Crore Patti Admi ke Bache Kachry py Kis ny Phenky? aik Larki ka Sacha waqia –

रोशनी: एक नई सुबह

भाग 1: अंधेरे की पुकार

मुंबई की रातें अक्सर चमकदार होती हैं, लेकिन फुटपाथ पर रहने वालों के लिए हर रात एक नई जंग होती है। बारिश की बूंदें जैसे हर उम्मीद को धो देती हैं, वैसे ही उस रात भी, जब रोशनी राव अपने पुराने टेंट में सिकुड़कर बैठी थी। उसके पास एक फटा हुआ कार्टन, कुछ पुराने कपड़े और दिल में एक अनकही पीड़ा थी।

रोशनी को बचपन से ही जिंदगी ने हर मोड़ पर ठोकर दी थी। अनाथालय में पली-बढ़ी, किसी ने उसे अपनाया नहीं। 18 साल की होते ही उसे बाहर निकाल दिया गया। उसने कई जगह काम किया, लेकिन हमेशा उसे ‘बेवजह’ निकाल दिया गया। अब उसका घर वही फुटपाथ था, जहां हर रात डर, भूख और अकेलापन उसका साथी बन जाता।

उस रात जब वह भीगी हुई, ठंड से कांपती बैठी थी, तभी अचानक उसे कचरे के ढेर से एक कमजोर सी आवाज सुनाई दी। पहले तो उसने अनसुना किया, लेकिन आवाज इतनी दर्दभरी थी कि वह खुद को रोक नहीं पाई। कांपते कदमों से वह कचरे के ढेर तक गई। वहां एक फटा हुआ कंबल पड़ा था, जिसमें चार छोटे-छोटे बच्चे सिमटे हुए थे।

तीन साल का आदर्श, दो साल की अनवी, और एक साल के जुड़वा—आरव और आयान। उनके चेहरे पर डर, भूख और बेबसी थी। रोशनी ने एक पल के लिए सोचा, क्या वह इन बच्चों को अपना ले? क्या उसके पास इतना साहस है? लेकिन उसके दिल में एक कसक थी—वह खुद भी तो कभी किसी ने छोड़ दिया था। उसने बच्चों को अपने दुपट्टे में लपेटा, सीने से लगाया और मन में ठान लिया—अब ये बच्चे उसकी जिम्मेदारी हैं।

भाग 2: फुटपाथ की मां

अगले कई दिन रोशनी के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं थे। बच्चों को खाना देना, बारिश में उन्हें बचाना, उनकी देखभाल करना—सब कुछ उसने अपने दर्द को भुलाकर किया। कई बार खुद भूखी रहती, लेकिन बच्चों को हमेशा पहले खिलाती। फुटपाथ पर रहने वाले दूसरे लोग उसे ताने मारते, “अपने नाजायज बच्चों को लेकर घूम रही है!” लेकिन रोशनी ने कभी जवाब नहीं दिया।

एक दिन आदर्श को तेज बुखार हो गया। रोशनी ने इधर-उधर से पैसे जोड़कर डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने कहा, “अगर सही इलाज नहीं हुआ, तो बच्चा बच नहीं पाएगा।” रोशनी ने भीख मांगी, सड़क पर गाना गाया, लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की। आखिरकार एक बूढ़ी औरत ने उसकी मदद की, और आदर्श ठीक हो गया।

इन बच्चों के साथ रोशनी का लगाव बढ़ता गया। वे उसे “मम्मा” कहने लगे। पहली बार जब आरव ने उसे “मम्मा” कहा, उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसे लगा, शायद अब उसकी जिंदगी में कोई मायने है।

भाग 3: किस्मत का मोड़

एक रात तेज बारिश हो रही थी। सड़कें सुनसान थीं। तभी एक चमचमाती काली कार फुटपाथ के पास आकर रुकी। उसमें से उतरे कबीर मल्होत्रा—मुंबई के सबसे बड़े बिजनेसमैन। उनके चेहरे पर गुस्सा, चिंता और हैरानी थी। उन्होंने बच्चों को देखा, फिर रोशनी से पूछा,
“ये बच्चे तुम्हारे पास कैसे आए?”

रोशनी ने कांपती आवाज़ में कहा,
“मुझे ये कचरे के ढेर पर मिले थे। कोई इन्हें छोड़ गया था। मैं इन्हें मरने नहीं दे सकती थी।”

कबीर की आंखों में अजीब सा डर और पहचान का भाव था। जैसे वह इन बच्चों में अपना ही अतीत देख रहे हों। उन्होंने एक पल सोचा, फिर बोले,
“मेरे साथ चलो।”

रोशनी घबराई, लेकिन बच्चों की खातिर कबीर की कार में बैठ गई। कार एक विशाल महल जैसे घर—मल्होत्रा मेंशन—पर आकर रुकी। सिक्योरिटी गार्ड कतार में खड़े थे। सुनहरे दरवाजे, संगमरमर की सीढ़ियां, महंगे कालीन और दीवारों पर कीमती पेंटिंग्स—रोशनी ने कभी ऐसा घर सपने में भी नहीं देखा था।

भाग 4: महल की दीवारों के पीछे

घर में प्रवेश करते ही कबीर की पत्नी राधिका ने उन्हें देखा। उसकी आंखों में गुस्सा और तिरस्कार था। उसने तीखे स्वर में पूछा,
“ये सब कौन हैं?”

