अधूरी कहानी का आखिरी पन्ना

सुबह की घंटी और रहस्यमयी बक्सा

सुबह के ठीक 5:11 बजे, विहरपुर के पुराने अनाथालय की लोहे की घंटी अचानक इतनी जोर से बज उठी कि वहां सो रहे सारे बच्चे डर कर उठ बैठे। किसी को समझ नहीं आया कि इतनी सुबह कौन घंटी बजा सकता है। लेकिन सबसे पहले दौड़कर बाहर आई 11 साल की दुबली पतली लड़की — नायरा देसाई। उसकी आंखों में न नींद थी, न डर; बल्कि एक अजीब सी उम्मीद थी, जैसे उसे पता हो कि आज उसकी जिंदगी में कुछ बड़ा होने वाला है।

पिछली रात उसने आसमान की ओर देखकर भगवान से सिर्फ एक चीज मांगी थी — एक पेन। क्योंकि उस पेन से उसे अपनी मां तक पहुंचने का रास्ता लिखना था। उसकी डायरी का आखिरी पन्ना अब तक खाली था, और वह चाहती थी कि उस पन्ने पर वही कहानी लिखे, जो उसकी मां के नाम हो।

दरवाजे के पास पहुंचते ही नायरा की नजर एक पुराने, नीली रिबन में लिपटे लकड़ी के छोटे से बक्से पर पड़ी। बक्से पर किसी अनजानी लिखावट में लिखा था — “नायरा, यह तेरी आखिरी अधूरी कहानी पूरी कर देगा।”

वार्डन ईशाना वर्मा भी वहीं पहुंच चुकी थीं। ईशाना बाहर से सख्त, लेकिन अंदर से बेहद कोमल दिल वाली महिला थीं। उन्होंने हमेशा नायरा को सबसे अलग, शांत और गुमसुम पाया था। बाकी बच्चे खेलते-कूदते, हँसते-गाते थे, लेकिन नायरा अक्सर अकेली कोने में बैठकर अपनी झुर्रीदार, भूरे रंग की डायरी में कुछ लिखती रहती थी। उस डायरी के पहले पन्ने पर लिखा था — “मां, अगर आप कहीं भी हो, मैं एक दिन आपको ढूंढ लूंगी।” लेकिन आखिरी पन्ना हमेशा खाली था।

ईशाना ने जब नायरा से पूछा था, “रात में तुम किससे बात करती हो?”
नायरा ने धीमे से जवाब दिया था, “आसमान से। वहां कहीं ना कहीं मेरी मां भी है। जब मैं आखिरी पन्ना लिख लूंगी, शायद भगवान उन्हें पढ़ने देगा।”

ईशाना ने पहली बार किसी बच्ची की आंखों में इतना टूटा हुआ भरोसा देखा था, जिसे संभालना चाहकर भी वह संभाल नहीं पाई थीं। और अब, भगवान ने सिर्फ पेन नहीं, बल्कि एक रहस्यमय बक्सा भेज दिया था।

पूरा अनाथालय दरवाजे के पास जमा हो गया। बच्चे फुसफुसा रहे थे — “इसमें क्या है? किसने भेजा? नाम भी लिखा है!” लेकिन नायरा चुप रही। उसका हाथ बक्से को छूते ही कांपने लगा, जैसे बक्सा सिर्फ लकड़ी का नहीं, बल्कि उसके अतीत का कोई हिस्सा हो।

ईशाना ने नरमी से पूछा, “नायरा, डर मत, खोलना चाहोगी?”
नायरा ने सिर हिलाया, “हां, लेकिन अकेली नहीं। आप मेरे साथ हो?”
ईशाना ने उसका हाथ थाम लिया।

नायरा ने नीली रिबन धीरे-धीरे खोली और बक्से का ढक्कन उठाया। ढक्कन खुलते ही एक हल्की सी सुगंध आई, जैसे पुराने समय की कोई याद ताजा हो गई हो। बक्से में केवल तीन चीजें थीं — एक सुनहरी निब वाला काला पेन, एक मुड़ा हुआ कागज, और एक छोटा सा तांबे का सिक्का, जिस पर एक तारीख उकेरी थी — 17 सितंबर 2023।

यह तारीख किसी बच्चे की समझ से बाहर नहीं थी, क्योंकि ठीक इसी तारीख पर नायरा की मां उसे अनाथालय के गेट पर छोड़कर गायब हो गई थीं। नायरा का चेहरा पीला पड़ गया। वह पेन उठाते-उठाते रुक गई।

ईशाना ने कागज खोला, उसमें सिर्फ एक लाइन लिखी थी — “अधूरी कहानी उसी दिन पूरी होगी, जिस दिन सच लिखा जाएगा।” और नीचे एक साइन था — आर.डी.

