IPS अधिकारी ने बेचारे मोची के आगे घुटने टेके | मोची ने क्या किया?

एक ठंडी सुहानी सुबह थी और जिले की आईपीएस श्वेता अग्रवाल अपनी मां कमला देवी के साथ बाजार की ओर जा रही थी। रास्ते में अचानक श्वेता की नजर सड़क पार एक आदमी पर पड़ी। वो आदमी फुटपाथ पर बैठा लोगों के जूते पॉलिश कर रहा था। श्वेता ठिठक कर बोली, “अरे मां, उधर देखिए जरा। वही तो है ना! मेरे पापा मोहन।”

कमला देवी चौंक कर बोली, “अरे पगली, यह तेरे पापा कैसे हो सकते हैं? तेरे पापा तो बड़े इज्जतदार आदमी थे। यह तो बस एक मोची है। देख लोगों के जूते कैसे चमका रहा है।”

श्वेता की आंखों में आंसू आ गए। कहने लगी, “मां, आपने जो फोटो दिखाया था, बिल्कुल वही चेहरा है। अब आप झूठ कैसे बोल रही हो। यही मेरे पापा हैं। प्लीज मां, इन्हें घर ले चलो। देखो उनकी हालत कितनी खराब है।”

अतीत की छाया

इतने में मोहन ने ऊपर देखा तो उसकी नजर कमला पर पड़ी। चेहरा पहचानते ही वह झट से नीचे देखने लगे। शर्म से सिर झुका लिया। श्वेता सब देख रही थी। अब उसे यकीन हो गया कि यही उसके पापा हैं। लेकिन कमला ने श्वेता का हाथ पकड़ लिया। “चल घर चल, यह तेरे पापा नहीं हैं। तुझे गलतफहमी हो गई है।”

श्वेता ने हाथ छुड़ाया और कहा, “नहीं मां, मैं अपने पापा को घर लेकर जाऊंगी। आपका उनसे झगड़ा हो सकता है। लेकिन वह मेरे पापा हैं और रहेंगे।”

कमला का गुस्सा फूट पड़ा और गुस्से में बोली, “देख श्वेता, अगर तू उन्हें घर लाएगी तो मैं तेरे साथ नहीं रहूंगी। अगर तुम्हें अपना पापा चाहिए तो मुझे भूल जाओ। ज्यादा जिद मत कर।”

कमला श्वेता को जबरदस्ती खींचते हुए घर ले आई। श्वेता मजबूरी में कुछ नहीं कर पाई और मां के साथ चली गई। उधर मोहन यह सब देख रहा था। उसके मन में यही ख्याल घूम रहा था, “मेरी बेटी कितनी बड़ी हो गई है। काश मेरी बेटी मेरे पास होती तो शायद मेरी ऐसी हालत ना होती।”

एक बेटी की चाहत

खैर, कहीं ना कहीं गलती मेरी ही है। मेरी ही वजह से आज मैं इस हाल में जी रहा हूं। वो सोचते हुए फिर से अपने काम में लग गया। घर आकर श्वेता अग्रवाल ने मां से पूछा, “मां, आप झूठ क्यों बोल रही हो? वो मेरे पापा हैं। आप उन्हें घर क्यों नहीं लाना चाहती? मुझे अपने पापा से मिलना है। आपकी और उनकी लड़ाई हो सकती है। आपका रिश्ता खत्म हो गया। लेकिन मेरा तो थोड़ा भी खत्म नहीं हुआ है। मैं अभी भी उनकी बेटी हूं। प्लीज मां, मुझे मेरे पापा से मिलने दीजिए।”

कमला देवी बोली, “तुझे जो करना है कर ले बेटा। लेकिन मैं उसे इस घर में नहीं लाऊंगी। तुझे इस घर में रहना है या नहीं, वो तेरा फैसला है। लेकिन मैं उस आदमी को इस घर में कभी नहीं लाऊंगी। मैं बुझी हुई आग को फिर से जलाना नहीं चाहती।”

सवालों का सामना

“अगर तू मेरे साथ नहीं रहना चाहती तो अलग बात है। वैसे भी तेरे पापा ने मुझे छोड़ दिया था। अब अगर तू भी मुझे छोड़ना चाहती है तो छोड़ दे। लेकिन मेरा दिल नहीं चाहता कि वह मेरे घर आए। बेटी तुम समझती नहीं हो। वो बात इतनी गहरी है कि मैं तुम्हें समझा भी नहीं सकती।” यह कहकर कमला चुप हो गई।

श्वेता अग्रवाल मन ही मन सोचने लगी, “आखिर इतनी बड़ी कौन सी बात हो गई कि मां आज तक नहीं मान रही हैं? क्या मेरे पापा इतने बुरे इंसान थे? जिस वजह से मां के दिल में इतना गुस्सा है। लेकिन क्यों? क्या ऐसा हो सकता है कि मां चाहती ही ना हो कि मैं पापा को घर लाऊं? क्या वह चाहती है कि मैं भी इस घर को छोड़ दूं? लेकिन क्यों मां मुझे इग्नोर कर रही है? मुझे छोड़ने की धमकी दे रही हैं। पर पापा को घर नहीं लाना चाहती। आखिर इतनी बड़ी कौन सी बात है?”

