भूखा बच्चे ने खाना मांगा था करोड़पति मैडम ने जो किया पूरी इंसानियत हिल गई…| 
एक रोटी की कीमत – इंसानियत की कहानी
शहर की सबसे आलीशान हवेली में रहती थीं आरती शर्मा। उनकी दुनिया सोने जैसी थी – चारों ओर हरियाली, इंपोर्टेड गाड़ियां, नौकरों की फौज। डिजाइनर साड़ियां, किटी पार्टियां और विदेशी छुट्टियां – यही उनकी जिंदगी थी। वे अपने महंगे एक्वेरियम में तैरती सुनहरी मछली जैसी थीं, जिन्हें बाहर की दुनिया का कोई अंदाजा नहीं था।
ठीक उसी हवेली की बाहरी दीवार के पास, एक संकरी गली में रहता था गोलू। आठ साल का मासूम बच्चा, जिसकी जिंदगी गरीबी के टीलों पर पल रही थी। टूटी चप्पलें, फटे कपड़े और पेट में जलती भूख की आग। उसके पिता दिहाड़ी मजदूर और मां घरों में काम करती थीं।
एक दिन, तपती दोपहर में गोलू घर के बाहर खेल रहा था। सुबह से उसने कुछ नहीं खाया था। भूख इतनी तेज थी कि उसे चक्कर आने लगे। उसकी नजर हवेली की ऊंची दीवार पर गई, जहां से रोज स्वादिष्ट पकवानों की महक आती थी। आज महक ज्यादा थी – शायद कोई बड़ी दावत थी। भूख और उस ललचाने वाली खुशबू ने गोलू के छोटे कदमों को हवेली के गेट तक पहुंचा दिया।
डर था, हिचकिचाहट थी, लेकिन पेट की आवाजें इन सब पर भारी पड़ गईं। गोलू ने कांपते हाथों से हवेली की घंटी बजाई। कुछ देर बाद गार्ड ने दरवाजा खोला। गोलू ने नम्रता से कहा, “अंकल, क्या मैं मैडम से मिल सकता हूं? मुझे सिर्फ एक रोटी चाहिए।”
गार्ड ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और दुत्कारते हुए बोला, “चल भाग यहां से। ये कोई धर्मशाला नहीं है। मैडम बहुत व्यस्त है। जा अपने बाप से मांग।”
गोलू की आंखों में आंसू आ गए। उसकी आवाज सुनकर, शानदार लंच के बीच, आरती जी बाहर आईं। महंगे चश्मे में, चेहरे पर नाराजगी।
“क्या हो रहा है यहां? ये बच्चा कौन है? क्यों शोर मचा रहा है?”
गार्ड ने बताया, “मैडम, ये गली का बच्चा है, खाने के लिए मांग रहा है।”
गोलू ने अपनी सारी हिम्मत जुटाई। छोटे हाथ जोड़कर, नम आंखों से बोला, “मैडम, सुबह से कुछ नहीं खाया। मुझे पता है आपके यहां बहुत खाना है। क्या आप मुझे सिर्फ एक रोटी दे सकती हैं?”
हवेली के आंगन में कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया। लंच में शामिल कुछ मेहमान भी बाहर आ गए। सब देख रहे थे कि अब क्या होगा।
आरती जी ने उस बच्चे को देखा – फटी शर्ट, धूल से सने गाल, और आंखों में गहरी भूख। एक पल को शायद उनके भीतर का जमीर जागा, लेकिन अगले ही पल अभिमान और दौलत का अहंकार लौट आया।
“एक रोटी? तुम्हें क्या लगता है, यह हवेली रसोई है? हम तुम्हें खाना खिलाने के लिए नहीं बैठे हैं। जाओ यहां से। अगर सबको एक-एक रोटी देने लगी, तो हमारा क्या होगा?”
उन्होंने गार्ड को आदेश दिया, “इसे तुरंत यहां से हटाओ। और आइंदा यह बच्चा कभी दरवाजे पर नजर नहीं आना चाहिए।”
गोलू की आंखों में एक रोटी की उम्मीद थी, जो अब आंसुओं के रूप में बह निकली। वह सिर झुकाए, चुपचाप वापस मुड़ गया। उसकी पीठ ठुकराए हुए सम्मान और भूख के बोझ से और झुक गई।
मेहमानों के बीच फुसफुसाहट शुरू हो गई। कोई बोला, “ठीक किया”, तो कोई धीरे से बोला, “इतना भी क्या?”
