सिग्नल पर पानी बेच रही थी गरीब विधवा लड़की… करोड़पति विधुर लड़के ने जो किया, इंसानियत हिल गई
कभी-कभी जिंदगी ऐसे मोड़ पर ले आती है जहां हालात दो टूटे हुए दिलों को फिर से मिलाते हैं। एक गरीब विधवा लड़की जो सिग्नल पर पानी बेचती थी और एक करोड़पति विधुर जिसने जिंदगी से उम्मीदें छोड़ दी थीं। लखनऊ की धूप में झुलसती वह लड़की बस ₹10 में बोतल बेच रही थी। उसी वक्त उसकी नजर पड़ी उस शख्स पर जिसे उसने कभी अपना सब कुछ माना था।
सड़क पर भीड़ थी, धूल थी और हर चेहरे पर एक ही बेचैनी थी—बस किसी तरह यह लाल बत्ती हरी हो जाए। गाड़ियों की कतार के बीच पसीने और धूप से जूझती हुई एक लड़की चल रही थी। उसके एक हाथ में बोतलों की ट्रे थी और दूसरे हाथ में टूटी चप्पल का फीता। आवाज थकी हुई थी, लेकिन दिल से निकली हुई थी, “साहब, ठंडा पानी ले लीजिए, सिर्फ ₹10 की बोतल।”
वो थी सिया वर्मा, शायद शहर के लिए बस एक बेचने वाली औरत, पर उस ट्रैफिक सिग्नल के लिए वो रोज की पहचान थी। हर दिन उसी वक्त, उसी जगह वो आती थी। चेहरे पर सादगी, आंखों में थकान, पर फिर भी होठों पर हल्की मुस्कान। वो मुस्कान नकली नहीं थी, वो मजबूरी से निकली आदत थी।
भाग 2: अतीत की यादें
उस दिन भी सिया ने कई गाड़ियों के शीशे पर दस्तक दी। किसी ने लिया, किसी ने मना किया। किसी ने हंसकर कहा, “इतनी गर्मी में भी बेच रही है, दिमाग ठीक है?” सिया ने कुछ नहीं कहा। बस आगे बढ़ गई। क्योंकि उसे पता था, अगर जवाब देने लगी तो रात को उसके बेटे गोपाल को दूध नहीं मिलेगा।
पीछे से एक ब्लैक मर्सिडीज आकर रुकी। उसकी चमक सिया की आंखों में पड़ी, लेकिन उसने नजर नहीं हटाई। वो हर गाड़ी के लिए बराबर थी। धीरे-धीरे शीशा नीचे हुआ। अंदर से एक गहरी मगर थकी हुई आवाज आई, “एक पानी देना।”
सिया ने झिझकते हुए बोतल आगे बढ़ाई। पर जैसे ही उसकी नजर उस चेहरे पर पड़ी, उसके पैरों से जमीन खिसक गई। दिल की धड़कन जैसे किसी ने पकड़ ली हो। वो चेहरा, वो आवाज—यह तो वही था। अर्नव चौधरी।
भाग 3: अर्नव की कहानी
अर्नव शहर का सबसे चर्चित बिजनेसमैन था, जिसके पास सब कुछ था सिवाय सुकून के। दो साल पहले उसकी पत्नी का एक्सीडेंट हुआ था और तब से उसकी हंसी, उसका दिल सब कुछ जैसे मर चुका था। लोग कहते थे, वह अब पत्थर बन गया है।
पर आज उस पत्थर के अंदर कोई चीज दरकने लगी थी। वह बाहर निकला और धीरे से बोला, “सिया, क्या यह सच में तुम हो?” सिया की आंखों में नमी थी, पर उसने हिम्मत से कहा, “हां, अर्नव, मैं ही हूं। अब बस हालात बदल गए हैं।”
अर्नव सन्न रह गया। “तुम यहां पानी बेच रही हो?” सिया ने हल्की हंसी दी। “हां, किसी को तो बेचना ही है ना। जिंदगी अब यही सिखा रही है कि मेहनत में शर्म नहीं, दया में दर्द है।” उसकी बातों ने अर्नव को जैसे अंदर तक हिला दिया।
भाग 4: अर्नव का प्रस्ताव
अर्नव ने जेब से पैसे निकाले और कहा, “सारी बोतलें दे दो।” सिया सकपका गई। “इतना पानी करोगे क्या?” अर्नव मुस्कुराया। “किसी की प्यास बुझाने के लिए कभी पानी कम नहीं पड़ता।” सिया ने बोतलें थमाई।
उसके मन में उथल-पुथल मच गई। वह सोच भी नहीं पा रही थी कि यह वही अर्नव है जो कभी कॉलेज में उसके साथ हंसता था, जो उसके सपनों का हिस्सा था और जिसने कहा था, “एक दिन मैं बड़ा आदमी बनूंगा, फिर तुझे भी अपने साथ रखूंगा।”
भाग 5: संघर्ष की कहानी
अब वक्त ने सब बदल दिया था। अब सिया एक विधवा थी और अर्नव एक विधुर। दोनों की जिंदगी जैसे दो टूटी नाव थी जो अलग-अलग किनारों पर भटक रही थी। अर्नव ने धीरे से कहा, “तुमने बताया क्यों नहीं, सिया? तुम यहां तक कैसे पहुंची?”
