होटल के मालिक को भिखारी समझकर निकाला बाहर, फिर जो हुआ उसने सबको चौंका दिया!
होटल के मालिक को भिखारी समझकर निकाला बाहर, अगले ही पल बदल गई पूरी कहानी!
शहर के सबसे बड़े पाँच सितारा होटल में एक साधारण कपड़े पहने बुजुर्ग सुबह 11 बजे पहुंचे। उनके हाथ में एक पुराना झोला था, नाम था — गंगा प्रसाद।
जैसे ही वो होटल के गेट पर पहुँचे, वहाँ के गार्ड ने शक भरी नजरों से उन्हें देखा और रास्ता रोक लिया, “बाबा, यहाँ क्या काम है आपका?”
गंगा प्रसाद ने मुस्कुराकर कहा, “बेटा, मेरी यहाँ बुकिंग है।”
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गार्ड और रिसेप्शनिस्ट राधा कपूर ने उनका मजाक उड़ाया, “बाबा, यह होटल बहुत महंगा है, आप शायद गलत जगह आ गए हैं।”
लॉबी में बैठे गेस्ट्स भी ताने कसने लगे, “देखो, मुफ्त का खाने आया है!”
गंगा प्रसाद चुपचाप कोने की कुर्सी पर बैठ गए, सबकी नजरें उन पर थीं, लेकिन उनकी आँखों में सिर्फ धैर्य था।
एक घंटा बीत गया, कोई सुनवाई नहीं हुई।
इसी बीच, होटल का बेल बॉय अर्जुन शर्मा आया। उसने गंगा प्रसाद से आदरपूर्वक पूछा, “बाबा, आपकी मदद कर सकता हूँ?”
गंगा प्रसाद ने कहा, “मैं मैनेजर से मिलना चाहता हूँ।”
अर्जुन ने कोशिश की, लेकिन मैनेजर विक्रम खन्ना ने साफ इंकार कर दिया, “ऐसे लोगों के लिए मेरे पास वक्त नहीं है!”
गंगा प्रसाद ने हार नहीं मानी।
उन्होंने रिसेप्शन पर जाकर कहा, “अब मैं खुद ही मैनेजर से मिलूंगा।”
वो सीधे मैनेजर के केबिन में गए।
विक्रम ने उन्हें देखकर तिरस्कार से कहा, “बाबा, आपके पास कुछ नहीं है, यहाँ से चले जाइए।”
गंगा प्रसाद ने एक लिफाफा बढ़ाया, जिसमें उनकी बुकिंग और होटल से जुड़ी डिटेल्स थीं।
विक्रम ने लिफाफा बिना देखे टेबल पर पटक दिया।
गंगा प्रसाद ने शांत स्वर में कहा, “ठीक है, मैं चला जाता हूँ। लेकिन याद रखना, जो तुमने आज किया है उसका नतीजा तुम्हें भुगतना पड़ेगा।”
गंगा प्रसाद बाहर निकल गए, लेकिन होटल में सन्नाटा छा गया।
अर्जुन ने वो लिफाफा उठाया और होटल के रिकॉर्ड्स चेक किए।
उसकी आँखें चौड़ी हो गईं — रिकॉर्ड में साफ लिखा था, गंगा प्रसाद होटल के 65% शेयर होल्डर और संस्थापक सदस्य हैं!
अर्जुन दौड़ता हुआ मैनेजर के पास गया, रिपोर्ट दिखाते हुए बोला, “सर, ये हमारे होटल के असली मालिक हैं!”
विक्रम ने अहंकार में रिपोर्ट को नज़रअंदाज़ कर दिया।
अगली सुबह, होटल में हलचल थी।
सभी स्टाफ फुसफुसा रहे थे — “कल जो बाबा आए थे, वो असली मालिक हैं!”
10:30 बजे गंगा प्रसाद फिर होटल आए, इस बार उनके साथ एक अधिकारी भी था।
उन्होंने सबके सामने घोषणा की, “इस होटल के 65% शेयर मेरे नाम हैं।”
गंगा प्रसाद ने मैनेजर विक्रम को पद से हटा दिया और अर्जुन शर्मा को नया मैनेजर बना दिया।
रिसेप्शनिस्ट राधा कपूर को चेतावनी दी — “कभी किसी को उसके कपड़ों से मत आंकना। हर इंसान की इज्जत बराबर है।”
लॉबी में तालियाँ गूंज उठीं।
गंगा प्रसाद ने कहा, “असली अमीरी पैसे में नहीं, सोच में होती है।”
उस दिन के बाद होटल का माहौल पूरी तरह बदल गया।
अब हर गेस्ट के साथ सम्मान से पेश आया जाता है।
लोग कहते हैं — गंगा प्रसाद ने सिर्फ होटल नहीं, इंसानियत की नींव भी रखी।
यह कहानी हमें सिखाती है कि असली पहचान कपड़ों या पैसे से नहीं, बल्कि इंसानियत और सोच से होती है।
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