आईपीएस अधिकारी ने एक नवसिखुआ छात्रा के साथ की पूरी क्रूरता | हिंदी सबक अमोज़ कहानियाँ
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आईपीएस अधिकारी ने नवसिखुआ छात्रा के साथ की क्रूरता — एक हिम्मत की दास्तान
दोपहर का सूरज दिल्ली की सड़कों पर कहर ढा रहा था। हवा में ऐसी तपिश थी कि बाइक के गर्म साइलेंसर के पास से गुजरते ही झुलसने का एहसास होता। हॉर्नों की गूंज, गाड़ियों का शोर, बसों के इंजन की घरघराहट, रेहड़ी वालों की सदाएं — यह सब मिलकर एक ऐसा हंगामा बरपा कर रहे थे जिसमें किसी भी आवाज का दब जाना आसान था। मगर इन सबके बीच एक नरम, धीमी और परसुकून सदा गूंज रही थी। यह थी ज़ैनब की तिलावत।
16 बरस की यह तालिबा हाफिजा ए कुरान थी। वह स्कूल से वापसी पर अक्सर पारा दोहराती ताकि सबक ताजा रहे। सफेद और सरमई स्कूल यूनिफार्म पसीने से भीग चुका था, मगर उसकी आवाज में ठहराव और दिलकशी बरकरार थी। दुपट्टे के नीचे से झलकती पेशानी पर पसीने के कतरे चमक रहे थे और हर आयत के साथ उसकी आंखों में अज्म की चमक झलकती। मोहल्ले के कुछ बुजुर्ग अक्सर मुस्कुराकर उसे दुआएं देते, जबकि कुछ हैरत से सुनते कि आज के जमाने में कोई लड़की यूं रास्ते में तिलावत कैसे कर लेती है। मगर ज़ैनब के लिए यह सिर्फ इबादत नहीं बल्कि तहफुज का जरिया भी था, जैसे हर आयत उसकी ढाल हो।
उस दिन का मंजर आम दिनों से बिल्कुल अलग था। सड़क के एक कोने पर पीले बैरियर लगे थे। कानों में तेज सीटियों की आवाजें गूंज रही थीं। ट्रैफिक अचानक सुस्त हो गया। ज़ैनब ने दूर से देखा कि दो अहलकार — इंस्पेक्टर प्रकाश सिंह और कांस्टेबल अरुण — हर गाड़ी रोक रहे थे। कुछ के कागजात चेक कर रहे थे, कुछ से ऊंची आवाज में बहस कर रहे थे। गाड़ियों की कतार बढ़ती जा रही थी।
ज़ैनब का दिल धक से रह गया। उसका लर्नर लाइसेंस अभी प्रोसेसिंग में था। स्कूल के बाद कोचिंग जाने के लिए वह बाइक इस्तेमाल करती थी, मगर जानती थी कि यह बात खतरा बन सकती है। उसने दिल ही दिल में दुआ मांगी, “या अल्लाह, आसानी फरमा।” मगर जैसे ही वह करीब पहुंची, इंस्पेक्टर प्रकाश सिंह की नजर सीधी उस पर जा ठहरी। वह लम्हा किसी बिजली के कड़के से कम नहीं था। प्रकाश की नजरें सख्ती और गरूर से भरी थीं, लेकिन अजीब बात यह थी कि उसकी आंखों में नापसंदी की एक झलक भी थी, जैसे ज़ैनब की तिलावत की आवाज़ ने उसके अंदर कोई चुभन पैदा कर दी हो।
“कागजात दिखाओ,” उसकी आवाज कड़कदार थी। सीटी की गूंज और सख्त लहजे ने माहौल को और बोझिल कर दिया। ज़ैनब ने ब्रेक दबाया, बाइक रोकी और परसुकून अंदाज में हेलमेट उतारा। उसने सलाम किया, बैग खोला और रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट निकालकर आगे बढ़ाया। उसके हाथ हल्के-हल्के कांप रहे थे, मगर आवाज में वकार था। “मेरा लर्नर कार्ड अप्लाइड है, सर। गलती पर चालान कर दें।”
प्रकाश ने कागज को झटके से पकड़ा और एक सरसरी नजर डाली। उसके होठों पर तंजिया मुस्कान उभरी। कांस्टेबल अरुण पास आकर ज़ैनब को ऊपर से नीचे तक देखता रहा और जेरेलब कुछ कहा, जिस पर प्रकाश ने हामी भरी। इर्दगिर्द खड़े लोग खामोशी से यह सब देख रहे थे। कुछ को ताज्जुब था कि एक स्कूल की बच्ची किस सुकून से यह सब बर्दाश्त कर रही है, और कुछ के दिल में बेबसी कि पुलिस के सामने जुबान खोलना कितना मुश्किल होता है।