अनाथालय के लोग सोच रहे थे कि यह कोई अजनबी होगा, लेकिन नायरा ने कंपकंपाती आवाज़ में कहा, “आर.डी. मतलब रूहानी देसाई — मेरी मां का नाम।”

पूरा अनाथालय जैसे पत्थर का बन गया। कोई हिल नहीं पाया। किसी ने ऐसी घड़ी की उम्मीद नहीं की थी। ईशाना ने नायरा को गले से लगा लिया, “बेटा, यह किसी ने मजाक में नहीं भेजा। यह किसी ऐसे ने भेजा है, जो तुम्हारी मां को बहुत करीब से जानता था।”

लेकिन नायरा के दिमाग में सवालों का तूफान चल रहा था — मां कहां है? यह बक्सा किसने भेजा? भगवान ने पेन दिया या कोई इंसान? और यह सच कौन सा है, जो उसे लिखना है?

वह पेन लेकर अपनी डायरी के आखिरी पन्ने पर बैठ गई। उसके हाथ कांप रहे थे। बाकी बच्चे दूर से देख रहे थे, जैसे कोई फिल्म का क्लाइमेक्स शुरू हो गया हो। लेकिन कुछ लिखने से पहले उसने पेन की निब को देखा और वहीं ठिठक गई।

पेन की निब के बिल्कुल किनारे एक छोटा सा खरोचा हुआ अक्षर था — एन.डी., यानी नायरा देसाई। यह पेन नया नहीं था। यह बहुत पुराना था, जैसे कभी किसी ने बहुत पहले किसी के लिए संभाल कर रखा हो।

“ईशाना मैम, यह पेन मेरा कैसे हो सकता है?” नायरा ने कांपते हुए पूछा।
ईशाना जवाब ढूंढ ही रही थीं कि उसी वक्त अनाथालय का फोन बज उठा। पहली, दूसरी, तीसरी — किसी ने उठाने की हिम्मत नहीं की। लेकिन चौथी घंटी पर ईशाना ने फोन उठाया।

“हेलो, सहज आश्रय अनाथालय?”
फोन के दूसरी तरफ से किसी महिला की घबराई हुई आवाज आई — “क्या वहां एक बच्ची है, जिसका नाम नायरा देसाई है?”
ईशाना का हाथ कांप गया। नायरा ने सब सुन लिया। पूरा अनाथालय सन्न। आवाज फिर आई — “अगर वह है, तो उसे कहिए, उसकी मां जिंदा है।”

नायरा के हाथ से पेन गिर गया और बस वहीं से असली कहानी शुरू होती है।

सच की तलाश और रहस्य की परतें

फोन से आई उस अजनबी महिला की आवाज़ ने जैसे पूरे अनाथालय की हवा रोक दी थी। नायरा देसाई के हाथ से पेन गिरते ही सब बच्चे डर कर पीछे हट गए। लेकिन उसकी आंखें किसी गहरी खाई में गिरती हुई सी लग रही थीं, जैसे दिल एक साथ उम्मीद और डर दोनों से भर गया हो — “मेरी मां जिंदा है?”

