सुकून की तलाश
शाम का वक्त था। आसमान पर सूरज की सुर्खी माइल रोशनी फैल रही थी और परिंदे अपने घोंसलों की तरफ लौट रहे थे। कस्बे की गलियों में रोजमर्रा की चहल-पहल आहिस्ता-आहिस्ता कम हो रही थी। कुछ दुकानें अपने शटर गिरा रही थी और चंद बच्चे खेल के बाद वापस घरों को जा रहे थे। इसी पुरसकून फिजा में गांव की जामे मस्जिद से मगरिब की अजान की आवाज गूंजी। मुअजिन की आवाज नरम और दिल को छू लेने वाली थी। जो फिजाओं में फैलकर हर सुनने वाले के दिल को सुकून बखश रही थी।
अजान के फौरन बाद गांव के लोग वजू करके मस्जिद में आना शुरू हुए। मस्जिद का सहन सफेद फर्श के साथ चमक रहा था। जहां नमाजी सफें बनाकर खड़े हुए। इमाम मौलाना कारी महमूद एक 65 साल के बुजुर्ग आलिम एदीन थे। जिनकी सफेद दाढ़ी, रोशन चेहरा और नरम लहजा सबको मुतासिर करता था। उन्होंने निहायत खुशू खुजू के साथ नमाज की इमामत करवाई। नमाज के बाद नमाजी दुआ के लिए हाथ उठाते रहे। फिर धीरे-धीरे बाहर निकलने लगे। कुछ लोग कारी साहब के पास आकर उनसे दीन के मसाइल पूछते और कुछ उनके हाथ चूम कर दुआएं लेते। यह माहौल सुकून, रोशनी और रूहानी खुशबू से लबरेज था।
लेकिन यह सुकून ज्यादा देर कायम ना रह सका। अचानक करीब ही किसी गली से जोरदार डीजे का शोर सुनाई देने लगा। बिजली से जुड़े बड़े स्पीकरों से निकलने वाली आवाज कानों को चीरती हुई गांव के हर कोने तक पहुंच गई। ढोलक, ढोल और फिल्मी गानों की तेज धुनें माहौल पर छा गई। करीब के घरों के शीशे हिलने लगे। कुछ छोटे बच्चे घबराकर मां की गोद में जा सिमटे और औरतें हैरान होकर खिड़कियों से बाहर देखने लगी। जो सुकून की हालत में मस्जिद से बाहर निकल रहे थे, अचानक अपने कानों को हाथों से ढांपने लगे।
एक शख्स बोला, “अरे भाई, यह क्या तमाशा है? अभी नमाज खत्म हुई है और यह शोर बर्दाश्त से बाहर है।” दूसरा शख्स झुंझुलाकर कहने लगा, “रोज यही हाल है। ना दिन में चैन, ना रात को सुकून। यह साउंड वाले हमें जीने नहीं देते।”
कारी महमूद ने यह मंजर देखा, तो उनके चेहरे पर गहरी संजीदगी और अफसोस के आसार नमूदार हो गए। वो हल्के से ज़रे लब बोले, “या अल्लाह, यह शोर दिन-बदिन बढ़ता जा रहा है। इबादत भी मुश्किल हो रही है। बीमारों को आराम नहीं मिलता और बच्चों का खौफ बढ़ता जा रहा है।”
गांव में उसी वक्त एक शख्स का जिक्र जबानों पर आने लगा। एडी शर्मा वो एक नौजवान था जिसने अपनी जेहानत और मेहनत से साउंड सिस्टम का सबसे बड़ा कारोबार खड़ा किया था। शादी ब्याह मेले ठेले जुलूस और तकरीबात हर जगह एड़ी का साउंड किराए पर लिया जाता था। वह अपने इलाके में साउंड का बादशाह माना जाता था। मगर यह बादशाहत अब लोगों के लिए एक वबाल एज जान बनती जा रही थी।
नमाज के बाद कुछ नमाजियों ने कारी साहब के गिर्द हल्का बनाया और अपने दिल की भड़ास निकाली। एक दुकानदार की बीवी ने रोते हुए शिकायत की, “हजूर मेरा छोटा बच्चा हर रात शोर से डर कर जाग जाता है। वो चीखता है, रोता है और सारी रात हमें जगाए रखता है। यह हमारा सुकून छीन रहा है।” एक जाइफ बुजुर्ग जिन्हें दिल की बीमारी थी आगे बढ़े और कमजोर आवाज में बोले, “कारी साहब, यह आवाज मेरे लिए जहर बन गई है। मेरा दिल पहले ही कमजोर है और यह धमाकेदार ढोल मेरी हालत और खराब कर देते हैं। ना दवा असर करती है, ना नींद आती है।”
