हॉस्पिटल में बेटी का इलाज कराने गई थी हॉस्पिटल का डॉक्टर निकला तलाकशुदा पति।.
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हॉस्पिटल में बेटी का इलाज कराने गई थी, डॉक्टर निकला तलाकशुदा पति – एक भावुक कहानी
पटना की गलियों में सुबह की हल्की धुंध छाई थी। गंगा के किनारे बसे इस शहर में ज्योति अपने छोटे से मकान की बालकनी में खड़ी होकर चाय की चुस्कियां ले रही थी। तीस साल की ज्योति के चेहरे पर गंभीरता थी, लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी। उसकी पांच साल की बेटी पीहू ही उसकी दुनिया थी। पीहू अपने खिलौनों के साथ खेल रही थी, और घर उसकी मासूम हंसी से गुलजार रहता था।
ज्योति एक स्कूल में शिक्षिका थी। उसकी जिंदगी अब सिर्फ पीहू और उसकी छोटी-छोटी खुशियों के इर्द-गिर्द घूमती थी। लेकिन आठ साल पहले उसकी कहानी बिल्कुल अलग थी। तब उसका जीवन रमेश के साथ प्यार और सपनों की नींव पर टिका था। रमेश उसका पति था, जिससे उसने कॉलेज में पहली बार मुलाकात की थी। दोनों का प्यार गंगा किनारे चाय की टपरी पर लंबी बातों से शुरू हुआ था। शादी के बाद दोनों ने भविष्य के सुनहरे सपने देखे थे। लेकिन धीरे-धीरे शादी के बाद चीजें बदल गईं। रमेश का करियर, उसकी महत्वाकांक्षाएं और ज्योति की छोटी-छोटी उम्मीदें कहीं टकराने लगीं। छोटी-छोटी बातें बड़े झगड़ों में बदल गईं। एक दिन रमेश ने कहा, “शायद हम दोनों ने जल्दबाजी कर दी।” तलाक के कागजों पर हस्ताक्षर करते हुए ज्योति की आंखों में आंसुओं की जगह ठंडी उदासी थी। रमेश चला गया, और पीहू तब महज कुछ महीनों की थी।
ज्योति ने खुद को संभाला और पीहू को अकेले पाला। हर मुश्किल को हंसते हुए झेला, हर रात जागकर बेटी के लिए दुआ की। उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। लेकिन आज उसकी दुनिया फिर से हिलने वाली थी।
एक सुबह नाश्ता बनाते वक्त ज्योति ने देखा कि पीहू असामान्य रूप से शांत थी। उसकी हंसी गायब थी। “पीहू बेटा, क्या हुआ?” ज्योति ने उसका माथा छुआ तो तेज बुखार महसूस हुआ। उसका दिल धक से रह गया। पीहू ने कमजोर आवाज में कहा, “बस मम्मी, थोड़ा थक गई हूं।” ज्योति ने उसे गले लगाया, लेकिन उसकी ममता भरी बाहों में भी पीहू की सांसें भारी लग रही थीं।
ज्योति ने तुरंत स्कूल को फोन कर छुट्टी ली और पीहू को लेकर अस्पताल भागी। पटना की सड़कों पर रिक्शे की रफ्तार भी उसे धीमी लग रही थी। उसकी आंखों में डर था, लेकिन मां का दिल बार-बार कह रहा था, “सब ठीक हो जाएगा।” अस्पताल पहुंचते ही उसने पीहू को इमरजेंसी वार्ड में भर्ती करवाया। नर्स ने कहा, “डॉक्टर अभी आएंगे।” ज्योति का मन बेचैन था। लेकिन उसे नहीं पता था कि अगले कुछ पल उसकी जिंदगी को हमेशा के लिए बदल देंगे।
अस्पताल की सफेद दीवारों के बीच ज्योति पीहू का छोटा सा हाथ थामे बैठी थी। पीहू की आंखें बंद थीं और चेहरा पीला पड़ गया था। डॉक्टर की प्रतीक्षा में ज्योति का मन अतीत की गलियों में भटक रहा था। तभी वार्ड का दरवाजा खुला और एक परिचित आवाज ने उसे चौंका दिया। “ज्योति?” वह आवाज जो कभी उसकी सुबह को जगाती थी, अब अचानक सामने थी। ज्योति ने सिर उठाया और सामने खड़े शख्स को देखकर उसका दिल जैसे रुक सा गया। रमेश – वही रमेश जिसके साथ उसने कभी सपने बुने थे, अब डॉक्टर की सफेद कोट में था। चेहरे पर हल्की दाढ़ी और आंखों में गहराई थी।
