गरीब समझकर शोरूम से भगाया खड़े खडे खरीद डाला पूरा शोरूम Power of Share Market | Heart Touching Story
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गरीब समझकर निकाला गया लड़का जिसने पूरा शोरूम खरीद डाला
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में अर्जुन नाम का लड़का रहता था। घर की हालत इतनी खराब कि बारिश में छत टपकती और गर्मियों में घर की दीवारें पिघलने लगतीं। पिता शंभू मज़दूरी करते थे और मां हर दिन चिंता में डूबी रहती थी कि कब बेटी गौरी का ब्याह होगा। लेकिन सबसे ज्यादा ताने सुनने वाला था अर्जुन। मां-बाप तक कह देते थे— “तेरे बस का कुछ नहीं। तू तो हमारे ऊपर बोझ है।”
अर्जुन चुप रहता। लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी आग थी। अंदर कहीं गहरे वह जानता था कि उसके लिए कुछ बड़ा लिखा है।
अपमान का पहला वार
एक दिन शंभू और अर्जुन शहर के एक बड़े कार शोरूम में पहुंचे। किसी परिचित ने वादा किया था कि गाड़ी दिलवा देगा। सपना था कि कार आ जाए तो गांव में टैक्सी चलाकर कुछ आमदनी होगी।
लेकिन जैसे ही दोनों अंदर दाखिल हुए, सेल्समैन ने उन्हें ऊपर से नीचे तक घूरा। अर्जुन की पसीने से भीगी कमीज़, गंदे चप्पल और पिता के कंधे पर टंगा पुराना झोला देखकर वह हंसा और बोला—
“देखिए साहब, यहां गाड़ी देखने का कोई चार्ज नहीं है। लेकिन यह जगह आपके लिए नहीं है। बाहर सेकंड हैंड कार वालों के पास जाइए।”
शंभू ने धीरे से कहा, “भैया, एक दोस्त ने भेजा है…”
सेल्समैन झल्ला उठा— “हर कोई यही कहता है। पर खरीदने की औकात हो तब आना।”
यह सुनकर शंभू की आंखें भीग गईं। अर्जुन ने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप उस शोरूम को घूरता रहा। बाहर निकलते वक्त उसके दिल में कुछ टूट गया था… या शायद कुछ बन गया था।
दूसरा वार— टूटी शादी और टूटा घर
इसी बीच बहन गौरी की शादी तय हो गई। दहेज में मोटरसाइकिल और एक लाख रुपये मांगे गए। शंभू ने साहूकार से कर्ज लिया, मां ने अपने गहने गिरवी रख दिए। लेकिन बारात आते ही लड़के वालों ने बहाना बनाकर शादी तोड़ दी—
“हम भीख नहीं मांग रहे। दहेज पूरा नहीं है तो रिश्ता खत्म।”
पूरा गांव सन्न रह गया। मां मूर्छित हो गई, शंभू को दिल का दौरा पड़ा और गौरी पत्थर सी हो गई। गांव वाले ताने कसने लगे— “लड़की जवान है… अब कौन करेगा शादी? और लड़का किसी काम का नहीं।”
उस रात अर्जुन की आंखों में आंसू नहीं थे। पर भीतर आग धधक रही थी। उसने खुद से कसम खाई—
“अब सिर्फ एक ही सपना है— पैसा। इतना पैसा कि इस समाज और उस शोरूम वाले को औकात दिखा दूं।”
गरीबी से जंग और शेयर मार्केट की शुरुआत
अर्जुन ने दिन-रात मेहनत शुरू की। गांव से 4 किलोमीटर दूर जाकर नेटवर्क पकड़ता, मोबाइल में शेयर मार्केट के वीडियो देखता। भूखा सो जाता, कई बार बेहोश भी हुआ, लेकिन हार नहीं मानी।
कर्ज लेकर पहला ट्रेड किया और छोटा मुनाफा कमाया। उस दिन उसने आसमान की तरफ देखा और कहा— “शुक्रिया, मैं रुकने वाला नहीं।”
धीरे-धीरे खाता लाखों में पहुंचा। उसने एक फंड शुरू किया, दोस्तों को भी सिखाया। अब वह वही अर्जुन था, पर आंखों में जुनून और हाथों में पैसा था।
वापसी— बदला लेने का दिन
एक दिन अर्जुन ने कैश पेमेंट पर एक कार बुक की और वही शोरूम चुना, जहां उसे कभी अपमानित किया गया था। जैसे ही अंदर गया, वही मैनेजर सामने था। उसने वही घमंडी अंदाज़ में पूछा—
“जी, क्या चाहिए? यह गाड़ी काफी महंगी है। पेमेंट कर पाएंगे?”