कारी महमूद ने सबकी बातें निहायत गौर से सुनी। उनका दिल नरम हो गया और आंखों में नमी उतर आई। वह जानते थे कि यह मसला सिर्फ शोर का नहीं बल्कि इंसानी सुकून और इबादत की आजादी का है। उन्होंने गहरी सांस ली और सबको मुखातिब करते हुए कहा, “मेरे अजीजों, यह सिर्फ एक जाती तकलीफ नहीं बल्कि पूरे गांव की आजमाइश है। इस्लामी तालीमात यही कहती हैं कि इंसान अपनी खुशी के लिए दूसरों को तकलीफ ना दे। नबी करीम ने फरमाया है कि जो शख्स खुद तो सुकून से हो लेकिन उसका पड़ोसी तकलीफ में हो वह मोमिन नहीं। इसी उसूल पर मैं फतवा देता हूं कि यह शोर गुल यह बेकाबू साउंड सिस्टम हराम है। किसी को हक नहीं कि अपनी खुशी के लिए दूसरों के आराम को बर्बाद करें।”
यह ऐलान कमरे में मौजूद सब पर बिजली बनकर गिरा। लेकिन साथ ही उनके दिलों में एक रोशनी भी पैदा कर गया। कुछ लोगों ने शुक्र अदा किया कि आखिर कोई उनकी आवाज बना है और कुछ सोचने लगे कि अब यह फैसला गांव के हालात किस रुख पर ले जाएगा।
फतवे की खबर आसमानी बिजली की तरह पूरे कस्बे में फैल गई। मस्जिदों के लाउडस्पीकर पर ऐलान होने लगा कि जरूरत से ज्यादा शोर और साउंड बजाना हराम है। क्योंकि यह दूसरों के आराम और इबादत में खलल डालता है। मदरसों में इस बात पर दर्स दिए जाने लगे। कुछ लोग खुश थे कि आखिरकार कोई उनके दुख को समझने वाला है। जबकि कुछ लोगों ने इसे अपनी आजादी पर कदन समझा। बूढ़ी औरतें खुश होकर दुआएं देने लगी। “अल्लाह कारी साहब को सलामत रखे। उन्होंने हमारे दुखों को जबान दी।” दूसरी तरफ नौजवानों के एक गिरोह ने कानों में हेडफोन लगाते हुए कहा, “यह मौलवी लोग हमेशा खुशी के दुश्मन हैं। अब शादी ब्याह भी बगैर साउंड के होंगे क्या?”
लेकिन सबसे ज्यादा आग बबूला हुआ एडी शर्मा। वो अपने साउंड सिस्टम के कारोबार पर नाज करता था। उसकी वर्कशॉप गांव के किनारे एक बड़ी कोठरी में थी। जहां स्पीकर, एंपलीफायर, तारें और ढोल हर वक्त बिखरे रहते थे। उसके साथी उसकी तारीफ करते थे कि एड़ी भाई का साउंड बजे तो जमीन हिलने लगती है। लेकिन अब यही फक्र उसके गुरूर को भड़काने लगा था।
एड़ी ने अपनी वर्कशॉप के अंदर खड़े होकर साथियों से कहा, “कौन होता है यह मौलवी? मेरा धंधा बंद करने वाला। मैंने दिन रात मेहनत करके यह कारोबार बनाया है। आज लोग मेरी आवाज पर नाचते हैं। मेरी साउंड के बगैर कोई शादी मुकम्मल नहीं होती। और यह बुजुर्ग आकर कहते हैं हराम है।”
साथियों ने उसे समझाने की कोशिश की। “एड़ी भाई, शायद आप जरा गुस्से में हैं। आखिर कारी साहब ने बुरा तो नहीं कहा। वह तो सबके सुकून की बात कर रहे हैं।” एडी ने गुस्से से मुट्ठी बांधते हुए कहा, “सुकून सुकून का मतलब है मेरा कारोबार खत्म हो जाए। यह फतवा तो मेरे रिचकर पर ताला लगाने के बराबर है।”
उसी दौरान वर्कशॉप के दरवाजे पर दो ग्राहक आए। मगर हैरानी की बात यह थी कि वह खाली हाथ वापस जाने लगे। एडी ने आवाज दी, “अरे भाई क्यों लौट गए?” उन्होंने झिझकते हुए जवाब दिया, “एडी जी अब साउंड किराए पर लेने से डर लगता है। लोग कहते हैं कि यह गुनाह है। हम अपनी शादी हराम तरीके से नहीं करना चाहते।”
यह सुनकर एड़ी का खून खौल गया। उसने अपने साथियों की तरफ पलट कर कहा, “देख लिया यह मौलवी मेरा कारोबार छीन रहा है। अभी अगर मैं चुप बैठ गया तो कल कोई और आकर कहेगा कि मेला लगाना भी हराम है। शादी में नाचना भी हराम है। नहीं अब बहुत हो गया।”