उस लम्हे ज़ैनब ने अपने दिल की धड़कन को काबू करने के लिए ज़रे लब फिर से तिलावत शुरू की। आयत के अल्फाज उसकी जुबान पर आते ही जैसे दिल का बोझ हल्का होता गया। मगर प्रकाश के लिए यह आवाज चुभती हुई मालूम हुई। वह और सख्त लहजे में बोला, “यहाँ कोई चालान नहीं होगा, समझी? जो मैं कहूँगा वही होगा।”
ज़ैनब ने नजरें झुकाई, मगर दिल में एक बात पुख्ता थी — सच बोलना है और जुल्म के आगे नहीं झुकना। प्रकाश सिंह ने रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट हाथ में लेते हुए सरसरी नजर डाली और फिर तंजिया हंसी-हंस दी। उसके चेहरे पर ऐसी मुस्कुराहट थी जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को जाल में फंसा देखकर लुत्फंदोज हो रहा हो।
“यह सब दिखावे की चीजें हैं। असल में लाइसेंस कहाँ है? लर्नर अप्लाई किया है या बस बहाना बना रही हो?” प्रकाश ने तंज किया।
ज़ैनब ने निगाह झुकाए, मगर लहजा वकार से भरा था, “जी सर, अभी प्रोसेस में है। अगर यह गलती है तो आप चालान काट दीजिए। मैं कानून के मुताबिक जुर्माना अदा कर दूंगी।”
उसके अल्फाज साफ और सीधे थे। मगर प्रकाश को यह अंदाज पसंद नहीं आया। उसे एक तालिबा की यह जुर्रत बर्दाश्त नहीं हुई कि वह कानून की जुबान में बात करे। उसने रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट फिर से मेज पर पटका, जो नाके के पास रखी गई फोल्डिंग टेबल पर रखा था। इर्दगिर्द खड़े दो सिपाहियों ने कहा, “लगाओ,” और एक दूसरे की तरफ मानीखेज नजरों से देखा।
इसी दौरान कांस्टेबल अरुण ने आगे बढ़कर आवाज और सख्त कर दी, “बेटी जी, तुम्हें पता है नया मोटर व्हीकल एक्ट कितना सख्त है। एक बार कोर्ट का केस लग गया तो ना स्कूल जा सकोगी, ना कोचिंग। तारीख पर तारीख पड़ती रहेगी। बेहतर है यहीं मामला खत्म कर दो।”
ज़ैनब ने सर उठाकर पहली बार दोनों की आंखों में देखा। उसकी पलकों पर पसीने और आंसू के कतरे एक साथ झलक रहे थे, मगर आवाज मजबूत थी, “सर, मैं गलती मानती हूँ। लेकिन रिश्वत देना मेरे दीन और मेरे उसूल के खिलाफ है। आप चालान कर दें, मैं तस्लीम कर लूंगी। नकद मामला मुमकिन नहीं।”
यह सुनकर प्रकाश के माथे पर शिकनें और गहरी हो गईं। उसने तल्खी से कहा, “वाह, बड़ी बहादुर निकली आप। कानून का सबक हमें पढ़ाओगी। चालान तो कोर्ट में जाएगा, वक्त, पैसे सब झाया होंगे। इससे बेहतर है कि एक लाख अभी दो, सब खत्म।”
ज़ैनब का दिल जैसे धक से रह गया। “एक लाख, सर? मैं तालीबा हूँ, मेरे पास तो रोज के लंच के पैसे भी बमुश्किल होते हैं। इतनी बड़ी रकम कहाँ से लाऊं?”
प्रकाश ने तमस्खुर से कहखा लगाया और बोला, “अगर पैसे नहीं तो फिर नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहो। गाड़ी जब्त, तुम्हारे माता-पिता थाने के चक्कर लगाते रहेंगे और तुम कोर्ट-कचहरी के धक्के खाओगी।”
ज़ैनब के इर्दगिर्द कुछ लोग खड़े हो गए थे। एक रिक्शा ड्राइवर जो सड़क किनारे खड़ा था, आहिस्ता से करीब आया और सरगोशी की, “बेटी, हिम्मत रखो, फोन का कैमरा ऑन कर लो।”
ज़ैनब ने लरजते हाथों से अपना मोबाइल निकाला और रिकॉर्डिंग शुरू करने की कोशिश की, मगर प्रकाश की तेज निगाहों ने यह हरकत भांप ली। उसने झपट्टा मारकर मोबाइल छीनने की कोशिश की। मोबाइल उसके हाथ से गिरकर जमीन पर जा गिरा। अरुण ने पैर से धक्का दिया और वह कचरे के ढेर के करीब जा गिरा।
यह मंजर देखकर इर्दगिर्द के लोग सहम गए, मगर कई नौजवानों ने अपने-अपने फोन निकालकर खुफिया तौर पर रिकॉर्डिंग शुरू कर दी। किसी ने कहा, “यह तो सरेआम बदमाशी है। एक बच्ची को यूं क्यों जलील कर रहे हैं?”
