पत्नी जुड़वां बेटियों को छोड़ गई… अनजान कि वही आगे चलकर करोड़पति बनेंगी

एक छोटे से कस्बे में रमेश अपनी पत्नी पूजा और अपनी तीन महीने की जुड़वा बेटियों आरती और दीपा के साथ रहते थे। उनका जीवन साधारण था, लेकिन खुशियों से भरा हुआ। रमेश एक अच्छे नौकरी पेशा व्यक्ति थे और परिवार में सब कुछ ठीक चल रहा था। लेकिन एक दिन, जब रमेश को अपनी कंपनी से नौकरी से निकाल दिया गया, तब उनकी जिंदगी में तूफान आ गया।

मुश्किलों का सामना

रमेश की नौकरी जाने के बाद, पूजा ने धीरे-धीरे शिकायतें करना शुरू कर दिया। वह हर छोटी बात पर गुस्सा करने लगी। एक दिन, सुबह-सुबह कमरे में रोने की आवाज गूंज रही थी। छोटी बच्चियां रो रही थीं और पूजा गुस्से में अपना सारा सामान बैग में भर रही थी। रमेश ने बड़े प्यार से कहा, “पूजा, बच्चे रो रहे हैं। उन्हें तुम्हारी जरूरत है।” लेकिन पूजा का जवाब बिल्कुल सर्द और तेज था। उसने मुड़कर देखा भी नहीं और कहा, “मुझे अब इनकी कोई परवाह नहीं है। मैं तुम्हें छोड़कर जा रही हूं।”

रमेश ने मिन्नत की, “मेरी नहीं तो इन मासूम बच्चों की खातिर रुक जाओ। भगवान ने इन्हें हमें दिया है।” लेकिन पूजा ने एक बार फिर कहा, “मैं तुमसे शादी इस गरीबी में रहने के लिए नहीं की थी। तुम मुझे वह लाइफ नहीं दे सकते जो मुझे चाहिए।” उसने दरवाजा जोर से बंद करके निकल गई।

जिम्मेदारी का भार

रमेश ने छोटे बच्चों को गोद में उठाया और उन्हें प्यार से सहलाने लगा। वह रोते रहे, लेकिन रमेश उन्हें हल्के-हल्के झुलाता रहा जब तक वे चुप नहीं हो गए। उनके मासूम चेहरों को देखकर रमेश का दिल भारी हो गया। लेकिन उसकी आवाज में एक पक्का इरादा था। उसने धीरे से कहा, “मेरे पास तुम्हें देने के लिए पैसा नहीं होगा बेटियों। पर मैं तुम्हारा दुनिया का सबसे अच्छा पिता बनूंगा। यह मेरा वादा है।”

अगली सुबह घर में भूख और चिंता थी। रमेश के पास खाने को कुछ नहीं था। न ही दूध खरीदने के लिए पैसे। बिना वक्त बर्बाद किए, उसने सोच लिया कि उसे आगे बढ़ना होगा। उसने एक ठेला किराए पर लिया, दोनों जुड़वाओं को अपने सीने से बांधा और काम ढूंढने के लिए शहर के बड़े मार्केट की तरफ निकल पड़ा।

संघर्ष की शुरुआत

रमेश लोगों का भारी सामान ठेले पर ढोने लगा। कई लोग उसे घूरते थे, कुछ लोग दया से देखते थे और कुछ लोग उन मासूम बच्चों के लिए उसके हाथ में छोटे सिक्के रख देते थे। एक बुजुर्ग महिला ने उसे रोका और बड़े दुख से कहा, “बेटा, तुम बहुत अच्छा काम कर रहे हो।” उसने रमेश के हाथ में ₹500 दिए और कहा, “यह बच्चों के लिए।” रमेश ने उनका आभार व्यक्त किया और आगे बढ़ गया।

लेकिन सब लोग इतने मेहरबान नहीं थे। एक तेज आवाज वाली औरत ने ताना मारा, “आह, ऐश करने वाले राजा, जब बिस्तर पर मजे कर रहे थे, तब जिम्मेदारी का ख्याल नहीं आया। अब अकेले दुखी हो।” रमेश ने यह सुनकर भी कुछ नहीं कहा। उसे किसी की बात की परवाह नहीं थी। उसके लिए सिर्फ उसकी बेटियां ही मायने रखती थीं।