उसी गुस्से में उसने फैसला किया कि कारी साहब को सबक सिखाना होगा। कल अस्र की नमाज के वक्त देखना। मैं दिखाऊंगा कि इस गांव का असल बादशाह कौन है।
अगले दिन दोपहर के बाद ही उसने अपने सबसे बड़े ट्रक को तैयार करवाया। 3 मीटर ऊंचे स्पीकर एक दूसरे पर रखे गए। तारें लपेटी गई। ढोल और बाजा सब कुछ ट्रक पर लाद दिया गया। उसके साथी हंस रहे थे। “एड़ी भाई आज तो कारी साहब का सुकून घारत हो जाएगा।”
जैसे ही अस्र का वक्त करीब आया, गांव के मदरसे के बच्चे वजू करने लगे। कुछ बच्चे बाल्टियां भरकर पानी ला रहे थे। कुछ नल पर खड़े मुस्कुराते हुए आपस में बातें कर रहे थे। उनके चेहरों पर मासूमियत झलक रही थी। मगर अचानक फिजा को चीरती हुई गड़गड़ाहट सुनाई दी। एड़ी का ट्रक धुआं छोड़ता हुआ मदरसे के गेट के सामने आकर रुका। चंद लम्हों बाद स्पीकरों से बिजली की गूंज जैसी आवाज फटी। भजन, ढोल और फिल्मी गानों का शोर इतना शदीद था कि आसपास के घरों के शीशे लरजने लगे। कुछ खिड़कियां टूट गई। मदरसे के सहन में बच्चे कानों पर हाथ रखकर चीखने लगे। कई रोने लगे और एक-दो बेहोश हो गए। इमाम मस्जिद जो नमाज शुरू करने वाले थे उनकी आवाज ऊंची होती तो भी शोर में दब जाती।
गांव के बूढ़े हड़बड़ा कर निकल आए। एक ने सीने पर हाथ रखकर कहा, “अरे राम यह तो दिल का चैन छीन रहा है। जुल्म है।” औरतें बच्चों को गोद में उठाकर घरों में बंद होने लगी। नवजात बच्चे चीखने लगे। यह सब देखकर कारी महमूद मस्जिद के दरवाजे पर खड़े हो गए। आंखों में दर्द था। आसमान की तरफ देखकर बोले, “या अल्लाह यह नौजवान अंधेरे में क्यों जा रहा है? दूसरों को अजियत देकर खुश क्यों है?”
शागिर्दों ने कहा, “हजरत कुछ कीजिए। यह बर्दाश्त से बाहर है।” कारी ने जवाब दिया, “बेटों सच्चाई की लड़ाई तलवार या शोर से नहीं सब्र, दुआ और हिकमत से जीती जाती है।”
रात कस्बे पर भारी उतरी। बच्चों को नींद ना आई। कुछ बीमार बिगड़ गए। मांओं की आंखों से नींद गायब हो गई। सबसे ज्यादा बोझ कारी के दिल पर था। ईशा और तहज्जुद में वह देर तक रोते रहे। “ए रब इस नौजवान को हिदायत दे। गुरूर व जिद का पर्दा हटा दे। गांव को सुकून अता फरमा।”
सुबह फज्र के बाद लोग घरों को लौट गए। मगर कारी तस्बीह पढ़ते रहे। दिल एक सिमत खींच रहा था। उन्होंने फैसला किया कि एड़ी से बराहे रास्त बात करेंगे।
नमाज के बाद धूप गलियों में उतर रही थी। बच्चे स्कूल जा रहे थे। औरतें झाड़ू लगा रही थी। दुकानदार दुकानें खोल रहे थे। कारी अपने पुराने मगर साफ कपड़ों में तस्बीह लिए आहिस्ता-आहिस्ता एड़ी की वर्कशॉप पहुंचे। वर्कशॉप में स्पीकर, तारें, मशीनें बिखरी थी। अंदर तेज म्यूजिक बज रहा था। एड़ी सुबह ही हालात चेक कर रहा था। कारी ने दरवाजे पर कहा, “अस्सलाम वालेकुम बेटे। कुछ बात करनी है।”
एड़ी चौंका। चेहरे पर हैरानी और सख्ती उभरी। “वालेकुम सलाम। आप फिर हराम हलाल का आवाज देने आए हैं। सुन लीजिए मैं नहीं मानूंगा।” कारी मुस्कुरा कर अंदर आ गए। कुर्सी पर बैठे। “बेटे फतवा दोहराने नहीं आया। दिल की बात करने आया हूं।”
एड़ी ने कहा लगाया। “दिल की बात आप मेरे दुश्मन हैं। मैं चोरी नहीं करता ना शराब बेचता ना जुआ। सिर्फ साउंड सिस्टम किराए पर देता हूं। यह हराम कैसे हुआ?”
