.

रिश्तों की दीवारें: सनी देओल, हेमा मालिनी और एक टूटा हुआ परिवार

1. शुरुआत का दर्द

साल 1980, मुंबई। रात का समय था, जब धर्मेंद्र के घर में एक खबर ने सबकुछ बदल दिया। धर्मेंद्र, बॉलीवुड के ही-मैन, लाखों दिलों की धड़कन, ने अचानक धर्म बदलकर हेमा मालिनी से दूसरी शादी कर ली। घर में हंसी की जगह सन्नाटा उतर आया। उनकी पहली पत्नी प्रकाश कौर और चार बच्चे—सनी, बॉबी, अजीता और विजेता—इस खबर से टूट गए।

सनी देओल, 22-23 साल का नौजवान, जिसने अपने पिता को हीरो माना था, उनके लिए पूजा की थी, अब उसी पिता को गुनहगार मानने लगा। माँ की आंखों से रोज चुपचाप गिरते आंसू देखना उसके अंदर तूफान खड़ा कर देता। मीडिया ने आग में घी डाल दिया—”धर्मेंद्र ने पहली फैमिली को छोड़ दिया!”

घर में तनाव बढ़ गया। सनी गुस्से में फट पड़े। एक बेटे का दिल टूट चुका था। वह काली रात, जिसे आज भी कोई खुलकर नहीं बोलता।

2. अफवाहों और सच का टकराव

एक रात अफवाह उड़ती है—सनी देओल गुस्से में, हाथ में चाकू लेकर हेमा मालिनी के जूहू बंगले पहुंच गए। पूरी इंडस्ट्री दहल उठी। स्टूडियो से लेकर मैगजीन ऑफिस तक एक ही सवाल—क्या धर्मेंद्र का बेटा अपराधी बनने वाला है?

पर सच्चाई कुछ और थी। प्रकाश कौर, जो कभी मीडिया में नहीं बोली थी, सामने आई। उन्होंने कहा, “मेरा बेटा इमोशनल है, पर गुंडा नहीं। वह वहां गया था क्योंकि वह टूटा हुआ था, हमला करने नहीं। मेरे बच्चों ने किसी औरत को कभी चोट नहीं पहुंचाई।”

सच्चाई साफ हुई—सनी के पास कोई चाकू नहीं था। ये सिर्फ सनसनी फैलाने वालों का झूठ था। लेकिन उस रात ने दो दिलों के बीच 12 साल लंबी दीवार खड़ी कर दी।

3. 12 साल की बर्फीली चुप्पी

12 साल तक सनी और हेमा मालिनी के बीच एक अनकही दूरी रही। इंडस्ट्री में सब जानते थे—अगर हेमा किसी पार्टी में आतीं, सनी चुपचाप दूसरी दिशा में मुड़ जाते। अवार्ड शो में दोनों आमने-सामने आ जाएं तो एक खामोशी हवा को काटती हुई निकल जाती। न नफरत का विस्फोट, न कोई बहस—बस बर्फ जैसी चुप्पी।

4. पहली दरार: दिल आशना है

1992, हेमा मालिनी अपनी फिल्म “दिल आशना है” डायरेक्ट कर रही थीं। डिंपल कपाड़िया उनकी हीरोइन थी और सनी उनके अच्छे दोस्त। एक दिन डिंपल को किसी बात पर घबराहट हुई और उन्होंने सनी को सेट पर बुला लिया। तना हुआ माहौल। सारे कैमरे सांस रोक कर देख रहे थे।

हेमा मालिनी आगे बढ़ीं, “सनी परेशान मत हो, डिंपल मेरी जिम्मेदारी है।” बस इस एक वाक्य ने 12 साल से जमी बर्फ में दरार पैदा कर दी। सनी ने पहली बार महसूस किया—हेमा वो राक्षस नहीं हैं जैसा बचपन के गुस्से ने उन्हें सनी के दिमाग में बना दिया था।

5. असली इम्तिहान: इंसानियत की जीत

2015, राजस्थान के दौसा में हेमा मालिनी की कार का एक्सीडेंट हो गया। चेहरा लहूलुहान, आंख के पास गहरा कट। धर्मेंद्र मुंबई में नहीं थे। देओल परिवार में अफरातफरी मच गई। सबकी नजरें सनी देओल पर थीं—क्या वे अनदेखा करेंगे?