मेहनत का फल

शाम को, दिन भर की मेहनत से रमेश बहुत खुश था। उसने तुरंत पास की फार्मेसी से दूध, इनफेंट पाउडर, मिल्क और जरूरी दवाइयां खरीदीं। उसने हर दिन यही किया। बेटियां उसके सीने से बंधी होती थीं। वह अकेला था, उसकी मां नहीं थी और बहनें भी नहीं थीं। यह बहुत थका देने वाला था। लेकिन उसे दिल में खुशी थी कि वह अपनी बेटियों की देखभाल कर पा रहा है।

एक दिन, जब वह सुबह ठेला लेकर निकल रहा था, तो उसकी पड़ोसन शांति मौसी ने उसे आवाज दी। उन्होंने रमेश से कहा, “आज बच्चों को मेरे पास छोड़ जाओ। तुम जब तक वापस नहीं आते, मैं उन्हें संभाल लूंगी।” रमेश हिचकिचाया, लेकिन मौसी ने प्यार से कहा, “धूप बहुत तेज है इन मासूमों के लिए, मैं उनका अच्छे से ख्याल रखूंगी।” थोड़ा सोचने के बाद, रमेश ने मौसी को बच्चे सौंप दिए।

नई उम्मीद

पूरा दिन वह काम करता रहा, लेकिन उसका दिल बेचैन था। मौसी गरीब थी, पर दिल की बहुत अच्छी थी। शाम को जब रमेश घर लौटा, तो देखा कि आरती और दीपा मौसी की गोद में खुश होकर हंस रही थीं। उस दिन से शांति मौसी हमेशा उसकी मदद करती रहीं। आरती और दीपा दो ही लोगों को जानती थीं: उनके प्यार करने वाले पिता और शांति मौसी, जिन्हें वह मौसी कहकर बुलाती थीं।

बेटियों को सबसे बड़े प्राइवेट स्कूल में तो नहीं भेजा गया, लेकिन रमेश ने अपनी पूरी मेहनती कमाई से उनकी स्कूल फीस और किताबें खरीदीं। उसने उन्हें अच्छे संस्कार सिखाए: दया, इज्जत और मेहनती होना। जब वह 18 साल की हुईं, तो उन्होंने ग्रेजुएशन भी किया। रमेश गर्व से भर गया। बेटियों ने रात दिन पढ़ाई की और कंपिटिटिव एग्जाम्स में बैठीं। आरती के स्कोर 325 था और दीपा का 341। दोनों को एक ही बड़े यूनिवर्सिटी में मेडिसिन और सर्जरी डॉक्टर बनने के लिए एडमिशन मिल गया।

कठिनाईयों का सामना

पर अब असली संघर्ष शुरू हुआ। एक दोपहर, बेटियां खुश होकर घर आईं और अपने रिजल्ट स्लिप्स पिता को दिए। रमेश ने मुस्कुरा कर उन्हें बधाई दी। “मेरी बेटियों, तुमने कमाल कर दिया। मुझे तुम पर गर्व है। अब मैं सीना तान कर चलूंगा। मेरी बेटियां डॉक्टर बनेंगी।” वह मजाक में बड़े आदमी की तरह चलने का नाटक करने लगे और सब हंसने लगे। लेकिन बाद में रमेश चुपचाप अपने कमरे में चला गया। उसकी मुस्कुराहट गायब हो चुकी थी। उसके पास उन दोनों की फीस भरने के लिए भी पैसे नहीं थे।

उसने धीरे से खुद से कहा, “इतने सालों की मेहनत और अब जब मेरी बेटियों ने सफलता पाई, तो मैं उनकी फीस नहीं भर सकता।” उसे लगा जैसे वह डूब रहा है, शर्मिंदा और लाचार। लेकिन फिर उसने मुट्ठी बांधी और निश्चय किया, “नहीं, मैं पैसों को उनके सपने नहीं रुकने दूंगा। मैं कुछ भी करूंगा। मेरी बेटियां डॉक्टर जरूर बनेंगी।”