प्रकाश ने फौरन वायरलेस पर बेसिर पैर के कोड बोले जैसे कोई बड़ी कार्रवाई कर रहा हो ताकि भीड़ डर जाए। उसने बुलंद आवाज में कहा, “यह लड़की लाइसेंस के बगैर गाड़ी चला रही है, कानून के मुताबिक अफ़्ती होगी।”
ज़ैनब का दिल डूब रहा था, मगर वह खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी। उसके होंठ फिर से हरकत में आए। ज़रेलब उसने वही आयत दोहराई जिससे दिल को सुकून मिलता था। आंखों से आंसू बह रहे थे, मगर आवाज में लरजिश नहीं आई। वह आहिस्ता मगर मजबूत लहजे में बोली, “गलती है तो चालान कीजिए, मगर रिश्वत मैं नहीं दूंगी। यह मेरा हक है कि कारवाई कानूनी तरीके से हो।”
प्रकाश के तेवर और बिगड़ गए। उसने भीड़ को हकारत से देखा और ऊंची आवाज में कहा, “यह जिद्दी लड़की हमें सबका सिखाएगी। अभी देखते हैं।”
लोगों के दिल दहल गए। कुछ खवातीन बोल उठीं, “बेटी को न सताओ, यह नाइंसाफी है।” मगर पुलिस की वर्दी का खौफ सबको खामोश रखे हुए था। सिर्फ मोबाइल फोन के कैमरे जुल्म महफूज कर रहे थे।
ज़ैनब की आंखें लाल हो चुकी थीं, मगर जुबान पर एक ही जुमला था, “मेरा हक है, चालान करें।”
सड़क पर माहौल संगीन हो गया। गाड़ियों की कतार रुकी हुई थी। सबकी नजरें उस तालिबा पर जमी थीं जो पसीने से तरपेशानी और कंधे पर बैग लटकाए दो वर्दीपश अहलकारों के सामने खड़ी थी।
प्रकाश सिंह ने झटके से बाइक का स्टैंड मारा। गाड़ी डगमगा गई और ज़ैनब हड़बड़ा गई। अरुण तमस्खुर से बोला, “यह हमें जम्हूरियत पढ़ाने आई है। पैसे निकालो वरना अंजाम बुरा होगा।”
ज़ैनब ने नजरें झुकाईं मगर आवाज में वकार था, “सर, यह तरीका गलत है। रिश्वत लेना जुर्म है। मैं सजा कबूल करूंगी। चालान करें।”
यह अल्फाज जलती पर तेल बन गए। प्रकाश ने हेलमेट जमीन पर दे मारा और तंजिया कहा, “यही तरबियत है तुम्हारे घर की। लड़की होकर भी जुबान चला रही हो।”
एक बूढ़ी औरत बोल उठी, “बेटी को न सताओ, शर्म करो।” मगर सिपाहियों की तीखी नजरें उसे खामोश करा गईं।
अरुण ने बाइक घसीट कर बैरियर के पास खड़ी की और वायरलेस पर कोड बोलने लगा। भीड़ को डराने के लिए बोला, “गाड़ी जब्त होगी। यह बच्ची सीधे थाने जाएगी।”
ज़ैनब के हाथ कपकपा रहे थे, मगर होठों पर कुरानी आयात थी। आंखों में आंसू थे, मगर जुबान पर वही जुमला था, “मेरा हक है, चालान करें।”
यह एतमाद देखकर कई नौजवान जो खुफिया रिकॉर्डिंग कर रहे थे, हैरत से बोले, “वाह, पुलिस के सामने भी हक की बात कर रही है।”
प्रकाश को यह सरगोशियां चुभ गईं। उसने बैग झटका, किताबें जमीन पर गिर गईं। दहाड़ा, “अभी सिखाता हूं कि पुलिस से जबान लड़ाने का अंजाम क्या होता है।”
ज़ैनब पीछे हटी, मगर कदम लड़खड़ाए। एक नौजवान बोला, “सर, यह तो बच्ची है, जाने दें।”
प्रकाश ने घरा, “चुप रहो, वरना तुम्हें भी ले जाऊंगा।” नौजवान पीछे हट गया। सन्नाटा छा गया।
ज़ैनब के आंसू बह निकले। उसने किताबें समेटने की कोशिश की, मगर प्रकाश ने कंधा झटका दिया। वह लड़खड़ा गई और बैग गिर गया। किताबों के सफे हवा में सरसराने लगे जैसे नाइंसाफी के खिलाफ गवाही दे रहे हों।
मोबाइल फोन और करीब आ गए। कुछ लोग सरगोशी करने लगे, “वीडियो बना लो, यही सबूत होगा।”
ज़ैनब ने आंसू साफ किए और बुलंद आवाज में कहा, “मैं डरने वाली नहीं। इख्तियार है तो कानून के मुताबिक इस्तेमाल करें।”
प्रकाश के लबों पर जहरीली मुस्कुराहट आई। ऐलान किया, “अभी सबका सिखाता हूं ताकि कोई और पुलिस के सामने जुबान न खोले।”