सिया की आवाज कांपी, पर फिर भी वह बोली, “पति के जाने के बाद सब खत्म हो गया, अर्नव। किराया चढ़ गया, रिश्तेदारों ने मुंह मोड़ लिया। और काम देने वाले लोग मुंह देखकर भाव बताने लगे। अब यह पानी की बोतलें ही मेरी रोजी हैं।”
भाग 6: अर्नव का संकल्प
अर्नव कुछ नहीं बोला। उसने बस उसकी आंखों में देखा और वहां जो देखा वो था सम्मान, ना कि लाचारी। सिया टूटी नहीं थी, बस झुकी नहीं थी। ट्रैफिक बढ़ रहा था, लोग हॉर्न मार रहे थे।
अर्नव ने कहा, “गाड़ी साइड में लगाओ। मुझे तुमसे बात करनी है।” सिया ने कहा, “अर्नव, सिग्नल पर बात नहीं होती। यहां वक्त पैसों में नापा जाता है।”
भाग 7: अर्नव की मदद
इतना कहकर वह आगे बढ़ गई। अर्नव ने उसे जाते हुए देखा। धूप में झुलसती पर फिर भी सीधी चाल से चलती हुई जैसे जिंदगी उसे तोड़ने की कोशिश करती रही हो। पर वो हर बार फिर से खड़ी हो गई।
उस रात अर्नव को नींद नहीं आई। हर बार आंखें बंद करता तो सिया का चेहरा सामने आ जाता। वह सोचता रहा, “जिसने अपने दर्द को मुस्कुरा कर ढक लिया, उसके लिए मैं क्या कर सकता हूं?”
भाग 8: नई सुबह
अगली सुबह लखनऊ की सड़कों पर हल्की धूप थी। लेकिन हवा में अजीब सी बेचैनी थी। शायद वही बेचैनी जो अर्नव चौधरी के दिल में भी थी। कल रात उसने खुद से एक वादा किया था। वह सिया की मदद करेगा। लेकिन इस तरह कि उसे कभी एहसास ना हो कि कोई उसकी जिंदगी में दखल दे रहा है।
वह अपनी गाड़ी लेकर उसी सिग्नल पर पहुंचा जहां सिया रोज बोतलें बेचती थी। सड़क वही थी, भीड़ वही थी। लेकिन अर्नव की नजरों में अब सिर्फ एक चेहरा था—सिया का।
भाग 9: सिया की मेहनत
वो धूप में पसीना पोंछते हुए हर गाड़ी की तरफ जा रही थी। हर बार “साहब, ठंडा पानी” कहते हुए उसके होंठ सूख रहे थे। लेकिन आंखों में थकान के बावजूद चमक थी। वो चमक जो बताती थी कि जिंदगी ने चाहे जितना मारा हो, उसने जीना नहीं छोड़ा।
अर्नव ने गाड़ी रोकी। सिया ने उसे देखा। पल भर के लिए थिटक गई। फिर धीरे से मुस्कुराई। “फिर आ गए आप। पानी खत्म हो गया क्या?” अर्नव ने हल्की मुस्कान दी। “पानी नहीं, पर चैन जरूर खत्म हो गया है।”
भाग 10: सिया की प्रतिक्रिया
सिया ने भय सिकोड़ते हुए कहा, “अर्नव, अब बातों में वक्त मत गवाइए। लोग इंतजार कर रहे हैं।” अर्नव ने गहरी सांस ली। “ठीक है, आज फिर सारी बोतलें ले लूं।”