फोन पर महिला की आवाज कांप रही थी — “कृपया उसे कहना कि मैं उससे मिलना चाहती हूं। बहुत जरूरी है।” इससे पहले कि ईशाना कुछ पूछ पाती, कॉल अचानक कट गई। ईशाना ने फिर नंबर मिलाया, लेकिन नंबर बंद।

नायरा वहीं जमीन पर बैठ गई। उसके घुटने कांप रहे थे। बाकी बच्चे सोच भी नहीं पा रहे थे कि इतनी बड़ी खबर इतनी छोटी बच्ची पर क्या असर करेगी। ईशाना उसके पास बैठकर बोलीं, “बेटा, कुछ भी हो, हम साथ हैं।” लेकिन नायरा को जैसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था। उसके दिमाग में बस एक ही सवाल जल रहा था — अगर मां जिंदा है, तो उसने उसे वापस लेने के लिए 11 साल क्यों नहीं लगाए? और अब अचानक फोन क्यों?

उधर लकड़ी का बक्सा अभी भी खुला पड़ा था, जैसे उसमें कोई और राज छुपा हो। पेन, कागज और वह तांबे का सिक्का, जिसकी तारीख 17 सितंबर 2023, आज फिर उसकी रगों में किसी पुराने घाव की तरह दर्द बनकर चुभ रही थी। वही तारीख, वही दिन, जब नायरा को अनाथालय के गेट पर छोड़ा गया था।

नायरा उठी और बक्से को ध्यान से देखने लगी। उसकी उंगलियां सिक्के के किनारे पर बार-बार घूम रही थीं, जैसे वह सिक्का ही कुछ बोलने वाला हो।

ईशाना ने पूछा, “बेटा, तुम्हें उस दिन की कुछ याद है?”
नायरा ने धीरे से सिर हिलाया, “बस थोड़ी धुंधली सी आवाजें, किसी का रोना, कोई कह रहा था — मुझे माफ करना नायरा, मेरे पास और कोई रास्ता नहीं। फिर अचानक अंधेरा और मैं यहां।”

ईशाना ने उसके कंधे पर हाथ रखा। लेकिन नायरा ने कहा, “मैम, अगर मां जिंदा है तो वह मुझे लेने क्यों नहीं आई?” यह सवाल ऐसा था, जिसका जवाब ईशाना के पास भी नहीं था।

तभी दूरी में अनाथालय के बाहर किसी गाड़ी की हल्की आवाज सुनाई दी। बच्चे चौंक गए। सुबह उगने ही वाली थी और ऐसे समय कोई वहां आता नहीं था। ईशाना खिड़की की तरफ बढ़ीं। बाहर एक काली रंग की पुरानी एसयूवी खड़ी थी, लेकिन उसमें से कोई उतरा नहीं। बस गाड़ी के हेडलाइट्स नायरा की खिड़की पर सीधा पड़ रहे थे, जैसे कोई बस देख रहा हो, इंतजार कर रहा हो, निगरानी कर रहा हो।

ईशाना का दिल तेज धड़कने लगा — “कौन हो सकता है?” लेकिन नायरा उस गाड़ी को देखकर एकदम सन्न रह गई। उसकी आंखें फैल गईं — “मैंने… मैंने यह गाड़ी पहले भी देखी है।”

“कहां?”
“सपने में…” नायरा की आवाज कांप रही थी, “पिछली रात सपने में यही गाड़ी मुझे कहीं ले जा रही थी, पर मैं देख नहीं पा रही थी कि उसमें कौन बैठा है।”

इतने में गाड़ी की हेडलाइट्स अचानक बंद हुईं और एसयूवी धीरे-धीरे पीछे मुड़कर गायब हो गई — बिना आवाज, बिना किसी निशान, बस धूल छोड़कर। अनाथालय में डर और रहस्य की ठंडी लहर दौड़ गई।

ईशाना तुरंत गेट की ओर भागीं, लेकिन बाहर कोई नहीं था। सड़क बिल्कुल खाली थी, हवा तक खामोश। अब मामला सिर्फ एक पेन या एक बक्से का नहीं था। कुछ बहुत बड़ा हो रहा था, और यह सब नायरा के आसपास क्यों?

ईशाना ने नायरा को कमरे में ले जाकर कहा, “आज तुम बाहर बिल्कुल नहीं जाओगी। कुछ अजीब हो रहा है।” लेकिन नायरा ने कहा, “मैम, अगर वह मेरी मां ही थी तो? अगर वह मुझे देखने आई हो तो?”

