बुजुर्ग महिला स्टेशन में गिर गयी, उसे उठाने गयी लड़की तो ट्रैन छूट गयी, ऑफिस पहुंची तो नौकरी भी गयी

कविता का परिचय

कविता एक 26 साल की साधारण मध्यम वर्गीय लड़की थी। वह गाजियाबाद के एक छोटे से मोहल्ले में अपने माता-पिता और छोटे भाई के साथ रहती थी। उसके पिता, श्रीकांत वर्मा, एक सरकारी स्कूल से रिटायर्ड अध्यापक थे, जिनकी पेंशन से घर का गुजारा मुश्किल से ही चल पाता था। उसकी मां, रमा देवी, एक कुशल गृहिणी थीं, जिन्होंने हमेशा अपनी जरूरतों को मारकर अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दी थी।

कविता का छोटा भाई, अमित, इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर में था। उसकी पढ़ाई का पूरा खर्चा कविता की तनख्वाह से ही चलता था। कविता ने अपनी पढ़ाई में कड़ी मेहनत की थी और एमबीए करने के बाद गुड़गांव की एक प्रतिष्ठित कंपनी, ग्रो फास्ट सॉल्यूशंस, में जूनियर एग्जीक्यूटिव के पद पर काम कर रही थी।

उसकी तनख्वाह ज्यादा नहीं थी, लेकिन यह उसके परिवार के लिए एक बड़ा सहारा थी। कविता की जिंदगी एक मशीन की तरह थी। वह रोज सुबह 5 बजे उठती, घर का थोड़ा-बहुत काम निपटाती और फिर 7:30 बजे तक गाजियाबाद स्टेशन के लिए निकल जाती।

कविता की दिनचर्या और संघर्ष

कविता के लिए 8:00 बजे की गाजियाबाद से दिल्ली-गुड़गांव जाने वाली लोकल ट्रेन उसकी जिंदगी की लाइफलाइन थी। अगर वह ट्रेन छूट जाती, तो अगली ट्रेन एक घंटे बाद मिलती और इसका मतलब था कि ऑफिस पहुंचने में देरी।

कविता का बॉस, मिस्टर विशाल कपूर, एक बेहद अनुशासित और सख्त व्यक्ति था। वह समय की पाबंदी को बहुत महत्व देता था और उसके डिपार्टमेंट में तीन बार लेट होने का मतलब था नौकरी से सीधे इस्तीफा।

कविता पहले ही दो बार लेट हो चुकी थी। उसे आखिरी चेतावनी मिल चुकी थी। इसलिए उसके लिए 8:00 बजे वाली ट्रेन पकड़ना किसी भी कीमत पर जरूरी था।

घटना की शुरुआत

सोमवार की सुबह थी। कविता हमेशा की तरह अपने कंधे पर लैपटॉप बैग और हाथ में टिफिन लिए गाजियाबाद स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर पहुंची। स्टेशन पर रोज की तरह ही भारी भीड़ थी।

8:00 बजे वाली ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आ चुकी थी और कुछ ही मिनटों में चलने वाली थी। कविता जल्दी-जल्दी भीड़ को चीरते हुए अपने लेडीज डिब्बे की तरफ बढ़ रही थी। तभी, उसके ठीक आगे जनरल डिब्बे के दरवाजे के पास भगदड़ मच गई।

नेकी का फैसला

चढ़ने और उतरने की इस भगदड़ में एक 70 साल की बुजुर्ग महिला, शांति देवी, अपना संतुलन खो बैठीं और प्लेटफॉर्म पर गिर पड़ीं। उनके हाथ में पकड़ी पोटली खुल गई, जिसमें से कुछ रोटियां और एक पुराना चश्मा बाहर गिर गया।

उनके माथे पर चोट लग गई थी और खून बहने लगा था। वह दर्द से कराह रही थीं, लेकिन भीड़ में किसी ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया।

कविता ने यह सब देखा। उसके कानों में ट्रेन का हॉर्न गूंजा। उसका दिमाग उसे चीख-चीख कर कह रहा था, “कविता, जल्दी करो! ट्रेन छूट जाएगी। नौकरी चली जाएगी।”

लेकिन उसका दिल उसे रोक रहा था। उसने एक पल में फैसला कर लिया। कविता ने अपनी नौकरी, ट्रेन और बॉस के गुस्से को भूलकर उस बुजुर्ग महिला की मदद करने का फैसला किया।