नई राह

अगली सुबह, रमेश जल्दी उठा, लेकिन इस बार उसने अपना पुराना थैला नहीं उठाया। उसे पता था कि अब जो जरूरत है वह उस थैले से ज्यादा है। भारी कदमों से वह मोहल्ले के सबसे अमीर सेठ जी के घर गया। सेठ जी ने उसे सुबह-सुबह पजामे में देखकर शक की निगाह से देखा। रमेश उनके सामने घुटनों पर बैठ गया और बोला, “सर, मैं आपसे मिन्नत करता हूं। मुझे अपना नौकर बना लीजिए। मैं आपके कपड़े धोऊंगा, खाना बनाऊंगा, पूरा आंगन साफ करूंगा। जो आप कहेंगे, वो करूंगा। बस मेरी दोनों बेटियों को यूनिवर्सिटी भेज दीजिए। मैं गुलाम की तरह काम करूंगा जब तक वह ग्रेजुएट ना हो जाएं।”

अस्वीकृति

उसने बताया कि उसकी बेटियां उसकी दुनिया हैं। लेकिन सेठ जी ने अपना सिर हिलाया और ठंडक से कहा, “दो मेडिसिन स्टूडेंट्स की पढ़ाई करवाना कोई बच्चों का खेल नहीं है। मैं यह नहीं करूंगा।” रमेश चुपचाप उठा और वहां से निकल गया। वह रुका नहीं। वह एक के बाद एक पांच और बड़े घर पर गया। हर जगह वह घुटनों पर बैठा और नौकर बनने की पेशकश की, लेकिन सबने मना कर दिया।

दो दिन तक वह घर आता चुप रहता और कुछ नहीं बोलता। उसका दिल इतना भारी था कि वह बेटियों को बता नहीं पा रहा था कि शायद उनके सपने पूरे नहीं हो पाएंगे। लेकिन एक शाम, उसने हिम्मत जुटाई और उन्हें कमरे में बुलाया। “मेरी बेटियों, मुझे माफ कर दो। मैं फेल हो गया। मैंने वादा किया था कि मैं तुम्हें पढ़ाई के लिए दुनिया के कोने तक भेजूंगा। पर अब मेरे पास यूनिवर्सिटी भेजने के लिए भी पैसे नहीं हैं।” उसकी आवाज टूट गई। उसने रोने से बचने के लिए अपना चेहरा घुमा लिया।

बेटियों का साहस

दीपा तुरंत उठी और प्यार से बोली, “पापा, माफ करने की कोई बात नहीं। हम जानते हैं कि आप हमसे कितना प्यार करते हैं। अगर आपके पास पैसे होते, तो आप हमें चांद पर भी भेज देते।” आरती ने कहा, “हम यूनिवर्सिटी जाएं या नहीं, हम आपसे हमेशा प्यार करते रहेंगे।” दोनों ने अपने पिता को कस के गले लगा लिया।

उस रात, जब रमेश को यकीन हो गया कि बेटियां सो चुकी हैं, तो वह बेड के पास घुटनों पर बैठकर भगवान से रोने लगा। उसकी आवाज धीमी थी, पर दर्द गहरा था। “भगवान, मेरी मदद कीजिए। मेरे पास कुछ नहीं है, पर आपके पास सब कुछ है। मेरी लड़कियां इस मौके की हकदार हैं। कृपया उन्हें स्कूल भेजने में मदद कीजिए।” वह बुरी तरह से रोते हुए जमीन पर हाथ मार रहा था।

बेटियों की मेहनत

आरती और दीपा जाग रही थीं। उन्होंने सब सुना। उनका दिल टूट गया। पूरी जिंदगी उनके पिता उनका सहारा थे। वह कभी नहीं रोए, कभी शिकायत नहीं की। लेकिन आज वह उनकी वजह से रो रहे थे। वह तकिए में मुंह छिपाकर चुपचाप रोती रहीं। अगले कुछ दिन शांति से गुजरे। आरती और दीपा दुखी थीं, पर मजबूत रहीं।

उन्होंने एक बड़ा कदम उठाया। वह यूनिवर्सिटी गईं और अपना एडमिशन पोस्टपोन कर दिया। यह दर्दनाक था। पर उनके पास एक प्लान था। वह अगले साल तक काम करके पैसे जमा करना चाहती थीं। कई जगह रिजेक्शन मिलने के बाद, उन्हें एक साफ सुथरे रेस्टोरेंट में नौकरी मिली। वह तुरंत काम पर लग गईं। मुस्कुराकर कस्टमर्स का स्वागत करतीं, ध्यान से फूड सर्व करतीं और सबकी इज्जत करतीं।