ईशाना ने जोर से सिर हिलाया, “नहीं बेटा, कोई मां अपनी बच्ची से मिलने ऐसे छुपकर नहीं आती।” पर यह बात खुद बोलते हुए भी ईशाना का दिल भरोसा नहीं कर पा रहा था।

उधर कागज का वह पुराना पन्ना बार-बार हवा से हिल रहा था, जैसे उसमें कुछ और भी लिखने को कह रहा हो। नायरा ने पेन उठाया और कहा, “शायद मुझे लिखना पड़ेगा वही, जो मां चाहती हैं।”

“क्या?”
“सच।”
नायरा ने डायरी का आखिरी खाली पन्ना खोला, लेकिन पेन जैसे खुद-ब-खुद भारी हो गया था, जैसे उसमें कोई सीक्रेट छुपा हो जिसे बाहर आने में डर लग रहा हो।

तभी अचानक कमरे की लाइट हल्की टिमटिमाई और बंद हो गई। पूरा कमरा अंधेरे में डूब गया। बच्चे डर कर चिल्लाए। स्टाफ दौड़ कर बाहर निकले। पूरे अनाथालय की बिजली किसी ने काट दी थी। लेकिन सबसे डरावनी बात यह नहीं थी, बल्कि यह कि अंधेरे में भी नायरा के कमरे की खिड़की पर वही काली एसयूवी दोबारा दिखाई दी। इस बार गाड़ी और भी पास आ गई थी, इतनी पास कि गाड़ी में बैठा इंसान खिड़की से छाया की तरह दिख रहा था।

ईशाना ने डरकर पर्दा बंद किया और बोलीं, “यह कोई मजाक नहीं है। पुलिस को बुलाना पड़ेगा।” लेकिन जैसे ही उन्होंने फोन उठाया, फोन पर नेटवर्क ही गायब था। पूरा अनाथालय जैसे किसी अदृश्य जाल में फंस गया था।

नायरा अब और डर नहीं रही थी। उसकी आंखों में एक अलग सी चमक थी — “मुझे लगता है, यह गाड़ी मेरी मां की नहीं है।”
“फिर किसकी?”
“किसी ऐसे की, जो नहीं चाहता कि मैं आखिरी पन्ना लिखूं।”

यह सुनकर ईशाना के पसीने छूट गए। तभी दरवाजे पर धीमी सी दस्तक हुई — थक थक थक। इतनी धीमी कि जैसे कोई सिर्फ एक व्यक्ति को बुला रहा हो — नायरा को।

बच्चे रोने लगे, लेकिन दरवाजे पर खड़ी छाया बिल्कुल हिली नहीं, सिर्फ इंतजार करती रही। ईशाना हिम्मत जुटाकर बोलीं, “कौन है?” कोई जवाब नहीं। नायरा आगे बढ़ी, “मैम, शायद वो…”

तभी दरवाजे के नीचे से एक छोटा सा सफेद कागज अंदर सरकाया गया। कागज पर सिर्फ एक ही लाइन लिखी थी — “नायरा, यह पेन तुझे सच तक ले जाएगा, लेकिन सच अपनाने की कीमत भारी होगी।” और नीचे वही साइन — आर.डी.

नायरा की सांस अटक गई — “यह मां की लिखावट है।”
ईशाना ने दरवाजा खोला, लेकिन बाहर कोई नहीं था — खाली गलियारा, दूर तक सन्नाटा। और तभी अनाथालय का पिछले दरवाजे वाला गेट खुद-ब-खुद खुल गया, जैसे किसी ने नायरा को अंदर नहीं, बाहर आने के लिए बुलाया हो।

नायरा धीरे-धीरे गेट की तरफ चली और कहानी अब उस रास्ते पर बढ़ने वाली थी, जहां से वापसी शायद नहीं थी।

सच का सामना और मां-बेटी की मुलाकात

अनाथालय का पिछला गेट धीरे-धीरे चरमराता हुआ खुला, जैसे बरसों बाद कोई बंद कहानी खुद बाहर निकलना चाहती हो। रात की हवा अचानक बहुत भारी लगने लगी और चांद की हल्की रोशनी नायरा देसाई के पैरों के पास गिरकर रास्ता दिखा रही थी, जैसे उसे किसी ऐसी जगह ले जाना चाहती हो, जहां सच उसका इंतजार कर रहा हो।