कबीर ने जवाब दिया,
“ये मेरे साथ रहेंगे।”

राधिका ने बाहर से मुस्कान ओढ़ ली, लेकिन भीतर से वह जल रही थी। उसे डर था कि अगर ये बच्चे और रोशनी घर में रहे, तो उसका अधिकार, उसकी जगह, उसकी दौलत सब छिन जाएगी।

अगले दिन कबीर ने घोषणा की,
“रोशनी अब यहीं रहेगी और बच्चों की देखभाल करेगी।”

राधिका ने मजबूरी में हामी भर दी, लेकिन अंदर ही अंदर वह रोशनी को हटाने की योजना बनाने लगी।

भाग 5: छुपी हुई सच्चाई

कबीर बार-बार बच्चों के चेहरों में अपने भाई रणवीर की झलक देखता। रणवीर, जो कई साल पहले एक संदिग्ध हादसे में मरा था। कबीर को हमेशा शक था कि उस हादसे में कुछ छुपा हुआ है। उसने बच्चों का डीएनए टेस्ट करवाया। रिपोर्ट आई—चारों बच्चे रणवीर के ही थे!

कबीर की आंखों से आंसू बह निकले। उसने रोशनी से कहा,
“अगर तुम नहीं होती, ये बच्चे जिंदा नहीं होते। तुम इनकी मां हो—खून से नहीं, दिल से।”

रोशनी डर गई कि अब बच्चे उससे छीन लिए जाएंगे। लेकिन कबीर ने उसे भरोसा दिलाया,
“तुम ही इन बच्चों की असली मां हो।”

राधिका यह सब देख रही थी। उसका डर अब नफरत में बदल गया। उसने ठान लिया,
“अगर रोशनी ने कबीर के दिल तक रास्ता बना लिया, तो मेरी दौलत, मेरा अधिकार सब खत्म हो जाएगा।”

भाग 6: साजिश और संघर्ष

राधिका ने एक खतरनाक आदमी को घर बुलाया। उसका मकसद था—रोशनी और बच्चों से हमेशा के लिए छुटकारा पाना। आदमी ने खुद को सिक्योरिटी स्टाफ बताया, लेकिन उसकी आंखों में खतरा साफ था।

रोशनी ने बच्चों को कमरे में बंद कर लिया। रात को उस आदमी ने दरवाजा तोड़ने की कोशिश की। रोशनी ने खिड़की से बच्चों को बाहर निकाला, खुद भी कूद गई। बारिश में भीगते, कीचड़ में फिसलते, वे एक मंदिर के पीछे छुप गए।

कबीर को जब सच्चाई पता चली, तो वह रोशनी और बच्चों को ढूंढने निकल पड़ा। आखिरकार वह उन्हें खोज ही लाया। लेकिन तभी राधिका के भेजे गुंडे वहां पहुंच गए। कबीर और रोशनी ने मिलकर उनका डटकर मुकाबला किया। पुलिस आई, गुंडे पकड़े गए, और राधिका को भी गिरफ्तार कर लिया गया।

भाग 7: जीत और नई शुरुआत

राधिका के जाते ही घर में पहली बार सुकून और प्यार की हवा बहने लगी। कबीर ने बच्चों से कहा,
“अब से तुम सब रोशनी को मम्मा कह सकते हो, क्योंकि जिसने बचाया वही असली मां होती है।”

बच्चों ने खुशी से तालियां बजाईं। रोशनी की आंखों से आंसू बह निकले। कबीर ने उसका हाथ थामा और कहा,
“तुमने मुझे सच्चाई दिखाई, मेरी आंखें खोल दीं और इन बच्चों को जिंदगी दी। मैं चाहता हूं, तुम हमेशा हमारे साथ रहो—इस घर की रानी बनकर।”

रोशनी के लिए यह किसी सपने से कम नहीं था। पहली बार उसने खुद को किसी घर, परिवार और प्रेम का हिस्सा महसूस किया।

उस रात जब सब साथ बैठे थे, बच्चों की हंसी गूंज रही थी। रोशनी ने आसमान की ओर देखा और मन ही मन कहा,
“शायद मेरे नसीब में रोना नहीं, रोशनी बनना लिखा था।”

भाग 8: घर की असली रोशनी

समय बीतता गया। रोशनी बच्चों के साथ स्कूल जाती, उनके लिए खाना बनाती, कहानियां सुनाती। कबीर ने उसे हर फैसले में बराबर का हक दिया। बच्चों ने उसे मम्मा कहना शुरू कर दिया। मल्होत्रा मेंशन में पहली बार प्यार, अपनापन और सच्चाई की हवा बहने लगी।

रोशनी ने अपने अतीत को भुलाकर एक नई जिंदगी शुरू की। उसने सीखा कि सच्चा परिवार खून से नहीं, दिल से बनता है। उसने बच्चों को सिखाया—कभी हार मत मानो, कभी डर मतो, हमेशा सच के साथ रहो।

कबीर और रोशनी ने मिलकर मल्होत्रा परिवार को फिर से जोड़ दिया। उन्होंने अनाथ बच्चों के लिए एक ट्रस्ट शुरू किया, ताकि कोई और बच्चा फुटपाथ पर अकेला न रहे।

समाप्त