पटरी पर मरने जा रही थी लड़की… अजनबी लड़के ने बचाया | फिर जो हुआ, इंसानियत रो पड़ी

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एक नई शुरुआत

उत्तर प्रदेश के कानपुर रेलवे स्टेशन की रात हमेशा हलचल भरी रहती थी। कहीं कुलियों की आवाज, कहीं चाय बेचने वालों की पुकार और कहीं भागती दौड़ती भीड़। लेकिन उसी भीड़ के बीच प्लेटफार्म नंबर तीन के किनारे एक लड़की खड़ी थी। उसका नाम कविता था। उसके चेहरे पर दर्द की गहरी लकीरें थीं। आंखों में आंसू तैर रहे थे, पर होंठ सिले हुए थे। वह लंबे समय से अपने संघर्ष से हार चुकी थी। कई महीनों तक कोशिशें की थीं, इंटरव्यू दिए, लोगों से मदद मांगी। लेकिन हर जगह सिर्फ रिजेक्शन और ताने ही मिले थे। समाज ने जैसे उसके आत्मसम्मान को चीर कर रख दिया था। आज वह आखिरी बार इस स्टेशन पर आई थी। उसके मन में एक ही ख्याल गूंज रहा था, “अब और नहीं। अब सब खत्म कर देना चाहिए।”

ट्रेन आने ही वाली थी। पटरियों पर दूर से आती रोशनी उसे अपनी तरफ खींच रही थी। कविता ने धीरे से आंसू पोंछे और कदम बढ़ाने लगी। उसके पैर कांप रहे थे, पर दिल अजीब सी शांति में डूबा था। जैसे उसने फैसला कर लिया हो। भीड़ में कुछ लोगों ने उसे देखा, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। सब अपने-अपने सफर में व्यस्त थे। इसी बीच प्लेटफार्म की दूसरी तरफ खड़ा एक युवक प्रशांत सब कुछ देख रहा था। वह सूटबूट पहने एक फाइल हाथ में लिए खड़ा था। पहली नजर में ही साफ झलक रहा था कि वह किसी अच्छी जगह का पढ़ा-लिखा, संभ्रांत परिवार से था। लेकिन उसकी आंखों में इंसानियत की एक चमक थी, जो आमतौर पर भीड़ में खो जाती है।

जैसे ही कविता ने पटरी की ओर छलांग लगाने के लिए कदम बढ़ाया, प्रशांत की सांसे थम गईं। उसने बिना कुछ सोचे दौड़ लगा दी। लोग हैरान रह गए। “अरे संभालो!” किसी ने चिल्लाया। लेकिन तब तक प्रशांत कविता तक पहुंच चुका था। उसने उसका हाथ पकड़ लिया और जोर से अपनी ओर खींच लिया। ट्रेन सीटी बजाते हुए स्टेशन में दाखिल हो रही थी। बस दो पल की दूरी थी। अगर एक सेकंड भी देर होती, तो शायद कविता जिंदगी और मौत की उस पटरी के बीच गुम हो जाती।

कविता प्रशांत की बाहों में गिर पड़ी। उसका शरीर कांप रहा था। आंखों से आंसू बेकाबू बह रहे थे। पूरे प्लेटफार्म पर सन्नाटा छा गया। लोग इकट्ठा होने लगे। यह लड़की पटरी पर कूद रही थी। लड़के ने बचा लिया। भीड़ में कानाफूसी होने लगी। लेकिन कविता को अब किसी की परवाह नहीं थी। वह फूट-फूट कर रो रही थी। जैसे उसके अंदर जमा हुआ सारा दर्द बाहर निकल रहा हो। प्रशांत ने धीरे से उसका चेहरा ऊपर किया और धीमी आवाज में कहा, “तुम ठीक हो? ऐसा क्यों करने जा रही थी?”