ईशाना वर्मा उसे रोकने की कोशिश कर रही थीं — “नायरा, रुक जाओ। यह सुरक्षित नहीं है।” लेकिन नायरा की आंखों में अजीब सी मजबूरी थी, मानो उसके अंदर कोई अदृश्य आवाज कह रही हो — “आज नहीं रुकोगी। आज तुम्हारी कहानी पूरी होगी।”

बाकी बच्चे दरवाजे पर खड़े रो रहे थे, पर नायरा जैसे किसी और ही दुनिया में चल रही थी। जैसे वह अपने पैरों से नहीं, अपने अतीत के खिंचाव से आगे बढ़ रही हो।

जैसे ही वह बाहर निकली, सामने रास्ते के किनारे वही काली एसयूवी अब तीसरी बार दिखाई दी। इस बार इंजन बंद, लाइटें बंद, लेकिन दरवाजा थोड़ा सा खुला हुआ। कोई अंदर बैठा था — स्थिर, शांत, जैसे किसी फैसले की प्रतीक्षा कर रहा हो।

नायरा धीरे-धीरे आगे बढ़ी। उसकी दिल की धड़कनों की आवाज तक सुनाई दे रही थी। ईशाना ने आखिरकार हिम्मत की और उसके पीछे दौड़ पड़ी। लेकिन तभी एसयूवी के सामने अचानक एक लंबी कद-काठी वाला आदमी अंधेरे से निकल कर खड़ा हो गया। उसकी आंखें सीधी नायरा पर टिकी थीं। उसने हाथ उठाकर ईशाना को रुकने का इशारा किया — बिना एक शब्द बोले। उसकी उपस्थिति ऐसी थी कि ईशाना कुछ कदम पीछे हट गईं।

आदमी ने शांत स्वर में कहा, “वह यहीं रुकेगी। सिर्फ नायरा।”

नायरा ने कांप कर पूछा, “आप कौन हैं?”

आदमी ने धीरे-धीरे कार का दरवाजा खोला और अंदर बैठी एक महिला के चेहरे पर चांदनी पड़ी। नायरा की सांस अटक गई — उस महिला के गले में वही छोटा सा दिल के आकार वाला पेंडेंट था, जो नायरा के गले में बचपन से था। दो बिल्कुल एक जैसे पेंडेंट, दो हिस्से, एक कहानी।

महिला ने कांपती आवाज में फुसफुसाया, “नायरा…”
नायरा वहीं जम गई — “मां!”

महिला — रूहानी देसाई — ने धीमे आंसुओं के साथ सिर हिलाया। उसका चेहरा कमजोर, आंखें लाल, बाल बिखरे हुए — जैसे किसी लंबे संघर्ष से गुजरी हो। वह धीरे-धीरे कार से बाहर निकली, लेकिन उसके कदम भारी थे, जैसे पैरों से नहीं, दिल से खून बह रहा हो।

दोनों आमने-सामने खड़ी थीं — मां और बेटी, 11 साल बाद। हवा में ऐसी खामोशी थी कि दुनिया रुक गई लगे। रूहानी ने नायरा के चेहरे को छूना चाहा, लेकिन हाथ आधे रास्ते में ही कांप कर रुक गया।

“नायरा, मुझे माफ कर देना। मैंने जो किया, उसके पीछे मजबूरी थी, गलती नहीं।”
नायरा के होंठ कांप रहे थे — “आपने मुझे छोड़ क्यों दिया?”

रूहानी घुटनों पर गिर पड़ीं — “क्योंकि अगर उस दिन तुम्हें अपने पास रखती, तो तुम आज तक जिंदा नहीं होती।”

यह शब्द सुनते ही सबके चेहरे पर सदमा छा गया। ईशाना आगे बढ़ीं, “मतलब?”

