करोड़ों की संपत्ति पर जंग: संजय कपूर की विरासत के लिए परिवार में छिड़ा संग्राम

भूमिका

बॉलीवुड की चमक-दमक के पीछे अक्सर ऐसी कहानियाँ छुपी होती हैं, जो पर्दे पर नहीं आतीं। ऐसी ही एक कहानी है दिवंगत उद्योगपति और करिश्मा कपूर के पूर्व पति संजय कपूर की संपत्ति को लेकर चल रहे विवाद की। एक ओर करोड़ों की संपत्ति, दूसरी ओर परिवार की भावनाएँ, तीसरी ओर कानूनी पेचीदगियाँ—यह कहानी सिर्फ पैसों की नहीं, बल्कि रिश्तों, लालसा, न्याय और संवेदनाओं की भी है।

संजय कपूर: एक सफल उद्योगपति और जटिल पारिवारिक जीवन

संजय कपूर ऑटोमोटिव इंडस्ट्री के बड़े नाम थे। सोना कॉमस्टार के चेयरमैन, करोड़ों की संपत्ति के मालिक और तीन शादियों से गुजरे व्यक्ति। उनकी पहली शादी डिजाइनर नंदिता महतानी से हुई थी, दूसरी शादी बॉलीवुड अभिनेत्री करिश्मा कपूर से, और तीसरी शादी मॉडल एवं उद्यमी प्रिया सचदेव से। हर रिश्ते में उन्होंने प्यार, संघर्ष और बिछड़ने का दर्द झेला।

करिश्मा कपूर से उनकी शादी बॉलीवुड की सबसे चर्चित शादियों में से एक रही। दोनों के दो बच्चे—समायरा और किियान—हैं। तलाक के बाद बच्चों की कस्टडी करिश्मा को मिली। वहीं, प्रिया सचदेव से तीसरी शादी के बाद उनका एक बेटा अजियास है।

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संपत्ति विवाद की शुरुआत

12 जून को इंग्लैंड में पोलो मैच के दौरान संजय कपूर का अचानक निधन हो गया। हार्ट अटैक को मौत का कारण बताया गया, लेकिन परिवार में संपत्ति को लेकर बवाल मच गया। संजय की मां रानी कपूर और तीसरी पत्नी प्रिया सचदेव के बीच तनातनी शुरू हो गई।

रानी कपूर ने दावा किया कि वह अपने दिवंगत पति सुरिंदर कपूर की संपत्ति की एकमात्र लाभार्थी हैं और सोना ग्रुप की मेजॉरिटी शेयर होल्डर हैं। उन्होंने 2015 की वसीयत का हवाला देते हुए अपने अधिकार जताए। वहीं, कंपनी ने स्पष्ट किया कि रानी कपूर 2019 से शेयर होल्डर नहीं हैं और संजय कपूर ही आरके फैमिली ट्रस्ट के एकमात्र लाभकारी मालिक थे।

प्रिया सचदेव की चाल

संपत्ति विवाद के बीच प्रिया सचदेव ने अपने Instagram हैंडल का नाम बदलकर ‘प्रिया संजय कपूर’ कर लिया। यह बदलाव उनके इरादों की झलक देता है। प्रिया तेज, चालाक और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित महिला हैं। उन्होंने कानूनी दांव-पेंच के जरिए संजय कपूर की वसीयत में बदलाव करवाने की कोशिश की।

प्रिया ने अपने विश्वासी वकील अर्जुन मेहरा को भरोसे में लेकर नई वसीयत तैयार करवाई, जिसमें संजय कपूर की सारी संपत्ति ‘संजय कपूर और प्रिया सदेव कपूर ट्रस्ट’ के नाम कर दी गई। इस वसीयत में किियान का नाम तक नहीं था। संजय कपूर मानसिक रूप से प्रिया के प्रभाव में आ गए और नई वसीयत पर विचार करने लगे।

करिश्मा कपूर की चिंता

करिश्मा कपूर को जब संपत्ति विवाद की भनक लगी, तो उन्होंने अपने मित्र वकील राघव मिश्रा से सलाह ली। राघव ने सुझाव दिया कि करिश्मा को कानूनी नोटिस भेजकर जानकारी मांगनी चाहिए। करिश्मा ने संवेदनशीलता से दस्तावेज जुटाने शुरू किए और संजय कपूर की पुरानी वसीयत की कॉपी खोज निकाली, जिसमें किियान को बड़ी हिस्सेदारी दी गई थी।

कोर्ट में जंग

संपत्ति विवाद कोर्ट तक पहुँच गया। प्रिया ने नई वसीयत को पेश किया, जिसमें कई गवाह, बैंक अधिकारी और साक्ष्य विशेषज्ञ शामिल थे। दूसरी ओर, करिश्मा और राघव ने पुराने दस्तावेज, बैंकों से मिली जानकारी, नोटरी रिकॉर्ड और किियान की पहचान से जुड़े सबूत जुटाए।

कोर्ट की सुनवाई महीनों तक चली। मीडिया ने इसे ‘संपत्ति युद्ध’ नाम दिया। दो पत्नियों के बीच एक बेटे की भविष्य नीति को लेकर देशभर में चर्चा शुरू हो गई।