कविता ने उसकी आंखों में देखा। वहां कोई सवाल नहीं था, बस चिंता और अपनापन था। वह कुछ बोलना चाहती थी, लेकिन शब्द गले में अटक गए। बस उसके होंठ कांपे और आंसू की एक मोटी बूंद जमीन पर टपक गई। प्रशांत ने भीड़ की तरफ देखा और धीरे से बोला, “कृपया सब लोग पीछे हट जाइए। इसे सांस लेने दीजिए।” भीड़ धीरे-धीरे छंट गई। अब प्लेटफार्म के शोर के बीच बस दो लोग थे—कविता और प्रशांत।

प्रशांत ने उसका हाथ कसकर थामा और बोला, “चलो, आपको पानी पिलाता हूं। फिर बताइएगा क्या हुआ है। अभी तो बस इतना जानता हूं कि जिंदगी इतनी सस्ती नहीं होती कि उसे पटरी पर छोड़ दिया जाए।” कविता ने उसकी ओर देखा। आंखें लाल थीं। लेकिन पहली बार उनमें हल्की सी रोशनी झलकी। प्रशांत ने धीरे-धीरे कविता को प्लेटफार्म के एक कोने में बैठाया। उसकी सांसें तेज चल रही थीं। चेहरा पसीने और आंसुओं से भीगा हुआ था। पास ही चाय का एक छोटा सा स्टॉल था। प्रशांत ने तुरंत जाकर पानी की बोतल और दो कप चाय मंगाई।

कविता ने कांपते हाथों से बोतल पकड़ने की कोशिश की। लेकिन हाथ इतने कमजोर थे कि गिर ही जाता। प्रशांत ने बिना कुछ कहे बोतल खोली और गिलास में पानी डालकर उसकी ओर बढ़ाया। “धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा पीना,” उसने नरमी से कहा। कविता ने कुछ धुंधला पानी पिया। उसकी सांसें अब थोड़ी सामान्य होने लगीं। लेकिन आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। प्रशांत उसके सामने बैठ गया। कुछ पल खामोशी रही। फिर उसने धीरे से कहा, “नाम क्या है तुम्हारा?”

कविता ने नजरें झुका लीं। आवाज बमुश्किल निकली, “कविता।” “अच्छा नाम है,” प्रशांत ने मुस्कुराने की कोशिश की ताकि माहौल थोड़ा हल्का हो सके। “मेरा नाम प्रशांत है।” कविता ने कोई जवाब नहीं दिया। बस अपने हाथों को आपस में मरोड़ती रही। प्रशांत ने उसे ध्यान से देखा। उसके चेहरे पर गहरी थकान थी। आंखों में इतनी उदासी थी कि जैसे बरसों का दर्द एक ही दिन में उभर आया हो।

वो बोला, “कविता, मुझे नहीं पता कि तुम्हारी जिंदगी में क्या तूफान चल रहा है। लेकिन इतना जानता हूं कि पटरी पर कूदने से वह तूफान नहीं रुकेंगे। बस सब खत्म हो जाएगा।” कविता के होंठ काम कांपे। उसने पहली बार सिर उठाकर उसकी तरफ देखा और धीमी आवाज में बोली, “जब जिंदगी ही बोझ बन जाए तो जीकर क्या करना?”

प्रशांत उसकी आंखों में झांकता रहा। वहां सिर्फ खालीपन था, जैसे उम्मीद की कोई जगह बची ही ना हो। उसने धीरे से कप में चाय डालकर उसकी ओर बढ़ाया। “पीओ, शायद थोड़ी गर्माहट तुम्हें याद दिला दे कि अभी भी जिंदगी बाकी है।” कविता ने कप लिया। लेकिन उसके हाथ अब भी कांप रहे थे। उसने घूंघट लिया। फिर बोली, “आप समझ नहीं सकते। जब बार-बार कोशिश करने के बाद भी सिर्फ रिजेक्शन मिले तो इंसान टूट ही जाता है। मैं महीनों से इंटरव्यू दे रही हूं। पर हर जगह लोग मुझे मेरे पहनावे, मेरे बोलने के तरीके से आंकते हैं। किसी को मेरी मेहनत नहीं दिखती। बस कमी दिखती है।”

उसकी आवाज भर आई। आंसू फिर से बह निकले। “आज सोचा था सब खत्म कर दूं। कम से कम मां-बाप को और ताने नहीं सुनने पड़ेंगे।” प्रशांत ने गहरी सांस ली। उसके दिल को जैसे किसी ने कसकर जकड़ लिया हो। उसने बेहद कोमल स्वर में कहा, “कविता, तुम्हें पता है तुम कैसी लग रही हो? जैसे कोई पेड़ तूफान में झुक जरूर गया है लेकिन टूटा नहीं है। और सच कहूं, मुझे लगता है तुम्हारे अंदर बहुत ताकत है। बस तुम्हें खुद पर भरोसा करना होगा।”

