न्याय न मिलने पर लड़की ने पुलिस को सिखाया सबक – अमोज वक़िया का सबक

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न्याय की आवाज़ – जोया कुरैशी की कहानी

मुंबई के एक पुराने पुलिस स्टेशन की दीवारों पर बरसों की सफेदी जमी थी। भीतर धीमी रोशनी, पंखे की भनभनाहट, और बाहर से आती ट्रैफिक की आवाज़। वहाँ की फिजा में एक अजीब सी सुस्ती थी—जैसे सब कुछ ठहरा हुआ हो। इसी ठहराव को उस दिन एक लड़की की आहट ने तोड़ा।

काले अबाए में लिपटी, सिर पर सफेद दुपट्टा, कंधे पर सरकारी फाइल और चेहरे पर दृढ़ता लिए, जोया कुरैशी पुलिस स्टेशन में दाखिल हुई। उसकी आँखों में एक ऐसी चमक थी, जो न सिर्फ थाने की कुर्सियों को, बल्कि पूरे सिस्टम की बुनियादों को हिला सकती थी।

रिसेप्शन पर बैठे जवान ने हल्की हंसी के साथ पूछा, “क्या खिदमत कर सकते हैं आपकी?”
जोया ने नरमी मगर मजबूती से कहा, “मेरा नाम जोया कुरैशी है। मेरे भाई ज़द को कल बिना किसी वारंट या इल्ज़ाम के यूनिवर्सिटी के बाहर से गिरफ्तार किया गया, और उसकी मोटरसाइकिल भी जब्त कर ली गई। मैं इसकी जानकारी लेने आई हूँ।”

जवान ने अफसर के कमरे की ओर इशारा किया। जोया आगे बढ़ी।
कमरे में एक अफसर अधलेटा अखबार पढ़ रहा था, मेज पर चाय की खाली प्याली, कुचला सिगरेट पैकेट और बिखरी फाइलें—बेपरवाही की कहानी कहती थीं।
“सर, मैं भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट हूँ,” जोया ने बिना भूमिका के कहा। “मेरे भाई को गैरकानूनी तौर पर हिरासत में लिया गया है। मैं तफ़सील चाहती हूँ।”

अफसर ने अखबार नीचे रखा, तंजिया मुस्कान के साथ बोला, “अब तो कानून भी नकाब में आता है।”
कमरे में बैठे बाकी अफसरों की दबे होठों से हंसी फूट पड़ी।
जोया की आँखें निश्चल रहीं। “मैं मजाक सुनने नहीं आई। मेरे भाई के साथ गैरकानूनी बर्ताव हुआ है। मुझे जवाब चाहिए।”

अफसर तन कर बोला, “तुम जैसे लोग हमेशा कानून की दुहाई देते हो, लेकिन खुद कानून को रौंदते हो। यहाँ कानून हम चलाते हैं, तुम्हारे जज़्बात नहीं।”
जोया की मुट्ठियाँ कस गईं, मगर उसने खुद को संयत रखा। “अगर मेरे सवालों का जवाब नहीं मिला तो मुझे ऊँचे स्तर पर शिकायत दर्ज करानी पड़ेगी। मेरी वर्दी और संवैधानिक अधिकारों को न ललकारिए।”

अफसर ने मुंह फेरते हुए कहा, “निकलो यहाँ से वरना हवालात में डाल दूँगा।”
जोया ने खामोशी से अपने पर्स से एक फाइल निकाली—भारतीय सेना की मोहर वाली फाइल। अफसर का चेहरा एक पल को जर्द पड़ गया।
“सेना में हो तो क्या हुआ? यहाँ तुम्हारे रैंक का कोई मतलब नहीं।”

जोया ने पलक नहीं झपकी। “आपका काम क्या है? बिना चालान, बिना एफआईआर, एक छात्र की गाड़ी जब्त करना?”
अफसर कुर्सी से उठकर कमरे में टहलने लगा। “ऐसा कुछ नहीं हुआ। तुम लोग शिकायतें ले आते हो—धर्म के नाम पर, अल्पसंख्यक अधिकारों पर।”

जोया ने गहरी सांस ली। उसे एहसास था कि अब तर्क का कोई वजूद नहीं, सिर्फ अहंकार का प्रदर्शन है।
“आपके विभाग की इज्जत भी इसी वर्दी से है। गलती मानकर सुधारेंगे तो इज्जत बढ़ेगी, वरना बदनामी ही फैलेगी।”

