सुलक्षणा पंडित को मुंबई में दी गई अंतिम विदाई! Sulakshana Pandit Last Journey
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सुलक्षणा पंडित: एक सुरमयी आत्मा की खामोश विदाई
बॉलीवुड की चमक-दमक भरी दुनिया में कुछ चेहरे ऐसे होते हैं जो समय के साथ धुंधले पड़ जाते हैं, लेकिन उनकी आवाज़, उनकी मुस्कान और उनकी सादगी हमेशा यादों में गूंजती रहती है। ऐसी ही एक हस्ती थीं सुलक्षणा पंडित, जिनके निधन की खबर ने पूरे संगीत जगत को शोक में डूबो दिया।
6 नवंबर 2025 की रात, मुंबई के नानावटी अस्पताल से खबर आई कि 71 वर्ष की आयु में इस सुरमयी कलाकार ने अंतिम सांस ली। यह वही तारीख थी जिस दिन, ठीक 40 साल पहले, 1985 में उनके जीवन का अधूरा प्यार — अभिनेता संजीव कुमार — इस दुनिया को अलविदा कह गए थे। शायद यही इत्तेफाक नहीं, बल्कि किस्मत का लिखा हुआ एक अधूरा गीत था, जो आखिरकार पूरा हो गया।
संगीत में जन्मी, संगीत में बसी ज़िंदगी
12 जुलाई 1954 को एक संगीत प्रेमी परिवार में जन्मी सुलक्षणा पंडित का बचपन राग, सुर और ताल के बीच बीता। उनके पिता एक शास्त्रीय संगीतज्ञ थे, जबकि उनके चाचा थे महान शास्त्रीय गायक पंडित जसराज। घर का माहौल इतना सुरमयी था कि बच्चों के कदम खुद-ब-खुद संगीत की ओर बढ़ते चले गए।
उनकी तीन बहनें और तीन भाई थे — जिनमें से जतिन-ललित की जोड़ी ने आगे चलकर हिंदी सिनेमा को कई यादगार धुनें दीं। उनकी बहन विजेता पंडित भी फिल्मों में अभिनेत्री बनीं।
सुलक्षणना ने मात्र 9 वर्ष की उम्र में गाना शुरू किया और 1967 में फिल्म तकदीर में लता मंगेशकर के साथ “सात समंदर पार से, घोड़ियों के बाजार से” गाकर सबका दिल जीत लिया। यह गीत सुपरहिट हुआ और यहीं से सुलक्षणा का सफर शुरू हुआ।

एक आवाज़ जो दिल में बस गई
1970 और 1980 के दशक में सुलक्षणा पंडित का नाम शीर्ष गायिकाओं में गिना जाने लगा। उन्होंने मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, येशुदास, मनहर उधास जैसे महान गायकों के साथ अनगिनत गीत गाए।
उनका सुर मधुर था, पर उनकी अभिव्यक्ति में गहराई थी। 1975 में आई फिल्म संकल्प का गीत “तू ही सागर तू ही किनारा, तू ही दिल का सहारा” उनके करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। इस गीत के लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
उनके अन्य लोकप्रिय गीतों में —
बेकरार दिल तू गाए जा
हमने तुमको देखा (फिल्म खट्टा मीठा)
प्यार का दर्द है
साथिया तूने क्या किया
जैसे कई अमर नगमें शामिल हैं।
सुलक्षणा की आवाज़ में वह मिठास थी जो सीधे दिल को छू जाती थी। उन्होंने उस दौर में काम किया जब संगीत सादगी और भावनाओं से बुना जाता था, न कि केवल तकनीक से।
अभिनय में भी दिखाया हुनर
सुलक्षणना पंडित सिर्फ एक गायिका नहीं, बल्कि एक अभिनेत्री भी थीं। उन्होंने लगभग 25 से 30 फिल्मों में अभिनय किया।
उनकी प्रमुख फिल्मों में उलझन, संघर्ष, विक्टोरिया नं. 203, फरारी, कला पत्थर, और चालबाज़ जैसी फिल्में शामिल हैं।
उनका अभिनय सरल, सच्चा और संवेदनशील था। जब वह पर्दे पर मुस्कुराती थीं, तो दृश्य जीवंत हो जाता था।
प्यार जो अधूरा रह गया
हर कलाकार की ज़िंदगी में एक निजी कहानी होती है — और सुलक्षणना की कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं थी।
फिल्म उलझन की शूटिंग के दौरान उनकी मुलाकात हुई अभिनेता संजीव कुमार से। वह उनसे बेहद प्यार करने लगीं।
उन्होंने एक बार संजीव कुमार को दिल्ली के हनुमान मंदिर ले जाकर कहा — “बस मेरी मांग में सिंदूर भर दो।”