एक नई योजना

दूसरे दिन श्वेता चुपके से खुद मोहन से मिलने के लिए निकल पड़ी। कमला को बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उनकी बेटी कहां गई है। उन्हें लगा कि शायद वह ड्यूटी पर होगी। लेकिन आईपीएस श्वेता अपने पापा से मिलने बाजार की ओर निकल चुकी थी। वो जैसे ही बाजार पहुंची देखा कि उसी जगह पर उनके पापा फिर से जूते पॉलिश कर रहे हैं।

श्वेता तुरंत पास जाकर खड़ी हो गई और बोली, “आपका नाम क्या है?” मोहन ने जवाब दिया, “मेरा नाम मोहन है।” फिर श्वेता बोली, “आप रहते कहां हैं?” मोहन बोला, “मेरा कोई घर बार नहीं है। मैं यहीं सड़क पर रहता हूं। मेरा कोई नहीं है।”

वो सुनकर श्वेता की आंखों में आंसू आ गए। वो बोली, “आप मुझे पहचानते हैं?” मोहन ने शर्म से सिर झुकाते हुए कहा, “नहीं, मैं आपको नहीं जानता। आप कौन हैं? मुझे क्या पता?”

पहचान का संकट

श्वेता मन ही मन सोचने लगी, “पापा झूठ क्यों बोल रहे हैं? मुझे तो पहचानते होंगे क्योंकि उस दिन मां के साथ उन्होंने मुझे देखा था।” वो फिर बोल पड़ी, “आप मुझे जानते नहीं हैं। मेरा नाम श्वेता है। याद कीजिए, शायद जानते होंगे। कहीं ना कहीं तो आपने मुझे जरूर देखा होगा।”

मोहन बोला, “नहीं बेटा, मैंने तुम्हें कहीं नहीं देखा है। मुझे सब याद है और मुझे यह भी नहीं पता कि श्वेता कौन है। हां, हो सकता है तुम मुझे जानती हो। लेकिन मैं तुम्हें नहीं जानता बेटा।”

वो सुनकर श्वेता को थोड़ी राहत मिली क्योंकि वो अपने पापा के मुंह से “बेटा” शब्द सुनना चाहती थी। सुनते ही श्वेता बोली, “आप मेरे पापा हैं। आप झूठ बोल रहे हैं। मुझे पता है कि मेरी मां से आपकी शादी हुई थी और मैं आपकी बेटी हूं। मुझे नहीं पता कि आप दोनों के बीच क्या हुआ। किस वजह से रिश्ता टूटा। लेकिन अब मैं आप दोनों को एक साथ देखना चाहती हूं। मेरा सपना है कि मेरी मां और पापा फिर से एक साथ रहे।”

टूटते रिश्ते

वो सुनकर मोहन घबरा गया और बोला, “आप यह सब क्या कह रही हो बिटिया? मेरी तो कभी शादी ही नहीं हुई। आप शायद किसी और के बारे में बात कर रही होंगी। मैं किसी का पापा नहीं हूं।” वो सुनते ही श्वेता का दिल बैठ गया। वो मन ही मन सोचने लगी, “पापा झूठ बोल रहे हैं। मां और पापा दोनों ही मुझसे मिलना नहीं चाहते। मगर मैं इन्हें मिलाकर ही रहूंगी।”

वो फिर से बोली, “देखिए, मुझे पता है कि आप मेरे पापा ही हैं और मैं आप दोनों को मिलाकर रहूंगी। चाहे आप लोग जितना भी दूर क्यों ना भागें। चलिए मेरे साथ घर चलिए। आप यह सब क्या कर रहे हैं? आपको यह शोभा नहीं देता। मैं एक आईपीएस हूं और एक आईपीएस की बेटी के पापा इस तरह का काम नहीं करते। प्लीज पापा, घर चलिए।”