इसी बीच एक सिपाही भीतर आया, “सर, सब इंस्पेक्टर दुबे साहब का पैगाम है। गाड़ी डिपो में है।”
अफसर चौंका।
जोया की निगाहें तेज हो गईं। “तो गाड़ी वाकई डिपो में है और आप मुझे अंधेरे में रखे हुए हैं।”

अब अफसर के चेहरे पर पसीने की नमी थी। “गाड़ी है, लेकिन जब्त कानूनन की गई है।”
“तो चालान, रिपोर्ट या कोई वजह?”
अफसर चुप हो गया।
जोया ने फाइल को हाथ में लिया, “मैं जानती हूँ किस दरवाजे पर दस्तक देनी है, लेकिन उससे पहले मैं एक बहन हूँ। जब मेरे भाई को बिना वजह हिरासत में लिया जाता है तो मैं हर दरवाजा खटखटाऊंगी।”

इसी वक्त एक और अफसर हाथ में फाइल लेकर आया। “सर, ये कल रात तैयार की गई एफआईआर की कॉपी है।”
जोया ने देखा—ज़द का नाम साधारण कागज पर, बिना सरकारी मोहर, बिना हस्ताक्षर।
“यह सब झूठ है। आपने यह एफआईआर मेरे आने के बाद तैयार की है।”

अफसर की जुबान लड़खड़ाने लगी। “देखिए मैडम, कोई गलतफहमी हो गई है। हमें लगा वो लड़का चोर है।”
“चोर यूनिफार्म में, कॉलेज का स्टूडेंट, पहचान पत्र साथ। कोई जुर्म नहीं, फिर भी गिरफ्तार और गाड़ी जब्त?”

अब जोया की आवाज बुलंद हो गई। कमरे के बाहर पुलिसकर्मी झांकने लगे।
“यह कानून की बेइज्जती और अधिकारों के दुरुपयोग का सवाल बन चुका है।”

अफसर कुर्सी पर बैठने की कोशिश में गिर पड़ा। जोया आगे बढ़ी। “आपके हर कदम की रिकॉर्डिंग हो रही है। अगर सच दबाया तो यह वर्दी आपकी सजा बन जाएगी।”

वह कोने की अलमारी तक पहुँची, फाइलें देखीं और आखिरकार नीले कवर वाले रजिस्टर में ज़द का नाम मिला—नई स्याही में, अभी-अभी दर्ज।
उसने तस्वीर खींची।
“अब मेरे पास सबूत हैं। यह एफआईआर बाद में तैयार की गई। बताइए किसके कहने पर?”

सब इंस्पेक्टर दुबे आगे आया, “मैडम, यह सब इंस्पेक्टर राजीव के कहने पर हुआ था। ऊपर से आदेश आया था।”
राजीव ने गुस्से से दुबे को घूरा।
दुबे ने कहा, “आपने ही कहा था लड़का मुस्लिम है, मीडिया से जुड़ा लगता है। सबक सिखाओ।”
जोया ने मोबाइल से रिकॉर्डिंग कर ली।
“बस मुझे यही रिकॉर्डिंग चाहिए थी।”

कमरे में हर झूठ, हर फरेब सामने आ चुका था।
जोया ने पर्स से ट्रांसमीटर निकाला, “यह सब पल-पल की रिकॉर्डिंग मेरे हेड क्वार्टर में भेजी जा रही है।”

राजीव का चेहरा पीला पड़ चुका था।
“आप एक फौजी होकर यह सब कर रही हैं?”
“मैं फौजी बाद में हूँ, नागरिक पहले। जब कोई पुलिस अफसर खुद को कानून से ऊपर समझने लगे, तो हमारी खामोशी भी गुनाह बन जाती है।”

उसी वक्त दो नए चेहरे—एक फौजी अफसर और गृह मंत्रालय के अफसर—अंदर आए।
“हम लेफ्टिनेंट जोया कुरैशी द्वारा फाइल की गई शिकायत की पुष्टि के लिए आए हैं।”
जोया ने सैल्यूट किया। “सर, सबूत मुकम्मल हैं। झूठी एफआईआर, तस्वीरें, इकबाल ए जुर्म।”

फौजी अफसर ने सिर हिलाया, “बहुत खूब लेफ्टिनेंट। तुमने हर नागरिक के लिए आवाज़ उठाई है।”