कविता ने उसकी तरफ देखा। इस बार उसकी आंखों में अजनबीपन नहीं था। वहां हल्की सी उम्मीद की झलक थी। प्रशांत ने मुस्कुराते हुए कहा, “देखो, अभी तुम अकेली नहीं हो। मैं यहां हूं। और जब तक तुम चाहो, तुम्हारे साथ खड़ा रहूंगा। लेकिन एक वादा करो, आज के बाद कभी ऐसी गलती नहीं करोगी।”

कविता ने कांपते होठों से कुछ कहना चाहा लेकिन शब्द गले में अटक गए। बस उसने हल्के से सिर हिला दिया। चाय की चुस्की खत्म होते-होते कविता की आंखों में हल्की नमी बाकी थी। उसने गहरी सांस ली और बोली, “आप सोच रहे होंगे मैं इतनी कमजोर क्यों पड़ गई, लेकिन मेरा हर दिन एक जंग जैसा रहा है।”

प्रशांत चुपचाप उसकी बातें सुन रहा था। उसके चेहरे पर वही अपनापन था, जिसने कविता को पहली बार बोलने की हिम्मत दी। कविता ने कहना शुरू किया, “मैं एक छोटे से गांव की हूं। मां-बाप ने खेतों में काम करके मुझे पढ़ाया। बचपन से सपना था कि पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी करूं ताकि उनका बोझ हल्का कर सकूं। मैंने मेहनत भी बहुत की। अच्छे अंकों से ग्रेजुएशन पास किया।” लेकिन उसकी आवाज भर गई। उसने होंठ भी और आंसू रोकने की कोशिश की।

“लेकिन जब-जब नौकरी के इंटरव्यू में गई, लोग मेरा मजाक उड़ाते। मेरी साड़ी देखकर, मेरी देहाती बोली सुनकर कोई पूछता, ‘अरे, यह गांव की लड़की शहर का काम क्या जानेगी?’ कोई हंसकर कह देता, ‘प्रेजेंटेशन जीरो है। कैसे काम करेगी?’”

प्रशांत की मुट्ठियां अनजाने में भी गईं। उसने खुद को संयत किया और धीरे से बोला, “तो क्या किसी ने कभी तुम्हारी मेहनत नहीं देखी? तुम्हारी पढ़ाई, तुम्हारा टैलेंट?”

कविता ने कड़वी हंसी हंस दी। “नहीं, किसी को वह सब नहीं दिखा। सबको बस मेरा पहनावा और मेरी बोली दिखी। जैसे इन सबके बिना इंसान का कोई मूल्य नहीं होता। धीरे-धीरे रिजेक्शन ने मुझे अंदर से तोड़ दिया। हर बार मां-बाप उम्मीद से पूछते, ‘कविता, कुछ हुआ?’ और मैं झूठ बोल देती, ‘हां, अगले हफ्ते रिजल्ट आएगा।’ उनकी आंखों में उम्मीद देखना सबसे बड़ा बोझ बन गया। आज जब ट्रेन छूटी तो लगा बस अब सफर भी खत्म कर दूं।”

उसने चेहरे को हथेलियों में छिपा लिया। आंसू उसके हाथों के बीच से बहते रहे। प्रशांत ने कुछ पल उसे रोने दिया। फिर धीरे से बोला, “कविता, तुम्हें पता है सबसे बड़ी गलती क्या कर रही हो? तुम अपनी कीमत उन लोगों की जुबान से तय कर रही हो जो कभी तुम्हें पहचान ही नहीं पाए। जो इंसान सिर्फ कपड़े और भाषा देखता है, वो तुम्हारे टैलेंट को समझ ही नहीं सकता। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुममें काबिलियत नहीं है।”

कविता ने आंसू पोंछते हुए सिर उठाया। “लेकिन मैं अकेली हूं। मेरा साथ कौन देगा? यहां कोई मेरा नहीं है।”

