लक्ष्मी – इंसानियत की मिसाल
दिल्ली के सेंट होप हॉस्पिटल में सुबह का वक्त था।
हॉस्पिटल की गलियों में भीड़ थी, वार्डों में मशीनों की बीपिंग की आवाजें गूंज रही थीं,
नर्सें और डॉक्टर अपनी-अपनी ड्यूटी में डूबे हुए थे।
इमरजेंसी वार्ड में हर कोई किसी न किसी काम में इतना व्यस्त था कि किसी को किसी की परवाह नहीं थी।
इसी शोर और भागदौड़ के बीच एक कोने में
नीली साड़ी और सफेद एप्रन पहने एक औरत धीरे-धीरे फर्श साफ कर रही थी — उसका नाम था लक्ष्मी।
लक्ष्मी का चेहरा थका हुआ था, लेकिन आंखों में अजीब सी चमक थी।
वो हर कदम बहुत सावधानी से रखती,
ताकि किसी मरीज के बेड की वायर पर पैर न पड़ जाए,
किसी को असुविधा न हो।
वो जानती थी कि उसका काम मामूली लगता है,
पर उसके बिना यह अस्पताल चल नहीं सकता।
लेकिन सब उसे ऐसे देखते थे जैसे वो सिर्फ एक “सफाई वाली” है —
इंसान नहीं।
🩺 डॉक्टर का घमंड
उस वार्ड का सबसे चर्चित डॉक्टर था — डॉ. रघुवीर सिंह।
उम्र लगभग 40, चेहरा आत्मविश्वास से भरा,
आवाज़ में आदेश झलकता था।
रघुवीर अपने ज्ञान और डिग्री पर बहुत गर्व करता था,
इतना कि कभी-कभी वो भूल जाता था कि इंसानियत भी कोई चीज होती है।
जैसे ही उसने लक्ष्मी को आईसीयू के बीचोंबीच फर्श पोछते देखा,
वो गुस्से से फट पड़ा —
“अरे लक्ष्मी! तुम्हें समझ नहीं आता?
यह आईसीयू है, तुम्हारा घर नहीं!
झाड़ू लेकर बीच में क्या कर रही हो?”
वार्ड में मौजूद बाकी नर्सें हल्का सा मुस्कुराईं,
कुछ ने तो हंसी भी दबा ली।
लक्ष्मी ने सिर झुका लिया और धीरे से बोली,
“माफ कीजिए डॉक्टर साहब,
बस यह खून गिर गया था,
इनफेक्शन न फैल जाए इसलिए साफ कर रही थी।”
रघुवीर ने व्यंग्य में कहा,
“तुम्हें क्या पता इनफेक्शन क्या होता है!
तुम्हारा काम फर्श चमकाना है,
मरीज बचाना नहीं।”
लक्ष्मी ने कोई जवाब नहीं दिया।
बस बाल्टी उठाई, पानी बदला,
और अपने काम में लग गई।
उसकी आंखों में नमी थी,
लेकिन चेहरे पर एक अजीब सी शांति थी।
वो जानती थी कि इस दुनिया में कुछ लोग सिर्फ ओहदे देखते हैं,
दिल नहीं।
🧓 मौत से लड़ता एक बुजुर्ग मरीज
आईसीयू के एक कोने में बेड नंबर पाँच पर
एक बुजुर्ग मरीज लेटा था — रामकिशन शर्मा।
उम्र लगभग सत्तर साल।
पिछले तीन दिनों से उसकी हालत बेहद नाजुक थी।
डॉक्टरों ने दवाइयों और इंजेक्शन की पूरी कोशिश कर ली थी,
लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ था।
डॉ. रघुवीर ने अपनी टीम से कहा,
“अब कुछ नहीं हो सकता।
बॉडी धीरे-धीरे शटडाउन हो रही है।
प्रिपेयर फॉर द वर्स्ट।”
लक्ष्मी पास ही झाड़ू लगा रही थी।
उसने डॉक्टर की बातें सुनीं।
उसकी नजर अनायास उस बुजुर्ग के चेहरे पर गई।
सांसें तेज चल रही थीं,
होंठ सूखे हुए थे,
गला जैसे किसी चीज से अटका हो।
लक्ष्मी को कुछ अजीब लगा —
मानो उस आदमी के गले में कुछ फंसा हो।
अचानक मॉनिटर ने जोर से बीप करना शुरू किया —
बीप! बीप! बीप!