सिया ने हंसकर कहा, “हर रोज इतनी बोतलें लोग पी नहीं सकते।” “तो क्या हुआ?” अर्नव ने कहा, “मैं उन्हें बांट दूंगा। किसी रिक्शे वाले, किसी मजदूर को दे दूंगा। शायद किसी को आज सच में प्यास लगी हो।”
भाग 11: सिया की सोच
सिया कुछ कह नहीं पाई। बस देखती रही। यह वही अर्नव था जो कॉलेज में अपनी बातों से सबको हंसाता था। और अब वही आदमी उसकी टूटी जिंदगी में कुछ अच्छा करने की कोशिश कर रहा था। पर उसके अंदर की गरीबी से लड़ने वाली सिया अभी भी सतर्क थी।
वह सोच रही थी, “कहीं यह दया तो नहीं? कहीं यह वही रहम तो नहीं जिससे मैं भागती हूं?” अर्नव ने पैसे दिए और सारी बोतलें खरीद लीं। फिर वहीं खड़े होकर उसने आसपास के गरीब बच्चों, रिक्शे वालों और ट्रैफिक वालों को बोतलें बांटना शुरू किया।
भाग 12: समाज की नजरें
लोग हैरान थे। कोई बड़ा आदमी इस तरह सड़कों पर खड़ा होकर दूसरों को पानी बांट रहा है। यह नजारा लखनऊ ने शायद पहली बार देखा था। थोड़ी देर बाद सिया उसके पास आई। “अर्नव, यह सब करने की क्या जरूरत थी?”
“जरूरत नहीं थी, सिया। बस दिल ने कहा,” उसने हल्की हंसी दी। “दिल की सुनकर ही तो लोग टूट जाते हैं।” अर्नव ने उसकी आंखों में झांका। “कभी-कभी वही टूटा हुआ दिल किसी और की जिंदगी जोड़ देता है।”
भाग 13: एनजीओ का प्रस्ताव
सिया ने चुप रहना ही बेहतर समझा। उसने सिर झुकाया और चली गई। लेकिन अगले दिन उसे पता चला कि उसके इलाके में एक एनजीओ खुलने वाला है। जहां गरीब महिलाओं को सिलाई, पढ़ाई और काम का मौका मिलेगा।
और उस एनजीओ की टीम उसके पास आई। “बहन, हमें बताया गया कि तुम बहुत मेहनती हो। हम चाहते हैं कि तुम यहां बच्चों को पढ़ाओ। बदले में तुम्हें तनख्वाह भी मिलेगी।”
सिया चौकी। “लेकिन मैंने तो अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी।” टीम की औरत बोली, “हमें किसी पढ़े लिखे इंसान की जरूरत नहीं। हमें किसी ऐसे की जरूरत है जो जिंदगी के असली मायने समझता हो। और वह तुम हो।”
भाग 14: सिया का आत्मसम्मान
सिया को समझ नहीं आया यह सब इतनी जल्दी कैसे हुआ। दिल के किसी कोने में उसे एहसास था कि इसके पीछे अर्नव का ही हाथ है। पर उसने कुछ कहा नहीं। उसके अंदर का आत्मसम्मान अभी भी जिंदा था।
वो नहीं चाहती थी कि कोई उसे तरस खाकर ऊपर उठाए। शाम को जब अर्नव फिर उसी सिग्नल पर आया। सिया ने उसे रोका। “सच बताओ, अर्नव। एनजीओ वालों को मेरे पास किसने भेजा?”