फॉरेंसिक जांच और निर्णायक मोड़

कोर्ट ने डिजिटल फॉरेंसिक लैब से हस्ताक्षर और स्टैंप की जांच करवाई। रिपोर्ट में सामने आया कि नई वसीयत के हस्ताक्षर और स्टैंप अलग-अलग उपकरणों से, अलग-अलग समय पर किए गए थे। पुरानी वसीयत पर हस्ताक्षर 2024 में किया गया था, जबकि नई वसीयत में कई कम गुणवत्ता के कागजात थे।

कोर्ट ने सवाल उठाया कि क्या कोई महिला, जो उस समय संजय की पत्नी नहीं थी, भविष्य सूचक इच्छा रख सकती थी? गवाह विजय शर्मा ने माना कि उसने नई वसीयत की घोषणा सुनी थी, लेकिन कोई लिखित दस्तावेज नहीं था।

भावनाओं की लड़ाई

इस कानूनी लड़ाई के बीच किियान, जो किशोरावस्था में था, अपनी मां से सवाल करता है—क्या प्रिया मुझे संपत्ति से वंचित करना चाहती है? करिश्मा ने साहसिक मुस्कान से कहा, “बेटा, मैं तुम्हारे लिए लड़ूंगी और सच्चाई को न्यायालय तक पहुंचाऊंगी।”

करिश्मा और राघव की टीम ने रात के अंधेरे में पुराने ऑफिस से दस्तावेज खोज निकाले। कोर्ट में ये दस्तावेज निर्णायक सबूत बने।

कोर्ट का फैसला

महीनों की सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया—

    पुरानी वसीयत कानूनी रूप से वैध पाई गई, क्योंकि उसमें हस्ताक्षर वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हुए।
    नई वसीयत निरस्त कर दी गई, क्योंकि उसमें स्वेच्छा, समय और विधि की कमी थी।
    कपिल को निर्देश दिए गए किियान को संपत्ति का आधा हिस्सा नियमित ट्रस्ट के जरिए सौंपे जाए।
    प्रिया सदेव को केवल वह हिस्सा मिला जो संजय की व्यक्तिगत इच्छा से मिला, पर वह संपूर्ण वारिस नहीं बन सकी।

कोर्ट ने प्रिया की चालाकी और मानसिक प्रेरणा की भी जांच की, लेकिन न्याय और संवेदनशीलता का संतुलन बनाए रखा।

फैसले के बाद परिवार में बदलाव

करिश्मा को मिली आधी संपत्ति से वह अपने बेटे की शिक्षा और परवरिश की व्यवस्था कर सकी। व्यक्तिगत रूप से स्वतंत्र हुई। प्रिया को मिला हिस्सा बहुत कम था। आरंभ में वह चिंतित हुई, पर धीरे-धीरे उसने स्वीकार कर लिया और संजय के साथ रिश्ते नए सिरे से परिभाषित हुए।

संजय ने दिल से स्वीकार किया कि उसने अपनी मानसिक भटकन में गलती की। उसने किियान के भविष्य का भरोसा जताया और करिश्मा से क्षमा मांगी। कुछ महीनों बाद प्रिया ने एक शांत शाम में किियान से कहा, “क्या तुम मुझे माफ कर सकते हो?” किियान ने जवाब दिया, “आप मां नहीं बन सकतीं, लेकिन मैं समझता हूँ कि इंसान गलती कर सकता है। फिलहाल मैं अपनी मां के साथ ठीक हूँ।”

प्रिया ने आंसू नहीं बहाए, लेकिन उसकी आँखों में एक नरम मुस्कान थी। संजय ने फिर अपनी कंपनी और ट्रस्ट को संजोया। अब एक पारदर्शी व्यवस्था थी जिसमें किियान ट्रस्ट के सलाहकार करिश्मा और राघव थे, ताकि उसकी शिक्षा और कल्याण पर ध्यान दिया जा सके। दूसरी ओर, प्रिया को मिला हिस्सा और पद सीमित था, पर सम्मान भरा था।

निष्कर्ष: लालसा, भावनाएँ और न्याय

यह कहानी संपत्ति की लालसा, व्यक्तिगत इच्छाओं, भावनात्मक उलझनों और अंततः न्याय की स्पष्टता की कहानी है। प्रिया ने सोचा चाल से जीत मिल जाएगी, पर मिला जागरण कि न्याय वैज्ञानिक और संवेदनशील संविधान की देन है। करिश्मा और किियान ने हिम्मत, धैर्य और सच्चाई की राह चलते हुए न्याय पाया। संजय ने समर्थन किया, पिछली भूल मानी और अपने बेटे के भविष्य को सुरक्षित किया।

यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्तों में लालसा और चालाकी से ज्यादा महत्व न्याय, संवेदनशीलता और सच्चाई का है। परिवार में मतभेद हों तो भी अंत में प्यार और न्याय की जीत होती है। करोड़ों की संपत्ति के लिए छिड़ी यह जंग सिर्फ पैसों की नहीं, बल्कि इंसानियत की भी है।