SP मैडम सादे कपड़े में थाने मे रिपोर्ट लिखवाने गई दरोगा ने साधारण समझकर भगा दिया,फिर उसके साथ जो हुआ

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वर्दी का असली मतलब: एसपी आरती सिंह की कहानी

रामपुर जिले का नाम तो बहुत सीधा-सादा है, लेकिन यहां के कानून के रास्ते बड़े ही टेढ़े-मेढ़े थे। इसी जिले में कुछ ही हफ्ते पहले एक नई एसपी साहिबा ने कमान संभाली थी—आरती सिंह। उम्र कोई 30-32 साल, लेकिन आंखों में गजब की तेज़ी और चेहरे पर ऐसा आत्मविश्वास कि बड़े-बड़े अपराधी भी नजरें झुका लेते थे। आरती के लिए रामपुर सिर्फ एक और पोस्टिंग नहीं थी, बल्कि एक चुनौती थी। उसे पता था कि बाहर से शांत दिखने वाले इस जिले के भीतर जुर्म और भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हैं।

एक उमस भरी दोपहर को, एसपी ऑफिस के गेट पर एक अधेड़ उम्र की महिला शांति देवी और उसकी बेटी राधा पहुंचीं। उनके कपड़े मैले थे, चेहरे पर हफ्तों की थकान और आंखों में बेबसी थी। शांति देवी का दिल किसी पंछी की तरह फड़फड़ा रहा था। राधा ने अपनी मां का हाथ थामते हुए कहा, “मां डर मत, यहां हमारी सुनवाई होगी।” शांति देवी की आंखों में आंसू भर आए। “बेटा, अब हिम्मत नहीं बची। थाने में जो हुआ, उसके बाद तो भगवान पर से भी भरोसा उठ गया है।”

कुछ हफ्ते पहले तक उनकी जिंदगी ठीक थी। शांति देवी दूसरों के खेतों में मजदूरी करती थी, राधा पढ़ाई के साथ घर के काम में मां का हाथ बटाती थी। फिर गांव के सबसे बड़े जमींदार गजराज सिंह की नजर उनकी जमीन पर पड़ गई। गजराज सिंह गांव का बेताज बादशाह था, पुलिस, पटवारी सब उसकी जेब में थे। उसकी नजर शांति देवी के घर पर थी, जो हाईवे के पास बन रही सड़क के किनारे था। वह जमीन हड़पना चाहता था।

एक सुबह वह अपने गुंडों के साथ धमका कर बोला, “बुढ़िया, यह जमीन खाली कर दे, मैंने खरीद ली है।” शांति देवी ने हाथ जोड़कर कहा, “मालिक, यह मेरे पुरखों की जमीन है। हम कहां जाएंगे?” तभी राधा बाहर निकली, आंखों में गुस्सा था। “यह हमारी जमीन है, हम नहीं बेचेंगे।” गजराज को लड़की की हिम्मत पसंद नहीं आई। उसने राधा का हाथ पकड़ लिया, धमकी दी, “अगर कल तक घर खाली नहीं किया तो तुझे उठाकर ले जाऊंगा।” मां-बेटी किसी तरह बचकर भाग गईं और थाने पहुंचीं।

थानेदार इंस्पेक्टर भीम सिंह ने उनकी बात सुनी, जैसे कोई मजेदार किस्सा हो। घंटों बिठाए रखा, फिर बोला, “गजराज सिंह इलाके के इज्जतदार आदमी हैं, तुम लोग झूठा इल्जाम लगा रही हो। जाओ घर जाओ।” शांति देवी उसके पैरों पर गिर पड़ी, “साहब, हमारी इज्जत का सवाल है।” तभी गजराज सिंह थाने में घुस आया, भीम सिंह ने उसे कुर्सी पर बैठाया, मां-बेटी को धमका कर भगा दिया। उनकी एफआईआर नहीं लिखी गई, उल्टा उन्हें ही धमकाया गया।