कारी ने आहिस्तगी से कहा, “रिज़कर तब हलाल है जब दूसरों को नुकसान ना पहुंचे। तुम्हारे शोर से बच्चे नहीं पढ़ पाते। मरीज आराम नहीं करते। इबादत गुजार खुरशू नहीं पाते।”
एड़ी की आंखों में गुस्सा आया। “यह सब पुरानी बातें हैं। मौलवी साहब यह नया भारत है। आजादी है। हर कोई अपनी खुशी मनाता है।”
कारी ने सुकून से कहा, “इस्लाम और इंसानियत कभी पुरानी नहीं होते। जो उसूल सुकून की हिफाजत करे वह हमेशा सच है।”
एड़ी ने मुक्का मारा। “मैं यह नहीं मानता। आपका फतवा मेरे पेट पर लात है। इज्जत और कारोबार दोनों खत्म कर रहे हैं।”
कारी ने सर झुकाया। “बेटे जलील करने नहीं आया। चाहता हूं तुम समझो। दूसरों को अजियत देकर कमाया पैसा खुशी नहीं देता। अल्लाह हजारों रिज़कर के दरवाजे खोलता है। शर्त यह है कि दूसरों के सुकून पर डाका ना डाला जाए।”
एड़ी ने तल्खी से कहा, “यह पुरानी सोच है। आप लोग जमाने को रोकना चाहते हैं। हम आगे बढ़ना चाहते हैं।”
कारी ने बस कहा, “अल्लाह तुम्हें समझ दे। दुआ है तुम्हारे दिल पर हक की रोशनी उतरे।” यह कहकर वह निकल गए।
एड़ी लम्हा भर खामोश रहा। फिर गरूर से बोला, “यह मौलवी मुझे नसीहत करता है। अब देखना मैं उसे सबका सिखाऊंगा।”
कारी से बात ने उसका दिल नरम करने के बजाय सख्त कर दिया। उसने साथियों से कहा, “कल रात कारी ने कहा, ‘मेरा रिज़कर दूसरों के लिए जहर है।’ अब मैं उसकी इज्जत खाक में मिला दूंगा।”
साथी हैरान थे। जानते थे कारी सबसे मोहतरम है। मगर एड़ी का गहरूर उन्हें खींच रहा था।
रात ढलने लगी। ईशा के बाद कारी साहब मस्जिद से निकले। सड़क सुनसान थी। कुत्तों के भौकने और बिजली के खंभे की टिमटिमाती बत्ती ने माहौल को खौफनाक बना दिया। कारी पगडंडी पर तस्बीह पढ़ते जा रहे थे कि एक मोड़ पर तीन साए आ गए। चिराग की रोशनी में पहचान गए। एड़ी, बबलू और राजू।
एड़ी ने तंज किया, “मौलवी जी, मेरा धंधा बंद करने का हक आपको किसने दिया?”
कारी ने सुकून से कहा, “अस्सलाम वालेकुम बेटे। मदद चाहते हो या रास्ता रोकने आए हो?”
एड़ी ने कहखा लगाया, “हम सबक सिखाने आए हैं। या माफी मांगो और फतवा वापस लो। वरना…”
बबलू ने आस्तीन चढ़ाई, “हम नहीं चाहते नुकसान हो। मगर ना माने तो अंजाम बुरा होगा।”
कारी ने कहा, “बेटो मैंने हक बात कही। वो कड़वी जरूर है मगर सुकून उसी में है।”
राजू ने मुक्का लहराते कहा, “बस बहुत हुआ आवाज। अब या झुको या ताकत देखो।”
एड़ी गस्से से आगे बढ़ा। मगर मंझर ने तीनों को हैरान कर दिया। बबलू सबसे पहले झपटा। कारी ने सुकून से एक कदम हटाकर उसकी कलाई पकड़ी और हाथ मरोड़ दिया। बबलू चीख कर जमीन पर गिर गया।
कारी के लबों पर आया, “अस्तगफिरुल्लाह।” राजू तैश में आकर लपका। कारी ने नरम सा धक्का दिया। वो लड़खड़ा कर मिट्टी में जा गिरा।
एड़ी चीखा, “तो यह सब आता है। नेक बनकर नसीहत करते थे और असल में लड़ाका निकले।”
कारी ने धीरज से कहा, “ताकत नुकसान के लिए नहीं बल्कि जुल्म रोकने के लिए है। मैंने तुम्हें नुकसान नहीं दिया। बस ज्यादती रोकी है।”
एड़ी ने चाकू निकाला। ब्लेड खौफनाक चमका। वो दहाड़ा, “अब देखता हूं मौलवी जी आप कैसे बचते हैं।”