प्रशांत ने उसकी आंखों में देखते हुए दृढ़ स्वर में कहा, “अब अकेली नहीं हो। मैं हूं। और जब तक तुम खुद हार नहीं मानोगी, मैं तुम्हें गिरने नहीं दूंगा। आज तुमने जो कदम उठाया, उसने मुझे डरा दिया है। लेकिन अगर तुम फिर से हिम्मत जुटाओगी, तो मैं हर मोड़ पर तुम्हारे साथ खड़ा रहूंगा।”

कविता उसकी बात सुनती रही। दिल में जैसे पहली बार किसी ने उम्मीद की छोटी सी लौ जलाई थी। उसने धीरे से कहा, “आप क्यों कर रहे हैं यह सब? आप तो मुझे जानते भी नहीं।”

प्रशांत हल्के से मुस्कुराया। “क्योंकि कभी-कभी किसी अजनबी की मदद ही हमें याद दिलाती है कि इंसानियत अभी जिंदा है और शायद भगवान ने मुझे यहां सिर्फ इसी काम के लिए भेजा है।”

कविता उसकी ओर देखती रही। पहली बार उसके चेहरे पर हल्की सी शांति उतरी। प्लेटफार्म की ठंडी बेंच पर बैठे-बैठे अब कविता के आंसू थम चुके थे। चेहरे पर थकान थी। लेकिन आंखों में हल्की सी रोशनी झिलमिलाने लगी थी। वो अब भी सोच रही थी कि एक अजनबी उसके लिए इतना क्यों कर रहा है?

प्रशांत ने चाय का आखिरी घूंट लिया और मुस्कुराते हुए बोला, “कविता, तुमने कहा था कि तुम्हें बार-बार रिजेक्शन मिला। लेकिन कभी सोचा है शायद तुम्हें सही जगह मिली ही नहीं। हो सकता है तुम्हारे हुनर की कद्र कहीं और हो।”

कविता ने हैरानी से उसकी ओर देखा। “लेकिन मैं तो अब पूरी तरह हिम्मत हार चुकी हूं।”

प्रशांत ने गहरी सांस ली और दृढ़ स्वर में कहा, “तो चलो, एक बार फिर कोशिश करते हैं। इस बार तुम अकेली नहीं हो। मैं तुम्हारे साथ हूं।”

कविता चुप रही। उसे भरोसा नहीं हो रहा था कि कोई अजनबी उसके लिए इतना गंभीर हो सकता है। प्रशांत ने अपनी जेब से विजिटिंग कार्ड निकाला और उसकी ओर बढ़ा दिया। “यह मेरी कंपनी का पता है। मैं एक छोटा सा स्टार्टअप चला रहा हूं। हमें ऐसे लोग चाहिए जो मेहनत और ईमानदारी से काम करें। कल सुबह आना। वहां से तुम्हारी नई शुरुआत होगी।”

कविता का हाथ कांप गया। उसने कार्ड लिया लेकिन आंखों में संकोच साफ झलक रहा था। “लेकिन मैं तो कुछ खास जानती भी नहीं। आपकी कंपनी में मेरा क्या काम?”

प्रशांत ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “काम सिखाने वाले लोग वहां बहुत हैं। लेकिन सच्चाई और जज्बा, वो चीज हर किसी में नहीं होती और मुझे वही चाहिए। बाकी सब मैं तुम्हें सिखा दूंगा।”

कविता कुछ पल चुप रही। फिर उसके होंठ कांपे, “आपको मुझ पर इतना भरोसा कैसे है?”

प्रशांत ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा, “क्योंकि मैंने तुम्हारी आंखों में सच देखा है। तुम थकी हुई हो, टूटी हुई हो लेकिन झूठी नहीं हो। और यकीन मानो यही सबसे बड़ी ताकत है।”

कविता का दिल भर आया। इतने सालों में पहली बार किसी ने उसकी सच्चाई को उसकी कमजोरी नहीं बल्कि ताकत कहा था। वह धीरे से बोली, “अगर मैं फेल हो गई तो?”