सफलता की ओर

लोगों को उनका व्यवहार अच्छा लगा और वह खुलकर टिप्स देते थे। कुछ लोगों ने उनकी गरीबी का फायदा उठाने की कोशिश की, पर बेटियों ने अपनी मर्यादा नहीं बेची। उन्होंने अपनी कमाई का हर पैसा बचाया। रात को वह अपने पिता के साथ बैठकर पैसे गिनती थीं और भगवान से प्रार्थना करती थीं। रमेश ने भी उनके लिए प्रार्थना करना नहीं छोड़ा।

लगभग 7 महीने की कड़ी मेहनत, बचत और प्रार्थना के बाद आरती और दीपा ने अपना एक छोटा सा रेस्टोरेंट खोल लिया। यह बड़ा नहीं था, पर साफ सुथरा और सजाया हुआ था। वह स्वादिष्ट खाना बनाती थीं, और हर कस्टमर को परिवार की तरह ट्रीट करती थीं। उन्होंने सोशल मीडिया पर भी एडवरटाइजिंग शुरू की। जल्द ही कस्टमर्स की भीड़ आने लगी।

 

नए अवसर

उनका छोटा रेस्टोरेंट बहुत पॉपुलर हो गया। उनकी डॉक्टर बनने की आग अभी भी दिल में थी, पर जिंदगी उन्हें किसी और रास्ते पर ले जा रही थी। किस्मत ने उनके लिए कुछ और ही सोच रखा था। एक शाम, रेस्टोरेंट बंद करने के बाद आरती टेबल साफ कर रही थी। तभी उसकी नजर एक कुर्सी के नीचे पड़े काले ब्रीफ केस पर पड़ी। उसने दीपा को बुलाया। “देख दीपा, कोई भूल गया है।”

जिज्ञासा से उन्होंने उसे खोला और वह दोनों फ्रीज हो गईं। अंदर बहुत जरूरी डॉक्यूमेंट्स और मोटी रकम थी। दीपा की आंखें चौड़ी हो गईं। “यह व्यक्ति जरूर बहुत अमीर होगा।” उन्होंने तुरंत ब्रीफ केस बंद किया और घर ले आईं। जब रमेश ने सुना, तो उसने सर हिलाया और कहा, “तुमने सही किया? इसका मालिक जरूर इसे ढूंढता हुआ आएगा। यह बैग बहुत कीमती है।”

ईमानदारी का फल

अगली सुबह, वह ब्रीफ केस लेकर जल्दी रेस्टोरेंट पहुंची। उन्होंने देखा कि एक रिच दिखने वाला आदमी एक चमकती काली कार के पास चिंतित खड़ा था। उन्होंने उसे ग्रीट किया और उसने तुरंत पूछा, “क्या आपने गलती से कोई काला ब्रीफ केस देखा है?” “हां,” आरती ने कहा और वह ब्रीफ केस उसे दे दिया। आदमी ने उसे देखा और उसके चेहरे पर राहत छा गई। “आपका बहुत-बहुत शुक्रिया,” उसने जल्दी से ब्रीफ केस उठाया। कार में बैठा और बिना एक शब्द बोले निकल गया।

दीपा ने पलक झपकाई। “उसे कम से कम 1000 तो देना चाहिए था,” उसने मजाक किया। आरती हंसी। “तो अब तुम करोड़पति बनना चाहती हो?” वह हंसी और काम पर लग गई। दोपहर के आसपास वही आदमी वापस आया। वह उसी शाइनी कार में था। पर इस बार वह जल्दी में नहीं था। वह रुका और आरती और दीपा को देखकर मुस्कुराया। “मैं आकाश वर्मा हूं,” उसने इंट्रोड्यूस किया। “आपकी ईमानदारी और सच्चाई के लिए मैं आपको इनाम देना चाहता हूं।”

नया मोड़

आरती और दीपा ने उम्मीद भरी निगाहों से एक दूसरे को देखा। शायद अब कुछ पैसे मिलेंगे। उन्होंने सोचा, लेकिन मिस्टर आकाश वर्मा ने उन्हें पैसे नहीं दिए। बल्कि वह उन्हें एक बड़ी शानदार बिल्डिंग के पास ले गए। “यह आपके लिए है,” उन्होंने कहा। “उस ब्रीफ केस के डॉक्यूमेंट्स पैसों से ज्यादा कीमती थे। आपने मेरा फैमिली बिजनेस बचाया है। अब मैं चाहता हूं कि यह पूरी बिल्डिंग आपके रेस्टोरेंट के लिए हो। यह सब आपका है।”