कारी लम्हा भर संजीदा हुए। फिर अल्लाह का जिक्र करते हुए पहलू बदला। एड़ी ने वार किया। मगर कारी ने फौरन हाथ पकड़ा। ब्लेड जमीन पर जा गिरा। हल्के दबाव से एड़ी की कलाई ढीली पड़ गई। उसके चेहरे पर दर्द और शर्मिंदगी के आसार आए।
कारी पीछे हट गए और कहा, “एड़ी, नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। मकसद तुम्हें बचाना है। अल्लाह का खौफ करो। यह रास्ता अंधेरा है। अभी वक्त है लौट आओ।”
साथी हक्का बक्का रह गए। हैरत इस पर थी कि इतनी ताकत के बावजूद कारी ने एड़ी को जख्मी ना किया बल्कि बचा लिया।
एड़ी का दिल दहल गया मगर गरूर ने रोके रखा। उसने दांत पीसते कहा, “यह सब दिखाकर डरा नहीं सकते अभी खेल शुरू हुआ है।”
कारी ने कहा, “बेटे यह खेल नहीं जिंदगी और मौत का इम्तिहान है। कामयाबी ताकत से नहीं ईमान और सब्र से मिलती है।”
हवा का झोंका गुजरा। बबलू और राजू एड़ी को देख रहे थे। मगर दिल ही दिल सोचने लगे कि कारी की बात में सच्चाई है।
एड़ी के हाथ कांपे। वह चाकू उठाने की कोशिश करता रहा। मगर कारी के सुकून ने उसे बेबस कर दिया। गुरूर की इमारत गिरने लगी।
कारी आगे बढ़े। बबलू को हाथ पकड़ कर उठाया। उसके कपड़ों पर मिट्टी थी। बाजू पर खराशें। कारी ने अपनी आस्तीन से साफ किया और कहा, “बेटे यह लड़ाई अच्छी नहीं। जवानी को बर्बादी पर क्यों लगा रहे हो?”
बबलू ने नजरें झुका ली। दिल में आया कि यह दुश्मन नहीं बल्कि बाप की तरह है। मगर कुछ बोला नहीं।
कारी ने राजू को सहारा दिया। पसीने में तर चेहरा साफ किया और कहा, “ताकत दूसरों को गिराने के लिए नहीं बल्कि सहारा देने के लिए है। तुमने देखा तुम गिरे और मैंने उठाया। सोचो यह दुश्मनी है या बाप का प्यार।”
राजू की आंखों में नमी उतर आई। उसने आहिस्ता सर हिलाया मगर जबान बंद रही।
अब कारी सीधे एड़ी की तरफ बढ़े। एड़ी जमी जमीन पर बैठा था। चेहरा मिट्टी और पसीने से तर। कारी ने उसके कंधे पर हाथ रखा और प्यार से कमीज झाड़ी। एड़ी हैरत से देखता रहा। यह बुजुर्ग मुझे क्यों सहारा दे रहे हैं? अभी तो मैंने इन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी।
कारी ने नरमी से पूछा, “बेटे सब ठीक है? कहीं चोट तो नहीं आई?”
एड़ी के होंठ कांपे। “मौलवी साहब आपको चाहिए था मुझे मार देते। नीचा दिखाते। मगर आप यह सब क्यों कर रहे हैं?”
कारी बोले, “असल ताकत शोर मचाना या जोर से मार देना नहीं दिल को सुकून देना और दूसरों के लिए भलाई करना है। ताकतवर वो है जो अपने गुस्से को काबू में रखे।”
यह अल्फाज़ एडी के दिल पर बिजली बनकर गिरे। आंखों में पहली बार नरमी झलकी। सर झुक गया। “मौलवी साहब मैं गलत था।”
घरूर की दीवारें टूटने लगी। दिल के अंदर सच ने दस्तक दी।
कारी ने सर पर हाथ रखा, “बेटे अभी भी वक्त है। रास्ता बदल सकते हो। अल्लाह की जमीन वसीया है और उसकी रहमत सबके लिए है।”
बबलू और राजू करीब आ खड़े हुए। हैरान कि जिन्हें कारी ने अभी जहर किया वही उन्हें उठाकर सीने से लगाए खड़े हैं।
बबलू ने धीरे से कहा, “हमने आपके साथ बुरा करना चाहा। आपने बदले में मारा नहीं बल्कि बचाया। यह कैसा इंसाफ है?”