प्रशांत हंस पड़ा, “तो फिर से कोशिश करेंगे जब तक सफल ना हो जाओ। हार मानने का अधिकार अब तुम्हें नहीं है।” उसकी आवाज में ऐसा भरोसा था कि कविता चाहकर भी इंकार नहीं कर सकी। उसने हल्के से सिर हिलाया और बोली, “ठीक है, मैं कल आऊंगी।”

प्रशांत के चेहरे पर संतोष की मुस्कान फैल गई। “यही तो मैं सुनना चाहता था। याद रखना, जिंदगी का दरवाजा हमेशा उसी के लिए खुलता है जो हार मानकर लौटने के बजाय बार-बार दस्तक देता है।”

कविता ने पहली बार उसकी बातों पर मुस्कुराने की कोशिश की। उस मुस्कान में डर भी था, पर उम्मीद भी। उस रात जब कविता घर लौटी तो मां ने उसकी आंखों की चमक देखी और हैरान होकर पूछा, “आज तू कुछ अलग लग रही है। सब ठीक है ना?”

कविता ने लंबे समय बाद पहली बार सच बोला, “हां मां, शायद सब ठीक होने वाला है।”

सुबह की धूप खिड़की से छनकर कमरे में फैल रही थी। कविता ने आईने में खुद को देखा। वही पुरानी सादी साड़ी। लेकिन इस बार उसे पहनते वक्त उसका दिल अजीब सी धड़कन महसूस कर रहा था। लंबे समय बाद आज उसमें एक उम्मीद जागी थी। उसने अपने बाल संवारे, पुराने चप्पल झाड़े और हाथ में प्रशांत का दिया हुआ कार्ड लिया। दिल में सोच रही थी, “क्या सच में वहां कोई मेरा इंतजार कर रहा होगा या यह भी बस एक सपना निकलेगा?”

दिल में डर था। लेकिन कदम खुद ब खुद चल रहे थे। जब वह कंपनी के गेट पर पहुंची तो उसकी धड़कन तेज हो गई। सामने चमचमाती बिल्डिंग थी। शीशे की खिड़कियां, व्यवस्थित गार्ड और अंदर आती-जाती बड़ी गाड़ियों को देखकर कविता ने खुद को और छोटा महसूस किया। उसने धीरे से कार्ड जेब से निकाला और गार्ड को दिखाया।

गार्ड मुस्कुराया और बोला, “अरे मैडम, अंदर जाइए। मैनेजिंग डायरेक्टर ने आपका नाम पहले ही लिखवा दिया है।” कविता की आंखें चौड़ी हो गईं। “मेरे लिए पहले से इंतजाम?” वो हिचकते कदमों से अंदर गई। रिसेप्शन पर बैठी लड़की ने उसे देखते ही मुस्कुराकर कहा, “आप कविता जी हैं ना? सर, आपका इंतजार कर रहे हैं। सीधे ऊपर उनके केबिन में जाइए।”

कविता का गला सूख गया। वो धीरे-धीरे सीढ़ियां चढ़ने लगी। हर कदम पर उसका डर और बढ़ता जा रहा था। “अगर सब झूठ निकला तो? अगर वहां भी लोग हंस पड़े तो? अगर मैं कुछ कर ही ना पाई तो?” दरवाजे पर पहुंचते ही उसने गहरी सांस ली और धीरे से खटखटाया। अंदर से आवाज आई, “आइए।”

दरवाजा खुलते ही सामने प्रशांत था, हमेशा की तरह सलीकेदार लेकिन चेहरे पर एक आत्मीय मुस्कान। “आओ कविता, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था।” कविता ने झिझकते हुए कदम अंदर रखें। “मुझे डर लग रहा है। मैं शायद यहां के लायक नहीं हूं।”

प्रशांत ने खड़े होकर उसका हाथ थामा और बोला, “किसी भी इंसान को लायक उसकी डिग्री या पहनावे से नहीं बल्कि उसकी नियत और मेहनत से माना जाता है। और मुझे पता है दोनों चीजें तुम में हैं।”

उसने एक लेटर उसकी ओर बढ़ाया। “यह तुम्हारी जॉइनिंग है। आज से तुम मेरी कंपनी का हिस्सा हो। फिलहाल असिस्टेंट के तौर पर शुरू करोगी। लेकिन तुम्हारी मंजिल बहुत बड़ी होगी।” कविता के हाथ कांप रहे थे। उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसने धीमी आवाज में कहा, “मैंने सोचा भी नहीं था कि कभी मुझे यह पल देखने को मिलेगा।”

