👉 IPS मैडम सादे कपड़ों में बहन के साथ रिपोर्ट लिखाने गईं… दरोगा ने कर दी बदतमीज़ी, फिर जो हुआ..

.
.

कहानी: निडर आईपीएस ऑफिसर की न्याय की यात्रा

प्रारंभ

दोस्तों, आज की कहानी एक ऐसी निडर आईपीएस ऑफिसर की है, जो न्याय के लिए अपनी वर्दी का रुतबा छोड़कर एक आम इंसान बनकर थाने पहुंचती है। आईपीएस सुप्रिया शर्मा की हाल ही में एक नए जिले में पोस्टिंग हुई थी। किशनपुर नामक इस जिले में उन्हें एक बूढ़ी मां और उसकी बेटी से पता चला कि गांव का दबंग जमींदार उन्हें परेशान कर रहा है। जब वे थाने गईं, तो पुलिस ने उनकी मदद करने के बजाय उन्हें ही अपमानित करके भगा दिया।

सुप्रिया का निर्णय

यह सुनकर आईपीएस मैडम ने खुद मोर्चा संभालने का फैसला किया। वह बिना अपनी पहचान बताए उस बूढ़ी मां के साथ सादे कपड़ों में थाने पहुंची। उन्होंने पुलिस वालों से एफआईआर लिखने को कहा। “मेरी मां की एफआईआर क्यों नहीं लिखी? अभी दर्ज करो, नहीं तो ऊपर तक शिकायत जाएगी।” थानेदार हंसते हुए बोला, “तू कौन होती है हमें कानून सिखाने वाली?” थानेदार ने उन्हें धमकाना और धक्का देना शुरू कर दिया। फिर जो हुआ, उसे देखकर हर कोई दंग रह गया।

सुप्रिया का परिचय

सुप्रिया शर्मा का नाम किशनपुर में एक नई आईपीएस अफसर के रूप में उभरा था। उनकी आंखों में ऐसी चमक और चेहरे पर ऐसा आत्मविश्वास था कि बड़े-बड़े अपराधी भी नजरें झुका लेते थे। सुप्रिया के लिए किशनपुर एक पोस्टिंग नहीं थी, बल्कि एक चुनौती थी। उसे पता था कि बाहर से शांत दिखने वाले इस जिले के अंदर जुर्म और भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी थीं।

रत्ना देवी का दुःख

उसी दिन एक अधेड़ उम्र की महिला, जिसका नाम रत्ना देवी था, अपनी करीब 20 साल की बेटी पूजा के साथ डरते-डरते आईपीएस ऑफिस के गेट पर पहुंची। उनके हाथ कांप रहे थे और गला सूख कर कांटा हो गया था। रत्ना देवी की आंखों में आंसू भर आए। कुछ हफ्ते पहले तक उनकी जिंदगी ऐसी नहीं थी। गांव के एक कोने में उनका छोटा सा कच्चा पक्का घर था। रत्ना देवी दूसरों के खेतों में मजदूरी करती और पूजा पढ़ाई के साथ-साथ घर के काम में अपनी मां का हाथ बंटाती थी।

महिपाल सिंह का आतंक

फिर एक दिन उनकी खुशियों को गांव के सबसे बड़े जमींदार महिपाल सिंह की नजर लग गई। महिपाल सिंह सिर्फ जमींदार नहीं था, बल्कि गांव का बेताज बादशाह था। उसकी मर्जी के बिना गांव में पत्ता भी नहीं हिलता था। पुलिस और पटवारी सब उसकी जेब में थे। उसकी नजर रत्ना देवी के छोटे से घर पर थी, जो हाईवे के पास बन रही एक नई सड़क के किनारे था। वह उस जमीन को कौड़ियों के दाम में हड़पना चाहता था।