फिजा में खौफ की लहर दौड़ गई। ज़ैनब के कदम डगमगाए, मगर आंखों में अजम था। यह वाकया पूरे शहर में गूंजने वाला था।
नाके के करीब चाय की दुकान पर एक नौजवान ने मंजर कैद किया और फौरन क्लिप्स जोड़कर लिखा, “कानून नहीं नकद। एक हाफिजा, एक कुरान बच्ची की सरेआम तजलील।” वीडियो WhatsApp और सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। एक घंटे में हजारों अफराद तक पहुंच गई। ट्रेंड्स में हैशटैग आया — #JusticeForZainab।
तब्सरे होने लगे, “यह है हमारी पुलिस का चेहरा। एक बच्ची को इसलिए जलील किया गया कि वह हक पर डटी रही।”
इसी दौरान नाके पर माहौल बदल गया। प्रकाश और अरुण कारवाई समेटने लगे। भीड़ अब खतरनाक हो रही थी। प्रकाश दहाड़ा, “हटो, वरना सबको थाने ले जाऊंगा।”
मगर इस बार असर नहीं हुआ। एक नौजवान बोला, “हम सब ने वीडियो बना ली है, अब तुम्हारा खेल खत्म।”
यह सुनते ही प्रकाश का रंग हो गया। उसने बाइक धकेला और साथी समेत जीप में बैठकर भाग गया।
ज़ैनब कांपते हाथों से किताबें समेटने लगी। लोग करीब आए। एक खातून ने सर पर हाथ रखकर कहा, “बेटी, तुमने बड़ी हिम्मत दिखाई। तुम्हारी आवाज हम सब ने सुनी।”
एक नौजवान ने फोन उठाकर दिया। उसकी स्क्रीन टूटी हुई थी, मगर रिकॉर्डिंग महफूज थी। आंखों में आंसू थे, मगर लबों पर तिलावत जारी रही।
वह जानती थी कि यह इख्तताम नहीं बल्कि आगाज है।
घर पहुंचकर ज़ैनब मां की गोद में गिर गई और हिचकियों के साथ सब कुछ बताया। अम्मी ने आंसू पोंछते हुए कहा, “बेटी, तुमने सच का साथ दिया है, अल्लाह तुम्हारे साथ है।”
ईशा के बाद दरवाजे की चाबी घुमी। यह मेजर समीर खान थे, ज़ैनब के पिता। उनकी वर्दी और कदमों की छाप घर में वकार पैदा करती थी, मगर आज उनके चेहरे पर गैर मामूली संजीदगी थी।
ज़ैनब लपक कर गई और लरजती आवाज में सब कुछ बता दिया कि कैसे उसे रोका गया, रिश्वत मांगी गई और सरेआम तजलील हुई।
आंसू गिरते गए और मेजर खामोश सुनते रहे। मगर उनकी मुट्ठियों की गिरफ्त सख्त होती गई। पानी की बोतल उठाते वक्त हाथ की रगें नमाई थीं।
ज़ैनब के खत्म करते ही चंद लम्हों को सुकूत छा गया। फिर मेजर ने दबंग लहजे में पूछा, “क्या नाम था उसका?”
ज़ैनब ने झुक कर कहा, “जी अब्बू, प्रकाश सिंह।”
यह सुनते ही उनकी आंखों में बिजली कौंध गई। उन्होंने कुर्सी छोड़कर कहा, “बेटी, कल हम कानून से बात करेंगे। गुस्से से नहीं, दलीलों से। तुमने हिम्मत दिखाई, अब बाप की बारी है।”
सुबह दिल्ली की हवा हल्की थी, मगर मेजर के दिल में तूफान बरपा था। रात भर नींद नहीं आई। बेटी के आंसू और आवाज उनके कानों में गूंजती रही। फौजी अफसर होने के नाते वह उसूलों के आदि थे, और अब उसूलों की पामाली उनकी बेटी के साथ हुई थी।
थाने के गेट पर पहुंचे तो माहौल बदल गया। वर्दी का रब देखकर सिपाही सहम गए। बाहर मीडिया वैने, वकील, कारकुन और बुजुर्ग मौजूद थे। वायरल वीडियो ने मामला सुर्खियों में डाल दिया था।
मेजर अंदर गए। ड्यूटी ऑफिसर खड़े होकर सलाम किया। मेजर सीधे मेज पर गए। “स्टेशन हाउस डायरी में एंट्री करें। मेरे पास सबूत हैं कि आपके अहलकारों ने रिश्वत मांगी, बाइक जब्त करना चाही और सरेआम तजलील की। यह FIR दर्ज होगी।”
उन्होंने फोल्डर खोला, प्रिंटशुदा स्क्रीनशॉट्स, वीडियो लिंक्स, गवाहों के नंबर। ऑफिसर घबरा गया, “साहब, यह मामला ऊपर तक जाएगा।”
मेजर ने दबंग लहजे में कहा, “इसीलिए आया हूं। इंसाफ सिर्फ शहरी पर नहीं, वर्दी वालों पर भी लागू होता है।”