प्रशांत मुस्कुराया। “याद है, मैंने क्या कहा था? दरवाजा हमेशा उसी के लिए खुलता है जो बार-बार दस्तक देता है। तुमने कल रात फिर से जिंदगी को दस्तक दी थी। यह उसका जवाब है।” कविता ने सिर झुका लिया। आंसू उसके गालों पर ढुलक गए। लेकिन इस बार यह आंसू हार के नहीं थे। यह उम्मीद के आंसू थे।

उसने धीरे से कहा, “धन्यवाद, प्रशांत जी। आपने मेरी जिंदगी को नया मोड़ दे दिया।” प्रशांत ने हल्के से सिर हिलाया। “नहीं कविता, अभी तो यह शुरुआत है। असली सफर अब शुरू होगा।”

कंपनी का पहला दिन कविता के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं था। जैसे ही वह ऑफिस में दाखिल हुई, कई लोगों की नजरें उस पर पड़ीं। कुछ ने ताज्जुब से देखा, “यह कौन है? इतनी साधारण सी लड़की यहां कैसे आ गई?” कुछ के होठों पर हल्की मुस्कान थी। मानो वे पहले ही उसे नाकाम मान चुके हों।

कविता ने उन निगाहों को महसूस किया। लेकिन उसने गहरी सांस ली और खुद को समझाया, “अब पीछे नहीं हटना है। प्रशांत जी ने मुझ पर भरोसा किया है और मुझे वह भरोसा जीत कर दिखाना है।” पहले ही दिन उसे कुछ फाइलें सॉर्ट करने और डाटा एंट्री का काम दिया गया। कंप्यूटर उसके लिए नया नहीं था। लेकिन ऑफिस के सॉफ्टवेयर और टेम्पलेट्स को समझने में दिक्कत हो रही थी। बार-बार गलतियां हो रही थीं।

सामने बैठी एक सहकर्मी हंसते हुए बोली, “मैडम, यह तो बड़ा आसान है। गांव से आए हो क्या? यह काम नहीं आता तुम्हें?” कविता का चेहरा लाल पड़ गया। दिल किया सब छोड़कर भाग जाए। लेकिन तभी प्रशांत का कहा हुआ वाक्य याद आया, “लायकत मेहनत से तय होती है।” उसने होंठ भी और बिना कुछ कहे फिर से काम शुरू कर दिया।

पूरे दिन में कई बार उसने गलतियां की, लेकिन हर बार सीखने की कोशिश भी की। शाम तक थकी हुई जरूर थी, मगर एक अजीब सा सुकून था। “आज मैंने हार नहीं मानी।” अगले कुछ दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा। कभी सहकर्मी उसे ताने मारते, कभी कोई उसकी धीमी आवाज पर हंस पड़ता। लेकिन कविता हर रोज देर तक रुककर काम को समझती, नोट्स बनाती और अगली सुबह नई तैयारी के साथ आती। धीरे-धीरे उसके काम में निखार आने लगा।

एक दिन मीटिंग के दौरान अचानक एक प्रेजेंटेशन स्लाइड क्रैश हो गई। पूरा स्टाफ परेशान था। उसी वक्त कविता ने हिम्मत दिखाई। उसने जल्दी से डाटा बैकअप खोला और कुछ मिनटों में स्लाइड फिर से तैयार कर दी। सब चौंक गए। प्रशांत ने गर्व से कहा, “देखा, कभी-कभी सबसे बड़ा हुनर वही दिखा देता है जिसे हम कम समझते हैं।” कविता की आंखों में चमक आ गई। पहली बार उसने महसूस किया कि उसकी मेहनत किसी ने सराही है।

अब वह सिर्फ काम ही नहीं कर रही थी बल्कि सीख भी रही थी। रिसेप्शन से लेकर डॉक्यूमेंट्स तक धीरे-धीरे हर चीज में उसकी पकड़ मजबूत होने लगी। महीने के आखिर में जब सैलरी का लिफाफा हाथ में आया तो उसकी आंखें नम हो गईं। उसने सबसे पहले मां-बाप को फोन किया। “मां, अब आपको किसी से उधार मांगने की जरूरत नहीं है। आपकी बेटी को नौकरी मिल गई है।”