धमकी का सामना

एक सुबह, वह अपने चार गुंडों के साथ उनके दरवाजे पर आकर धमकाने लगा। “बुढ़िया, यह जमीन खाली कर, मैंने खरीद ली है।” उसकी आवाज में अहंकार और धमकी का जहर घुला हुआ था। रत्ना देवी ने हाथ जोड़कर कहा, “मालिक, यह मेरे पुरखों की जमीन है। हम कहां जाएंगे?” तभी पूजा बाहर निकली। उसकी आंखों में डर नहीं, गुस्सा था। “किस हक से खरीदने की बात कर रहे हो? यह हमारी जमीन है और हम इसे नहीं बेचेंगे।”

महिपाल ने पूजा का हाथ पकड़ लिया और बोला, “बड़ी जुबान चलने लगी है। तेरी जुबान खींच लूंगा। सुन, कल तक यह घर खाली नहीं हुआ, तो तुझे उठाकर ले जाऊंगा और तेरी मां को इसी घर के साथ जला दूंगा।”

थाने का अपमान

अगले दिन, वे सीधे स्थानीय थाने पहुंचे। वहां का थानेदार था इंस्पेक्टर करण सिंह। उसने उनकी कहानी सुनी, जैसे कोई मजेदार किस्सा सुन रहा हो। करण सिंह ने कहा, “महिपाल सिंह इलाके के इज्जतदार आदमी हैं। तुम लोग उन पर झूठा इल्जाम लगा रही हो। जाओ घर जाओ और उनसे माफी मांग लो।”

रत्ना देवी बोली, “साहब, हमारी इज्जत का सवाल है। हमारी एफआईआर लिख लीजिए।” तभी थाने का दरवाजा खुला और महिपाल सिंह अंदर आया। उसने आते ही करण सिंह के कंधे पर हाथ रखा और हंसते हुए बोला, “क्या इंस्पेक्टर साहब, इन भिखारियों की पंचायत कर रहे हो? मैंने कहा था ना, यह नहीं मानेंगे।”

अपमान का सामना

उस दिन थाने में उनकी एफआईआर नहीं लिखी गई। उल्टे उन्हें ही धमका कर भगा दिया गया। उस दिन के बाद से उनका जीना मुश्किल हो गया था। किसी ने हिम्मत करके उन्हें बताया कि जिले में नई आईपीएस मैडम आई हैं। शायद वही कुछ कर सकें। इसी आखिरी उम्मीद के साथ वे आज यहां पहुंची थीं।

सुप्रिया का साहस

आईपीएस सुप्रिया शर्मा की नजर गेट पर खड़े संतरी पर पड़ी, जो रत्ना देवी और पूजा को अंदर आने से रोक रहा था। सुप्रिया ने अपने पीए को कहा, “उन दोनों को अंदर भेजो।” जैसे ही रत्ना देवी और पूजा कांपते कदमों से ऑफिस में दाखिल हुईं, सुप्रिया अपनी कुर्सी से खड़ी हो गई। उसने देखा कि रत्ना देवी कितनी डरी हुई हैं।

रत्ना देवी की कहानी

सुप्रिया ने नरम आवाज में कहा, “आइए मां जी, बैठिए, पानी पीजिए।” एक बड़े पुलिस अफसर के मुंह से “मां जी” सुनकर रत्ना देवी की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। उसने अपनी पूरी कहानी, अपनी पूरी पीड़ा सुप्रिया के सामने उतार दी। पूजा ने भी गुस्से और बेबसी से भरी आवाज में बताया कि कैसे थानेदार करण सिंह ने उनकी मदद करने के बजाय उन्हीं को बेइज्जत किया और कैसे महिपाल सिंह थाने में बैठकर उन्हें धमकाता रहा।

गुस्से का ज्वाला

पूरी बात सुनते हुए सुप्रिया का चेहरा पत्थर की तरह सख्त हो गया। उसकी उंगलियां मेज पर रखे पेपरवेट पर कस गईं। उसे गुस्सा आ रहा था अपने ही सिस्टम पर। वह जानती थी कि अगर उसने अभी किशनपुर थाने में फोन किया तो करण सिंह तुरंत हरकत में आ जाएगा। वह कोई झूठी एफआईआर दर्ज कर लेगा।