आरती और दीपा शौक में खड़ी रहीं। उन्हें विश्वास नहीं हुआ। उनकी आंखों में खुशी के आंसू भर आए और उन्होंने बार-बार उनका धन्यवाद किया। अपने पिता को यह खबर देने के लिए वह जल्दी से टैक्सी लेकर मार्केट की तरफ गईं। उन्होंने देखा कि रमेश वहां अपने ठेले के पास बैठा नींबू पानी यानी कुन्नू पी रहा था। बिना कुछ कहे, वह दौड़कर उनके गले लग गई।

खुशी का पल

बाजार के लोग हैरानी से उन दो खूबसूरत लड़कियों को उस गरीब आदमी को गले लगाते देख रहे थे। रमेश हंसा और बोला, “बैठो, तुम्हारी सरप्राइज क्या है?” दीपा ने कहा, “आपके लिए बहुत बड़ा सरप्राइज है, पापा।” वह खड़ी हुई और रमेश को इशारा किया कि वह उनके पीछे आए। जब वह उस बड़ी बिल्डिंग के पास पहुंचे, तो दीपा की आवाज खुशी से गूंज उठी, “यह हमारा है, पापा। जिस आदमी ने अपना ब्रीफ केस खोया था, उसने हमें यह दे दिया। हम अपना रेस्टोरेंट अब यहां खोलेंगे।”

रमेश की आंखों में खुशी के आंसू भर आए। उनकी ईमानदारी का यह फल उनके सपने से भी बढ़ा था। शाम को घर पर आरती और दीपा अपने पिता के साथ बैठी। साल भर की मेहनत उनके चेहरे पर दिख रही थी। आरती ने प्यार से पर पक्के इरादे से कहा, “पापा, अब आपको ठेला चलाना बंद करना होगा। अब आपकी उम्र हो रही है। यह कड़ी मेहनत अब हम जवान लोगों के लिए है।”

नई शुरुआत

दीपा ने सहमत होते हुए कहा, “अब हम हैं ना, पापा। आपने हमें सफल होने के लिए सब कुछ दिया है। अब आपकी आराम करने की बारी है।” रमेश ने बहस करने की कोशिश की, पर बेटियों के निश्चय को देखकर उनका दिल पिघल गया। गर्व से भरे दिल से रमेश ने उस दिन से ठेला चलाने से रिटायर होने का फैसला कर लिया।

मिस्टर आकाश वर्मा ने सिर्फ बिल्डिंग ही नहीं दी थी, बल्कि उसे नए चेयर्स, टेबल्स, बर्तनों और सारे जरूरी सामान से सजा दिया था। आरती और दीपा का रेस्टोरेंट पूरी तरह शानदार, इनवाइटिंग और वार्म था। उनका खाना लाजवाब था और उनका व्यवहार सबसे अच्छा था। जल्द ही उनका रेस्टोरेंट सिर्फ एक बिजनेस नहीं बल्कि उम्मीद का सिंबल बन गया। अब उन्हें कड़ी धूप में काम नहीं करना पड़ता था। बेटियों ने उनकी देखभाल एक राजा की तरह की।

मदद का हाथ

लेकिन वह उन लोगों को नहीं भूली जिन्होंने मुश्किल में उनकी मदद की थी। शांति मौसी, जिन्होंने बचपन में उनका सहारा बनी थीं, वह अब बूढ़ी और बीमार रहती थीं। आरती और दीपा ने उनका छोटा घर रनोवेट करवाया और उन्हें कोजी बना दिया। हर महीने वह उन्हें पैसे भेजती थीं और हॉस्पिटल बिल्स का ख्याल रखती थीं।

एक दोपहर, एक औरत थकी हारी उनके रेस्टोरेंट में आई। उसने जॉब मांगी। “मैं कुछ भी कर सकती हूं। बर्तन धो सकती हूं। साफ सफाई कर सकती हूं। बस मुझे काम चाहिए।” हालांकि वैकेंसी नहीं थी, पर आरती और दीपा को उस औरत के लिए अजीब सा खींच महसूस हुआ। उन्होंने उसे बर्तन धोने का काम दे दिया।

अतीत का सामना

उन्हें यह पता नहीं था कि यह औरत पूजा थी, उनके पिता की पहली पत्नी और उनकी मां। तीन अमीर आदमियों से फेल्ड मैरिजेस के बाद उसके पास कुछ नहीं बचा था। अगले दिन रमेश अपनी बेटियों से मिलने आया। वह किचन में गया, जहां उसने पूजा को देखा। रमेश ने चुपचाप पीछे हट गया। उसका दिल यादों से भरा हो गया।