कारी मुस्कुराए, “यह इंसाफ नहीं मोहब्बत है। मैं तुम्हें दुश्मन नहीं अपनी औलाद मानता हूं।”
दुश्मनी दिल तोड़ती है। मोहब्बत जोड़ती है।
फिजा में सुकू छा गया। एड़ी की आंखें भर आई। “मैंने आपको दुश्मन समझा। आपने बाप की तरह अपनाया। मैंने चाकू उठाया। आपने दुआ दी। मैंने जलील करने का सोचा। आपने इज्जत दी।”
कारी ने कहा, “यही असल सबक है। बदी के जवाब में नेकी, जुल्म के जवाब में सब्र, नफरत के जवाब में मोहब्बत यही इंसान को इंसान बनाती है।”
एड़ी कुछ ना बोल सका। बहते आंसू गवाह थे कि तब्दीली शुरू हो चुकी है।
वो रात एड़ी के लिए सबसे तवील साबित हुई। गांव की गलियां खामोश, हवा के झोंके दरख्तों के पत्ते हिलाते, चांदनी मिट्टी की सड़क पर बिखरी हुई। मगर उसके कमरे में अंधेरा ही अंधेरा। वो पलंग पर लेट छत को घूरता रहा। बार-बार कारी महमूद का पुरसुकून चेहरा और उनकी बातें सामने आ जाती। “असल ताकत यह है कि दिल को सुकून दो और दूसरों के लिए भलाई करो।” यह जुमला उसके दिल पर हथौड़े की तरह बजता रहा।
नींद गायब। आंसू निकल आए। उसने सर पकड़ा। “मैंने क्या कर दिया? एक बुजुर्ग पर हाथ उठाने की कोशिश और फिर भी उन्होंने मुझे दुआ दी। मेरे जख्म साफ किए। या अल्लाह मैं किस रास्ते पर चल निकला हूं।”
वह अपने गुनाह याद करता रहा। मदरसे के बच्चे जो कानों पर हाथ रखकर रो रहे थे। मरीजों की करा और मां का चेहरा जो कहती थी, “बेटा दूसरों को तकलीफ देने वाला कभी खुश नहीं रहता।”
फज्र की अजान हुई तो फैजा ताजा हो गई। एड़ी की आंखें सुर्ख थी। मगर दिल में फैसला जाग चुका था। कपड़े बदले और सीधा कारी महमूद के घर चल पड़ा।
रास्ते में लोग हैरत से देखते, “यह वही एड़ी है ना जिसने मदरसे के सामने साउंड बजाया था, आज कारी साहब के घर जा रहा है।”
कारी का घर सादा मगर पुरसुकून था। दरवाजे पर रुक कर उसने खटखटाया। “अस्सलाम वालेकुम कारी साहब।”
दरवाजा खुला। कारी अपने मखसूस सुकून के साथ मुस्कुराए। “वालेकुम सलाम बेटे। अंदर आओ।”
एड़ी के कदम जैसे जमीन में धंस गए। “मैं अंदर आने के लायक नहीं। मैंने बहुत बुरा किया है।”
कारी आगे बढ़े। हाथ थामा। “अल्लाह के दर पर आने के लिए लायक होना शर्त नहीं। नियत साफ होना काफी है। अंदर आओ।”
एड़ी की आंसुओं भरी आंखें टपकने लगी। वो कमरे में दाखिल होकर फर्श पर बैठ गया। “मैंने आपको दुश्मन समझा। तौहीन की। नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। मुझे लगता है मैं जहन्नुम का हकदार हूं। मुझे माफ कर दीजिए।”
कारी ने कंधे पर हाथ रखा। आवाज में मां जैसी नरमी, बाप जैसी शफकत, “अल्लाह की रहमत से मायूस ना हो। वह सब गुनाह माफ करता है। सच्ची तौबा करो तो गुनाह यूं मिटते हैं जैसे कभी थे ही नहीं।”
एड़ी रोकर बोला, “मैं बदलना चाहता हूं। राह दिखाइए। कफारा कैसे दूं?”