शांति देवी की मदद

कविता ने भीड़ को चीरते हुए शांति देवी को सहारा देकर उठाया। उसने अपनी पानी की बोतल निकालकर उनके चेहरे पर छींटे मारे और अपने रुमाल से उनके माथे का खून पोंछा।

कविता ने उनकी पोटली और चश्मा उठाकर उन्हें एक बेंच पर बिठाया। उसने स्टेशन पर बने फर्स्ट एड बूथ पर जाकर उनकी मरहम-पट्टी करवाई।

शांति देवी ने कांपती हुई आवाज में बताया कि वह दिल्ली में अपने बेटे से मिलने जा रही थीं। कविता ने उनके बेटे का नंबर लेकर उसे फोन किया। लगभग एक घंटे बाद उनका बेटा स्टेशन पहुंचा।

ट्रेन छूटना और नौकरी का खतरा

कविता की 8:00 बजे वाली ट्रेन छूट चुकी थी। वह जानती थी कि अब ऑफिस पहुंचने में देर हो जाएगी और उसका बॉस उसे बर्खास्त कर देगा।

शांति देवी और उनके बेटे ने कविता को बहुत धन्यवाद दिया। शांति देवी ने रोते हुए कहा, “बेटी, तूने आज मेरी जान बचाई है। मेरी दुआ है कि भगवान तुझे हर खुशी दे।”

लेकिन कविता का दिल भारी था। उसने अपने दिल को समझाया कि उसने जो किया, वह सही था।

ऑफिस में बर्खास्तगी

अगले दिन जब कविता ऑफिस पहुंची, तो उसे मिस्टर कपूर ने अपने केबिन में बुलाया। उन्होंने उसे डांटते हुए कहा, “कविता, यह कंपनी किसी धर्मशाला की तरह नहीं चलती। तुमने हमारी आखिरी चेतावनी को नजरअंदाज किया। इसलिए अब हमें तुम्हारी सेवाओं की जरूरत नहीं है। तुम बर्खास्त हो।”

यह सुनकर कविता की आंखों में आंसू आ गए। उसने गिड़गिड़ाते हुए कहा, “सर, प्लीज मेरी बात सुनिए। मैंने एक जरूरतमंद की मदद की थी।”

लेकिन मिस्टर कपूर ने उसकी बात सुनने से इनकार कर दिया।

मिस्टर आनंद प्रकाश का प्रवेश

कविता भारी मन से ऑफिस से निकली और स्टेशन के उसी बेंच पर जाकर बैठ गई, जहां उसने शांति देवी की मदद की थी।

वहीं पर एक सज्जन व्यक्ति, मिस्टर आनंद प्रकाश, कविता के पास आए। उन्होंने उसे चाय ऑफर की और उससे उसकी परेशानी पूछी।

कविता ने हिचकियों के बीच अपनी पूरी कहानी सुनाई। मिस्टर प्रकाश, जो एक बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी के सीईओ थे, कविता की इंसानियत और नेकदिली से बहुत प्रभावित हुए।

कविता को नई नौकरी

मिस्टर प्रकाश ने कविता से कहा, “बेटी, मैं तुम्हारी डिग्री के लिए नहीं, बल्कि तुम्हारी इंसानियत के लिए तुम्हें नौकरी देना चाहता हूं।”

उन्होंने कविता को अपनी कंपनी में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) विभाग का हेड बना दिया। यह नौकरी न केवल उसकी पुरानी नौकरी से बेहतर थी, बल्कि उसकी तनख्वाह भी तीन गुना ज्यादा थी।

कहानी का अंत

कविता ने अपनी नई नौकरी में पूरी लगन से काम किया। उसने कई समाजसेवी प्रोजेक्ट्स शुरू किए और जरूरतमंदों की मदद की।

शांति देवी और उनका परिवार भी कविता का आभारी था।

कहानी का संदेश

यह कहानी हमें सिखाती है कि नेकी का रास्ता मुश्किल जरूर होता है, लेकिन उसकी मंजिल हमेशा खूबसूरत होती है। इंसानियत और दुआओं की ताकत किसी भी कठिनाई को पार कर सकती है।

“नेकी का इनाम जरूर मिलता है।”