उसने बेटियों को बैठाया और गंभीर आवाज में पूछा, “क्या तुम्हारे पास कोई नई बर्तन धोने वाली है?” “हां, पापा। पर आप उसके बारे में क्यों पूछ रहे हैं?” उन्होंने हैरानी से पूछा। रमेश ने कहा, “वो औरत वो पूजा है।” दीपा की आंखें हैरत से खुल गईं। “हमारी मां?” रमेश ने धीरे से बताया कि उसने पूजा की सारी तस्वीरें जला दी थीं क्योंकि यादें बहुत दर्दनाक थीं। इसलिए वह उसकी शक्ल नहीं जानती थी।

पुरानी यादें

जब वह किचन में गई और पूजा ने रमेश को देखा, तो उसका रंग उड़ गया और वह वहीं रुक गई। रमेश ने गहरी सांस ली और पूजा की तरफ देखा। उसकी आवाज में गहराई थी। “जिन औरतों ने तुम्हें नौकरी दी है, वो तुम्हारी बेटियां हैं।” पूजा का चेहरा सफेद पड़ गया। उसके होंठ कांपने लगे। वह सिसकते हुए धीरे से बोली, “मुझे बहुत-बहुत अफसोस है मेरी बेटियों।”

आरती का चेहरा गुस्से से सख्त हो गया। “आपको यहां से जाना होगा,” उसने पक्के से कहा। उसने काउंटर से कुछ पैसे उठाए और पूजा को देते हुए कहा, “यह आपकी मेहनत से ज्यादा है। कहीं भी जाओ। मैं तुम्हें नहीं जानती और तुम मेरी मां नहीं हो। मेरी मां शांति मौसी है।” आरती का चेहरा दर्द से बिगड़ गया और वह रोने लगी। “मैं मदद नहीं करना चाहती।” उसने पूजा की तरफ इशारा किया और चिल्लाई, “इस औरत ने हमें छोड़ दिया। हमारे पिता को तड़पने और मरने के लिए छोड़ दिया।” उसकी सिसकियां कमरे में गूंज उठी।

एक नया मोड़

उस शाम, रमेश ने बेटियों के साथ बैठकर मुश्किल बात की। उनके दिल नरम हो गए। अगले दिन आरती और दीपा ने फैसला किया कि वह पूजा को अब बर्तन नहीं धोने देंगी। उन्होंने उसे रेस्टोरेंट देखभाल करने का नया रोल दिया ताकि वह जिम्मेदारी और इज्जत महसूस करें। शुरू में पूजा अच्छा काम करती रही। लेकिन धीरे-धीरे उसके व्यवहार में खराबी आने लगी।

उसका नरम स्वर तेज और आदेश देने वाला हो गया। वह वर्कर्स को छोटी-छोटी गलतियों पर झिड़कने लगी। रेस्टोरेंट का वातावरण टेंस हो गया और कस्टमर्स ने भी यह बदलाव महसूस किया। धीरे-धीरे उनका बिजनेस कम होने लगा। एक शाम बेटियों ने पूजा से बात की। “मैं तुम्हारी मां हूं,” पूजा ने गुस्से से कहा। “मैंने तुम्हें इस दुनिया में लाया। तुम मुझे नहीं बता सकती कि क्या करना है।”

आरती ने शांत रहने की कोशिश की। “आप यहां हमारी मदद करने आई हैं। पर आपका एटीट्यूड हमारी मेहनत को बर्बाद कर रहा है।” पूजा की आंखें तंग हो गईं। उसने सवाल किया, “तुम्हारा पिता कहां है जिसे तुम हमेशा पैसे देती हो? वह तो बस घर पर आलसी की तरह बैठा रहता है और मुझे सिर्फ सैलरी मिलती है।”

संघर्ष और समर्पण

आरती गुस्से से भर गई। “अगर आपने दोबारा मेरे पिता के बारे में कुछ बुरा कहा, तो ठीक नहीं होगा।” लेकिन पूजा नहीं रुकी। “तुम मुझसे प्यार नहीं करती,” वह बोली, “बस यहां मैनेज कर रही हो।” उनकी बात तेजी से बहस में बदल गई। थक हारकर आरती और दीपा अपने पिता के पास गईं। रमेश ने उन्हें धीरज से सुना। “वह तुम्हारी मां अभी भी हैं। पर अगर तुम उसे रेस्टोरेंट में रहने दोगी, तो वह तुम्हारी सारी मेहनत बर्बाद कर देगी,” रमेश ने अपने एक्सपीरियंस से कहा।