कारी ने मुस्कुरा कर कहा, “दिल से कलमा पढ़ो। सच्चे दिल से तौबा करो। फिर जिनको तुमने तकलीफ दी, उनकी राहत का सबब बनो। यही असल कफारा है।”
एड़ी ने थरथराती आवाज में कलमा पढ़ा। लब कांप रहे थे। आंखों से आंसू बह रहे थे। कमरा जैसे एक अजीब सी रोशनी से भर गया।
कारी ने कहा, “अल्हम्दुलिल्लाह, आज तुम्हारी नई जिंदगी का आगाज है। तुम एक बोझ उतार कर हल्के हो गए हो।”
एड़ी ने सर उठाया। आंखों में पहली बार सुकून था। “मौलवी साहब, लगता है जैसे मैं दोबारा पैदा हुआ हूं।”
कारी ने गले लगाकर कहा, “यह अल्लाह का फजल है। अब तुम्हें अमल से साबित करना होगा कि वाकई बदल गए हो।”
एड़ी की जिंदगी का नया सफर शुरू होने को था। दिल की तौबा के बाद वह जान चुका था कि गुनाहों को धोना महज अल्फाज से नहीं अमली कदम से होता है। रात भर सोचता रहा। उसकी वर्कशॉप, बरसों की मेहनत और गुरूर की अलामत अब उसे गुनाहों के बोझ की तरह लग रही थी। उसे समझ आ गया कि जो सिस्टम दूसरों के सुकून पर जर्ब लगाए वह रोजी नहीं और अरमाइश है।
अब उसने तय किया कि अपनी मेहनत को भलाई में लगाएगा। शोर की जगह खामोशी, तकलीफ की जगह राहत, नफरत की जगह मोहब्बत। वो सुबह के उजाले में उठा तो दिल में एक अज्म था।
लोगों के घरों की टूटी खिड़कियों से माफी मांगना, मदरसे के बच्चों की मुस्कान लौटाना, मरीजों की दुआ लेना और सबसे बढ़कर अपने रब के हुजूर शुक्र बजा लाना कि उसने उसे अंधेरे के दहाने से वापस बुला लिया।
हर स्पीकर, हर तार, हर ढोल, एड़ी के कानों में बच्चों की चीखें और मरीजों की कराह की बाजगश्त बन गया था। सुबह होते ही वह सीधा वर्कशॉप पहुंचा। साथी हैरान थे कि उसके चेहरे पर ना गरूर था, ना गुस्सा।
उसने सबको बुलाकर कहा, “दोस्तों, मैंने फैसला किया है। यह साउंड सिस्टम अब मेरे पास नहीं रहेगा।”
बबलू चौंक गया। “एडी भाई, यह आपकी जिंदगी है। आपने खून पसीना बहाकर बनाया है।”
एडी मुस्कुराया, “हां बबलू यह मेरी जिंदगी थी। मगर जिंदगी सिर्फ कमाने का नाम नहीं। दूसरों को सुकून देने का भी है। अगर मेरी मेहनत दूसरों को बर्बाद करे तो यह रिज़कर नहीं। वबाल है।”
राजू ने हैरानी से पूछा, “फिर करेंगे क्या?”
एड़ी ने अज्म से कहा, “अल्लाह ने चाहा तो हलाल रोज ही कमाऊंगा।” ऐसा काम जिससे किसी को तकलीफ ना हो।
उसी दिन उसने वर्कशॉप बेचने का ऐलान कर दिया। चंद दिनों में एक व्यापारी आया और 150 लाख में सब सामान खरीद लिया। सौदा होते ही उसके दिल पर बोझ उतर गया। वह पहली बार हल्का महसूस कर रहा था।
अब सवाल था यह रकम कहां लगे? कारी महमूद से मशवरा किया। कारी ने कहा, “बेटे इस माल को दूसरों के फायदे में लगाओ। यही तौबा का पहला सबूत होगा।”
एड़ी ने 5 लाख मस्जिद की मरम्मत पर लगा दिए। नमाजियों की आंखों में आंसू आ गए। किसी ने सोचा ना था कि जो कल शोर मचाता था आज मस्जिद संवार है। फिर उसने गरीबों में रकम बांटी। यतीम बच्चों को कपड़े और खाना दिया। एक बेवा का कर्ज उतारा। एक मजदूर की बेटी की शादी करवाई। यह सब करके दिल को वह सुकून मिला जिसका कभी ख्वाब भी ना था।
बाकी रकम से एक छोटी किराने की दुकान खोली। ऊपर बोर्ड लगाया। “एड़ी जनरल स्टोर हलाल कमाई। खुशहाल जिंदगी।”
गांव वाले हैरान थे। जो एड़ी कल शोर और तकलीफ का जरिया था। आज नरमी से अनाज, चीनी, चाय बेच रहा था। उसकी आवाज में घूरूर नहीं मोहब्बत थी।
एक दिन बबलू और राजू दुकान पर आए। बोले, “एड़ी भाई, यकीन नहीं आता। आप इतने बदल गए हैं कि जैसे नया इंसान बन गए हो।”
एड़ी ने मुस्कुराकर कहा, “मैं भी हैरान हूं। पहले सोचता था ताकत शोर मचाने में है, दूसरों को दबाने में है। असल ताकत सुकून बांटने में है। यह सब कारी साहब ने दिया।”
ग्राहक आते तो वह खुशखलूखी से पेश आता। अगर कोई शोर वाली शिकायत करता तो कहता, “भाई आवाज कम रखो। मरीजों को आराम करने दो। बच्चों को पढ़ने दो। खुशीशी दूसरों को सुकून देकर बढ़ती है शोर मचाकर नहीं।”