पिता का इनकार

मोहन की आंखों में आंसू आ गए। वो आंसू पोंछते हुए बोला, “नहीं बेटा, मैं तुम्हारे घर नहीं जाऊंगा। वो मेरा घर नहीं है। वो तुम्हारा घर है। तुम रह सकती हो लेकिन मैं थोड़ी ना तुम्हारे घर जा सकता हूं। बस बोल दिया हो गया। मैं यहीं रहता हूं बेटा और यहीं रहूंगा। मुझे किसी के घर जाने की जरूरत नहीं है। मैं ठीक हूं बेटा। तुम घर जाओ।”

यह सुनकर श्वेता समझ चुकी थी कि इस तरह से इन दोनों को मिलाना आसान नहीं होगा। उसे अब कोई और तरीका ढूंढना पड़ेगा। वो जानना चाहती थी कि आखिर मां और पापा के बीच हुआ क्या था। किस वजह से उनका रिश्ता टूटा था। वो यह भी ठान चुकी थी कि उस रिश्ते को जोड़ने के लिए वह कुछ भी करेगी।

मां की सहेली

अगले दिन श्वेता ने अपनी मां से पूछा, “मां, आपकी कोई सहेली या दोस्त नहीं है क्या?” कमला देवी बोली, “क्यों नहीं बेटा? दोस्त क्यों नहीं होंगे? मेरे भी दोस्त थे और सहेलियां भी और अब भी एक दो से बात होती रहती है। जैसे तुम्हारे भी बहुत दोस्त हैं, वैसे ही मेरे भी हैं। लेकिन क्यों बेटा, यह सवाल क्यों?”

श्वेता बोली, “नहीं मां, ऐसे ही पूछ रही थी। मैंने सोचा कि आपके दोस्त हैं या नहीं? वैसे भी घर में तो कभी कोई आता जाता नहीं है।” वो सुनकर कमला देवी कुछ पल चुप रही। फिर धीरे से बोली, “बेटा, जब जिंदगी में बहुत दर्द मिल जाए तो इंसान खुद से भी बात करना छोड़ देता है। किसी और से दोस्ती निभाना तो दूर की बात है।”

पुरानी यादें

श्वेता उनकी आंखों में देखती रह गई। वहां अब भी कोई पुराना जख्म था जो वक्त के साथ भी नहीं भरा था। कमला ने श्वेता की बात सुनकर माथे पर शिकन आ गई। वो बोली, “श्वेता, सीधी बात बता। अचानक यह सहेलियों वाला सवाल क्यों पूछ रही है? कुछ तो बात है ना?”

श्वेता मुस्कुराई और बोली, “नहीं मां, ऐसी कोई बात नहीं है। बस यूं ही सोच रही थी कि आप कभी किसी को घर नहीं बुलाती। त्यौहार हो या कोई खुशी का मौका, घर में बस सन्नाटा रहता है। अगर आपकी कोई प्यारी सहेली है तो उन्हें बुला लीजिए ना। घर में चहल-पहल रहेगी। हम सब मिलकर बातें करेंगे। बहुत अच्छा लगेगा।”

कमला थोड़ी देर चुप रही। फिर मुस्कुराई। “तू भी ना श्वेता, कभी-कभी ऐसी बातें करती है कि दिल को छू जाती है। हां, मेरी एक पुरानी सहेली है ललिता। यहीं पास में रहती है। बहुत अच्छी और सीधी साधी औरत है। अगर बुलाऊंगी तो वह जरूर आएगी।”

सहेली का आगमन

अगले दिन दोपहर को ललिता वाकई घर आ गई। कमला उसे देखकर खुश हो गई। दोनों पुरानी यादों में खो गईं। रसोई में खुशबू फैल गई। पूरी आलू की सब्जी और चाय की प्याली। श्वेता भी उनके साथ बैठी थी। मगर उसके मन में कुछ और चल रहा था। जब ललिता उठने लगी तो श्वेता बोली, “आंटी, आप तो बहुत अच्छी लगती हैं। अगली बार मिलने से पहले अपना नंबर दे दीजिए। कभी-कभी फोन पर बात कर लिया करेंगे।”

ललिता हंसकर बोली, “अरे हां बेटा, लो लिख लो।” नंबर श्वेता ने झट से अपने मोबाइल में सेव कर लिया। दूसरे दिन सुबह-सुबह श्वेता ने उसी नंबर पर कॉल लगाया। “आंटी, नमस्ते। मैं श्वेता बोल रही हूं। क्या मैं आपसे मिल सकती हूं? मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है।”

ललिता ने थोड़ा चौंक कर कहा, “अरे बेटा, क्या बात है? फोन पर नहीं बता सकती क्या?” श्वेता बोली, “नहीं आंटी, बात ऐसी है जो सामने बैठकर ही कहीं जा सकती है। बस एक बार मिलने का मौका दे दीजिए।”

मुलाकात का समय

ललिता बोली, “ठीक है बेटा, आ जाओ। घर पर ही हूं। जो बात है वहीं कर लेंगे।” श्वेता उसी वक्त तैयार होकर ललिता के घर पहुंची। थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करने के बाद श्वेता ने धीरे से कहा, “आंटी, एक बात पूछनी थी। मेरी मां और पापा अलग क्यों हुए? वो दोनों इतने दूर कैसे हो गए? और मेरे पापा की हालत इतनी बुरी क्यों है कि वो आज सड़क किनारे जूते पॉलिश करते हैं?”

