग दादाजी ने गंभीर आवाज में कहा, “हर किसी की जिंदगी में कोई राधिका या विक्रांत जरूर रहा होगा – जिसने चुपचाप कुर्बानी दी, मां-बाप, भाई-बहन, दोस्त। क्या हमने कभी धन्यवाद कहा? या हम भी सफलता में उन्हें भूल जाते हैं?”
सन्नाटा, फिर लोग खड़े होने लगे – बहन ने गहने बेचे, पति ने नौकरी छोड़ी, पिता ने खेत में मेहनत की। सबने वादा किया, आज जाकर उनका हाथ थामेंगे, धन्यवाद कहेंगे।
10. दोस्ती का जश्न, नई जिंदगी की शुरुआत
राधिका ने कहा, “यह स्कूल बनेगा तो मैं खुद पढ़ाऊंगी। असली अमीरी पैसों में नहीं, रिश्तों में होती है।”
तालियां, आंसू, वादे। रात बहुत हो चुकी थी, हर घर में बातें, हर दिल में सवाल – मेरा राधिका या विक्रांत कौन है?
नीम के पेड़ के नीचे विक्रांत ने राधिका से पूछा, “शादी कर लेगी मुझसे?” राधिका ने सिर झुका लिया, हल्के से सिर हिलाया।
कुछ महीनों बाद स्कूल का उद्घाटन हुआ, राधिका दुल्हन के जोड़े में पहला पत्थर रखती है, विक्रांत सिंदूर भरता है। शादी उसी स्कूल के मैदान में, सात फेरे – गोद में उठाकर।
स्कूल की दीवार पर बोर्ड – “यह स्कूल उन सारी राधिकाओं को समर्पित है जिन्होंने अपने सपने कुर्बान किए ताकि कोई और सपना पूरा हो सके।”
11. कहानी की सीख
अब आपकी बारी है – अपने उस शख्स को याद कीजिए जिसने आपके लिए कुर्बानी दी। आज ही मिलिए, फोन कीजिए, धन्यवाद कहिए। क्योंकि जिंदगी छोटी है, रिश्ते अनमोल हैं।
अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो तो कमेंट में नाम और शहर लिखिए – आपकी जिंदगी का वो राधिका या विक्रांत कौन है?
नीम की छांव हमेशा हरी रहे।
जय हिंद।
News
3 दिन तक पत्नी ने फोन नहीं उठाया… पति के लौटते ही सामने आया ऐसा सच जिसने उसकी ज़िंदगी बदल दी!
3 दिन तक पत्नी ने फोन नहीं उठाया… पति के लौटते ही सामने आया ऐसा सच जिसने उसकी ज़िंदगी बदल…
एक IPS मैडम गुप्त मिशन के लिए पागल बनकर वृंदावन पहुंची, फिर एक दबंग उन्हें अपने साथ ले जाने लगा!
एक IPS मैडम गुप्त मिशन के लिए पागल बनकर वृंदावन पहुंची, फिर एक दबंग उन्हें अपने साथ ले जाने लगा!…
Shaadi Mein Hua Dhoka | Patli Ladki Ke Badle Aayi Moti Ladki, Dekh Ke Dulha Hua Pareshan
Shaadi Mein Hua Dhoka | Patli Ladki Ke Badle Aayi Moti Ladki, Dekh Ke Dulha Hua Pareshan नाजिया की जीत:…
₹10,000 का कर्ज़ चुकाने करोड़पति अपने बचपन के दोस्त के पास पहुँचा… आगे जो हुआ…
₹10,000 का कर्ज़ चुकाने करोड़पति अपने बचपन के दोस्त के पास पहुँचा… आगे जो हुआ… “कर्ज की कीमत: दोस्ती, संघर्ष…
दारोगा पत्नी ने बेरोजगार पति को तलाक दिया, 9 साल बाद पति SP बनकर मिला…फिर जो हुआ
दारोगा पत्नी ने बेरोजगार पति को तलाक दिया, 9 साल बाद पति SP बनकर मिला…फिर जो हुआ “वर्दी की इज्जत,…
12 साल के लडके ने कर दिया कारनामा/पुलिस प्रशासन के होश उड़ गए/
12 साल के लडके ने कर दिया कारनामा/पुलिस प्रशासन के होश उड़ गए/ इटावा के गडरिया – इंसाफ की जंग…
End of content
No more pages to load