अर्नव ने हल्की मुस्कान दी। “अगर मैं कह दूं कि मैं था तो तुम नाराज हो जाओगी और अगर कह दूं कि किस्मत थी तो तुम मान नहीं पाओगी।”
भाग 15: सिया का संघर्ष
सिया की आंखें भर आईं। “अर्नव, मैं तेरी मदद नहीं चाहती। मुझे दया नहीं चाहिए। मैंने गरीबी से लड़ना सीखा है। लेकिन किसी की रहम से जीना नहीं।”
अर्नव ने शांत स्वर में कहा, “मैं दया नहीं कर रहा, सिया। मैं तुझे हक दे रहा हूं। जिस इंसान ने जिंदगी से इतनी लड़ाईयां लड़ी हैं, उसे अब थोड़ा सुकून मिलना चाहिए।”
सिया ने गुस्से से कहा, “और जब लोग कहेंगे कि एक करोड़पति विधुर किसी विधवा पर रहम खा रहा है। तब क्या करेगा तू?” अर्नव चुप हो गया। उसके पास जवाब नहीं था।
भाग 16: सिया का निर्णय
पर दिल के अंदर कहीं वह जानता था। यह समाज उनके बीच दीवार बनाएगा। लेकिन वह दीवार किसी ना किसी दिन गिरनी ही है। उस रात सिया देर तक सो नहीं पाई। उसने अपने बेटे गोपाल के सिर पर हाथ रखा और खुद से कहा, “शायद अर्नव बुरा नहीं है। शायद वह सच में कुछ अच्छा करना चाहता है।”
लेकिन मैं उसे अपने हालात का तमाशा नहीं बनने दूंगी। दूसरी तरफ अर्नव अपने कमरे की खिड़की से बाहर देख रहा था। बारिश की कुछ बूंदें गिर रही थीं और उसी के साथ उसकी आंखों से भी कुछ गिर रहा था। वो आंसू जिन्हें उसने बरसों से रोका था।
भाग 17: अर्नव का संकल्प
वो खुद से कह रहा था, “अगर मैं सिया की जिंदगी नहीं बदल पाया तो शायद मेरा करोड़पति होना किसी काम का नहीं।” लेकिन उसने तय कर लिया था। अब वह पीछे नहीं हटेगा। चाहे सिया कितनी भी मना करे। वह उसकी जिंदगी में रोशनी जरूर लाएगा। भले ही उसे खुद अंधेरे में रहना पड़े।
अगली सुबह सिया जब उस सिग्नल पर पहुंची तो देखा वहां सब कुछ बदला हुआ था। लोग उसके पास आने लगे। उसे सलाम करने लगे। किसी ने कहा, “बहन, हमने सुना तुम अब एनजीओ में बच्चों को पढ़ाने वाली हो। तुम पर गर्व है।”
भाग 18: सिया का डर
सिया हैरान थी। कल तक जो लोग उसे नीची निगाहों से देखते थे, आज वही लोग उसे सम्मान से बुला रहे थे। उसके अंदर एक अजीब सी राहत थी। लेकिन साथ ही एक डर भी। अगर यह सब अर्नव ने किया है तो क्या मैं फिर से किसी की मोहब्बत के कर्ज में डूबने जा रही हूं?
वह खुद से यही सवाल पूछ रही थी। पर जवाब शायद वक्त के पास था। वह वक्त जो अब उनके बीच एक और बड़ा मोड़ लाने वाला था।

भाग 19: नई शुरुआत
शाम का वक्त था। लखनऊ की सड़कों पर सूरज ढल रहा था। लेकिन सिया के दिल में कुछ अजीब सी बेचैनी थी। वो एनजीओ में बच्चों को पढ़ाने लगी थी। अब उसकी जिंदगी पहले जैसी नहीं थी। हर सुबह वह सिग्नल की धूप से नहीं, बच्चों की मुस्कुराहट से दिन शुरू करती थी।
कपड़े वही सादे, वही चेहरे की सादगी। पर अब उसकी आंखों में उम्मीद की एक नई चमक थी। फिर भी अंदर कुछ था जो उसे चैन नहीं लेने दे रहा था। वो महसूस कर रही थी कि कहीं ना कहीं उसकी नई जिंदगी की डोर अब भी अर्नव के हाथ में है।
भाग 20: अर्नव का सामना
और यही सोच उसका सबसे बड़ा डर बन गई थी। उस शाम जब वह एनजीओ से बाहर निकली तो देखा सामने अर्नव खड़ा था। हाथ में फूलों का छोटा सा गुलदस्ता और चेहरे पर वही हल्की मुस्कान। “क्यों आई है यह मुस्कान?” सिया ने सवाल भरी नजर से पूछा।
अर्नव ने धीरे से कहा, “तुम्हें बधाई देने आया हूं। सिया, आज तुम्हारे पढ़ाए बच्चों ने पहली बार परीक्षा में टॉप किया है।” सिया ने धीमे स्वर में कहा, “और तुम्हें यह खबर किसने दी?”