आहिस्ताआहिस्ता बबलू और राजू भी मुतासिर हुए। वह मस्जिद आने लगे। कारी की महफिल में बैठने लगे और एड़ी के साथ नेक सोहबत इख्तियार कर ली।
गांव वाले कहते यह है दुआ का असर। यह है अखलाक की ताकत।
छह माह गुजर गए। गांव जो पहले शोर और बेसुकूनी में डूबा था। अब सुकून की मिसाल बन गया। शादियां और मेले एतदाल से होने लगे। बच्चे खुशी से खेलते। मरीज आराम से सोते। इबादत गुजार खुशू से नमाज पढ़ते।
अब हर जुबान पर एक ही नाम था एड़ी शर्मा। जो कभी शोर का बादशाह था। अब उस्ताद एड़ी कहलाने लगा। लोग उसके पास आकर मसाइल बयान करते और वह नरमी से हल करने की कोशिश करता। उसकी छोटी किराने की दुकान बरकत का जरिया बन गई। लोग सामान खरीदने के साथ नसीहत लेने भी आते। वह हर एक को मुस्कुरा कर सलाम करता नरमी से बात करता।
अगर कोई कहता कल शादी है साउंड वाले को बुलाया है। एड़ी मुस्कुराकर कहता, “भाई खुशी जरूर मनाओ मगर एतदाल के साथ मरीजों को सुकून चाहिए। बच्चों को पढ़ाई करनी है। अपनी खुशी में दूसरों को तकलीफ देना गुनाह है।”
लोग सर हिलाकर मान लेते। उसकी बातों ने हर दिल जीत लिया था।
एक महफिल में हिंदू और मुसलमान दोनों शरीक थे। पंडित जी ने कहा, “एडी भाई आपने दिखा दिया कि धर्म और ईमान की असल तालीम सुकून और भलाई है।” मुसलमान बुजुर्गों ने कहा, “यह सब कारी साहब की तरबियत का नतीजा है। अगर उन्होंने सब्र ना दिखाया होता तो यह ताब्दीली ना आती।”
एड़ी ने आंखें झुका कर कहा, “यह सब अल्लाह की रहमत है। मैं तो भटका हुआ शख्स था। कारी साहब मेरे लिए बाप जैसे हैं। अगर उनकी दुआएं ना होती तो आज भी गौरूर और अंधेरे में डूबा रहता।”
लोगों की आंखों में नमी आ गई। नौजवान एड़ी को रहनुमा मानने लगे। वो शाम को चबूतरे पर बैठकर नसीहत करता, “भाइयों, ताकत यह नहीं कि शोर मचाओ या दूसरों को दबाओ। ताकत यह है कि अपने नफ्स पर काबू पाओ और दूसरों को सुकून दो। खुशी बांटने से बढ़ती है। शोर मचाने से कम हो जाती है।”
बबलू और राजू भी उसके साथ खड़े रहते। बबलू अक्सर कहता, “हमने देखा कारी साहब ने हमें कैसे माफ किया और एड़ी भाई ने कैसे जिंदगी बदली। यही असल ताकत है। माफ करने की ताकत।”
राजू हंसते हुए कहता, “हम समझते थे इज्जत जोर से मिलती है। अब पता चला इज्जत नरमी और मोहब्बत से मिलती है।”
गांव वाले हैरान भी थे और खुश भी। एक वक्त था एड़ी का नाम सुनते ही लोग कानों को हाथ लगाते मगर अब वही एड़ी दिलों की धड़कन बन गया था।
एक शाम एड़ी मस्जिद के बाहर बैठा था। बच्चे दौड़ कर आए और बोले, “उस्ताद एड़ी हमें कोई अच्छी बात बताइए।”
एड़ी ने मुस्कुरा कर कहा, “बेटों याद रखो जो अपने पड़ोसी के सुकून का ख्याल नहीं करता वो अच्छा इंसान नहीं। खुशी वही है जो दूसरों के चेहरों पर मुस्कुराहट लाए।”
बच्चे तालियां बजाकर खुश हो गए। एड़ी के दिल में सुकून की एक नई लहर दौड़ गई। उसने सोचा यही है असल कामयाबी कि लोग तुम्हें याद करें तो अच्छे लफ्जों से।
5 साल बीत गए। वक्त ने कस्बे के चेहरे को बदल डाला। वही गांव जो कभी शोरगुल, साउंड के तूफान और बेसुकूनी का मरकज था। अब सुकून और अमन की एक रोशन मिसाल बन चुका था। गलियों में अब सिर्फ बच्चों की कहक है। बुजुर्गों की दुआएं और इबादत की सदाएं सुनाई देती। शादियां भी अब खुशी और वकार के साथ होती। कहीं शोर मचाने वाला साउंड नहीं बल्कि सब कुछ एतदाल के साथ।
इस इंकलाब के पीछे एक ही शख्सियत थी। एड़ी जो अब सबके लिए उस्ताद एड़ी बन चुका था। वो अब महज एक दुकानदार नहीं था बल्कि गांव का हर दिल अजीज रहनुमा बन चुका था। उसकी बात को संजीदगी से लिया जाता और लोग उसके मशवरे पर अमल करते। एड़ी की किराने की दुकान गांव की एक अलामत बन चुकी थी। वहां रोजाना
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