आरती जी ने इन सब बातों को नजरअंदाज किया और वापस अपने शानदार लंच में शामिल हो गईं। उनके लिए यह घटना एक मामूली रुकावट से ज्यादा कुछ नहीं थी।
उन्होंने अपने हाथ धोए और महंगे पकवानों की ओर मुड़ गईं।
कहानी यहीं खत्म नहीं होती।
गोलू हवेली से लगभग 50 कदम दूर पहुंचा ही था कि उसका छोटा शरीर जमीन पर गिर पड़ा। भूख और कमजोरी से वह बेहोश हो गया।
यह देखकर, पास की बस्ती में रहने वाली एक बूढ़ी महिला दौड़कर उसके पास आई। उसने शोर मचाया, आसपास के लोग इकट्ठा हो गए।
लोगों ने गोलू को उठाया, उसके चेहरे पर पानी के छींटे मारे, और पास की छोटी दुकान पर ले गए। किसी ने बिस्किट दिया, किसी ने पानी। डॉक्टर को बुलाया गया।
जब यह खबर हवेली के दरवाजे तक पहुंची, मेहमानों में हलचल मच गई। एक मेहमान, जो दिल से थोड़ा नरम था, ने आरती जी से कहा,
“आरती जी, वो बच्चा बेहोश हो गया है। आप कम से कम अपने डॉक्टर को तो भेज दीजिए।”
आरती जी तब भी अपने अहंकार में थी।
“यह सब उनका नाटक है। भीख मांगने के नए तरीके।”
पर तभी उनके पति मिस्टर शर्मा ने यह सब सुना। वे अपनी मीटिंग छोड़कर तुरंत बाहर आए। उन्होंने पूरी बात सुनी, गोलू को बेहोश देखा।
उन्हें लगा, उनकी दौलत की दीवारों के पीछे उनकी पत्नी की इंसानियत मर चुकी है।
मिस्टर शर्मा ने गोलू को गोद में उठाया, अपनी गाड़ी से सीधे अस्पताल ले गए। गोलू का पूरा इलाज करवाया।
डॉक्टर ने बताया – गोलू की हालत सिर्फ और सिर्फ गंभीर कुपोषण और अत्यधिक भूख की वजह से हुई थी।
मिस्टर शर्मा का सिर शर्म से झुक गया।
वापस हवेली पहुंचकर, मिस्टर शर्मा ने अपनी पत्नी की ओर देखा, जो अभी भी लंच की मेज पर बैठी थी।
उन्होंने बड़े शांत लेकिन कठोर स्वर में कहा,
“आरती, तुमने आज एक बच्चे को सिर्फ एक रोटी देने से मना किया।
उस एक रोटी की कीमत आज हमारी पूरी दौलत से भी ज्यादा हो गई है।
तुमने उस बच्चे को नहीं, अपनी इंसानियत को भूखा मार दिया।”
मिस्टर शर्मा ने उसी दिन एक ट्रस्ट बनाने की घोषणा की।
नाम रखा – ‘एक रोटी का घर’।
इस ट्रस्ट का मकसद था – शहर के हर भूखे बच्चे को दिन में कम से कम एक बार पेट भर खाना देना।
उन्होंने अपनी करोड़ों की संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा इस ट्रस्ट को दान कर दिया।
आरती जी स्तब्ध रह गईं। उनके पति ने उनकी दौलत से भरी दुनिया को झकझोर दिया था।
गोलू की एक रोटी की गुजारिश और आरती जी के इंकार ने मिस्टर शर्मा को यह एहसास करा दिया था कि दौलत सिर्फ इमारतें खड़ी कर सकती है, इंसानियत नहीं।
आरती जी को अपनी गलती का एहसास हुआ। वह उस रात बहुत रोईं।
अगले दिन से उन्होंने खुद ‘एक रोटी का घर’ में जाकर बच्चों के लिए खाना बनाना शुरू कर दिया।
यह सिर्फ पश्चाताप नहीं था, यह इंसानियत का पुनर्जन्म था।
और वह बच्चा गोलू, आज ‘एक रोटी का घर’ में हंसता-खेलता है, पेट भरा और दिल खुश।
संदेश:
एक रोटी की कीमत करोड़ों से ज्यादा हो सकती है, अगर उससे किसी की भूख मिट जाए।
इंसानियत दौलत में नहीं, दिल में बसती है।
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