अब थाने का माहौल बदल चुका था। राजीव की जुबान बंद थी। मगर एक आखिरी कोशिश उसने की, “अगर कोई गलती हुई हो तो क्षमा चाहते हैं। कभी-कभी निचले स्टाफ से चूक हो जाती है।”
जोया बोली, “यह गलती नहीं, सोची-समझी साजिश थी।”

राजीव चिल्लाया, “तुम जैसे लोग बुर्खा पहनकर वर्दी में घुस आए हो, यही असली खतरा है।”
गृह मंत्रालय के अफसर बोले, “इंस्पेक्टर राजीव, आपकी यह जबान कानून के दायरे से बाहर है। अब आप आरोपी हैं।”

फौजी अफसर ने जोया से कहा, “अब आप पीछे हटिए। यह देश के संविधान की लड़ाई है।”
मगर जोया टस से मस नहीं हुई। उसकी आँखों में संकल्प था।

तभी एक जांच अधिकारी आया। “इंस्पेक्टर राजीव ठाकुर, आपको आज से निलंबित किया जाता है। एफआईआर दर्ज होगी।”
राजीव बुत बन चुका था।
जोया ने गहरी सांस ली। “यह सिर्फ मेरे भाई की बाइक का मामला नहीं था, यह उस आवाज़ का मुकदमा था जिसे हमेशा दबा दिया जाता था। आज सच ने जीत हासिल की।”

थाने का माहौल अब सन्नाटे की चादर ओढ़ चुका था।
जोया के चेहरे पर सुकून था, मगर वह जानती थी यह सिर्फ शुरुआत है। यह एक व्यक्ति की सजा नहीं, पूरे सिस्टम पर चोट थी।

गृह मंत्रालय की आपात बैठक में जोया ने सबूत, वीडियो क्लिप्स, जाली एफआईआर और गवाह प्रस्तुत किए।
राजीव ठाकुर, सब इंस्पेक्टर दुबे और अन्य पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया, उन पर भ्रष्टाचार, वसूली और गलत हिरासत की धाराओं में एफआईआर दर्ज हुई।

अब वर्दी भी सवालों से बच नहीं सकती थी।
जोया को ऑनरी मेडल ऑफ सिविल जस्टिस से नवाजा गया। सोशल मीडिया पर #IStandWithZoya ट्रेंड करने लगा। हजारों लड़कियों ने लिखा—”हम भी जोया हैं।”

रात को जोया घर लौटी, फूलों और आशीर्वाद से स्वागत हुआ। मगर उसकी रूह चुप थी।
वह आईने के सामने खड़ी हुई, खुद से पूछा, “क्या यह काफी था? क्या कुछ अफसरों की सजा पूरे निजाम को बदल देगी?”
उसकी आँखों में थकावट थी, मगर हार मानने वाली रोशनी नहीं।

सुबह 10 बजे राष्ट्रीय राजधानी में प्रेस कॉन्फ्रेंस थी।
जोया ने मंच पर कहा,
“मैं आज यहाँ एक सिपाही बनकर नहीं, एक बहन, नागरिक और बेटी बनकर खड़ी हूँ। मेरी लड़ाई किसी एक अफसर से नहीं, उस सोच से है जो वर्दी के पीछे भ्रष्टाचार को जायज समझती है।”

गृह सचिव ने जोया को गैलेंट्री मेडल फॉर सिविल जस्टिस से सम्मानित किया, साथ ही प्रमोशन—अब वह कैप्टन जोया कुरैशी थी।

एक रिपोर्टर ने पूछा, “क्या आपको डर नहीं लगा?”
जोया मुस्कुराई, “डर उस दिन आता अगर मैं झुक जाती। फौज में सिखाया जाता है, सर कट जाए पर झुके नहीं।”

देश के दिल में एक नई रोशनी जग चुकी थी।
रात को जोया ने मोबाइल से वीडियो संदेश रिकॉर्ड किया,
“अगर आप सच के साथ खड़े रहेंगे तो जुल्म खुद झुक जाएगा। हिजाब हो या पगड़ी, हिंदू हो या मुसलमान, जब बात इंसाफ की हो तो हमारी पहचान सिर्फ एक होनी चाहिए—भारतीय नागरिक।”

अंत में कैमरा जोया के चेहरे पर टिकता है, पृष्ठभूमि में तिरंगा लहरा रहा है।
स्क्रीन पर शब्द उभरते हैं—
“अगर यह कहानी आपको प्रेरित करे तो फक्र है जोया पर लिखें। सच की आवाज़ कभी दबने ना पाए।”

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