फोन के उस पार मां रो रही थी और कविता का गला भर आया। लेकिन दिल में एक अजीब सा आत्मविश्वास था। अब वह जान चुकी थी, “मैं सिर्फ बोझ नहीं हूं। मैं अपने परिवार का सहारा भी बन सकती हूं।”

कंपनी में अब कविता को सब जानने लगे थे। उसकी मेहनत और सादगी ने धीरे-धीरे कई लोगों का दिल जीत लिया था। मगर कुछ लोग अब भी उसे तिरछी नजरों से देखते। उनके मन में एक ही सवाल था, “यह साधारण सी लड़की यहां तक कैसे पहुंची?”

इसी बीच प्रशांत का व्यवहार कविता के प्रति सबके सामने और भी खुला और आत्मीय होने लगा। वह उसके काम की तारीफ करता, उसे आगे बढ़ने के मौके देता और कई बार मीटिंग्स में उसके सुझावों को प्राथमिकता देता। धीरे-धीरे दफ्तर की गपशप शुरू हो गई। “लगता है बॉस को यह लड़की पसंद है। भला करोड़पति प्रशांत और यह गांव की लड़की, कोई मेल है क्या? पता नहीं। लेकिन दोनों के बीच कुछ तो है।”

यह बातें कविता तक भी पहुंची। हर शब्द उसके दिल को चीर देता। उसने एक शाम प्रशांत के केबिन में जाकर कहा, “प्रशांत जी, लोग बातें बना रहे हैं। कहते हैं कि मैं यहां सिर्फ इसलिए हूं क्योंकि आप मुझे पसंद करते हैं। मैं चाहती हूं कि आप मुझे अब और मदद मत करें।”

प्रशांत ने गंभीर नजरों से उसकी ओर देखा। “कविता, अगर लोग बातें कर रहे हैं तो उन्हें करने दो। यह वही लोग हैं जिन्होंने पहले तुम्हें बोली और पहनावे से आका था। क्या तुम फिर से उनके सामने झुक जाओगी?”

कविता चुप हो गई। उसके पास कोई जवाब नहीं था। कुछ ही दिनों बाद बात ऑफिस से निकलकर समाज तक फैल गई। प्रशांत के रिश्तेदारों ने सवाल उठाने शुरू कर दिए। “प्रशांत, तुम इतनी अमीर और पढ़ी-लिखी फैमिली से हो और यह लड़की गरीब घर की देहाती बोली वाली। समाज क्या कहेगा तुम्हारे लिए? कितने रिश्ते आ रहे हैं, फिर क्यों इस लड़की के पीछे पड़े हो?”

प्रशांत ने सभी की बातें धैर्य से सुनीं लेकिन उसके चेहरे पर दृढ़ता थी। एक पारिवारिक बैठक में जब रिश्तेदारों ने दबाव बनाया तो प्रशांत ने साफ शब्दों में कहा, “मैंने जिंदगी में बहुत लोगों को देखा है। अमीर भी, पढ़े लिखे भी। लेकिन कविता जैसी सच्चाई और मेहनत कहीं नहीं देखी। मैं उसे सिर्फ उसकी सादगी के लिए नहीं चाहता, बल्कि इसलिए चाहता हूं क्योंकि वह मेरे साथ मिलकर जिंदगी की हर कठिनाई का सामना कर सकती है। और यही साथी होने की असली परिभाषा है।”

कमरे में सन्नाटा छा गया। उसने आगे कहा, “अगर किसी को मेरे फैसले से दिक्कत है तो यह उनकी समस्या है। लेकिन मेरा फैसला साफ है। मैं कविता से ही शादी करूंगा क्योंकि मुझे अपनी जिंदगी में दिखावा नहीं, सच्चाई चाहिए।” कविता यह सब सुन रही थी। उसकी आंखों से आंसू झरझर बह रहे थे। इतने सालों में किसी ने उसके लिए इतना साहस नहीं दिखाया था।

उसने कांपते हुए कहा, “प्रशांत जी, आप समझते नहीं, मैं आपकी दुनिया के लायक नहीं हूं। लोग आपको छोड़ देंगे।”