तभी वह लंबा आदमी बोला, “सही समय आ गया है। उसे सब बताओ।”

रूहानी की आंखें बंद हो गईं, जैसे पूरी कहानी उसके सीने में जल रही हो — “नायरा, तुम मेरी बेटी ही नहीं, मेरी गवाही भी हो।”

“गवाही?”
“जिस दिन मैंने तुम्हें जन्म दिया, उसी दिन मैंने एक ऐसी चीज देख ली, जो नहीं देखनी चाहिए थी — शहर का एक बेहद शक्तिशाली इंसान, जो बच्चों के नाम पर बड़ा खेल करता था। और मैंने सब सच रिकॉर्ड कर लिया। बस उसी दिन से मेरा पीछा शुरू हुआ। 17 सितंबर 2023 की रात, जब मैं तुम्हें लेकर भाग रही थी, मुझे पता था कि मैं तुम दोनों की जान नहीं बचा पाऊंगी। इसलिए मैंने तुम्हें अनाथालय के गेट पर छोड़ा, क्योंकि वहां पुलिस और सरकारी निगरानी रहती थी। और मैंने खुद भागकर उनका ध्यान अपनी तरफ मोड़ा, ताकि तुम बच जाओ।”

नायरा के आंसू खुद-ब-खुद निकल पड़े — “लेकिन आपने कभी मुझे ढूंढा क्यों नहीं?”

“क्योंकि जिस दिन मैं तुम्हें लेने आती, वह लोग तुम्हें भी मार देते। मैं छुपी रही, भागती रही, और सच प्रूफ के तौर पर इसी आदमी अर्जुन सलाइन के पास सौंपा।”

वह लंबा आदमी आगे बढ़ा — “मैं पुलिस नहीं हूं, मैं एक निजी इन्वेस्टिगेटर हूं। तुम्हारी मां की मदद कर रहा था। लेकिन जिस सच को तुम्हारी मां ने देखा, वह इतना बड़ा था कि सरकार के कुछ लोग भी उसके खिलाफ थे। इसलिए हमारा पीछा हर समय लगा रहा।”

नायरा हिल गई — “लेकिन यह सब मेरे पेन से कैसे जुड़ा है?”

रूहानी ने कांपते हुए कहा — “क्योंकि वही पेन मेरी रिकॉर्डिंग का आखिरी हिस्सा है।”

“क्या?”

“हां, उसका पिछला हिस्सा घुमाओ।”

नायरा ने पेन हाथ में लिया, पिछले हिस्से को घुमाया और उसमें से एक बेहद छोटा पतला चिप निकला, जैसे किसी बेहद छोटे कैमरे का डाटा कार्ड।

अर्जुन ने तुरंत कहा — “यह चिप उन गुनाहगारों की पूरी लिस्ट है और उन बच्चों का सच, जिन्हें वह सिस्टम से गायब करते थे।”

ईशाना का दिल दहल गया। नायरा की आंखें भर आईं — “और मैं?”

रूहानी ने उसे कसकर गले लगा लिया — “तुम ही वजह थी कि मैं जिंदा लड़ी। तुम ही वह आखिरी हिस्सा थी, जिसे मैं दुनिया से छुपा कर रख रही थी।”

खतरे का साया और मां-बेटी की जंग

जैसे ही यह भावुक पल शुरू हुआ, अचानक कहीं पास से पैर चलने की आवाज आई। एसयूवी के पीछे से तीन काले कपड़ों में लोग निकल आए। उनके हाथ में हथियार थे। अर्जुन तुरंत नायरा और रूहानी के आगे खड़ा हो गया।

“उन्होंने हमें ढूंढ लिया।”
ईशाना ने बच्चों को अंदर जाने को कहा और खुद भी मदद के लिए आगे आईं। लेकिन स्थिति बेहद खतरनाक थी। उन तीनों में से एक ने चीख कर कहा — “चिप सौंप दो, वरना लड़की को यहीं खत्म कर देंगे!”

नायरा रूहानी की गोद में सिमट गई। रूहानी ने अर्जुन को देखे बिना कहा — “नायरा, सुनो, भागो बेटा, भागो!”
अर्जुन ने फुसफुसाकर कहा — “बच्ची को लेकर पीछे वाले जंगल की तरफ ले जाओ।”
लेकिन नायरा ने मां का हाथ नहीं छोड़ा — “नहीं, मैं आपको छोड़कर नहीं जाऊंगी।”

रूहानी की आंखों से आंसू झरने लगे — “तुम मेरी जान हो, नायरा। मां की कसम, भागो!”