नर्सें भागीं, डॉक्टरों ने दौड़ लगाई।
सबने अपने-अपने उपकरण उठा लिए।
रघुवीर ने आदेश दिया —
“सीपीआर तैयार करो! ऑक्सीजन घट रही है!”
लक्ष्मी वहीं खड़ी थी, दिल तेजी से धड़क रहा था।
उसे लगा कुछ और गड़बड़ है।
वो धीरे से बोली,
“डॉक्टर साहब, लगता है इनके गले में कुछ फंसा है…”
रघुवीर ने पलट कर चिल्लाया —
“तुम चुप रहो! तुम्हें क्या पता?”
उसने हाथ से इशारा किया,
“अपने काम पर ध्यान दो!”
लक्ष्मी एक पल के लिए रुक गई।
पर उसके भीतर कुछ कह रहा था —
“अगर अब नहीं बोली, तो ये आदमी मर जाएगा।”
💥 इंसानियत का हौसला
वो पल बहुत भारी था।
एक तरफ आदेश था, डर था, नियम थे।
दूसरी तरफ इंसानियत थी।
और लक्ष्मी ने चुना — इंसानियत।
उसने साड़ी का पल्लू एक ओर किया,
और तेजी से मरीज के पास पहुंची।
डॉक्टर ने फिर चीखकर कहा —
“बाहर जाओ लक्ष्मी! ये तुम्हारा काम नहीं!”
पर इस बार उसने अनसुना कर दिया।
उसने मरीज को करवट दिलाई,
और उसके पीठ के बीचोंबीच जोर से दो बार थपकी दी —
वैसे ही जैसे उसने एक बार पुराने वार्ड की एक नर्स से सीखा था
जब किसी के गले में खाना फंस गया था।
पहली बार कुछ नहीं हुआ,
दूसरी बार भी नहीं।
लेकिन तीसरी बार —
अचानक मरीज के मुंह से एक छोटा कपड़े का टुकड़ा बाहर निकला!
पूरा वार्ड थम गया।
मॉनिटर की बीप धीमी हुई,
और स्क्रीन पर हार्ट रेट फिर से स्थिर हो गई।
बुजुर्ग ने गहरी सांस ली,
फिर दूसरी, फिर तीसरी।
नर्सें सन्न थीं।
रघुवीर वहीं जड़ हो गया।
जैसे किसी ने उसके अहंकार को आईना दिखा दिया हो।
🙏 एक चमत्कार, एक सबक
नर्स पूजा ने कांपती आवाज़ में कहा,
“सर… यह तो सांस ले रहे हैं! पल्स वापस आ गई है!”
लक्ष्मी के माथे पर पसीना था,
लेकिन आंखों में सुकून था।
उसने बस इतना कहा,
“मैंने कहा था ना, गले में कुछ फंसा है…”
रघुवीर कुछ नहीं बोला।
वो बस खड़ा रहा,
और पहली बार महसूस किया कि
कभी-कभी डिग्री नहीं,
दिल से देखना पड़ता है।
बुजुर्ग मरीज ने धीरे-धीरे आंखें खोलीं,
कमजोर हाथ उठाया,
और लक्ष्मी का हाथ पकड़ लिया।
“बेटी… तुमने मुझे दूसरी जिंदगी दी है।”
लक्ष्मी की आंखें भर आईं।
उसने झुककर उनके माथे को छुआ,
“बाबूजी, भगवान ने किया है, मैंने नहीं।”
पूरा वार्ड उस पल सन्न था,
लेकिन उस सन्नाटे में एक नई इज्जत की आवाज़ थी —
जो झाड़ू उठाने वाले हाथों के लिए गूंज रही थी।
🌅 डॉक्टर की आंखें खुलीं
कुछ घंटे बाद सब सामान्य हो गया।
मरीज की हालत स्थिर थी।
लक्ष्मी फिर वही कर रही थी जो रोज करती थी —
फर्श साफ कर रही थी।
लेकिन डॉक्टर रघुवीर उस दिन चुप था।
अपने केबिन में बैठा,
वो बार-बार वही दृश्य याद कर रहा था —
वो पल जब लक्ष्मी ने बिना डरे, बिना सोचे
किसी की जान बचा ली थी।
वो उठा,
धीरे-धीरे वार्ड की ओर गया,
जहां लक्ष्मी झाड़ू लेकर झुकी हुई थी।
उसने धीमी आवाज में कहा,
“लक्ष्मी…”
वो चौंकी,
“जी डॉक्टर साहब?”