अर्जुन ने चुपचाप एक फाइल टेबल पर रख दी। उसमें करोड़ों के बैंक बैलेंस और निवेश के दस्तावेज़ थे। मैनेजर का चेहरा सफेद पड़ गया—
“आप… आप अर्जुन सिंह हैं?”
अर्जुन मुस्कुराया—
“हां। और आज मैं सिर्फ गाड़ी नहीं, पूरा शोरूम खरीदने आया हूं।”
पूरा शोरूम सन्न रह गया। वह लड़का जिसे कभी दरवाजे से भगा दिया गया था, अब मालिक बनने आया था।
गांव की इज्ज़त और बहन की शादी
शोरूम खरीदने के बाद अर्जुन गांव लौटा। लोग अब उसे पहचान नहीं पा रहे थे। जो पहले ताने कसते थे, अब कहते थे— “हम तो पहले ही कहते थे यह लड़का बड़ा आदमी बनेगा।”
लेकिन अर्जुन को इज्जत नहीं चाहिए थी, उसे अपने परिवार की मुस्कान चाहिए थी। उसने गौरी की शादी एक ऐसे शिक्षक से करवाई जिसने दहेज नहीं मांगा। शादी में पूरे गांव को बुलाया और कहा—
“मैं बदला नहीं लेता। मैं बदलाव लाता हूं।”
गांव के बुजुर्ग ने खड़े होकर कहा—
“बेटा अर्जुन, तू अब सिर्फ अपने मां-बाप का नहीं, पूरे गांव का बेटा है।”
अधूरा हिसाब— पिता के साथ आखिरी वापसी
लेकिन अर्जुन जानता था कि कहानी अधूरी है। एक दिन उसने पिता से कहा—
“बाबा, चलो उस शोरूम में चलते हैं।”
दोनों पुराने कपड़ों में गए। सेल्समैन ने फिर वही तिरस्कार भरी नज़र से देखा और कहा—
“भाई साहब, यहां कार बहुत महंगी है। बजट हो तो ही देखिए।”
अर्जुन मुस्कुराया और जेब से कागज़ निकाला। उसमें लिखा था—
“डील क्लोज— शोरूम का नया मालिक अर्जुन सिंह।”
सेल्समैन के होश उड़ गए। अर्जुन ने ऊंची आवाज़ में कहा—
“याद है कुछ साल पहले, मैं और मेरे पिता इसी दरवाजे से लौटाए गए थे। क्योंकि हमारे कपड़े फटे थे। आज मैं तुम्हारा मालिक हूं। फर्क बस इतना है कि तब मैं चुप था, आज नहीं हूं।”
फिर उसने आदेश दिया—
“अब इस शोरूम में एक नियम होगा। कोई भी गरीब किसान या मजदूर कार लेना चाहे, उसे विशेष रियायत दी जाएगी। और दीवार पर पोस्टर लगेगा— कभी किसी को छोटा मत समझो। हो सकता है कल वह तुम्हारा मालिक हो।”
पिता की आंखें भर आईं। उन्होंने अर्जुन से कहा—
“बेटा, तूने अपमान का बदला इज्जत से लिया है।”
अर्जुन ने मुस्कुराकर जवाब दिया—
“बाबा, बदला गुस्से से नहीं लिया जाता। बदलाव से लिया जाता है।”
निष्कर्ष
आज अर्जुन सिर्फ करोड़पति नहीं था। वह एक मिशन था। उसने साबित कर दिया था कि गरीबी शरीर को झुकाती है, आत्मा को नहीं। दुनिया सिर्फ नतीजे देखती है, इरादे नहीं।
और सबसे बड़ी बात—
जिस दरवाजे से कभी उसे और उसके पिता को बाहर निकाला गया था, उसी दरवाजे से वह मालिक बनकर बाहर निकला।
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