योजना का निर्माण

सुप्रिया ने एक लंबा सांस लिया। उसे समझ आ गया था कि उसे इस मामले को खुद संभालना होगा। सुप्रिया बोली, “मां जी, आप चिंता मत कीजिए। आपको इंसाफ मिलेगा और आज ही मिलेगा। लेकिन उसके लिए आपको मेरी एक मदद करनी होगी।” रत्ना देवी ने हैरानी से पूछा, “कैसी मदद बिटिया?”

थाने में वापसी

सुप्रिया ने कहा, “आपको मेरे साथ एक बार फिर उसी थाने में चलना होगा।” यह सुनते ही रत्ना देवी और पूजा के चेहरे का रंग उड़ गया। पूजा बोली, “नहीं मैडम, हम वहां दोबारा नहीं जा सकते। वो करण सिंह हमें मार डालेगा।”

सुप्रिया ने मुस्कुराकर कहा, “इस बार आप अकेली नहीं होंगी।” इस बार आपकी यह बेटी आपके साथ चलेगी। सुप्रिया ने रत्ना देवी को समझाया, “देखिए मां जी, मैं वहां आईपीएस बनकर नहीं जाऊंगी। मैं आपकी बेटी बनकर जाऊंगी। मैं देखना चाहती हूं कि वह लोग एक आम नागरिक के साथ कैसा बर्ताव करते हैं। आपको बस इतना करना है कि आप मुझे पहचानेंगी नहीं। क्या आप कर पाएंगी?”

नई उम्मीद

रत्ना देवी की आंखों में अब डर की जगह एक नई चमक थी। उन्होंने कहा, “हां बिटिया, तू हमारी खातिर इतना कर रही है तो हम अपनी जान भी दे देंगे।”

योजना का कार्यान्वयन

आधे घंटे बाद आईपीएस सुप्रिया शर्मा एक साधारण सलवार सूट में थी। उसने अपने बाल बांध लिए थे और चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था। उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था कि यह किशनपुर जिले की सबसे बड़ी पुलिस अफसर है। वह रत्ना देवी और पूजा के साथ एक प्राइवेट जीप में बैठी और किशनपुर थाने की ओर चल पड़ी।

थाने का माहौल

गाड़ी में खामोशी थी। रत्ना देवी का दिल अभी भी जोर-जोर से धड़क रहा था। किशनपुर थाने के बाहर का माहौल हमेशा की तरह था। सुप्रिया, रत्ना देवी और पूजा के साथ जैसे ही जीप से उतरी, थाने के भीतर कदम रखते ही एक अजीब सी घुटन ने उनका स्वागत किया।

थाने में प्रवेश

सुप्रिया ने कहा, “साहब, हमें रिपोर्ट लिखवानी है। इंस्पेक्टर साहब कहां हैं?” कांस्टेबल बोला, “इंस्पेक्टर साहब बिजी हैं। कल आना।” सुप्रिया ने अपनी आवाज थोड़ी ऊंची की। “हमें आज ही रिपोर्ट लिखवानी है और अभी बुलाइए अपने इंस्पेक्टर साहब को।”

करण सिंह का अपमान

उसकी आवाज की दृढ़ता से मुंशी थोड़ा चौंका। उसने अंदर की तरफ आवाज लगाई, “अरे कोई है? देखो यह कौन चिल्ला रहा है?” अंदर के कमरे से इंस्पेक्टर करण सिंह बाहर निकला। उसने पहले तो सुप्रिया को देखा। फिर उसकी नजर रत्ना देवी पर पड़ी और बोला, “अरे ओ बुढ़िया, तू फिर आ गई। मैंने मना किया था ना कि दोबारा यहां अपनी शक्ल मत दिखाना। दिमाग खराब है क्या तेरा?”