पर संजीव कुमार ने चुप्पी साध ली। वह खामोशी सुलक्षणना के जीवन की सबसे बड़ी गूंज बन गई।
संजीव कुमार की ज़िंदगी में भी प्रेम का दर्द था। वह अभिनेत्री हेमा मालिनी से प्यार करते थे, पर वह रिश्ता भी अधूरा रह गया।
1985 में जब 47 वर्ष की आयु में संजीव कुमार का हार्ट अटैक से निधन हुआ, तो सुलक्षणना पंडित पूरी तरह टूट गईं।
उन्होंने कभी शादी नहीं की। उन्होंने किसी और को अपने दिल के करीब आने नहीं दिया।
वह अक्सर कहती थीं —
“जिस दिन संजीव गए, उस दिन मैं भी मर गई थी। बस साँसे चल रही हैं।”
अंधेरे में रोशनी खोजती आत्मा
संजीव कुमार के जाने के बाद सुलक्षणना ने खुद को दुनिया से अलग कर लिया। उन्होंने फिल्मों से दूरी बना ली, किसी से मिलना-जुलना बंद कर दिया।
धीरे-धीरे डिप्रेशन ने उन्हें जकड़ लिया।
वह अपने कमरे में बैठकर संजीव कुमार की तस्वीर को निहारती रहतीं।
कहा जाता है कि रात को सोने से पहले वह अपने पुराने गीत सुनती थीं — तू ही सागर तू ही किनारा, बेकरार दिल, दिल क्या करे जब किसी से किसी को प्यार हो जाए…
इन गीतों की धुनें ही उनके जीवन की सांसे बन गई थीं।
कठिनाइयों से जूझती ज़िंदगी
बीते वर्षों में सुलक्षणना की तबीयत बिगड़ती चली गई। एक बार वह बाथरूम में गिर गईं और उनकी कूल्हे की हड्डी टूट गई।
चार सर्जरी के बाद भी वह ठीक से चल नहीं पाईं।
वक्त के साथ उन्हें मेमोरी लॉस और डिप्रेशन ने घेर लिया।
वह अपनी बहन विजेता पंडित के घर में रहती थीं, जिन्होंने उनके अंतिम दिनों तक उनकी पूरी देखभाल की।
विजेता कहती हैं —
“दीदी हर रात अपने पुराने गाने सुनती थीं और मुस्कुराती थीं। शायद उन्हें अपने सुरों में ही शांति मिलती थी।”
एक युग का अंत
6 नवंबर 2025 की शाम को जब उन्होंने अंतिम सांस ली, तो ऐसा लगा जैसे संगीत ने अपनी एक मधुर तान खो दी।
उनके भाई ललित पंडित ने बताया कि उन्हें कार्डियक अरेस्ट आया था।
7 नवंबर को मुंबई के पवनहंस हिंदू श्मशान भूमि में उनका अंतिम संस्कार किया गया।
फिल्म इंडस्ट्री के कई दिग्गज कलाकार उन्हें अंतिम विदाई देने पहुंचे।
अमिताभ बच्चन ने लिखा —
“70 और 80 के दशक की वह आवाज़ अब सदा के लिए खामोश हो गई। लेकिन यादें हमेशा जिंदा रहेंगी।”
लता मंगेशकर परिवार ने ट्वीट किया —
“सुलक्षणना जी एक सच्ची आत्मा थीं। उनकी आवाज़ अमर रहेगी।”
प्रेम, पीड़ा और अमरता
कहते हैं कि सच्चा प्यार कभी मरता नहीं।
शायद यही वजह है कि जिस दिन संजीव कुमार ने दुनिया छोड़ी थी, ठीक उसी तारीख को सुलक्षणना भी चली गईं।
40 साल का फासला था, पर अंततः मौत ने दोनों को मिला दिया।
उनकी कहानी सिर्फ एक अधूरी मोहब्बत नहीं, बल्कि उस प्रेम की मिसाल है जो जीवन से भी ऊपर होता है।
आवाज़ें मरती नहीं
आज जब हम सुलक्षणना पंडित को याद करते हैं, तो हमें एहसास होता है कि उन्होंने सिर्फ गीत नहीं गाए — उन्होंने दिलों में सुर बुन दिए।
उनकी आवाज़ अब भी हवा में तैरती है, रेडियो की पुरानी धुनों में झिलमिलाती है, और उन लोगों के दिलों में बसती है जिन्होंने कभी प्यार में हार मान ली, पर उम्मीद नहीं छोड़ी।
उनकी जिंदगी हमें यह सिखाती है कि प्यार, कला और त्याग — जब एक आत्मा में मिलते हैं, तो वह साधारण नहीं रह जाती, वह “सुरमयी आत्मा” बन जाती है।
सुलक्षणना पंडित चली गईं, लेकिन उनकी आवाज़, उनका दर्द, और उनका समर्पण अब भी हमारे दिलों में गूंजता रहेगा।
“आवाज़ें मरती नहीं… वो गूंज बनकर रह जाती हैं।”
और सुलक्षणना पंडित की गूंज शायद कभी नहीं थमेगी।
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