रघुवीर कुछ देर चुप रहा,
फिर बोला,
“आज तुमने मुझे सिखाया है कि
जान बचाने के लिए सिर्फ डिग्री नहीं,
दिल चाहिए।
मैंने तुम्हारे साथ गलत व्यवहार किया,
माफ करना।”
लक्ष्मी ने मुस्कुराकर कहा,
“डॉक्टर साहब,
गलती सबसे होती है,
भगवान हर किसी को मौका देता है सुधारने का।”
रघुवीर ने आगे बढ़कर उसका हाथ थामा —
वो हाथ जिसे उसने कभी नीचा समझा था।
पूरा वार्ड उस दृश्य का गवाह बना।
अब वही डॉक्टर जिसने उसे ताने मारे थे,
उसके सामने सिर झुकाए खड़ा था।
🌺 इंसानियत की खुशबू
उस दिन से सेंट होप हॉस्पिटल का माहौल बदल गया।
अब वहां कोई किसी को “सिर्फ सफाई वाली” नहीं कहता था।
लोग उसे “लक्ष्मी दीदी” कहकर बुलाते थे।
हर नर्स, हर डॉक्टर उसके प्रति सम्मान महसूस करता था।
बुजुर्ग मरीज रामकिशन जब ठीक होकर अस्पताल से गए,
तो उन्होंने जाते-जाते कहा,
“अगर दुनिया में हर इंसान तुम्हारे जैसा होता,
तो अस्पताल नहीं, मंदिर बन जाते।”
लक्ष्मी ने सिर्फ झुककर हाथ जोड़ दिए।
वो मुस्कुराई,
क्योंकि उसे अब अपने काम का सम्मान मिल गया था।
अस्पताल की दीवारों में अब सिर्फ
फिनाइल की खुशबू नहीं,
इंसानियत की महक भी बस गई थी।
🌼 अंत का संदेश
कहते हैं —
भगवान हर जगह नहीं पहुँच सकता,
इसलिए उसने इंसान बनाया।
लक्ष्मी जैसी लोग वही भगवान के रूप हैं —
जो बिना ओहदे, बिना नाम के,
हर दिन किसी के लिए जीवन का अर्थ बन जाते हैं।
उसने साबित किया कि
“मददगार बनने के लिए पढ़ाई नहीं,
दिल चाहिए।”
उस दिन से डॉक्टर रघुवीर के केबिन में
एक नई नेमप्लेट लगी —
नीचे लिखा था:
“जहाँ लक्ष्मी है, वहाँ इंसानियत है।”
और दोस्तों,
यह कहानी हमें यही सिखाती है —
कभी किसी को उसके कपड़ों, काम या पद से मत आंकिए।
क्योंकि असली महानता डिग्री में नहीं,
दिल में होती है।
अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई हो,
तो इसे सुनकर बस भूलिए मत —
सोचिए, महसूस कीजिए,
और जहां भी मौका मिले,
किसी लक्ष्मी को सलाम कीजिए।
जय इंसानियत। 🌹
News
In the middle of a snowstorm, a homeless woman gave birth on the sidewalk. When her cries faded into the cold night, ten roaring engines appeared from the dark horizon…
In the middle of a snowstorm, a homeless woman gave birth on the sidewalk. When her cries faded into the…
प्रियंका सिंह – न्याय की बेटी
प्रियंका सिंह – न्याय की बेटी सुबह की ठंडी हवा में जब शहर की गलियां धीरे-धीरे जाग रही थीं, बाजार…
मीरा की वापसी – स्वाभिमान की कहानी
मीरा की वापसी – स्वाभिमान की कहानी रात के सन्नाटे में जब हवाएं चीख रही थीं और आसमान से बरसती…
कप्तान आरुषि सिंह – न्याय की लौ
कप्तान आरुषि सिंह – न्याय की लौ रामगढ़ जिला, जो कभी कानून और व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध था, अब डर…
They Humiliated My Wife at Our Son’s Wedding — But Twenty Years in the Marines Taught Me That Revenge Doesn’t Always Mean Violence… Sometimes It Means Standing Tall With Grace
They Humiliated My Wife at Our Son’s Wedding — But Twenty Years in the Marines Taught Me That Revenge Doesn’t…
My Mother-in-Law Came to “Help” — Then My Husband Moved Into Her Room
My Mother-in-Law Came to “Help” — Then My Husband Moved Into Her Room Introduction She arrived with two suitcases and…
End of content
No more pages to load