सुप्रिया का साहस

रत्ना देवी डर के मारे सुप्रिया के पीछे छिप गई। सुप्रिया बोली, “इंस्पेक्टर साहब, आपने इनकी एफआईआर क्यों नहीं लिखी?” करण सिंह ठहाका लगाकर हंसा। “तू कौन होती है मुझसे यह पूछने वाली? इसकी नई वकील बनी है क्या? शक्ल देखी है अपनी। बड़ी आई कानून सिखाने वाली।”

सुप्रिया ने शांत रहते हुए कहा, “मैं भी एक नागरिक हूं और आप एक पब्लिक सर्वेंट हैं। आपका फर्ज है हमारी शिकायत सुनना। आप इनकी एफआईआर अभी दर्ज कीजिए, वरना इसकी शिकायत ऊपर तक जाएगी।”

गुस्सा बढ़ता है

करण सिंह अब गुस्से में आ चुका था। उसका अहंकार चोट खा चुका था। “तू मुझे धमकी देगी। तेरी यह हिम्मत तुझे पता है मैं कौन हूं। अभी तुझे ऐसी जगह बंद करूंगा कि सारी हेकड़ी निकल जाएगी।” वह आगे बढ़ा और उसने सुप्रिया को धकेलने की कोशिश की। “चल निकल यहां से, दफा हो जा।”

सुप्रिया का प्रतिरोध

सुप्रिया ने एक झटके से अपना हाथ छुड़ाया। उसकी आंखों में अब एक शेरनी वाला गुस्सा था। उसने गरजती हुई आवाज में कहा, “हिम्मत तो देखो तुम्हारी इंस्पेक्टर। एक औरत पर हाथ उठाते हो।” उसने अपने पर्स से अपना आईडी कार्ड निकाला और उसे करण सिंह की आंखों के ठीक सामने खोल दिया।

पहचान का खुलासा

कार्ड पर अशोक स्तंभ चमक रहा था और नीचे मोटे अक्षरों में लिखा था, “सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस, जिला किशनपुर।” उसका नाम सुप्रिया शर्मा था।

थाने में सन्नाटा

इस जिले की नई आईपीएस। अब बताओ, ऐसे मिलता है यहां की जनता को इंसाफ। पूरे थाने में मौत सा सन्नाटा छा गया। इंस्पेक्टर करण सिंह के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई थी। उसका शरीर कांपने लगा, माथे पर पसीने की नदियां बहने लगीं और धड़ाम की आवाज के साथ वह सुप्रिया के पैरों पर गिर पड़ा। “मैडम, गलती हो गई। माफ कर दीजिए। मुझे नहीं पता था।” वह गिड़गिड़ा रहा था।

सुप्रिया का अधिकार

सुप्रिया ने नफरत से उसकी ओर देखा। “जब मैं एक आम औरत थी, तब तुम्हें कानून याद नहीं आया। तब तुम्हें मेरी इज्जत का ख्याल नहीं आया।” सुप्रिया शर्मा अब पूरी तरह से अपने आईपीएस के अवतार में आ चुकी थी। उसकी आवाज में वह अधिकार था जो सिस्टम को हिला सकता था।

सस्पेंशन आदेश

उसने कहा, “सस्पेंशन आर्डर टाइप करो।” इंस्पेक्टर करण सिंह तत्काल प्रभाव से सस्पेंड किए जाते हैं। फिर उसने बाकी पुलिस वालों की तरफ देखा, जो दीवार से चिपक कर खड़े थे। “और तुम सब जो यहां खड़े तमाशा देख रहे थे। आज से तुम लोगों की ड्यूटी पुलिस लाइन के ग्राउंड में घास छीलने की है। वहीं तुम सीखोगे कि अनुशासन क्या होता है।”