बहुत सोच विचार के बाद बेटियों ने अगले दिन पूजा को बताया कि वह अब रेस्टोरेंट में काम नहीं करेंगी। पूजा का रिएक्शन गुस्से से भरा था। “मैं जानती हूं, यह सब तुम्हारे उस बेवकूफ पिता ने तुम्हारे दिमाग में जहर भरा है,” उसने चिल्लाया। उसके अपमान से उन्हें दर्द हुआ, पर वह अपने फैसले पर अड़िग रहीं। पूजा गुस्से में चली गई।

नई शुरुआत

लेकिन बेटियों ने उसे सहारा दिया। उन्होंने उसके घर के सामने एक छोटा सा किराना शॉप खोलकर दिया। पूजा के जाने के बाद रेस्टोरेंट और बिजनेस पहले से भी ज्यादा बढ़ने लगा। आरती और दीपा ने दिल्ली के अलग-अलग सिटीज में नई ब्रांचेस खोलीं। अब पैसा कोई प्रॉब्लम नहीं था। दोनों ने बैठकर डॉक्टर बनने के अपने सपने के बारे में बात की।

दीपा ने धीरे से कहा, “अब वह आग मेरे अंदर नहीं है। मुझे अपना बिजनेस पसंद है।” उसने आसपास के मेहनत को देखा और गर्व महसूस किया। आरती ने मुस्कुराकर हां कहा। “यह बिजनेस ही हमारे पिता की प्रार्थना का जवाब है। मुझे भी डॉक्टर नहीं बनना है। मुझे यह बिजनेस अच्छा लगता है।” उनका दिल शांति में था। उन्हें अपना असली बुलावा मिल चुका था।

शादी का प्रस्ताव

समय गुजरा और आरती और दीपा के लिए रिश्ते आने लगे। उन्होंने एक ही दिन शादी करने का फैसला किया। लेकिन उन्हें अपने पिता की चिंता थी कि वह अकेले रह जाएंगे। एक दोपहर, उन्होंने रमेश से बात की। “पापा, हम खुश हैं कि हमें पति मिल गए। पर हम चिंतित हैं कि आप अभी भी अकेले हैं। हर औरत हमारी मां जैसी नहीं होती,” दीपा ने कहा। “पापा, हमने आपके लिए एक बहुत अच्छी औरत ढूंढी है।”

रमेश के चेहरे पर नरमाई आई। “कौन है वो?” दीपा ने बताया, “वह हमारे एक रेस्टोरेंट में काम करती हैं। वह बहुत दयालु हैं। उनके पति गुजर चुके हैं और उनके दो बच्चे हैं। अगर आप उनसे शादी करेंगे, तो वह बच्चे हमारे छोटे भाई-बहन की तरह होंगे।” रमेश ने दो दिन सोचने के लिए। फिर उन्होंने मिज सुमन से मुलाकात की और उनकी अच्छी नियत और काइंडनेस को देखा। रमेश ने शादी के लिए हां कह दिया।

खुशी का दिन

यह बहुत फेथफुल दिन था। शादी का हॉल प्यार और खुशी से भरा था। क्योंकि रमेश, आरती और दीपा तीनों एक साथ शादी कर रहे थे। शांति मौसी, जो उनके लिए मां की तरह थी, वह उस दिन मां बनकर खड़ी थी। यह सिर्फ बेटियों के लिए ही नहीं बल्कि रमेश के लिए भी यह नई शुरुआत का दिन था।

तो देखा आपने दोस्तों, ईमानदारी और एक पिता का प्यार किसी भी धन दौलत से ज्यादा कीमती होते हैं। जिंदगी में हमेशा मेहरबान रहिएगा। आपका इस कहानी पर क्या कहना है, हमें कमेंट्स में जरूर बताना। अगर आपको यह मोरल वीडियो पसंद आया हो तो लाइक कीजिए, शेयर कीजिए और मूवीज नरेटर को सब्सक्राइब करना मत भूलना। हमेशा याद रखना कर्म का फल जरूर मिलता है। मिलते हैं अगले वीडियो में। तब तक के लिए धन्यवाद और खुश रहिए।

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