नन्ही काव्या ने बैंक को बचाया
गर्मियों की दोपहर थी। सरकारी स्कूल में छुट्टी जल्दी हो गई थी। रमेश, जो कस्बे के बैंक में सफाई कर्मचारी था, अपनी 10 साल की बेटी काव्या को लेने स्कूल पहुंचा। काव्या खुशी से पापा की गोद में चढ़ गई।
रमेश बोला, “बेटा, मैं बैंक जा रहा हूँ सफाई करने, तुम मेरे साथ चलो। एक घंटा लगेगा, फिर घर चलेंगे।”
काव्या ने पूछा, “पापा, मैं वहाँ क्या करूंगी?”
रमेश मुस्कुराया, “तू किताब पढ़ लेना, या मेरा काम देख लेना।”
बैंक में उस दिन अफरा-तफरी थी। कंप्यूटर सिस्टम खराब हो गया था। करोड़ों रुपये का लेन-देन रुक गया। किसान, व्यापारी, छात्र सब परेशान थे।
बैंक मैनेजर श्री वर्मा घबराए हुए थे। आईटी टीम को कॉल किया गया, लेकिन कोई हल नहीं निकला। टेक्निकल एक्सपर्ट भी हार मान गए—सिस्टम हैक हो चुका था, पैसे अपने आप बाहर जा रहे थे।
भीड़ में बैठी काव्या सब देख रही थी। उसने अपने पापा से कहा, “पापा, मुझे कोशिश करने दो।”
रमेश ने मना किया, “यह बड़े लोगों का काम है।”
लेकिन हालात इतने बिगड़ गए कि मैनेजर खुद काव्या के पास आकर बोले, “बेटा, प्लीज एक बार देख लो। शायद तुम कुछ कर सको।”
10 साल की काव्या कंप्यूटर के सामने बैठ गई। सबकी नजरें उसी पर थीं। काव्या ने सबसे पहले सर्वर प्रोग्राम खोला, लॉक फाइल्स देखीं, और जल्दी ही पता लगा लिया कि सिस्टम में बैकडोर प्रोग्राम इंस्टॉल हुआ है।
उसने वायरस का सोर्स ढूंढा, हैकर की लोकेशन पकड़ी—गुरुग्राम।
अब असली कमाल शुरू हुआ। काव्या ने हैकर के सर्वर में घुसकर सारे ट्रैप तोड़ दिए। ऑटोमेटिक ट्रांसफर रोक दिया, और जो पैसा जा चुका था, उसे भी बैंक के अकाउंट में वापस कर दिया।
स्क्रीन पर सारे सिस्टम ग्रीन हो गए। बैंक फिर से चालू हो गया।
मैनेजर काव्या के पैरों में झुक गए, “बेटा, तुमने बैंक को बर्बादी से बचा लिया। तुम हमारी हीरो हो।”
पुलिस ने तुरंत हैकर को पकड़ लिया।
पूरा बैंक हॉल तालियों से गूंज उठा। काव्या के पिता की आंखें गर्व से भर आईं।
लोग कहने लगे—इतने बड़े एक्सपर्ट्स फेल हो गए, लेकिन इस छोटी बच्ची ने कमाल कर दिया।
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