सनी ने वह किया जिसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी। खबर मिलते ही वे दौड़ते हुए अस्पताल पहुंचे। उन्होंने कमान संभाल ली—डॉक्टरों से बात की, स्पेशलिस्ट बुलवाए, प्लास्टिक सर्जन का इंतजाम किया ताकि हेमा के चेहरे पर स्थायी निशान न रह जाए।

हेमा मालिनी ने अपनी किताब “बियॉन्ड द ड्रीम गर्ल” में लिखा, “जब मैंने सनी को वहां खड़ा देखा तो मुझे पहली बार लगा कि मेरे पास भी कोई अपना है। वह तब तक अस्पताल से नहीं गया जब तक मैं पूरी तरह ठीक नहीं हो गई।”

खून नहीं, दिल रिश्ते जोड़ता है। उस दिन सनी ने साबित किया कि इंसानियत नफरत से बड़ी होती है। बेटा वही कहलाता है जो अपनी मां से संस्कार ले और हर औरत की इज्जत करे, चाहे रिश्ता कैसा भी हो।

6. परिवार में मरहम और नए रिश्ते

गदर 2 रिलीज़ हुई तो हेमा मालिनी ने मीडिया के सामने कहा, “सनी मेरा बेटा है और उसने कमाल कर दिया।” ईशा देओल ने अपने भाइयों के लिए निजी स्क्रीनिंग रखी। 40 साल बाद एक टूटा हुआ परिवार धीरे-धीरे मरहम लगाना सीख रहा था।

यह कहानी सिर्फ देओल्स की नहीं, हम सबकी है। इस रिश्ते ने हमें एक बात सिखाई—समय हर जख्म को भरता है। सनी देओल चाहें तो जिंदगी भर नफरत को ईंधन बनाकर जलाते रह सकते थे, लेकिन उन्होंने इंसानियत को चुना। उन्होंने अपनी मां के दर्द को समझा, लेकिन अपने पिता के दूसरे परिवार को इज्जत भी दी। यही सच्ची मर्दानगी है। यही असली मजबूती।

और जब भी परिवार पर तूफान आया, वही “ढाई किलो वाला हाथ” दीवार बनकर खड़ा हुआ।

7. अंतिम सफर और रिश्तों की सच्चाई

धर्मेंद्र की प्रेयर मीट थी। पूरा बॉलीवुड वहां था—हर दोस्त, रिश्तेदार, परिचित। लेकिन एक चेहरा गायब था—हेमा मालिनी, ईशा देओल, आहना देओल। उन्हें बुलाया ही नहीं गया। जब पूरे देओल परिवार ने अपने दरवाजे खोले, तो उन तीनों के लिए कोई दरवाजा नहीं था। ना बुलावा, ना सूचना, ना सम्मान।

यह सिर्फ नहीं बुलाना नहीं था, यह एक संदेश था—”तुम हमारे हिस्से नहीं हो।” सोचिए, एक पत्नी जिसने अपनी जिंदगी का सबसे सुंदर और कठिन हिस्सा एक आदमी के साथ बिताया, उसी आदमी की विदाई में उसके लिए कोई जगह नहीं थी। दो बेटियां जिन्होंने अपने पिता को बचपन से फिल्मों में, फोटो फ्रेम्स में, टीवी स्क्रीन पर देखा, लेकिन अंतिम बार उन्हें अलविदा कहने का हक भी नहीं मिला।

दुनिया कहती रही धर्मेंद्र एक महान इंसान थे। लेकिन उसी इंसान की अपनी तीन स्त्रियां उनके आखिरी सफर में शामिल तक नहीं हो पाईं। इससे बड़ा अन्याय क्या होगा?

कहते हैं बड़े परिवारों में खटास हो जाती है, रिश्ते टूट जाते हैं, दूरी आ जाती है। पर सवाल यह है—क्या किसी की अंतिम यात्रा भी इन खटासों का हिस्सा बन जाती है? क्या एक पत्नी को इतना हक भी नहीं कि वह अपने पति को अंतिम प्रणाम दे सके?

8. इंसानियत का सबक

यह कहानी सिर्फ बॉलीवुड की नहीं, हर परिवार की है। रिश्ते टूटते हैं, दर्द होता है, लेकिन समय हर जख्म को भरता है। सनी देओल ने अपने पिता के फैसले को स्वीकार किया, अपनी मां के दर्द को समझा, और हेमा मालिनी के प्रति इंसानियत दिखाई।

अगर इंसानियत हो, तो हर जख्म पर मरहम लगाया जा सकता है। यही सनी देओल की असली मजबूती है। यही हर बेटे की जिम्मेदारी है—हर औरत की इज्जत करे, चाहे रिश्ता कैसा भी हो।

आपका क्या मानना है? क्या सनी देओल ने सही किया? क्या इंसानियत हर जख्म पर मरहम बन सकती है?

समाप्त