एफआईआर दर्ज करना

उसने रत्ना देवी का हाथ पकड़ कर कहा, “आपकी रिपोर्ट लिखी जाएगी।” वह खुद करण सिंह की कुर्सी पर जाकर बैठ गई। सुप्रिया ने खुद अपने हाथ से उनकी एफआईआर लिखी। एक-एक शब्द, एक-एक डिटेल। उसने सिर्फ महिपाल सिंह पर ही नहीं, बल्कि इंस्पेक्टर करण सिंह पर भी ड्यूटी में लापरवाही, एक महिला के साथ बदसलूकी और अपराधी को संरक्षण देने का मामला दर्ज किया।

वायरलेस सेट पर आदेश

एफआईआर लिखने के बाद उसने वायरलेस सेट उठाया। उसकी आवाज पूरे डिस्ट्रिक्ट कंट्रोल रूम में गूंजी। “कंट्रोल, यह आईपीएस किशनपुर बोल रही है। एक टीम तुरंत तैयार करो। गांव के जमींदार महिपाल सिंह को अरेस्ट करना है। मैं चाहती हूं कि अगले 1 घंटे में वह मेरी हिरासत में हो। कोई भी बहाना नहीं चलेगा। ओवर एंड आउट।”

गिरफ्तारी का समय

पूरे पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया। उस शाम, जब सूरज ढल रहा था, महिपाल सिंह अपने आलीशान घर में शराब पी रहा था और करण सिंह को फोन लगाकर गालियां दे रहा था। तभी पुलिस की तीन जीपें एक साथ उसके गेट को तोड़ती हुई अंदर घुसीं। महिपाल को लगा कि यह उसका स्वागत करने आए हैं।

महिपाल की गिरफ्तारी

लेकिन जब एक नए इंस्पेक्टर ने उसे हथकड़ी दिखाई, तो उसकी सारी हेकड़ी हवा हो गई। “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुम जानते नहीं मैं कौन हूं। मैं अभी आईपीएस साहब को फोन करता हूं।” इंस्पेक्टर ने मुस्कुराकर कहा, “यह आर्डर आईपीएस साहिबा का ही है। महिपाल सिंह, अब चलिए, हवालात आपकी प्रतीक्षा कर रही है।”

मीडिया में हलचल

महिपाल सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। अगले दिन आईपीएस सुप्रिया शर्मा की कार्यवाही की खबर आग की तरह पूरे राज्य में फैल गई थी। आम जनता के लिए सुप्रिया एक मसीहा बन गई थी।

अभय राय का पर्दाफाश

किशनपुर का अंधेरा सिर्फ जमींदार महिपाल सिंह या इंस्पेक्टर करण सिंह तक सीमित नहीं था। इस पूरे खेल का असली खिलाड़ी था किशनपुर का विधायक अभय राय। अभय राय बाहर से एक सफेदपश नेता था, जो मंच पर खड़े होकर गरीबों के हकों की बड़ी-बड़ी बातें करता था। लेकिन पर्दे के पीछे वह एक बहुत बड़ा अपराधी था।

साजिश का निर्माण

महिपाल सिंह जैसे लोग उसके लिए जमीनें हड़पते थे। चुनाव में बूथ कैप्चरिंग करते थे और उसके काले धंधों को संभालते थे। महिपाल और करण सिंह की गिरफ्तारी अभय राय के साम्राज्य पर हमला थी। उसे अपनी कुर्सी हिलती हुई महसूस हो रही थी।

अभय का प्रतिशोध

उसने फैसला किया कि इस कांटे को रास्ते से हटाना ही पड़ेगा। एक रात अभय राय ने अपने फार्म हाउस पर एक मीटिंग बुलाई। वहां करण सिंह के कुछ वफादार, सस्पेंड हुए पुलिस वाले और महिपाल के गुंडे मौजूद थे। अभय राय ने अपनी महंगी सिगार का कश खींचते हुए कहा, “एक लड़की ने तुम सबकी मदानगी पर पानी फेर दिया और तुम लोग कुछ नहीं कर सके।”