ललिता की आंखें भर आईं। उन्होंने गहरी सांस ली और धीमी आवाज में कहा, “बेटा, तेरी मां और तेरे पापा की शादी बड़ी धूमधाम से हुई थी। शुरू में सब अच्छा था। हंसी, प्यार, खुशियां सब कुछ। फिर तू हुई। लेकिन तेरे जन्म के कुछ महीनों बाद तेरे पापा जिस कंपनी में काम करते थे, वहां एक लड़की आई और यहीं से सब बदल गया।”

रिश्तों की टूटन

ललिता कुछ देर रुकी फिर बोली, “तेरे पापा उस लड़की के जाल में फंस गए। वो चालाक थी, खूबसूरत भी। उसने तेरे पापा को ऐसे फंसाया कि वो घर परिवार सब भूल गए। धीरे-धीरे उसने उनके पैसे, इज्जत सब छीन लिया और जब कुछ नहीं बचा तो वो लड़की उन्हें छोड़ कर चली गई। तब तक बहुत देर हो चुकी थी।”

श्वेता की आंखें भर आई। वो बुदबुदाई, “मतलब पापा ने गलती की, लेकिन मां ने माफ क्यों नहीं किया?” ललिता बोली, “कमला ने बहुत समझाने की कोशिश की थी बेटा। मगर जब भरोसा एक बार टूट जाता है तो दिल भी टूट जाता है। और जब औरत का दिल टूटता है तो वह फिर किसी को पास नहीं आने देती।”

एक नई उम्मीद

श्वेता के गाल पर आंसू लुढ़क गए। उसने धीरे से कहा, “लेकिन मैं वह भरोसा वापस लाऊंगी आंटी, किसी भी तरह।” ललिता ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “बेटा, तेरे पापा उस लड़की के चक्कर में ऐसे फंसे कि होश ही खो बैठे। उन्होंने अपनी कुछ जमीन, दुकान तक बेच दी और सारा पैसा उस औरत को दे डाला। तेरी मां को इन सब बातों का बिल्कुल पता नहीं था। जब तू 4 साल की हुई, तभी कमला को सब सच्चाई मालूम पड़ी। उस दिन से तुम्हारे घर का सुकून खत्म हो गया।”

रिश्तों की पुनर्निर्माण

“बेटा, झगड़े शुरू हो गए। ताने चलने लगे। धीरे-धीरे दोनों में इतनी नफरत भर गई कि एक दूसरे का चेहरा देखना भी पसंद नहीं करते थे। आखिरकार कमला ने तलाक ले लिया। अब जो हाल तेरे पापा का है, वो उनके ही कर्मों का फल है।” श्वेता की आंखों से आंसू बह निकले। वो रोते हुए बोली, “आंटी, मैं अपने पापा को इस हाल में नहीं देख सकती। मैं उन्हें घर लेकर आना चाहती हूं। मैं मां और पापा को एक साथ देखना चाहती हूं। क्या आप मेरी मदद करेंगी?”

ललिता बोली, “बेटा, मैं जरूर मदद करूंगी। लेकिन कैसे? तेरी मां तो अब मोहन का नाम सुनना भी पसंद नहीं करती। अगर मैं कभी उनके सामने उसका जिक्र कर दूं, तो मुझे डांट देती हैं।” श्वेता बोली, “आंटी, कुछ तो करना ही पड़ेगा। चलिए आज ही दोनों मिलकर पापा के पास चलते हैं। उन्हें समझाते हैं, मनाते हैं। अगर वह घर आ गए तो शायद मां भी पिघल जाए।”

मिलन की कोशिश

ललिता ने कहा, “ठीक है बेटा, चलो कोशिश करते हैं। देखते हैं किस्मत क्या चाहती है।” दोनों मोहन के पास पहुंची। मोहन उसी पुराने जगह पर बैठे जूते पॉलिश कर रहे थे। श्वेता ने उनके सामने खड़े होकर कहा, “पापा, बस बहुत हो गया। अब आपको मेरे साथ घर चलना ही पड़ेगा।”