गांव वालों ने डर के मारे उनसे बात करना बंद कर दिया। किसी ने हिम्मत करके बताया कि जिले में नई एसपी मैडम आई हैं, शायद वही कुछ कर सकें। इसी उम्मीद के साथ वे एसपी ऑफिस पहुंचीं। गेट पर संतरी उन्हें अंदर जाने से रोक रहा था। आरती सिंह ने इंटरकॉम पर अपने पीए को कहा, “इन दोनों को अंदर भेजो।” जैसे ही शांति देवी और राधा कांपते कदमों से ऑफिस में दाखिल हुईं, आरती अपनी कुर्सी से खड़ी हो गई। “आइए मां जी, बैठिए, पानी पीजिए।” एक बड़े अफसर के मुंह से ‘मां जी’ सुनकर शांति देवी की आंखों से आंसू बहने लगे। उन्होंने अपनी पूरी कहानी आरती के सामने रख दी।

सारी बात सुनकर आरती का चेहरा सख्त हो गया। उसे अपने ही सिस्टम पर गुस्सा आ रहा था। शांति देवी में उसे अपनी मां और राधा में अपनी छोटी बहन नजर आई। उसने फैसला लिया कि उसे सिस्टम की सच्चाई खुद देखनी होगी। आरती ने शांति देवी के कंधे पर हाथ रखा, “मां जी, चिंता मत कीजिए, आपको इंसाफ मिलेगा। लेकिन आपको मेरी मदद करनी होगी, आपको मेरे साथ एक बार फिर उसी थाने में चलना होगा।” राधा डर गई, “मैडम, हम वहां नहीं जा सकते।” आरती मुस्कुराई, “इस बार आप अकेली नहीं होंगी, आपकी बेटी आपके साथ चलेगी।”

आधे घंटे बाद, आरती सिंह साधारण सलवार सूट में, बिना मेकअप, शांति देवी और राधा के साथ एक प्राइवेट जीप में रामपुर थाने पहुंची। थाने के बाहर पुलिस वाले सुस्ता रहे थे, चाय की दुकान पर भीड़ थी। जैसे ही वे अंदर गईं, मुंशी ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा, “क्या काम है?” आरती ने कहा, “हमें रिपोर्ट लिखवानी है।” मुंशी ने पान की पीक थूकते हुए कहा, “इंस्पेक्टर साहब बिजी हैं, कल आना।” आरती ने आवाज ऊंची की, “हमें आज ही रिपोर्ट लिखवानी है। बुलाइए इंस्पेक्टर साहब को।” मुंशी थोड़ा चौंका, अंदर आवाज लगाई।

भीम सिंह बाहर आया, पान भरा हुआ मुंह, शर्ट के बटन खुले। उसने आरती को देखा, फिर शांति देवी को, “ओ बुढ़िया, फिर आ गई? मैंने मना किया था ना कि दोबारा यहां मत आना।” शांति देवी डर के मारे आरती के पीछे छिप गई। अब आरती सामने आई, “इंस्पेक्टर साहब, आपने इनकी एफआईआर क्यों नहीं लिखी?” भीम सिंह हंसा, “तू कौन होती है मुझसे पूछने वाली?” आरती ने शांत रहते हुए कहा, “मैं एक नागरिक हूं और आप एक पब्लिक सर्वेंट हैं। आपका फर्ज है शिकायत सुनना।”

भीम सिंह गुस्से में आ गया, “तू मुझे धमकी देगी?” वह आगे बढ़ा और आरती का हाथ पकड़कर बाहर धकेलने लगा। “चल निकल यहां से!” यह उसकी सबसे बड़ी गलती थी। आरती ने एक झटके से अपना हाथ छुड़ाया, उसकी आंखों में शेरनी वाला गुस्सा था। उसने पर्स से अपना आईडी कार्ड निकाला, भीम सिंह के सामने खोल दिया। “नाम है आरती सिंह, एसपी जिला रामपुर। अब बताओ, ऐसे मिलता है यहां की जनता को इंसाफ?”