साजिश का खाका

एक हवलदार डरते-डरते बोला, “नेताजी, वह आईपीएस है। हम क्या करते?” अभय राय हंसा। “आईपीएस है भगवान नहीं। उसे हटाने का तरीका भी है। बस दिमाग लगाना पड़ेगा। उसे उसी के खेल में फंसाना होगा।”

सुप्रिया की तैयारी

सुप्रिया जानती थी कि यह एक साजिश है और वह इसका पर्दाफाश करके रहेंगी। महिपाल सिंह भी जमानत पर बाहर आ चुका था। लेकिन सुप्रिया अब आईपीएस नहीं थी। उनके पास कोई पावर नहीं थी। कोई टीम नहीं थी। वह अपने छोटे से क्वार्टर में अकेली थी।

रत्ना और पूजा का समर्थन

लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी थी। उनकी सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरे रत्ना देवी और पूजा। वे दोनों हर रोज उनके लिए खाना लेकर आतीं। वे घंटों उनके पास बैठतीं और उनका हौसला बढ़ातीं।

रघुवीर की मदद

एक और इंसान था जो चुपचाप सुप्रिया के साथ खड़ा रहा था। उनका भरोसेमंद कांस्टेबल रघुवीर। रघुवीर जानता था कि मैडम बेकसूर हैं। वह ड्यूटी के बाद चोरी छिपे एक महिला पत्रकार कनिष्का के साथ सुप्रिया से मिलने आता और उन्हें थाने और जिले में चल रही गतिविधियों की जानकारी देता।

एक नई टीम का गठन

अब एक नई टीम बन चुकी थी। एक सस्पेंडेड आईपीएस, एक ईमानदार कांस्टेबल और एक निडर पत्रकार और उनका मिशन था अभय राय के काले साम्राज्य का पर्दाफाश करना। तीनों ने मिलकर काम करना शुरू कर दिया।

योजना का कार्यान्वयन

तभी सुप्रिया ने खतरनाक लेकिन फूल प्रूफ प्लान बनाया। एक रात जब अभय राय ने अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए फार्म हाउस पर एक बड़ी पार्टी रखी थी। कनिष्का एक कैटरिंग स्टाफ बनकर अंदर घुस गई।

शॉर्ट सर्किट की योजना

इसी समय सुप्रिया और रघुवीर ने फार्म हाउस के पीछे के हिस्से में बिजली के तारों में एक छोटा सा शॉर्ट सर्किट कर दिया। फार्म हाउस की बिजली गुल हो गई और अफरातफरी मच गई। इसी मौके का फायदा उठाकर कनिष्का स्टोर रूम में घुस गई और उन्होंने वह लाल डायरी निकाल ली।

सच का खुलासा

अगले दिन कनिष्का ने अपने न्यूज़ पोर्टल पर एक लाइव प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उन्होंने एक-एक करके सारे सबूत देश के सामने रख दिए। डॉक्टर सक्सेना का स्टिंग ऑपरेशन, हवलदार का कुबूलनामा और आखिर में वह लाल डायरी। पूरे देश में भूचाल आ गया।

अभय राय की गिरफ्तारी

मीडिया में अभय राय की थूथू होने लगी। विपक्ष ने विधानसभा में हंगामा खड़ा कर दिया। सरकार पर इतना दबाव पड़ा कि उसे तुरंत एक्शन लेना पड़ा। एक नई और ईमानदार जांच कमेटी बैठाई गई। अभय राय, महिपाल सिंह, करण सिंह और डॉ। सक्सेना सबको गिरफ्तार कर लिया गया।

सुप्रिया की बहाली

आईपीएस सुप्रिया शर्मा को ना सिर्फ बाइजत बरी किया गया, बल्कि उनके सस्पेंशन को रद्द करके उन्हें दोबारा किशनपुर का आईपीएस नियुक्त किया गया।