गलती से गलत ट्रैन में बैठ गयी थी लड़की ,टीटी ने उसकी मदद करके उसे मंजिल तक पहुँचाया, फिर जो हुआ वो
गलत ट्रेन में बैठी लड़की की कहानी — एक टीटी ने बदल दी किस्मत
देवरिया, उत्तर प्रदेश। गंगा के मैदानों में बसा एक छोटा सा शहर, जहां हर कोई अपनी ही रफ्तार से जिंदगी जीता है। इसी शहर की तंग गलियों में मिश्रा जी का छोटा सा किराए का मकान था। मिश्रा जी एक रिटायर्ड स्कूल टीचर थे, उनकी दुनिया उनकी पत्नी शारदा जी और इकलौती बेटी आस्था थी।
आस्था बेहद होशियार और मेहनती थी। उसके सपने बड़े थे — अपने माता-पिता को गरीबी और किराए के मकान से निकालकर एक अच्छा जीवन देना। लेकिन छोटे शहर की हकीकतें सपनों से बहुत दूर थीं। कई कोशिशों के बाद भी नौकरी नहीं मिली। मिश्रा जी की मामूली पेंशन से घर का गुजारा मुश्किल से होता था।
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एक दिन, आस्था को लखनऊ की एक बड़ी कंपनी में इंटरव्यू का बुलावा आया। यह मौका उसकी और उसके परिवार की जिंदगी बदल सकता था। घर में खुशी का माहौल था, लेकिन साथ ही चिंता भी कि कहीं कुछ गलत न हो जाए। आस्था पहली बार अकेले सफर पर निकल रही थी। उसके माता-पिता ने उसे प्यार और हिम्मत देकर स्टेशन भेजा।
रात के समय देवरिया स्टेशन पर जब वह अपनी ट्रेन का इंतजार कर रही थी, अचानक घोषणा हुई कि उसकी ट्रेन अब दूसरे प्लेटफार्म पर आएगी। भीड़-भाड़ में, घबराहट में, आस्था गलत ट्रेन में चढ़ गई। ट्रेन में बैठते ही उसे लगा कि सब ठीक है, लेकिन जब ट्रेन ने रास्ता बदल दिया, तो आस्था को एहसास हुआ कि वह लखनऊ की बजाय वाराणसी जा रही है।
उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। उसके सारे सपने टूटते नजर आ रहे थे। डिब्बे में बैठे लोग उसे देख रहे थे, लेकिन कोई कुछ समझ नहीं पा रहा था। तभी वहां एक टीटी आए — आरपी सिंह। उन्होंने आस्था की परेशानी देखी, उसकी कहानी सुनी और अपनी इंसानियत दिखाते हुए मदद करने का फैसला किया।
आरपी सिंह ने अपनी रेलवे की जानकारी और संपर्कों की मदद से आस्था के लिए आगे की यात्रा का इंतजाम किया। उन्होंने उसे पैसे दिए, अपना नंबर दिया और भरोसा दिलाया कि वह इंटरव्यू जरूर दे पाएगी। मऊ स्टेशन पर उन्होंने दूसरे टीटी को आस्था की जिम्मेदारी सौंपी। आस्था को लखनऊ पहुंचाने के लिए सबने मिलकर मदद की।
आस्था सही समय पर लखनऊ पहुंची, इंटरव्यू दिया और अपनी मेहनत व आत्मविश्वास से नौकरी हासिल कर ली। उसने सबसे पहले आरपी सिंह को फोन किया और उनका धन्यवाद किया। समय बीतता गया, आस्था ने खूब तरक्की की, अपने माता-पिता को अच्छा जीवन दिया, लेकिन वह अपने मददगार टीटी को कभी नहीं भूली।
पांच साल बाद, एक दिन कंपनी के काम से वाराणसी गई आस्था ने आरपी सिंह को ढूंढ निकाला। वह अब रिटायर होकर अपनी बेटी के साथ रहते थे। आस्था उनके घर पहुंची, उनके पैरों में झुक गई और अपनी कामयाबी की कहानी सुनाई। उसने वह कर्ज लौटाया — ₹500, एक नई गाड़ी, चारधाम यात्रा के टिकट और ढेर सारी खुशियां।
आरपी सिंह और उनकी पत्नी की आंखों में आंसू थे। उन्होंने कभी बदले की उम्मीद नहीं की थी, लेकिन आज उनकी नेकी लौट आई थी। आस्था ने कहा, “अंकल जी, आपने मुझे सिर्फ ट्रेन में नहीं, जिंदगी की सही पटरी पर बैठाया था। आज मैं जो कुछ भी हूं, वो आपकी वजह से हूं।”
यह कहानी सिखाती है कि इंसानियत और फर्ज परस्ती कभी बेकार नहीं जाती। नेकी का चक्र घूमकर वापस आता है। एक छोटी सी मदद किसी की पूरी जिंदगी बदल सकती है।
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