उसी वक्त प्रकाश सिंह अंदर आया। चेहरे पर तकब्बुर था, मगर मेजर के स्टार्स देखकर लम्हा भर डगमगाया। अरुण साथ था, मगर खामोश।
मेजर ने दोनों की तरफ इशारा किया, “यही वह अफराद हैं। इन पर रिश्वत, सतानी, इख्तियारात से तजावुज और शहरी की तजलील की दफा लगे।”
माहौल में तनाव बढ़ गया। बाहर से नारे सुनाई दिए, “चालान हां, रिश्वत ना।”
एसडीपीओ आया और बोला, “मेजर साहब, तैमुल से हम इंक्वायरी करेंगे।”
मेजर ने निगाह मिलाई, “इंक्वायरी के साथ फरी मुतली का हुक्म दें, वरना यह मामला मजिस्ट्रेट कंप्लेंट तक जाएगा। सबूत मेरे पास, आवाम के पास भी। अब दबाने का वक्त गुजर गया है।”
बाहर मीडिया का दबाव और भीड़ का शोर बढ़ रहा था। एसडीपीओ ने कलम उठाया और लिख दिया, “इंस्पेक्टर प्रकाश सिंह और कांस्टेबल अरुण फरी मुअत्तल। डिपार्टमेंटल इंक्वायरी का आगाज।”
यह हुक्म सुनते ही फिजा बदल गई। ज़ैनब के आंसुओं में पहली बार सुकून झलका। मेजर ने बेटी की तरफ देखा जो कोने में खामोश खड़ी थी। करीब जाकर कहा, “बेटी, तुमने कल हिम्मत दिखाई थी। आज पहला कदम है। याद रखो, कानून के साथ चलने वाले तन्हा नहीं होते।”
ज़ैनब ने सर हिलाया। लबों पर तिलावत फिर जारी हो गई, मगर अब खौफ के बजाय यकीन की गूंज थी।
बाहर मीडिया ने खबर पाते ही कैमरे ऑन किए। हेडलाइन बनी — “तालिबा की आवाज, रिश्वतखोरों की छुट्टी।”
यह लम्हा सिर्फ ज़ैनब नहीं, बल्कि पूरे इलाके के लिए उम्मीद का पैगाम था।
थाने के कॉन्फ्रेंस हॉल को इंक्वायरी रूम बनाया गया। बड़ी मेज, फाइलों के अंबार और रिकॉर्डिंग कैमरा नसब था। दीवार पर परचम और कानून का एंबलम, फिजा बोझिल थी।
मेजर ज़ैनब के साथ अंदर आए। वहां एक खातून सब इंस्पेक्टर बैठी थी, जो खास तौर पर नियुक्त की गई थी ताकि प्रभावित बच्ची बयान दे सके।
ज़ैनब की सांसे तेज थीं। वह स्कूल की तालिबा थी, ऐसा माहौल पहली बार देखा था। मगर वालिद के अल्फाज़ याद थे, “कानून के साथ चलने वाले कभी तन्हा नहीं होते।”
सब इंस्पेक्टर ने नरम लहजे में कहा, “बेटी, डरो मत। जैसे हुआ वैसे ही सच बताओ। यह रिकॉर्ड तुम्हारी हिफाजत के लिए है।”
ज़ैनब ने पानी का घूंट लिया और बोलना शुरू किया। बताया कि स्कूल से वापसी पर तिलावत करते हुए जा रही थी। नाके पर रोका गया। कागजात दिखाए। फिर प्रकाश ने रिश्वत मांगी, धमकियां दीं और आखिरकार सरेआम जलील किया।
आवाज में कभी लरजिश आती, कभी आंसू बह निकलते, मगर वह मुसलसल बोलती गई, “सर, मैंने कहा था अगर गलती है तो चालान करें, रिश्वत न लें। लेकिन उन्होंने ₹1 लाख मांगे।”
उनकी कार पर मोबाइल छीनने की कोशिश की गई और भीड़ के सामने तजलील हुई। ज़ैनब ने बैग से वही मोबाइल निकाला जिसकी स्क्रीन टूटी थी, मगर रिकॉर्डिंग महफूज थी।
सब इंस्पेक्टर ने वीडियो देखकर कहा, “यह मजबूत सबूत है।” फिर गवाहों को बुलाया गया।
रिक्शा ड्राइवर, चाय वाला और दो तालीबात सब ने बयान कलमबंद कराया। रिक्शा ड्राइवर बोला, “मैंने देखा लड़की ने सिर्फ चालान का कहा, मगर इंस्पेक्टर पैसे मांग रहे थे।”
चाय वाले ने तस्दीक की कि वायरलेस पर जाली कोड बोले गए। तालीबात ने कहा, “हमें लगा वह हमारी ही जैसी तालीबा है। यह जुल्म बर्दाश्त नहीं हुआ।”
बयानों का कलमबंद होना जारी रहा। बाहर मीडिया के कैमरे बेचैन खड़े थे। खबर पहुंचते ही सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई। हैशटैग #JusticeForZainab कौमी सतह पर ट्रेंड करने लगा।
हर तरफ सवाल था, “क्या पुलिस तहफुज देती है या खौफ?”