भीम सिंह के होश उड़ गए, पूरे थाने में सन्नाटा छा गया। मुंशी कुर्सी के नीचे घुसने लगा, बाकी पुलिस वाले दीवार से चिपक गए। भीम सिंह आरती के पैरों पर गिर पड़ा, “मैडम, गलती हो गई, माफ कर दीजिए।” आरती ने कहा, “जब मैं आम औरत थी, तब कानून याद नहीं आया? उठो, एक पुलिस वाले का पैरों पर गिरना वर्दी की तौहीन है।” उसने मुंशी को आदेश दिया, “सस्पेंशन ऑर्डर टाइप करो। इंस्पेक्टर भीम सिंह तत्काल सस्पेंड। बाकी पुलिस वाले लाइन हाजिर।”

फिर उसने शांति देवी और राधा को सामने बिठाया, “अब आपकी रिपोर्ट लिखी जाएगी।” उसने खुद एफआईआर लिखी—गजराज सिंह और इंस्पेक्टर भीम सिंह के खिलाफ। वायरलेस सेट उठाया, “कंट्रोल, एक टीम तैयार करो, गजराज सिंह को अरेस्ट करना है।” उस शाम पुलिस ने गजराज सिंह को गिरफ्तार कर लिया। शांति देवी और राधा सालों बाद चैन की नींद सोई, उनके दरवाजे पर अब पुलिस का पहरा था।

लेकिन अंधेरा अभी बाकी था। रामपुर का विधायक बलवंत राय, जो मंच पर गरीबों की बातें करता था, असल में बड़ा अपराधी था। गजराज सिंह और भीम सिंह उसके आदमी थे। उनकी गिरफ्तारी से बलवंत राय की कुर्सी हिल गई। उसने आरती सिंह को हटाने की साजिश रची। भीम सिंह की झूठी मेडिकल रिपोर्ट बनाई गई, जिसमें दिखाया गया कि एसपी की मारपीट से उसकी पसलियां टूटीं और हार्ट अटैक आया। पुलिस वालों के झूठे हलफनामे जुटाए गए। बलवंत राय ने राजधानी जाकर अपने रसूख से आरती के खिलाफ जांच बैठा दी। मीडिया में आरती सिंह के खिलाफ खबरें छापी गईं।

जांच में डीआईजी, जो बलवंत राय का आदमी था, आरती के जवाबों को नजरअंदाज करता रहा। शांति देवी और राधा ने सच्ची गवाही दी, लेकिन उसे दबाव में दिया बयान कहकर खारिज कर दिया गया। एसपी आरती सिंह को सस्पेंड कर दिया गया। वर्दी उतारकर, नाम की प्लेट हटाकर, आरती ने अपना सामान उठाया। उसकी आंखों में आंसू नहीं थे, ज्वाला थी। वह जानती थी कि यह साजिश है, और वह इसका पर्दाफाश करेगी।

सस्पेंशन के दिनों में शांति देवी और राधा उसकी सबसे बड़ी ताकत बन गईं। वे रोज उसके लिए खाना लातीं, हौसला बढ़ातीं। कांस्टेबल रामफल चोरी-छिपे थाने की खबरें देता। एक युवा पत्रकार प्रिया शर्मा ने आरती से संपर्क किया। तीनों ने मिलकर बलवंत राय की साजिश का पर्दाफाश करने का मिशन शुरू किया। डॉक्टर वर्मा का स्टिंग ऑपरेशन, पुलिस वाले का कबूलनामा, और बलवंत राय की लाल डायरी—सारे सबूत मीडिया में आए। पूरे राज्य में हड़कंप मच गया। बलवंत राय, गजराज सिंह, भीम सिंह, डॉक्टर वर्मा गिरफ्तार हुए। आरती सिंह को बाइज्जत बहाल किया गया।

जिस दिन आरती ने दोबारा वर्दी पहनी, पूरे जिले ने उसका स्वागत किया। उसने कहा, “यह जीत मेरी नहीं, आप सबकी है। जब तक मैं यहां हूं, कोई भी आम आदमी की आवाज को दबा नहीं पाएगा।” उसने भूमाफिया के खिलाफ टास्क फोर्स बनाई। रामपुर में रोशनी की जीत हुई, अंधेरा हार गया।

यह कहानी हमें सिखाती है कि रास्ता कितना भी मुश्किल हो, अगर इरादे नेक हों और हिम्मत हो तो सच्चाई की जीत जरूर होती है।

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