भाग 21: अर्नव का प्रयास
“एनजीओ वालों ने,” अर्नव मुस्कुराया। “क्योंकि यह सेंटर मैंने ही तो शुरू करवाया था।” सिया का चेहरा उतर गया। “मतलब मेरी जिंदगी की हर शुरुआत के पीछे तुम हो।”
अर्नव की आवाज कांप रही थी। पर गुस्से से नहीं, दर्द से। “मैं बस चाहता था कि तुम फिर से हंस सको। बस इतना ही।” लेकिन किस हक से? सिया ने तीखे स्वर में पूछा।
“क्या इसलिए कि मैं विधवा हूं और तुम विधुर?” अर्नव चौका। “सिया, मैं ऐसा नहीं सोचता।” “नहीं, अर्नव,” सिया ने बात बीच में काट दी। “तुम सोचते नहीं, महसूस करते हो। और वही गलती है तुम्हारी।”
भाग 22: समाज का दबाव
सड़क के कोने पर कुछ लोग खड़े थे जो इस बातचीत को सुन रहे थे। उनमें से किसी ने धीरे से कहा, “देखो, वही आदमी है ना जो उस विधवा को काम दिलवाया था।” दूसरा बोला, “सब समझ में आता है।”
अब सिया ने यह बातें सुन ली। उसका चेहरा पीला पड़ गया। वो फौरन पीछे मुड़ी और चली गई। बिना अर्नव की तरफ देखे। अर्नव वहीं खड़ा रह गया। लोगों की निगाहों में, उनके फुसफुसाते लहजों में और सिया के गलतफहमी भरे शब्दों में उसके अंदर कुछ टूट गया था।
भाग 23: अर्नव का संकल्प
पर उसने ठान लिया। वो पीछे नहीं हटेगा। रात को सिया अपने कमरे में बैठी थी। बेटा गोपाल पढ़ाई कर रहा था। और सिया की आंखों से आंसू बह रहे थे। वो खुद से कह रही थी, “क्यों आ गया वो मेरी जिंदगी में दोबारा? जब मैंने सब कुछ अपने दम पर संभाल लिया था तो फिर क्यों किसी का सहारा चाहिए?”
गोपाल ने धीरे से पूछा, “मां, आप रो क्यों रही हैं?” सिया ने मुस्कुराकर कहा, “नहीं बेटा, धूल चली गई थी आंखों में।” पर असल में धूल नहीं, यादें चली गई थीं।
भाग 24: अर्नव की चिंता
दूसरी तरफ अर्नव अपने घर की बालकनी में खड़ा था। उसने अपनी पत्नी रिया की पुरानी तस्वीर देखी। धीरे से बोला, “रिया, अगर तुम होती तो समझती कि मैं क्या महसूस कर रहा हूं। मैं किसी पर दया नहीं कर रहा। बस किसी का टूटा हुआ आत्मविश्वास जोड़ रहा हूं। जैसे किसी ने कभी मेरा जोड़ा था।”
भाग 25: एक बड़ा मोड़
अगले दिन सिया जब उस सिग्नल पर पहुंची तो देखा वहां सब कुछ बदला हुआ था। लोग उसके पास आने लगे। उसे सलाम करने लगे। किसी ने कहा, “बहन, हमने सुना तुम अब एनजीओ में बच्चों को पढ़ाने वाली हो। तुम पर गर्व है।”
सिया हैरान थी। कल तक जो लोग उसे नीची निगाहों से देखते थे, आज वही लोग उसे सम्मान से बुला रहे थे। उसके अंदर एक अजीब सी राहत थी। लेकिन साथ ही एक डर भी।
भाग 26: सिया का संघर्ष
अगर यह सब अर्नव ने किया है तो क्या मैं फिर से किसी की मोहब्बत के कर्ज में डूबने जा रही हूं? वह खुद से यही सवाल पूछ रही थी। पर जवाब शायद वक्त के पास था।
भाग 27: अर्नव का प्रयास
शाम का वक्त था। लखनऊ की सड़कों पर सूरज ढल रहा था। लेकिन सिया के दिल में कुछ अजीब सी बेचैनी थी। वो एनजीओ में बच्चों को पढ़ाने लगी थी। अब उसकी जिंदगी पहले जैसी नहीं थी। हर सुबह वह सिग्नल की धूप से नहीं, बच्चों की मुस्कुराहट से दिन शुरू करती थी।