ललिता ने समझाया, “मोहन, मैं जानती हूं तुम टूटे हुए इंसान हो। लेकिन अपनी बेटी के लिए तो कुछ कर सकते हो ना। देखो, वो तुम्हारे लिए कितनी तड़प रही है।” श्वेता रोते हुए बोली, “पापा, आपको देखकर मेरा दिल रो पड़ता है। मैं एक आईपीएस हूं और मेरे पापा सड़क पर जूते पॉलिश करें। यह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। मैं मानती हूं कि आपका और मां का रिश्ता टूट गया। लेकिन मेरा रिश्ता तो अभी भी जिंदा है ना। मैं आपकी बेटी हूं। प्लीज पापा, मेरे साथ घर चलिए।”

पिता का संकोच

मोहन की आंखों में नमी आ गई। लेकिन उन्होंने सिर हिलाया और बोले, “नहीं बेटा, मैं तुम्हारे घर नहीं जा सकता। वो घर अब मेरा नहीं है। वह तुम्हारा है। तुम रह सकती हो लेकिन मैं थोड़ी ना तुम्हारे घर जा सकता हूं। बस बोल दिया हो गया। मैं यहीं रहता हूं बेटा और यहीं रहूंगा। मुझे किसी के घर जाने की जरूरत नहीं है। मैं ठीक हूं बेटा। तुम घर जाओ।”

यह सुनकर श्वेता के दिल पर जैसे किसी ने पत्थर रख दिया। फिर उसने आंखें पोंछी और झूठ बोल दिया, “पापा, मां ने खुद आपको घर बुलाया है। सब ठीक हो गया है। अब सब राजी हैं। बस आपको घर चलना है।”

मोहन ने हैरानी से पूछा, “सच में कमला ने बुलाया है?” श्वेता ने सिर हिलाया। “हां पापा, सच में।” मोहन मान गया। तीनों श्वेता, ललिता और मोहन घर पहुंचे। जैसे ही कमला की नजर मोहन पर पड़ी, वो गुस्से से कांप उठी। “श्वेता, यह कौन है? मैंने तुझे कितनी बार मना किया था? तू इसे घर में कैसे ले आई? क्या तेरा दिमाग खराब हो गया है?”

मां का गुस्सा

मोहन ने झट से पीछे कदम बढ़ाया। पर श्वेता ने उनका हाथ थाम लिया। “पापा, आप कहीं नहीं जाएंगे। यह घर मेरा भी है और मैं आपको यहीं रखूंगी। आप कोई गैर नहीं, मेरे पापा हैं।” कमला गुस्से में थी। मगर श्वेता की आंखों के आंसू देखकर ललिता बोली, “कमला, जरा सोचो। यह लड़की अपने माता-पिता को एक साथ देखने का सपना देख रही है। तुम्हारी बेटी अब बड़ी हो गई है। उसे अपने पापा के बिना जिंदगी अधूरी लगती है। क्या उसके लिए तुम दोनों थोड़ा सा झुक नहीं सकते?”

परिवार का पुनर्मिलन

श्वेता ने हाथ जोड़ते हुए कहा, “मां, मैं कुछ नहीं चाहती। बस आप दोनों को फिर से साथ देखना चाहती हूं। यही मेरी सबसे बड़ी खुशी होगी।” कमला चुप हो गई। कुछ पल के बाद मोहन की आंखों से भी आंसू बह निकले। कमला भी रो पड़ी। धीरे-धीरे उन्होंने हाथ बढ़ाकर मोहन का हाथ थाम लिया।

मोहन ने कहा, “कमला, मुझे माफ कर दो। मैंने जो किया वह गलती थी।” कमला बोली, “अब कुछ कहने की जरूरत नहीं। बस इतना जान लो कि श्वेता ने हमें फिर से जोड़ दिया।” दोनों गले मिल गए।

खुशी की वापसी

श्वेता की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले। उसका सपना पूरा हो गया था। मां-पापा फिर से एक हो गए थे और सब खुशी-खुशी रहने लगे। अपनी जिंदगी गुजारने लगे।

निष्कर्ष

दोस्तों, यह कहानी हमें यह सिखाती है कि रिश्ते कितने भी टूट जाएं, अगर प्यार सच्चा हो तो उसे जोड़ने की कोशिश करनी चाहिए। कभी-कभी एक छोटी सी कोशिश से बड़े-बड़े रिश्ते फिर से जुड़ सकते हैं। अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो लाइक करें, चैनल को सब्सक्राइब करें और बेल आइकन का बटन भी दबाएं। शुक्रिया!

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