“तुम?” ज्योति की आवाज कांप गई। “पीहू को क्या हुआ?” रमेश ने तुरंत पेशेवर अंदाज में पूछा। उसकी आंखों में भी कुछ टूटा हुआ सा था। ज्योति ने हकलाते हुए पीहू की हालत बताई। रमेश ने तुरंत पीहू की जांच शुरू की। उसकी हर हरकत में एक अजीब सी सावधानी थी, जैसे वह सिर्फ मरीज को नहीं, बल्कि अपने अतीत को भी छू रहा हो। “उसे डेंगू हो सकता है,” रमेश ने गंभीर स्वर में कहा, “तुरंत टेस्ट करने होंगे।” ज्योति का दिल डूब गया। उसने चुपचाप सिर हिलाकर सहमति दी। रमेश ने नर्स को निर्देश दिए और फिर ज्योति की ओर मुड़ा, “वो ठीक हो जाएगी, ज्योति। मैं अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ूंगा।” उसके शब्दों में वादा था।
लेकिन ज्योति के मन में सवालों का तूफान था। आठ साल बाद रमेश फिर से उसकी जिंदगी में क्यों आया, और वह भी ऐसे वक्त में जब उसकी बेटी जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी? रात गहराने लगी थी। अस्पताल के कॉरिडोर में हल्की रोशनी और सन्नाटा था। पीहू को टेस्ट के लिए ले जाया गया था। ज्योति अकेली बेंच पर बैठी अपनी उंगलियों को मरोड़ रही थी। रमेश कुछ देर पहले वार्ड से चला गया था, लेकिन उसकी मौजूदगी ज्योति के मन में अब भी थी।
ज्योति सोच रही थी कि क्या रमेश ने कभी पीहू को याद किया? क्या उसे कभी अफसोस हुआ? तभी रमेश वापस आया, उसके हाथ में टेस्ट की रिपोर्ट थी। “ज्योति, डेंगू कंफर्म है। लेकिन घबराने की बात नहीं। हमने ट्रीटमेंट शुरू कर दिया है।” ज्योति ने सिर झुका कर सुना, लेकिन उसकी आंखों में आंसू थे। “वह मेरी जान है, रमेश। अगर उसे कुछ हुआ तो…” उसकी आवाज टूट गई। रमेश ने एक पल उसकी ओर देखा, फिर धीरे से कहा, “मैं उसकी जान बचाने की पूरी कोशिश करूंगा। वो मेरी बेटी भी है।” यह शब्द ज्योति के लिए बिजली की तरह थे। “अब बेटी याद आई?” उसने तीखे स्वर में कहा। रमेश चुप रहा, उसकी आंखों में पुराना दर्द झलक रहा था।
अगले दो दिन अस्पताल में गुजर गए। पीहू की हालत में सुधार हो रहा था, लेकिन ज्योति का मन अब भी बेचैन था। वह हर पल पीहू के पास बैठी रहती, उसका माथा सहलाती और छोटी-छोटी कहानियां सुनाती। रमेश हर कुछ घंटों में पीहू की जांच करने आता। हर बार वह ज्योति से कुछ कहना चाहता, लेकिन ज्योति की ठंडी नजरें उसे रोक देतीं।
एक रात जब ज्योति कॉरिडोर में कॉफी लेने गई, रमेश उसके पास आया। “ज्योति, मैं जानता हूं तुम मुझसे नफरत करती हो। लेकिन मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूं।” ज्योति ने उसे अनदेखा करने की कोशिश की। लेकिन रमेश ने कहा, “मैंने गलती की थी। मैंने तुम्हें और पीहू को छोड़ दिया। लेकिन मैंने हर दिन इसका दर्द महसूस किया।” ज्योति का गुस्सा फट पड़ा, “तुम्हें दर्द हुआ? रमेश, तुमने हमें छोड़ दिया जब पीहू को अपने पिता की सबसे ज्यादा जरूरत थी। मैंने उसे अकेले पाला। हर रात उसके लिए जागी, हर आंसू पोछा और तुम… तुम तो अपनी जिंदगी में मस्त थे।” रमेश ने सिर झुका लिया, “मैंने सोचा था कि तुम दोनों मेरे बिना बेहतर रहोगे। मैं गलत था।” उसकी आवाज में पछतावा था। लेकिन ज्योति का दिल अब भी सख्त था। “अब बहुत देर हो चुकी है, रमेश,” उसने कहा और चली गई।
