क्यों एक मोची के सामने झुक गई IPS मैडम – अंशिका की कहानी
सुबह का समय था। जिले की तेजतर्रार आईपीएस अफसर अंशिका वर्मा अपनी मां सरिता देवी के साथ बाजार जा रही थीं। अचानक उनकी नजर सड़क के दूसरी ओर पड़ी, जहां एक साधारण कपड़ों में उनका तलाकशुदा पिता अशोक मोची का काम कर रहा था। अंशिका की आंखें भर आईं। उसने मां से कहा, “मां, देखिए, यही मेरे पापा हैं ना?” सरिता घबरा गईं और बोलीं, “नहीं बेटा, यह तुम्हारे पापा कैसे हो सकते हैं? तुम्हारे पापा तो अच्छे खासे आदमी थे, ये तो मोची हैं।”
लेकिन अंशिका ने जिद नहीं छोड़ी। “मां, आपने जो फोटो मुझे दिखाया था, वही चेहरा है। मुझे पता है आप झूठ बोल रही हैं। यही मेरे पापा हैं। प्लीज, इन्हें हमारे घर लेकर चलिए।” अशोक की नजर भी सरिता पर पड़ी, और उन्होंने शर्म से सिर झुका लिया। अंशिका ने सब देख लिया, उसे यकीन हो गया कि यही उसके पापा हैं। लेकिन मां गुस्से में उसे खींचते हुए वहां से ले गईं। “अगर तुम उन्हें घर लेकर आओगी, तो मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूंगी,” सरिता ने साफ कह दिया।
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घर पहुंचकर अंशिका ने मां से फिर पूछा, “मां, आप झूठ क्यों बोल रही हैं? मुझे अपने पापा से मिलना है। आपका और उनका रिश्ता खत्म हो गया, लेकिन मेरा तो नहीं।” सरिता ने फिर मना कर दिया। अंशिका ने ठान लिया कि वह अपने पापा से जरूर मिलेगी। अगले दिन वह चुपके से बाजार गई और अशोक के पास पहुंची। “आपका नाम क्या है?” अंशिका ने पूछा। “अशोक,” उन्होंने जवाब दिया। “आप रहते कहां हैं?” – “मेरा कोई घर नहीं, मैं यहीं सड़क पर रहता हूं।”
अंशिका की आंखों में आंसू आ गए। “आप मुझे पहचानते हैं?” अशोक ने सिर झुकाते हुए कहा, “नहीं बेटा, मैं आपको नहीं जानता।” लेकिन अंशिका ने हार नहीं मानी। “आप मेरे पापा हैं, आप झूठ बोल रहे हैं। मुझे पता है कि मां से आपकी शादी हुई थी और मैं आपकी बेटी हूं। मैं चाहती हूं कि आप दोनों फिर से एक साथ रहें।” अशोक ने फिर इंकार कर दिया, “मैं तुम्हारे घर नहीं जा सकता। वह तुम्हारा घर है, मेरा नहीं।”
अंशिका समझ चुकी थी कि मां-पापा को मिलाना आसान नहीं होगा। उसने अपनी मां की सहेली ललिता से मदद लेने का फैसला किया। ललिता ने बताया कि अशोक का किसी दूसरी महिला से अफेयर था, जिससे उनका घर टूट गया। अशोक ने अपनी संपत्ति भी गंवा दी और अब मोची का काम कर रहे हैं। यह सुनकर अंशिका की आंखों में आंसू आ गए।
“आंटी, मुझे अपने पापा को घर लाना है। क्या आप मेरी मदद करेंगी?” ललिता ने कहा, “मैं कोशिश करूंगी, लेकिन तुम्हारी मां बहुत नाराज है।” अंशिका ने जिद की और दोनों अशोक के पास गईं। “आपकी बेटी आपसे मिलने के लिए तड़प रही है,” ललिता ने समझाया। “प्लीज पापा, घर चलिए,” अंशिका ने विनती की। अशोक ने कहा, “मैं तुम्हारे घर कैसे जा सकता हूं? कानून के मुताबिक अब तुम सिर्फ सरिता की बेटी हो।”
अंशिका ने झूठ बोलकर कहा, “मां ने आपको बुलाया है, सब राजी हैं।” आखिरकार अशोक मान गए और तीनों घर पहुंचे। घर पहुंचते ही सरिता ने गुस्से में डांटा, “यह कौन है, बेटा? तुम उसे घर क्यों लेकर आई?” अशोक वापस जाने लगे, लेकिन अंशिका ने रोक लिया, “पापा, यह घर मेरा है, आप कहीं नहीं जाएंगे।”
सरिता और अशोक दोनों मानने को तैयार नहीं थे। तभी ललिता ने समझाया, “तुम्हारी बेटी अब बड़ी हो गई है। उसे अपने पापा के बिना जिंदगी अधूरी लगती है।” अंशिका रोते हुए मां के आगे हाथ जोड़ने लगी, “मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस आप दोनों की खुशी चाहिए। अगर आप दोनों मिल जाएंगे तो वही मेरी सबसे बड़ी खुशी होगी।”
अंशिका की आंखों में आंसू देखकर अशोक और सरिता दोनों भावुक हो गए। सरिता ने धीरे-धीरे अशोक का हाथ पकड़ लिया और दोनों गले लग गए। अंशिका की मेहनत और समझदारी से उसके माता-पिता फिर से एक हो गए। अब अशोक अपने घर लौट आए थे, और अंशिका को अपने पापा वापस मिल गए।
इस कहानी ने यह साबित कर दिया कि रिश्तों की डोर कभी-कभी टूट जाती है, लेकिन सच्चा प्यार और जिद उसे फिर से जोड़ सकती है। अंशिका की हिम्मत और संवेदनशीलता ने एक बिखरे परिवार को फिर से जोड़ दिया।
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