इसी दौरान एक सामाजिक तंजीम ने ज़ैनब को कानूनी मदद की पेशकश की। “यह मामला सिर्फ तुम्हारा नहीं, हर शहरी का है।”
मेजर समीर मुस्कुराए। “अब यह लड़ाई झाती नहीं रही, इज्तिमाई बन गई थी।”
स्कूल में भी माहौल बदल गया। अगली सुबह असेंबली में सरगोशियां गूंजीं। लड़कियां रक से देख रही थीं।
प्रिंसिपल स्टेज पर आए और ऐलान किया, “तालिबा ज़ैनब ने हक के लिए आवाज उठाकर हम सबका सर फक्र से बुलंद किया है। उसकी नहीं, तालीमी समाज की तजलील थी।”
हाल में तालियां बज उठीं। ज़ैनब की आंखों में नमी आई, मगर यह एतमाद के आंसू थे।
शाम को वह तिलावत कर रही थी। आवाज में अब लरजिश नहीं, यकीन की गूंज थी। दिल कह रहा था, “इंसाफ का दरवाजा खुलने वाला है।”
थाने के बड़े हॉल में डिपार्टमेंटल इंक्वायरी कमेटी का इजलास हुआ। दीवार पर एंबलम और तिरंगा झंडा, फिजा बोझिल।
सामने मेज पर तीन सीनियर अफसर बैठे थे। प्रकाश सिंह और अरुण लाए गए। प्रकाश के अंदाज में लरजिश थी, अरुण की नजरें झुकी हुई थीं।
बड़ी स्क्रीन पर वायरल वीडियो चल रही थी। प्रकाश बाइक को ठोकर मारता, मोबाइल छीनने की कोशिश करता और रिश्वत मांगता। भीड़ एहतेजाज करती और ज़ैनब का जुमला गूंजता, “मेरा हक है, चालान करें, रिश्वत नहीं दूंगी।”
कमेटी सरबराह ने कहा, “इंस्पेक्टर प्रकाश सिंह, आप पर तीन इल्जाम हैं — रिश्वत का मुतालबा, तालिबा की तजलील, आवामी एतमाद को मजरू करना। क्या कहते हैं?”
प्रकाश ने कहा, “मैं कानून नाफिज कर रहा था। लड़की के पास लाइसेंस नहीं था। जब्ती की धमकी दी। रिश्वत के इल्जाम झूठ हैं।”
मेंबर ने वीडियो दोबारा चलाया। उस लम्हे प्रकाश की आवाज सुनाई दी, “एक लाख नकद दे दो, अभी सब खत्म।”
प्रकाश का चेहरा जर्द पड़ गया।
अरुण ने कहा, “सर, मैं मानता हूं हमसे गलती हुई। दबाव में रिश्वत मांगी, मगर कयादत इंस्पेक्टर की थी।”
यह इकरार सबके लिए चौंकाने वाला था।
कमेटी मेंबरों ने एक-दूसरे को देखा। फैसला आसान हो गया।
बाहर ज़ैनब और वालिद इंतजार कर रहे थे। मेजर समीर ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा, “बेटी, सब्र करो। सच मंजिल तक देर से पहुंचता है, मगर पहुंचता जरूर है।”
कमेटी ने सीसीटीवी फुटेज भी देखी, जिससे साबित हुआ कि नाका जाली था, सिर्फ रिश्वत बटोरने के लिए लगाया गया था।
आखिरकार सरबराह ने कहा, “इब्तदाई रिपोर्ट मुकम्मल। इंस्पेक्टर प्रकाश सिंह और कांस्टेबल अरुण ने इख्तियारात का गलत इस्तेमाल किया, शहरी को हिरासा किया और पुलिस को बदनाम किया। यह संगीन बदइंतजामी है।”
खबर बाहर पहुंची। मीडिया ने हेडलाइंस चलाई — “रिश्वतखोर अहलकार बेनकाब, जुर्म साबित।”
ज़ैनब के दिल पर से बोझ उतर गया। आंसू बहे, मगर सुकून और शुक्र के थे। ज़रे लब आयत पढ़ने लगी।
अगली सुबह शहर के सबसे बड़े प्रेस हॉल में हलचल थी। मीडिया के कैमरे, रिपोर्टर और शहरी नुमाइंदे कतारों में बैठे थे। सबकी नजरें दरवाजे पर जमी थीं, जहां कमिश्नर पुलिस आने वाले थे।
यह वह लम्हा था जिसका इंतजार पूरा शहर कर रहा था। वायरल वीडियो ने पुलिस पर सवाल उठा दिया था और आवाम के दिल में ज़ैनब के लिए एहतराम का तूफान बरपा कर दिया था।