कपड़े वही सादे, वही चेहरे की सादगी। पर अब उसकी आंखों में उम्मीद की एक नई चमक थी। फिर भी अंदर कुछ था जो उसे चैन नहीं लेने दे रहा था।
भाग 28: अर्नव का सामना
वह महसूस कर रही थी कि कहीं ना कहीं उसकी नई जिंदगी की डोर अब भी अर्नव के हाथ में है। और यही सोच उसका सबसे बड़ा डर बन गई थी। उस शाम जब वह एनजीओ से बाहर निकली तो देखा सामने अर्नव खड़ा था। हाथ में फूलों का छोटा सा गुलदस्ता और चेहरे पर वही हल्की मुस्कान।
“क्यों आई है यह मुस्कान?” सिया ने सवाल भरी नजर से पूछा। अर्नव ने धीरे से कहा, “तुम्हें बधाई देने आया हूं। सिया, आज तुम्हारे पढ़ाए बच्चों ने पहली बार परीक्षा में टॉप किया है।”
भाग 29: सिया का गुस्सा
सिया ने धीमे स्वर में कहा, “और तुम्हें यह खबर किसने दी?” “एनजीओ वालों ने,” अर्नव मुस्कुराया। “क्योंकि यह सेंटर मैंने ही तो शुरू करवाया था।” सिया का चेहरा उतर गया। “मतलब मेरी जिंदगी की हर शुरुआत के पीछे तुम हो।”
अर्नव की आवाज कांप रही थी। पर गुस्से से नहीं, दर्द से। “मैं बस चाहता था कि तुम फिर से हंस सको। बस इतना ही।” लेकिन किस हक से?
भाग 30: सिया का निर्णय
सिया ने तीखे स्वर में पूछा, “क्या इसलिए कि मैं विधवा हूं और तुम विधुर?” अर्नव चौका। “सिया, मैं ऐसा नहीं सोचता।” “नहीं, अर्नव,” सिया ने बात बीच में काट दी। “तुम सोचते नहीं, महसूस करते हो। और वही गलती है तुम्हारी।”
सड़क के कोने पर कुछ लोग खड़े थे जो इस बातचीत को सुन रहे थे। उनमें से किसी ने धीरे से कहा, “देखो, वही आदमी है ना जो उस विधवा को काम दिलवाया था।” दूसरा बोला, “सब समझ में आता है।”
भाग 31: सिया का गुस्सा
अब सिया ने यह बातें सुन ली। उसका चेहरा पीला पड़ गया। वो फौरन पीछे मुड़ी और चली गई। बिना अर्नव की तरफ देखे। अर्नव वहीं खड़ा रह गया। लोगों की निगाहों में, उनके फुसफुसाते लहजों में और सिया के गलतफहमी भरे शब्दों में उसके अंदर कुछ टूट गया था।
भाग 32: अर्नव का संकल्प
पर उसने ठान लिया। वो पीछे नहीं हटेगा। रात को सिया अपने कमरे में बैठी थी। बेटा गोपाल पढ़ाई कर रहा था। और सिया की आंखों से आंसू बह रहे थे। वो खुद से कह रही थी, “क्यों आ गया वो मेरी जिंदगी में दोबारा? जब मैंने सब कुछ अपने दम पर संभाल लिया था तो फिर क्यों किसी का सहारा चाहिए?”
भाग 33: अर्नव की चिंता
गोपाल ने धीरे से पूछा, “मां, आप रो क्यों रही हैं?” सिया ने मुस्कुराकर कहा, “नहीं बेटा, धूल चली गई थी आंखों में।” पर असल में धूल नहीं, यादें चली गई थीं।
भाग 34: अर्नव का प्रयास
दूसरी तरफ अर्नव अपने घर की बालकनी में खड़ा था। उसने अपनी पत्नी रिया की पुरानी तस्वीर देखी। धीरे से बोला, “रिया, अगर तुम होती तो समझती कि मैं क्या महसूस कर रहा हूं। मैं किसी पर दया नहीं कर रहा। बस किसी का टूटा हुआ आत्मविश्वास जोड़ रहा हूं। जैसे किसी ने कभी मेरा जोड़ा था।”
भाग 35: एक बड़ा मोड़
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