तीसरे दिन पीहू की हालत में काफी सुधार हुआ। उसकी हंसी फिर से लौट आई थी। ज्योति ने उसे गले लगाया और आंसुओं के बीच हंसी। “मम्मी, मैं ठीक हूं ना?” पीहू ने पूछा। ज्योति ने उसका माथा चूमा, “हां मेरी जान, तू बिल्कुल ठीक है।” रमेश ने उस दिन पीहू से पहली बार बात की, “हाय पीहू, मैं तुम्हारा डॉक्टर हूं।” पीहू ने बड़ी-बड़ी आंखों से उसे देखा और कहा, “आप बहुत अच्छे डॉक्टर हो। मेरी मम्मी कहती है कि आपने मुझे बचाया।” रमेश की आंखें नम हो गईं। उसने ज्योति की ओर देखा, लेकिन ज्योति ने नजरें फेर ली।
उस रात ज्योति ने पीहू को सुलाने के बाद रमेश से बात करने का फैसला किया। “रमेश, मैं तुम्हें माफ नहीं कर सकती, लेकिन पीहू के लिए चाहती हूं कि तुम उसकी जिंदगी का हिस्सा बनो। वो तुम्हें जानना चाहती है।” रमेश ने सिर हिलाया, “मैं कोशिश करूंगा, ज्योति। मैं वादा करता हूं।”
अगले दिन पीहू को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। ज्योति उसे घर ले आई, लेकिन रमेश का चेहरा बार-बार उसकी आंखों के सामने आ रहा था। उसने फैसला किया कि वह पीहू को रमेश से मिलने देगी, लेकिन अपने दिल को संभाल कर रखेगी। रमेश ने पीहू से मिलने की इजाजत मांगी। ज्योति ने हामी भरी, लेकिन शर्त रखी कि वह सिर्फ पीहू के पिता के रूप में आएगा, न कि उसके जीवन में। रमेश ने सहमति दी। उसने पीहू के लिए एक छोटा सा खिलौना लाया, और जब पीहू ने उसे गले लगाया तो रमेश की आंखों में आंसू थे।
समय बीतने लगा। रमेश हर हफ्ते पीहू से मिलने आने लगा। ज्योति ने देखा कि पीहू अपने पिता के साथ खुश थी। वह हंसती, खेलती और रमेश की कहानियां सुनती। ज्योति का दिल धीरे-धीरे पिघलने लगा। एक दिन रमेश ने कहा, “ज्योति, मैं तुम्हें और पीहू को वापस चाहता हूं। मैं जानता हूं, मैंने बहुत गलतियां की, लेकिन मैं बदल गया हूं।” ज्योति ने जवाब नहीं दिया। उसका मन अब भी उलझन में था। क्या वह रमेश पर फिर से भरोसा कर सकती थी?
कई महीनों बाद ज्योति ने रमेश को एक मौका देने का फैसला किया। दोनों फिर से एक-दूसरे को समझने लगे। रमेश ने पीहू और ज्योति के लिए अपनी जिंदगी बदल दी। वह अब सिर्फ एक डॉक्टर नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार पिता और साथी बनने की कोशिश कर रहा था।
एक सुबह गंगा किनारे ज्योति, रमेश और पीहू साथ बैठे थे। पीहू ने अपनी छोटी उंगलियों से दोनों का हाथ पकड़ा और कहा, “मम्मी-पापा, हम हमेशा ऐसे ही रहेंगे ना?” ज्योति और रमेश ने एक-दूसरे की ओर देखा और उनकी आंखों में एक नई उम्मीद थी। उन्होंने अपने अतीत की गलतियों को पीछे छोड़कर एक नई शुरुआत की। रमेश अपनी पत्नी ज्योति और बेटी पीहू के साथ खुशी-खुशी जीवन बिताने लगे।
यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्तों में दर्द और गलतियां चाहे जितनी भी गहरी हों, प्यार और माफी की ताकत से सब कुछ बदला जा सकता है।
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