चंद लम्हों बाद दरवाजा खुला। कमिश्नर पुलिस गहरे नीले रंग की साफ़-सुथरी वर्दी में हॉल में दाखिल हुए। उनके चेहरे पर संजीदगी और थकान नुमाया थी। वह जानते थे कि आज का बयान उनके इदारे के मुस्तकबिल के लिए फैसला कुंन साबित होगा।
उन्होंने माइक के सामने कागज रखा और धीरे मगर पुरज़ोर लहजे में बोलना शुरू किया, “इंस्पेक्टर प्रकाश सिंह और कांस्टेबल अरुण के खिलाफ डिपार्टमेंटल इंक्वायरी मुकम्मल हो चुकी है। शवाहिद, वीडियोस और अयनी गवाहों की रोशनी में यह साबित हुआ है कि उन्होंने इख्तियारात का नाजायज इस्तेमाल किया। एक तालिबा से रिश्वत मांगी और उसे सरेआम जलील किया। यह हरकत न सिर्फ गैरकानूनी है बल्कि महकमा ए पुलिस के उसूलों के खिलाफ भी है। लिहाजा फरी तौर पर इंस्पेक्टर प्रकाश सिंह को सर्विस से बर्खास्त किया जाता है और कांस्टेबल अरुण को मुआत्तल करके फौजदारी मुकदमा दर्ज किया गया है।”
यह ऐलान सुनते ही हॉल में बैठे लोग चौंक गए। कई रिपोर्टर फौरन अपने फोन उठाकर खबर फाइल करने लगे। कुछ लम्हों के लिए माहौल में सरगोशियां गूंजने लगीं। मगर कमिश्नर ने हाथ उठाकर सबको खामोश कराया और कहा, “हम आवाम से दिल की गहराइयों से माजरत करते हैं। यह महकमा आवाम के तहफुज के लिए है, उन पर रब जमाने के लिए नहीं। जो कुछ हुआ वह शर्मनाक है। हम वादा करते हैं कि ऐसे अंसुर को इदारे में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
यह जुमले टीवी चैनलों पर बराह रास्त नशर हो रहे थे। मुल्क भर के लोग देख रहे थे कि एक तालिबा की आवाज ने पूरे निजाम को झंझोड़ दिया है।
कमिश्नर ने मजीद कहा, “आज से नाकाबंदी के तमाम उसूल नए सिरे से नाफिज होंगे। हर नाके पर बॉडी कैमरा लाजिम होगा। बगैर तहरी इजाजत कोई भी नाका नहीं लगाया जा सकेगा। रिश्वत के खिलाफ नो कैश ऑन रोड पॉलिसी सख्ती से लागू की जाएगी और रैंडम चेक के जरिए हर कार्रवाई की निगरानी की जाएगी।”
यह अल्फाज आवाम के दिल में उम्मीद जगा रहे थे। मीडिया ने हेडलाइंस में यही जुमले दिखाए — “तालिबा की हिम्मत, पुलिस में इस्लाहात।”
उधर ज़ैनब अपने घर में यह सब मंजर बराहे रास्त देख रही थी। उसकी अम्मी ने उसके सर पर हाथ रखा और कहा, “बेटी, तुम्हारी सच्चाई ने पूरे शहर को रोशनी दिखाई है।”
मोहल्ले में जश्न का सा माहौल था। आंटियों ने मिठाई लाई, बुजुर्गों ने दुआएं दी और बच्चे तालियां बजाते हुए नारे लगाते रहे, “चालान हां, रिश्वत ना।”
ज़ैनब के वालिद मेजर समीर खान खामोशी से बैठे थे। उनके चेहरे पर इत्मीनान था, मगर वह जानते थे कि यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई। इस्लाहात का ऐलान एक अच्छी शुरुआत जरूर है, मगर असल इम्तिहान इस पर अमल दरामद होगा।
फिर भी वह दिल ही दिल में शुक्रगुजार थे कि बेटी की आवाज रायगा नहीं गई।
उस शाम जब ज़ैनब ने दोबारा कुरान खोला और आयात दोहराने लगी, उसकी आवाज में खौफ के बजाय एक अजीब सा सुकून था। हर लफ्ज में यकीन झलक रहा था। वह जानती थी कि आज की जीत सिर्फ उसकी नहीं बल्कि हर उस शहरी की है जो कभी जुल्म के सामने खामोश रहा था।
मोहल्ले के कोने पर बैठा चाय वाला भी अपने ग्राहकों को यही कहता रहा, “यह लड़की हमारे सबके लिए मिसाल है। इसने दिखा दिया कि अगर डटकर कहा जाए, ‘चालान करो, रिश्वत नहीं दूंगी,’ तो निजाम को बदलने पर मजबूर किया जा सकता है।”