इतने में हथियार बंद लोग आगे बढ़े। अर्जुन ने उन्हें रोकने की कोशिश की। धक्का-मुक्की हुई और उसी अफरातफरी में रूहानी ने नायरा का चेहरा दोनों हाथों से पकड़कर कहा — “बेटा, मेरी आखिरी बात सुन लो, मैं मर भी जाऊं तो भी सच मत छोड़ना। यही तुम्हारी जीत होगी।”

“मां, नहीं!”

रूहानी ने अर्जुन की तरफ चिल्लाया — “इसे ले जाओ!”

अर्जुन ने मजबूरी में नायरा को खींच कर अलग किया। नायरा चीख रही थी — “मां… मां…” उस चीख ने पूरा जंगल हिला दिया। हथियार बंद लोग रूहानी को पकड़ चुके थे। लेकिन तभी रूहानी ने जोर से कहा — “अगर मेरे साथ कुछ हुआ, तो यह पेन दुनिया को सच बता देगा!”

यह सुनते ही उन लोगों का चेहरा डर से सफेद पड़ गया। उनमें से नेता चिल्लाया — “उसे खत्म करो! अभी!”

और तभी किसी ने पुलिस सायरन की आवाज सुनी। दूर से लाल-नीली लाइटें आईं। किसी ने अनाथालय से चुपके से पुलिस को खबर कर दी थी। हथियारबंद लोग घबरा गए, अंधेरे में दौड़ पड़े, रात में छिप गए। अर्जुन ने राहत की सांस ली। लेकिन रूहानी जमीन पर गिरी पड़ी थी।

नायरा दौड़कर उनकी तरफ भागी। वह गिरकर मां की छाती पर सिर रख चुकी थी — “मां, उठो!”

रूहानी की सांसें बहुत धीमी थीं। आंखें भारी, आवाज टूटी — “नायरा, बेटा, तुम बहादुर हो। तुम मेरी जीत हो। तुम मेरी कहानी का आखिरी पन्ना हो।”

“मां, मैं आपको नहीं खोना चाहती…”

“अगर मैं रही, तो तुम्हारे पास आ जाऊंगी। अगर नहीं रही, तो तुम्हारी डायरी के हर शब्द में जिंदा रहूंगी…”

इतने में रूहानी की सांसें थमने लगीं। नायरा चीख पड़ी — “मां…!”

रात का सन्नाटा टूट गया। पुलिस पहुंच गई। गुंडे भाग चुके थे। अर्जुन ने चिप पुलिस को सौंप दी — वही चिप, जिसने पूरे गैंग को कुछ दिनों में गिरफ्तार करवा दिया। बच्चों की जानें बचीं। देश भर में खबर फैली — एक मां ने अपनी बेटी को बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी।

भाग 5: नई सुबह, नई शुरुआत

कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। कुछ महीनों बाद अनाथालय में एक नई सुबह हुई। नायरा अपनी डायरी का आखिरी पन्ना खोलकर पेन उठाती है। ईशाना धीरे से पूछती हैं — “क्या लिख रही हो, बेटा?”

नायरा मुस्कुराती है — “मां ने कहा था, आखिरी पन्ना सच से पूरा करना है।” और वह लिखती है —
“मेरी मां रूहानी देसाई, दुनिया की सबसे बहादुर मां थी। उन्होंने सिर्फ मेरी नहीं, कई बच्चों की जिंदगी बचाई। और अब मैं उनकी कहानी पूरी कर रही हूं।”

वह पेन, जो कभी भगवान से मांगा था, अब सच का हथियार बन चुका था। उसी पन्ने के नीचे वह आखिरी लाइन लिखती है —
“कुछ कहानियां रोने के लिए नहीं, मजबूत बनने के लिए होती हैं। मेरी भी।”

डायरी बंद कर देती है। कैमरा दूर जाता है। कहानी खत्म होती है। लेकिन नायरा अब एक नई शुरुआत पर खड़ी होती है — सच, हिम्मत और उम्मीद के साथ।

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