प्रशांत ने उसका हाथ थाम लिया और दृढ़ स्वर में बोला, “कविता, मुझे किसी की परवाह नहीं। लोग क्या कहेंगे? यह सोचकर अगर इंसान जीना छोड़े तो कभी खुश नहीं रह सकता। और मेरी खुशी सिर्फ तुम हो।”

कविता के दिल की सारी दीवारें टूट गईं। उसने रोते हुए कहा, “आपने मुझे जिंदगी दी थी और अब आपने मुझे इज्जत भी दे दी। शायद यही वह पल है जिसका मैं बरसों से इंतजार कर रही थी।”

शादी के बाद प्रशांत और कविता की जिंदगी नए रंग में ढलने लगी। प्रशांत का परिवार धीरे-धीरे कविता को अपना मानने लगा। और कंपनी में भी कविता ने खुद को साबित कर दिया। लेकिन उसके दिल में अब भी एक कसक बाकी थी।

एक शाम बरामदे में बैठे हुए कविता बोली, “प्रशांत जी, मैं हमेशा सोचती हूं, अगर मेरे जैसे बच्चों को गांव में ही सही माहौल और संसाधन मिलते, तो शायद इतना संघर्ष ना करना पड़ता। कितने बच्चे गरीबी और रिजेक्शन की वजह से पढ़ाई छोड़ देते हैं। मैं चाहती हूं कि कुछ ऐसा हो जिससे उनका सफर आसान हो जाए।”

प्रशांत ने उसकी आंखों में देखा और मुस्कुराया। “तो क्यों ना हम वही करें? चलो, तुम्हारे गांव से शुरुआत करते हैं।” कुछ ही महीनों बाद दोनों ने कविता के गांव में एक छोटा सा शिक्षा केंद्र शुरू किया। वहां एक साफ सुथरा कमरा बनाया गया, जिसमें किताबों की अलमारियां, कुछ कंप्यूटर और पढ़ाई की टेबल कुर्सियां रखी गईं। दीवार पर लिखा था, “ज्ञान की रोशनी हर बच्चे तक।”

गांव के बच्चे, जो पहले खेतों और भट्टों पर काम करने जाते थे, अब शाम को इस केंद्र में पढ़ने आने लगे। वहां उन्हें ना केवल किताबें मिलतीं बल्कि मुफ्त ट्यूशन, कंप्यूटर और अंग्रेजी की क्लासेस भी दी जातीं। जब पहली बार एक छोटी बच्ची ने कविता से आकर कहा, “दीदी, अब मैं भी बड़े होकर टीचर बनूंगी,” तो कविता की आंखों से आंसू बह निकले। उसने बच्ची को गले लगाते हुए सोचा, “शायद यही वह मकसद था जिसके लिए भगवान ने मुझे उस दिन प्लेटफार्म पर रोका था।”

प्रशांत बच्चों को कंप्यूटर चलाना सिखाता और कविता उन्हें किताबों से नई कहानियां पढ़कर सुनाती। धीरे-धीरे आसपास के गांवों के बच्चे भी यहां आने लगे। यह केंद्र अब सिर्फ एक कमरा नहीं रहा, बल्कि उम्मीद का दरवाजा बन गया।

एक दिन गांव का बुजुर्ग बोला, “बिटिया, पहले यह गांव अंधेरे में था। आज तुम दोनों ने यहां रोशनी जला दी।” कविता ने नम आंखों से प्रशांत की ओर देखा। “अगर उस दिन आपने मेरा हाथ ना थामा होता तो मैं यह सब कभी ना कर पाती।” प्रशांत ने उसका हाथ दबाया और मुस्कुराते हुए बोला, “कविता, तुम खुद एक रोशनी हो। मैंने सिर्फ रास्ता दिखाया। चलना तो तुमने ही था।”

गांव में गूंजते बच्चों की हंसी अब उनकी सबसे बड़ी दौलत थी। दोस्तों, कभी-कभी एक पल का सहारा सिर्फ एक इंसान नहीं बल्कि पूरी पीढ़ी का भविष्य बदल देता है। इसलिए अगर मौका मिले, किसी का हाथ थाम लीजिए। क्या पता वही हाथ आगे चलकर सैकड़ों और हाथों को थाम ले।