बिहार चुनाव: 25 साल का रिकॉर्ड टूटा, 65% वोटिंग! बदलाव के संकेत या फिर वही सत्ता?

बिहार में लोकतंत्र का उत्सव अपने चरम पर है। इस बार पहले चरण की वोटिंग ने इतिहास रच दिया है—करीब 65% मतदान! पिछले 25 सालों में ऐसा बंपर वोटिंग प्रतिशत कभी नहीं देखा गया।
लेकिन सवाल उठता है: आखिर ये वोटिंग प्रतिशत क्या कह रहा है? क्या बिहार की जनता बदलाव चाहती है या फिर वही पुरानी सत्ता लौटेगी?

बंपर वोटिंग के मायने

2020 के चुनाव में बिहार में 57% वोटिंग हुई थी। इस बार आंकड़ा लगभग 65% तक पहुँच गया है।
मतलब 8% वोटिंग का बम्पर उछाल!
सिर्फ यही नहीं, इस बार वोटर भी कम हुए हैं—पिछली बार 7 करोड़ 89 लाख वोटर थे, इस बार सिर्फ 7 करोड़ 14 लाख। यानी लगभग 47 लाख वोटर कम हो गए।
फिर भी, मतदान प्रतिशत में जबरदस्त बढ़ोतरी।
आखिर ऐसा क्यों हुआ?

विशेषज्ञों का मानना है कि जब-जब किसी राज्य में वोटिंग प्रतिशत बढ़ा है, वहाँ सत्ता परिवर्तन देखने को मिला है। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में रिकॉर्ड मतदान हुआ था और नतीजे सबके सामने हैं।
क्या बिहार भी उसी राह पर है?

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राजनीतिक चर्चा और जनता का गुस्सा

चुनावी चर्चा में इस बार एक नया ट्विस्ट है।
भरत यादव और प्रज्ञा मिश्रा जैसे पत्रकार लगातार आंकड़ों का विश्लेषण कर रहे हैं।
भरत यादव ने चर्चा में बताया, “पिछली बार दोनों प्रमुख गठबंधनों को 36-36% वोट मिले थे, और सिर्फ 12,000 वोटों से तेजस्वी यादव की सरकार बनने से रह गई थी। इस बार अगर 8% वोट किसी एक तरफ गया है, तो उसके वारे-न्यारे हो जाएंगे।”

लेकिन सवाल है—ये 8% वोट किसकी तरफ गया?

गाँव-गाँव में जनता का गुस्सा साफ दिख रहा है।
डिप्टी सीएम के समर्थक से एक बुजुर्ग वोटर ने कहा, “इस बार आपकी जमानत जब्त हो जाएगी। गाँव में घुसने नहीं देंगे।”
डिप्टी सीएम खुद भीड़ से घिर गए, उन पर पत्थर फेंके गए, गाड़ी पर गोबर फेंका गया।
लोगों का कहना है, “आपने काम नहीं किया, अब वोट नहीं मिलेगा।”

शराब बैन के बावजूद लोग आरोप लगा रहे हैं कि नेता खुद दारू पीते हैं।
एक वोटर ने डिप्टी सीएम से कहा, “तुम दारू पिए हो, तुम्हारी जमानत जब्त हो जाएगी!”
यह स्थिति बिहार की राजनीति और प्रशासन की कमजोरी को उजागर करती है।

फर्जी वोट और राहुल गांधी का खुलासा

चुनावी माहौल में एक और बड़ा मुद्दा उठा है—फर्जी वोटिंग।
राहुल गांधी ने एक दिन पहले एच फाइल्स के जरिए खुलासा किया कि हरियाणा चुनाव में 5 लाख फर्जी वोट लाकर 25 लाख वोट चोरी किए गए थे।
क्या बिहार में भी ऐसा हो सकता है?
भरत यादव कहते हैं, “फिलहाल तो आंकड़े यही कह रहे हैं कि जनता बदलाव चाहती है। लेकिन फर्जी वोटिंग का असर भी देखने को मिल सकता है।”

प्रज्ञा मिश्रा ने सवाल उठाया, “क्या बाहर से वोट आकर बिहार का चुनाव बदल सकते हैं?”
भरत ने जवाब दिया, “शायद, लेकिन अभी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है।”

जनता का मूड: बदलाव की उम्मीद या निराशा?

इस बार सबसे ज्यादा वोटिंग गरीब, पिछड़े, युवा और महिलाओं ने की है।
हर कोई अपने हिस्से का बदलाव चाहता है।
रीना देवी, एक महिला वोटर कहती हैं, “हमारे बच्चों को नौकरी चाहिए, गाँव में स्कूल चाहिए। इस बार वोट उसी को देंगे जो वादा पूरा करे।”

गाँव के चौपाल पर चर्चा गर्म है।
रामजी यादव, गाँव के शिक्षक, कहते हैं, “जब जनता जागती है, तब सत्ता की नींव हिल जाती है। आज बिहार की जनता ने डरना छोड़ दिया है।”

शाम होते-होते गाँव में उत्साह की लहर थी।
सोनू, पहली बार वोट डालने वाला युवा, अपने पिता से पूछता है, “पापा, क्या सच में बिहार बदल जाएगा?”
रामजी मुस्कुराते हैं, “बदलाव धीरे-धीरे आता है, लेकिन जब लोग डरना छोड़ दें, तब असली क्रांति होती है।”

राजनीतिक दावे और सच्चाई

बीजेपी के सम्राट चौधरी ने दावा किया—”हम 100 सीटें जीतेंगे!”
लेकिन पत्रकारों का कहना है कि दावे तो हर कोई करता है, असल सच्चाई जनता के वोट में छुपी है।

जब जनता ज्यादा निकलकर वोट करती है, तो बदलाव की उम्मीद जगती है।
अगर लोग वोट कम करते हैं, तो समझिए उन्हें बदलाव की जरूरत नहीं लगती।

अगला चरण और आगे की राह

पहले चरण की वोटिंग ने बिहार के चुनावी मैदान में हलचल मचा दी है।
अब सबकी नजर दूसरे चरण पर है।
क्या नीतीश कुमार की सरकार फिर बनेगी?
क्या तेजस्वी यादव की महागठबंधन सत्ता में आएगी?
क्या बीजेपी का डिप्टी सीएम अपनी जमानत बचा पाएगा?

अखबारों की हेडलाइन है—“बिहार में 25 साल का रिकॉर्ड टूटा, 65% वोटिंग! किसकी होगी जीत?”
जनता की आवाज़ बुलंद है, विरोध की लहर तेज है।

निष्कर्ष: बदलाव के संकेत या फिर वही सत्ता?

बिहार के चुनाव में इस बार सिर्फ पार्टियों की लड़ाई नहीं है,
यह लड़ाई है जनता की अपनी आवाज़ को बुलंद करने की,
अपने हक के लिए लड़ने की।

हर वोट, हर नारा, हर विरोध एक नई कहानी कह रहा है।
अब देखना है, कौन जीतेगा बिहार का दिल!
क्या बदलाव की सुबह सच में आएगी या फिर एक बार फिर वही पुराने वादे, वही पुरानी सत्ता?

यह लेख बिहार के चुनावी मैदान की सच्चाई को सामने लाता है, जहाँ हर वोट एक नई उम्मीद है, हर नागरिक बदलाव का संदेश लेकर आया है।
अब फैसला जनता के हाथ में है—क्या बिहार बदलने के लिए तैयार है?

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