सुबह का सूरज धीरे-धीरे स्कूल की इमारत पर रोशनी बिखेर रहा था। असेंबली ग्राउंड में सब तलबा कतारों में खड़े थे। आम दिनों में यह असेंबली सिर्फ दुआ, खबरें और कौमी तराना तक महदूद होती थी, मगर आज माहौल कुछ और था। फिजा में एक बेनाम सा जोश था। हर एक जानता था कि आज स्टेज पर वही लड़की आने वाली है जिसकी हिम्मत ने पुलिस के निजाम को हिला कर रख दिया।
प्रिंसिपल साहब ने माइक संभाला। उनके साथ असातिजाह की पूरी टीम खड़ी थी। उन्होंने गला साफ किया और ऐलान किया, “आज की स्पेशल असेंबली में हम सबको एक खास पैगाम देना है। हमारी तालिबा ज़ैनब, जिसने सच्चाई और हिम्मत का मुजाहरा किया, हमारे लिए फक्र का बायस है। मैं चाहूंगा कि वह स्टेज पर आए और अपने साथियों को बताएं कि सच पर कायम रहना क्या मानी रखता है।”
पूरे ग्राउंड में तालियां बज उठीं। ज़ैनब जो कतार के आखिर में खड़ी थी, आहिस्ता-आहिस्ता आगे बढ़ी। उसका दिल धड़क रहा था, मगर कदम मजबूत थे। उसके कंधे पर स्कूल बैग नहीं था, बल्कि आज उसके साथ इज्जत का बोझ था।
जैसे ही वह स्टेज पर पहुंची, सैकड़ों आंखें उस पर जम गईं। माइक पर खड़े होकर ज़ैनब ने चंद लम्हे सांस सीधी की। उसके होंठ लरज रहे थे, मगर आवाज में एक अजीब सा वकार था।
“दोस्तों, मैं कोई हीरो नहीं हूं। मैं सिर्फ एक तालिबा हूं जिसने वह कहा जो मेरा हक था। जब मुझसे रिश्वत मांगी गई तो मैंने डर के बावजूद यह कहा कि अगर गलती है तो चालान करें। उस वक्त मेरे दिल में एक ही चीज थी — हक बात कहनी है, चाहे जो भी हो।”
उसकी आवाज गूंजी तो ग्राउंड में मुकम्मल सुकून छा गया। तलबा सांस रोक कर सुन रहे थे। कुछ की आंखों में हैरत, कुछ की आंखों में रश्क और कुछ की आंखों में आंसू थे।
ज़ैनब ने आगे कहा, “हम सब नौजवान हैं। हमें लगता है कि हमारे अल्फाज की कोई कीमत नहीं। मगर सच यह है कि अगर हम डट जाएं तो एक आवाज भी पूरे निजाम को हिला सकती है। जुल्म के आगे झुकने के बजाय हमें हक का साथ देना होगा। याद रखें, इंसाफ मांगना बगावत नहीं। हमारा बुनियादी हक तुम्हारे देना है।”
पहली सफ में बैठी मिसेज वर्मा, होम साइंस की टीचर, की आंखों से आंसू बह निकले। वह धीमे से बोलीं, “बेटी, तुमने सबकी बेटियों को हौसला दिया है। तुमने दिखाया कि हिम्मत उम्र से बड़ी चीज है।”
प्रिंसिपल ने तालियां बजाकर ज़ैनब को दाद दी। फिर उन्होंने ऐलान किया, “इस वाक्य से हम सब ने सबका लिया है। स्कूल अब तलबा के लिए सिविल राइट्स ऑन रोड सेफ्टी पर खास वर्कशॉप्स का आयोजन करेगा। और सबसे अहम, हम अपने बच्चों को यह सिखाएंगे कि रिश्वत और जुल्म के खिलाफ आवाज बुलंद करना किस तरह जरूरी है।”
इस ऐलान पर पूरे हॉल में जबरदस्त तालियां बजने लगीं। तलबा की आंखों में अब खौफ नहीं, बल्कि एतमाद की रोशनी थी।
ज़ैनब आहिस्ता-आहिस्ता स्टेज से नीचे उतरी। जैसे ही वह अपनी कतार में वापस पहुंची, उसकी दोस्तों ने उसे गले लगा लिया। एक लड़की ने सरगोशी की, “ज़ैनब, तुमने हमें सिखाया कि डर के बावजूद जबान खोलनी चाहिए। हम सब तुम पर फक्र करते हैं।”
शाम को जब ज़ैनब घर लौटी तो उसके दिल में एक अजीब सा सुकून था। उसने कुरान खोला और
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